Category: शायरी
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दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के – फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, Donon Jahan Teri Mohabbat Mein Haar Ke Faiz – Ahmad Faiz
दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के – फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, Donon Jahan Teri Mohabbat Mein Haar Ke Faiz – Ahmad Faiz दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के वीराँ है मय-कदा ख़ुम-ओ-साग़र उदास हैं तुम क्या गए कि रूठ गए दिन बहार के इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली…
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एक पर्वाज़ दिखाई दी है – गुलज़ार, Ek Parwaz Dikhai Di Hai – Gulzar
एक पर्वाज़ दिखाई दी है – गुलज़ार, Ek Parwaz Dikhai Di Hai – Gulzar एक पर्वाज़ दिखाई दी है तेरी आवाज़ सुनाई दी है सिर्फ़ इक सफ़्हा पलट कर उस ने सारी बातों की सफ़ाई दी है फिर वहीं लौट के जाना होगा यार ने कैसी रिहाई दी है जिस की आँखों में कटी थीं…
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हँस के फ़रमाते हैं वो देख के हालत मेरी – अमीर मीनाई, Hans Ke Farmate Hain Wo Dekh Ke Haalat Meri – Ameer Minai
हँस के फ़रमाते हैं वो देख के हालत मेरी – अमीर मीनाई, Hans Ke Farmate Hain Wo Dekh Ke Haalat Meri – Ameer Minai हँस के फ़रमाते हैं वो देख के हालत मेरी क्यूँ तुम आसान समझते थे मोहब्बत मेरी बअ’द मरने के भी छोड़ी न रिफ़ाक़त मेरी मेरी तुर्बत से लगी बैठी है हसरत…
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ऐ दिल वो आशिक़ी के फ़साने किधर गए – अख़्तर शीरानी, Un Ko Bulaen Aur Wo Na Aaen To Kya Karen – Akhtar Shirani
ऐ दिल वो आशिक़ी के फ़साने किधर गए – अख़्तर शीरानी, Un Ko Bulaen Aur Wo Na Aaen To Kya Karen – Akhtar Shirani उन को बुलाएँ और वो न आएँ तो क्या करें बेकार जाएँ अपनी दुआएँ तो क्या करें इक ज़ोहरा-वश है आँख के पर्दों में जल्वागर नज़रों में आसमाँ न समाएँ तो…
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आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा – बशीर बद्र, Aankhon Mein Raha Dil Mein Utar Kar Nahin Dekha Bashir Badr
आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा – बशीर बद्र, Aankhon Mein Raha Dil Mein Utar Kar Nahin Dekha Bashir Badr आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा कश्ती के मुसाफ़िर ने समुंदर नहीं देखा बे-वक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगे इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा जिस…
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हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना – अकबर इलाहाबादी, Haya Se Sar Jhuka Lena Ada Se Muskura Dena – Akbar Allahabadi
हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना – अकबर इलाहाबादी, Haya Se Sar Jhuka Lena Ada Se Muskura Dena – Akbar Allahabadi हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना हसीनों को भी कितना सहल है बिजली गिरा देना ये तर्ज़ एहसान करने का तुम्हीं को ज़ेब देता है मरज़ में मुब्तला…
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रात-भर सर्द हवा चलती रही, रात-भर हम ने अलाव तापा, Rāt-bhar Sard Havā Chaltī Rahī – Gulzar
रात-भर सर्द हवा चलती रही, रात-भर हम ने अलाव तापा, Rāt-bhar Sard Havā Chaltī Rahī – Gulzar रात-भर सर्द हवा चलती रही रात-भर हम ने अलाव तापा मैं ने माज़ी से कई ख़ुश्क सी शाख़ें काटीं तुम ने भी गुज़रे हुए लम्हों के पत्ते तोड़े मैं ने जेबों से निकालीं सभी सूखी नज़्में तुम ने…
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आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो – राहत इंदौरी, Aankh Mein Pani Rakho Honton Pe Chingari Rakho Rahat Indori
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो – राहत इंदौरी, Aankh Mein Pani Rakho Honton Pe Chingari Rakho Rahat Indori आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो राह के पत्थर से बढ़ कर कुछ नहीं हैं मंज़िलें रास्ते आवाज़ देते हैं सफ़र जारी रखो एक…
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इस भरे शहर में कोई ऐसा नहीं – अख़्तर-उल-ईमान, Is Bhare Shahr Meñ Koī Aisā Nahīñ Akhatar-ul-iman
इस भरे शहर में कोई ऐसा नहीं – अख़्तर-उल-ईमान, Is Bhare Shahr Meñ Koī Aisā Nahīñ Akhatar-ul-iman इस भरे शहर में कोई ऐसा नहीं जो मुझे राह चलते को पहचान ले और आवाज़ दे ओ बे ओ सर-फिरे दोनों इक दूसरे से लिपट कर वही गिर्द-ओ-पेश और माहौल को भूल कर गालियाँ दें हँसें हाथा-पाई…
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अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं – अहमद फ़राज़, Abhi Kuchh Aur Karishme Ghazal Ke Dekhte Hain – Ahmad Faraz
अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं – अहमद फ़राज़, Abhi Kuchh Aur Karishme Ghazal Ke Dekhte Hain – Ahmad Faraz अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं ‘फ़राज़’ अब ज़रा लहजा बदल के देखते हैं जुदाइयाँ तो मुक़द्दर हैं फिर भी जान-ए-सफ़र कुछ और दूर ज़रा साथ चल के देखते हैं रह-ए-वफ़ा…
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गले लगाएँ करें प्यार तुम को ईद के दिन – अकबर इलाहाबादी, Gale Lagaen Karen Pyar Tumko Eid Ke Din – Akbar Allahabadi
गले लगाएँ करें प्यार तुम को ईद के दिन – अकबर इलाहाबादी, Gale Lagaen Karen Pyar Tumko Eid Ke Din – Akbar Allahabadi गले लगाएँ करें प्यार तुम को ईद के दिन इधर तो आओ मिरे गुल-एज़ार ईद के दिन ग़ज़ब का हुस्न है आराइशें क़यामत की अयाँ है क़ुदरत-ए-परवरदिगार ईद के दिन सँभल सकी…
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अपने पहलू से वो ग़ैरों को उठा ही न सके – अकबर इलाहाबादी, Apne Pahlu Se Wo Ghairon Ko Utha Hi Na Sake – Akbar Allahabadi
अपने पहलू से वो ग़ैरों को उठा ही न सके – अकबर इलाहाबादी, Apne Pahlu Se Wo Ghairon Ko Utha Hi Na Sake – Akbar Allahabadi अपने पहलू से वो ग़ैरों को उठा ही न सके उन को हम क़िस्सा-ए-ग़म अपना सुना ही न सके ज़ेहन मेरा वो क़यामत कि दो-आलम पे मुहीत आप ऐसे…