Meru Trayodashi

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क्यों मनाया जाता है मेरु त्रयोदशी पर्व? (Kyu Manaya Jata Hai Meru Trayodashi)
मेरु त्रयोदशी (Meru Trayodashi) का दिन जैन धर्म के लिए काफी खास होता है. जैन कैलेंडर के अनुसार मेरु त्रयोदशी पौष माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है. मेरु त्रयोदिशी पर्व जैन धर्म के पहले तीर्थंकर ऋषभदेव या ऋषभनाथ के अष्टपद पर्वत पर निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त करने की खुशी में मनाया जाता है. जैन धर्मग्रंथों के अनुसार कैवल्य ज्ञान प्राप्त करने के लिए ऋषभदेव ने कई क्षेत्रों की पद यात्रा की थी. इसी पद यात्रा के दौरान उन्हें रास्ते में अष्टपद पर्वत मिला. (स्वर्ग से) देव (ईश्वर) ने इस पर्वत पर एक काल्पनिक गुफा (समवसरण) का निर्माण किया. ऋषभदेव ने यहां लंबे अरसे तक तप किया और अंतत: 84 लाख पर्व में कैवल्य ज्ञान प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त किया. निर्वाण-कांड के इस श्लोक में इसका उल्लेख मिलता है: अट्ठावयम्मि उसहो, चम्पाए वासुपुज्ज जिणणाहो, उज्जन्ते णेमिजिणो, पावाए णिब्बुदो महावीरो || अर्थात्, अष्टपद पर भगवान ऋषभ (ऋषभदेव), चंपा पर वासुपूज्य, उर्जयन्त (गिरनार) पर भगवान नेमि (नेमिनाथ) और पाव पर भगवान महावीर को निर्वाण की प्राप्ति हुई थी.
मेरु त्रयोदशी का पर्व पिंगल कुमार (Pingal Kumar) की स्मृति में मनाया जाता है. माना जाता है कि पिंगल कुमार ने 5 मेरू का संपल्प पूरा किया था और 20 नवकार वाली के साथ ऊँ रहीम्, श्रीम् अदिनाथ पारंगत्या नम: मंत्र का जाप किया था.आइए जानते हैं क्यों मनाया जाता है मेरू त्रयोदशी पर्व?, कैसे मनाया जाता है मेरू त्रयोदशी, मेरू त्रयोदशी पर्व की पूजा विधि, मेरू त्रयोदशी का महत्व, मेरू त्रयोदशी मान्यताएं आदि के बारे में-

मेरु त्रयोदशी पूजा विधि और मंत्र (Meru Trayodashi Puja Vidhi In Hindi, Meru Trayodashi Mantra)
1. इस दिन सभी श्रद्धालु सुबह जल्दी उठकर स्नान कर पूरे दिन निर्जला व्रत करने का संकल्प लें.
मंदिर में भगवान ऋषभनाथ की प्रतिमा स्थापित करें.
2. उनकी प्रतिमा के सामने चांदी के 5 मेरू (Silver Meru) रखें. बीच में 1 बड़ा मेरू और उसके चारों ओर 4 छोटे-छोटे मेरू रखें.
3. प्रत्येक मेरू के सामने स्वस्तिक का निशान बनाएं और धूप-दीप जलाकर घर की परंपरा के अनुसार भगवान ऋषभनाथ की पूजा करें.
4. उसके बाद ऊँ ह्रीम श्री ऋषभदेवाय पारमगत्या नम: मंत्र का 2000 बार जाप करें:
5. पूजा संपन्न करने के बाद साधु और ज़रूरतमंद लोगों को अन्न वस्त्रादि दान करें और उसके बाद अपना व्रत खोलें.
6. इस तरह 13 महीने या अधिकतम 13 वर्ष के लिए प्रत्येक मास की कृष्ण त्रयोदशी को मेरू त्रयोदशी का व्रत करें.
हालांकि मेरू त्रयोदशी का व्रत प्रत्येक मास की कृष्ण त्रयोदशी को किया जाना चाहिए. लेकिन अगर हर माह व्रत करना संभव न हो तो श्रद्धालु अपनी क्षमतानुसार नियमों का पालन करें और भगवान ऋषभनाथ की आराधना करें.

