Biography of Tukaram

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तुकाराम की जीवनी
जैसा कि हम सब जानते है कि महाराष्ट्र को संतो की भूमि कहा जाता है. यहां कई महान संतो ने जन्म लेकर यहां कि मिट्टी को पावन किया. इन्हीं में एक नाम है तुकाराम महाराज का जो महाराष्ट्र के भक्ति अभियान के 17 वी शताब्दी के कवी-संत थे. वे समनाधिकरवादी, व्यक्तिगत वारकरी धार्मिक समुदाय के सदस्य भी थे. तुकाराम अपने अभंग और भक्ति कविताओ के लिए जाने जाते है और अपने समुदाय में भगवान की भक्ति को लेकर उन्होंने बहुत से आध्यात्मिक गीत भी गाये है जिन्हें स्थानिक भाषा में कीर्तन कहा जाता है. उनकी कविताए विट्ठल और विठोबा को समर्पित होती थी.

पूरा नाम: – संत तुकाराम
जन्म: – 1598
जन्म स्थान: – पुणे ज़िले के एक देहू नामक गांव में
पद/कार्य: – कवि

तुकाराम का प्रारंभिक जीवन
तुकाराम का जन्म पुणे जिले के अंतर्गत देहू नामक ग्राम में शके 1520; सन्‌ 1598 में हुआ. इनकी जन्मतिथि के संबंध में विद्वानों में मतभेद है तथा सभी दृष्टियों से विचार करने पर शके 1520 में जन्म होना ही मान्य प्रतीत होता है. पूर्व के आठवें पुरुष विश्वंभर बाबा से इनके कुल में विट्ठल की उपासना बराबर चली आ रही थी. इनके कुल के सभी लोग पंढरपुर की यात्रा (वारी) के लिये नियमित रूप से जाते थे. देहू गाँव के महाजन होने के कारण वहाँ इनका कुटूंब प्रतिष्ठित माना जाता था.

इनकी बाल्यावस्था माता कनकाई व पिता बहेबा (बोल्होबा) की देखरेख में अत्यंत दुलार से बीती, किंतु जब ये प्राय: 18 वर्ष के थे इनके मातापिता का स्वर्गवास हो गया तथा इसी समय देश में पड़ भीषण अकाल के कारण इनकी प्रथम पत्नी व छोटे बालक की भूख के कारण तड़पते हुए मृत्यु हो गई. विपत्तियों की ये बातें झूटी हैं संत तुकाराम उस जमाने में बहुत बडे जमीदार और सावकार थे ये झुटे बातेहै ये लिखावटे झूठी है ज्वालाओं में झुलसे हुए तुकाराम का मन प्रपंच से ऊब गया. इनकी दूसरी पत्नी जीजा बाई बड़ी ही कर्कशा थी. ये सांसारिक सुखों से विरक्त हो गए. चित्त को शांति मिले, इस विचार से तुकाराम प्रतिदिन देहू गाँव के समीप भावनाथ नामक पहाड़ी पर जाते और भगवान्‌ विट्ठल के नामस्मरण में दिन व्यतीत करते.

उनका परिवार कुनबी समाज से था. तुकाराम के परिवार का खुद का खुदरा ब्रिक्री और पैसे उधारी पर देने का व्यवसाय था, साथ ही उनका परिवार खेती और व्यापार भी करता था उनके पिता विठोबा के भक्त थे, विठोबा को हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है. संत तुकाराम की पहली पत्नी राखाम्मा बाई थी और उनसे उनका एक बेटा संतु भी हुआ. जबकि उनके दोनों बेटे और दोनों पत्नियाँ 1630-1932 के अकाल में भूक से मौत हुयी थी.

उनकी मृत्यु और फ़ैल रही गरीबी का सबसे ज्यादा प्रभाव तुकाराम पर गिरा, जो बाद में ध्येय निश्चित कर महाराष्ट्र के सह्याद्री पर्वत श्रुंखला पर ध्यान लगाने चले गये और जाने से पहले उन्होंने लिखा था की, उन्हें खुद से चर्चा करनी है. इसके बाद तुकाराम ने दोबारा शादी की और उनकी दूसरी पत्नी का नाम अवलाई जीजा बाई था. लेकीन इसके बाद उन्होंने अपना ज्यादातर समय पूजा, भक्ति, सामुदायिक कीर्तन और अभंग कविताओ में ही व्यतीत किया.

दुनियादारी निभाते एक आम आदमी संत कैसे बना, साथ ही किसी भी जाति या धर्म में जन्म लेकर उत्कट भक्ति और सदाचार के बल पर आत्मविकास साधा जा सकता है. यह विश्वास आम इंसान के मन में निर्माण करने वाले थे संत तुकाराम यानी तुकोबा अपने विचारों, अपने आचरण और अपनी वाणी से अर्थपूर्ण तालमेल साधते अपनी जिंदगी को परिपूर्ण करने वाले तुकाराम जनसामान्य को हमेशा कैसे जीना चाहिए, यही प्रेरणा देते हैं. उनके जीवन में एक समय ऐसा भी जब वे जिंदगी के पूर्वार्द्ध में आए हादसों से हार कर निराश हो चुके थे.

जिंदगी पर उनका भरोसा उठ चुका था. ऐसे में उन्हें किसी सहारे की बेहद जरूरत थी, लौकिक सहारा तो किसी का था नहीं. सो पाडुरंग पर उन्होंने अपना सारा भार सौंप दिया और साधना शुरू की, जबकि उस वक्त उनके गुरु कोई भी नहीं थे. भक्ति की परपंरा का जतन करके नामदेव भक्ति की अभंग रचना की. दुनियादारी से लगाव छोड़ने की बात भले ही तुकाराम ने कही हो लेकिन दुनियादारी मत करो, ऐसा कभी नहीं कहा. सच कहें तो किसी भी संत ने दुनियादारी छोड़ने की बात की ही नहीं. उल्टे संत नामदेव, एकनाथ ने सही व्यवस्थित तरीके से दुनियादारी निभाई.

यह संत तुकाराम के जीवन की एक कहानी हैं . जब वह महाराष्ट्र में रहते थे .उसी दौरान शिवाजी महाराज ने उन्हें बहुमूल्य वस्तुएं भेंट में भेजी जिनमें हीरे, मोती, स्वर्ण और कई वस्त्र थे . परन्तु संत तुकाराम ने सभी बहुमूल्य वस्तुए वापस भिजवा दिए और कहा – हे महाराज ! मेरे लिए यह सब व्यर्थ हैं मेरे लिए स्वर्ण और मिट्टी में कोई अन्तर नहीं हैं जब से इस परमात्मा ने मुझे अपने दर्शन दिए हैं मैं स्वतः ही तीनों लोकों का स्वामी बन गया हूँ . यह सब व्यर्थ सामान वापस देता हूँ. जब यह सन्देश महाराज शिवाजी के पास पहुंचा तब महाराज शिवाजी का मन ऐसे सिद्ध संत से मिलने के लिए व्याकुल हो उठा और उन्होंने उसी वक्त उसने मिलने के लिए प्रस्थान किया.

तुकाराम सांसारिक सुखों से विरक्त होते जा रहे थे. इनकी दूसरी पत्नी जीजाबाई धनी परिवार की पुत्री और बड़ी ही कर्कशा स्वभाव की थी. अपनी पहली पत्नी और पुत्र की मृत्यु के बाद तुकाराम काफ़ी दु:खी थे. अब अभाव और परेशानी का भयंकर दौर शुरू हो गया था. तुकाराम का मन विट्ठल के भजन गाने में लगता, जिस कारण उनकी दूसरी पत्नी दिन-रात ताने देती थी. तुकाराम इतने ध्यान मग्न रहते थे कि एक बार किसी का सामान बैलगाड़ी में लाद कर पहुँचाने जा रहे थे. पहुँचने पर देखा कि गाड़ी में लदी बोरियाँ रास्ते में ही गायब हो गई हैं. इसी प्रकार धन वसूल करके वापस लौटते समय एक गरीब ब्राह्मण की करुण कथा सुनकर सारा रुपया उसे दे दिया.

पिता की मौत के एक वर्ष पश्चात माता कनकाई का स्वर्गवास हुआ. तुकाराम जी पर दुःखों का पहाड टूट पड़ा. माँ ने लाडले के लिए क्या नहीं किया था? उसके बाद अठारह बरस की उम्र में ज्येष्ठ बंधु सावजी की पत्नी (भावज) चल बसी. पहले से ही घर-गृहस्थी में सावजी का ध्यान न था. पत्नी की मृत्यु से वे घर त्यागकर तीर्थयात्रा के लिए निकल गए. जो गए, वापस लौटे ही नहीं. परिवार के चार सदस्यों को उनका बिछोह सहना पड़ा. जहाँ कुछ कमी न थी, वहाँ अपनों की, एक एक की कमी खलने लगी. तुकाराम जी ने सब्र रखा. वे हिम्मत न हारे. उदासीनता, निराशा के बावजूद उम्र की 20 साल की अवस्था में सफलता से घर-गृहस्थी करने का प्रयास करने लगे.

परंतु काल को यह भी मंजूर न था. एक ही वर्ष में स्थितियों ने प्रतिकूल रूप धारण किया. दक्खिन में बडा अकाल पड़ा. महाभयंकर अकाल समय था 1629 ईस्वी का देरी से बरसात हुई. हुई तो अतिवृष्टि में फसल बह गई. लोगों के मन में उम्मीद की किरण बाकी थी. पर 1630 ईस्वी में बिल्कुल वर्षा न हुई. चारों ओर हाहाकार मच गया. अनाज की कीमतें आसमान छूने लगीं. हरी घास के अभाव में अनेक प्राणी मौत के घाट उतरे. अन्न की कमी सैकडों लोगों की मौत का कारण बनी. धनी परिवार मिट्टी चाटने लगे. दुर्दशा का फेर फिर भी समाप्त न हुआ. सन् 1631 ईस्वी में प्राकृतिक आपत्तियाँ चरम सीमा पार कर गईं. अतिवृष्टि तथा बाढ की चपेट से कुछ न बचा. अकाल तथा प्रकृति का प्रकोप लगातार तीन साल झेलना पड़ा.