भगवान ऋषभनाथ के अन्य नाम
जैन धर्मग्रंथों में भगवान ऋषभनाथ का उल्लेख कई नामों से मिलता है. उन्हें आदिनाथ (विश्व के पहले गुरु), आदिश जिन (पहला विजेता), आदि पुरुष (पहला परिपूर्ण पुरुष), इक्क्षवाकु, विधाता आदि नामों से संबोधित किया गया है. भगवान ऋषभदेव का उल्लेख कई हिंदू धर्मग्रंथों में भी मिलता है. ऋग्वेद में ऋषभदेव की चर्चा वृषभनाथ और कहीं-कहीं वातरशना मुनि के रूप में मिलती है. शिवपुराण में उन्हें शिव के 28 अवतारों में से एक माना गया है.

मेरु त्रयोदशी महत्‍व (Meru Trayodashi Ka Mahatva)
मेरु त्रयोदिशी भगवान ऋषभनाथ (ऋषभदेव) के निर्वाण कल्याणक का दिन है जिससे इस दिन का महत्व और अधिक बढ़ जाता है. मान्यता है कि इस दिन व्रत, दान और तप करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. ऐसा माना जाता है कि भक्त को महीने के प्रत्येक 13 वें दिन, 13 महीने तक और अधिकतम 13 वर्षों के लिए यह उपवास करना होगा. उपवास के साथ कुछ नियमों का कर मनुष्य अपनी तृष्णा और वासना पर काबू पाकर आत्म संयमी बनता है और उसे तमाम दु:खों से छुटकारा मिलता है. अगर वह नियमपूर्क यह तप पूरा करता है तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. जैन धर्म में मेरु त्रयोदशी का एक विशेष महत्व है. यह विशेष त्यौहार मगशिर के तेरहवें दिन पर बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. जैन धर्म में पूजा-पाठ व अनुष्ठानों का विशेष महत्व है . यह धर्म सच्चाई और दृढ़ता के साथ जीवन को सत्य की राह पर चलने की सीख देता है.

मेरू त्रयोदशी से जुड़ी मान्यताएं (Meru Trayodashi Se Judi Manyatayen)
1. जैन धर्म के अधिकतर त्योहारों की तरह ही मेरू त्रयोदशी का संबंध भी एक विशेष संख्या से है. त्रयोदशी (तेरहवीं) तिथि से संबंधित होने के कारण इसके कुछ अनुष्ठानों में इस संख्या का ध्यान रखा जाता है. उदाहरण के लिए मेरू त्रयोदशी तप 13 वर्ष या 13 महीने में पूर्ण होता है.
2. मेरू त्रयोदशी के अधिकतर अनुष्ठान जैन धर्म के रोज़ के आम अनुष्ठानों, जैसे कि रोज़ मंदिर जाकर ईश्वर की आराधना करना, गुरु के उपदेश सुनना से भिन्न होते हैं. इनका मकसद मनुष्य को वासना और तृष्णा के बंधन से मुक्त कर तमाम दु:खों से निजात दिलाना है.
3. इस दिन निर्जला व्रत रख 5 मेरू का संकल्प लिया जाता है और भगवान ऋषभदेव की पूजा की जाती है.

क्‍यों खास मेरु त्रयोदशी का दिन (Kyu Khas Hau Meru Trayodashi)
जैन धर्मग्रंथों के अनुसार इस दिन व्रत, तप और जाप करने से मनुष्य को भौतिक सुख से परे आंतरिक सुख का आभास होता है. मोक्ष की प्राप्ति के लिए 5 मेरू का संकल्प पूरा करना जरूरी होता है. 20 नवकारवली के साथ ऊँ रहीम्, श्रीम् अदिनाथ पारंगत्या नम: मंत्र का जाप करना होता है. मान्यता है कि 13 की संख्या का मेरु त्रयोदशी के त्योहार से एक विशेष जुड़ाव है. यह काफी शुभ मानी जाती है. मेरु त्रयोदशी पर भक्त को कोविहार रुपी एक बहुत ही कठिन उपवास का पालन करना होता है. इस व्रत में आप अन्न ग्रहण नहीं कर सकते हैं. यदि कोई भक्त इस दिन व्रत करता है तो उसे साधु को दान देने की क्रिया का पालन करना होता है. ऐसा माना जाता है कि भक्त को महीने के प्रत्येक 13 वें दिन, 13 महीने तक और अधिकतम 13 वर्षों के लिए यह उपवास करना होगा. इसके अलावा इस मंत्र का जाप करना भी काफी शुभ माना जाता है ओम् रं श्रीं आदिनाथ परमंतता नम:
ओम् रं श्रीं आदिनाथ परगनाय नमः

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