तुकाराम के प्रसंग
तुकाराम ने जब अपना सब कुछ गरीबों में बांट दिया तो एक दिन घर में फाके की नौबत आ गई. पत्नी बोली- बैठे क्यों हो, खेत में गन्ने है, एक गठरी बांध लाओ. आज का दिन तो निकल जाएगा. तुकाराम खेत से एक गट्ठर गन्ने लेकर घर को चले तो रास्ते में मांगने वाले पीछे पड़ गए. तुकाराम एक–एक गन्ना सबको देते गए, जब घर गए तो केवल एक गन्ना बचा था जिसे देख कर भूखी पत्नी आग बबूला हो गई.

तुकाराम से गन्ना छीनकर वह उन्हे मारने लगी, जब गन्ना टूट गया तो उसका क्रोध शांत हुआ. शांत तुकाराम मार खाकर भी हंसते हुए बोले- गन्ने के दो टुकडे हो गए हैं. एक तुम चूस लो एक मैं चूस लूंगा. क्रोध के प्रचंड दावानल के सामने क्षमा और प्रेम का अनंत समुद्र देखकर पत्नी की आंखों में आंसू आ गए. तुकाराम ने उसके आंसू पूछे और सारा गन्ना छीलकर उन्हें खिला दिया.

तुकाराम के साखियाँ
1- तुका बस्तर बिचारा क्या करे रे / संत तुकाराम
2- लोभी के चित्त धन बैठे / संत तुकाराम
3- चित्त मिले तो सब मिले / संत तुकाराम
4- तुका संगत तीन्हसे कहिए / संत तुकाराम
5- सन्त पन्हयाँ लेव खड़ा / संत तुकाराम

तुकाराम की रचनाँए
1
मैं भुली घरजानी बाट . गोरस बेचन आयें हाट ॥1॥
कान्हा रे मनमोहन लाल . सब ही बिसरूं देखें गोपाल ॥ध्रु.॥
काहां पग डारूं देख आनेरा . देखें तों सब वोहिन घेरा ॥2॥
हुं तों थकित भैर तुका . भागा रे सब मनका धोका ॥3॥
2
हरिबिन रहियां न जाये जिहिरा . कबकी थाडी देखें राहा ॥1॥
क्या मेरे लाल कवन चुकी भई . क्या मोहिपासिती बेर लगाई ॥ध्रु.॥
कोई सखी हरी जावे बुलावन . बार हि डारूं उसपर तन ॥2॥
तुका प्रभु कब देखें पाऊं . पासीं आऊं फेर न जाऊं ॥3॥
3
भलो नंदाजीको डिकरो . लाज राखीलीन हमारो ॥1॥
आगळ आवो देवजी कान्हा . मैं घरछोडी आहे ह्मांना ॥ध्रु.॥
उन्हसुं कळना वेतो भला . खसम अहंकार दादुला ॥2॥
तुका प्रभु परवली हरी .छपी आहे हुं जगाथी न्यारी ॥3॥

तुकाराम के हिन्दी पद
1- खेलो आपने रामहि सात / संत तुकाराम
2- तीनसों हम करवों सलाम / संत तुकाराम
3- राम कहे त्याके पगहूँ लागूँ / संत तुकाराम
4- मेरे राम को नाम जो लेवे बारों-बार / संत तुकाराम
5- राम कहो जीवना फल सो ही / संत तुकाराम
6- काहे रोवे आगले मरा / संत तुकाराम
7- आप तरे त्याकी कोण बराई / संत तुकाराम
8- जग चले उस घाट कौन जाय / संत तुकाराम
9- काहे भुला सम्पत्ति घोरे / संत तुकाराम
10- बार-बार काहे मरत अभागी / संत तुकाराम

तुकाराम के अभंग
तम भज्याय ते बुरा जिकीर ते करे .
सीर काटे ऊर कुटे ताहां सब डरे ॥1॥
ताहां एक तु ही ताहां एक तु ही .
ताहां एक तु ही रे बाबा हमें तुह्में नहीं ॥ध्रु.॥
दिदार देखो भुले नहीं किशे पछाने कोये .
सचा नहीं पकडुं सके झुटा झुटे रोये ॥2॥
किसे कहे मेरा किन्हे सात लिया भास .
नहीं मेलो मिले जीवना झुटा किया नास ॥3॥
सुनो भाई कैसा तो ही . होय तैसा होय .
बाट खाना आल्ला कहना एकबारां तो ही ॥4॥
भला लिया भेक मुंढे . आपना नफा देख .
कहे तुका सो ही संका . हाक आल्ला एक ॥5॥

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