Biography of saint gyaneshwar

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संत ज्ञानेश्वर की जीवनी
भारत के महाराष्ट्र को संतो की भूमि कहा जाता है. महाराष्ट्र की धरती पर कई महान संतो ने जन्म लिया जिनमें एक थे संत ज्ञानेश्वर वो संत होने के साथ-साथ एक महान कवि भी थे. उनका जन्म 1275 ईसवी में भाद्रपद के कृष्ण अष्टमी को हुआ था. महान संत ज्ञानेश्वर जी ने संपूर्ण महाराष्ट्र राज्य का भ्रमण कर लोगों को ज्ञान भक्ति से परिचित कराया एवं समता, समभाव का उपदेश दिया. 13वीं सदी के महान संत होने के साथ-साथ वे महाराष्ट्र-संस्कृति के आद्य प्रवर्तकों में से भी एक माने जाते थे.

पूरा नाम: – संत ज्ञानेश्वर
जन्म: – 1275 ई.
जन्म स्थान: – महाराष्ट्र
मृत्यु: – 1296 ई.
पद/कार्य: – संत, कवि

संत ज्ञानेश्वर जी का शुरुआती जीवन काफी कष्टों से गुजरा, उन्हें अपने शुरुआती जीवन में तमाम मुसीबतों का सामना करना पड़ा था. जब वे बेहद छोटे थे, तभी उन्हें जाति से बहिष्कृत कर दिया गया, यहां तक की उनके पास रहने को झोपड़ी तक नहीं थी, संयासी के बच्चे कहकर उनका अपमान किया गया. वहीं ज्ञानेश्वर जी के माता-पिता ने भी समाज का अपमान सहने के बाद अपने प्राण त्याग दिए थे.

जिसके बाद ज्ञानेश्वर जी अनाथ हो गए लेकिन फिर भी वे घबराए नहीं और बड़ी समझदारी और हिम्मत से अपने जीवन का निर्वाह किया. जब वे महज 15 साल के थे, तब उन्होंने खुद को भगवान कृष्ण की भक्ति में खुद को पूरी तरह लीन कर लिया था और वे एक साध्य योगी बन चुके थे.

उन्होंने अपने नाम के ज्ञानेश्वरी नामक ग्रंथ की रचना की. उनका यह ग्रंथ मराठी भाषा का सबसे अधिक पसंद किए जाने वाला अद्धितीय ग्रंथ माना जाता है, उन्होंने अपने इस ग्रंथ में करीब 10 हजार पद्यों की रचना की है. आइए जानते हैं भारत के इस महान संत ज्ञानेश्वर जी और उनके जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में-

संत ज्ञानेश्वर जी का जन्म, परिवार एवं प्रारंभिक जीवन
आपको बता दें कि भारत के महान संत ज्ञानेश्वर जी 1275 ईसवी में महाराष्ट्र के अहमदनगर ज़िले में पैठण के पास गोदावरी नदी के किनारे बसे आपेगांव में भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन विट्ठल पंत और रुक्मिणी बाई के घर पैदा हुए थे. इनके पिता एक ब्राह्मण थे.

उनके पिता ने शादी के कई सालों बाद कोई संतान पैदा नहीं होने पर अपनी पत्नी रुक्मिणी बाई की सहमति से संसारिक मोह-माया को त्याग कर वे काशी चले गए और उन्होंने संयासी जीवन ग्रहण कर लिया. इस दौरान उनके पिता विट्ठल पंत ने स्वामी रामानंद जी को अपना गुरु बना लिया था.

वहीं कुछ समय बाद जब संत ज्ञानेश्वर जी के गुरु स्वामी रामानंद जी अपनी भारत यात्रा के दौरान आलंदी गांव पहुंचे, तब विट्ठल पंत की पत्नी से मिले और स्वामी जी ने उन्हें संतान प्राप्ति का आशीर्वाद दे दिया. जिसके बाद रुक्मिणी बाई ने स्वामी रामानंद जी को उनके पति विट्ठल पंत की संयासी जीवन ग्रहण करने की बात बताई, जिसके बाद स्वामी रामानंद जी ने विट्ठल पंत को फिर से ग्रहस्थ जीवन अपनाने का आदेश दिया.

इसके बाद उन्हें संत ज्ञानेश्वर समेत निवृत्तिनाथ, सोपानदेव और 1 बेटी मुक्ताबाई पैदा हुई. संयासी जीवन छोड़कर ग्रहस्थ जीवन फिर से अपनाने की वजह से ज्ञानेश्वर जी के पिता विट्ठल पंत का समाज से बहिष्कृत कर दिया था, और इनका बड़ा अपमान किया. जिसके बाद ज्ञानेश्वर के माता-पिता इस अपमान के बोझ को सह न सके और उन्होंने त्रिवेणी में डूबकर प्राण त्याग कर दिए.

माता-पिता की मौत के बाद संत ज्ञानेश्वर और उनके सभी भाई-बहन अनाथ हो गए. वहीं लोगों ने उन्हें गांव के अपने घर में तक नहीं रहने दिया, जिसके बाद अपना पेट पालने के लिए संत ज्ञानेश्वर को बचपन में भीख मांगने तक को मजबूर होना पड़ा था.

संत ज्ञानेश्वरजी की शुद्धिपत्र की प्राप्ति
काफी कष्टों और संघर्षों के बाद संत ज्ञानेश्वर जी के बड़े भाई निवृत्तिनाथ जी को गुरु गैनीनाथ से मुलाकात हुई. वे उनके पिता विट्ठल पंत जी के गुरु रह चुके थे, उन्होंने निवृत्तिनाथ जी को योगमार्ग की दीक्षा और कृष्ण की आराधना करने का उपदेश दिया, इसके बाद निवृत्तिनाथ जी ने अपने छोटे भाई ज्ञानेश्वर को भी दीक्षित किया.

इसके बाद संत ज्ञानेश्वर अपने भाई के साथ बड़े-बड़े विद्धानों और पंडितों से शुद्दिपत्र लेने के उद्देश्य से वे अपने पैतृक गांव पैठण पहुंचे. वहीं इस गांव में वे दोनों कई दिनों तक रहें, उन दोनों की इस गांव में रहने के दिनों की कई चमत्कारिक कथाएं भी प्रचलित हैं.

बाद में संत ज्ञानेश्वर जी की चमत्कारिक शक्तियों को देखकर गांव के लोग उनका आदर करने लगे और पंडितों ने भी उन्हें शुद्धिपत्र दे दिया.

संत ज्ञानेश्वर जी की प्रसिद्ध रचनाएं
अगर बात करें उनकी रचनाओं के बारें में तो संत ज्ञाने्श्वर जी जब महज 15 साल के थे, तभी वे भगवान श्री कृषण के बहुत बड़े उपासक और योगी बन चुके थे. उन्होंने अपने बड़े भाई से दीक्षा लेकर महज 1 साल के अंदर भी हिन्दू धर्म के सबसे बड़े महाकाव्यों में से एक भगवतगीता पर टीका लिखी, उनके नाम पर ज्ञानेश्वरी नामक यह ग्रंथ उनका सबसे अधिक प्रसिद्ध ग्रंथ कहलाया.

ज्ञानेश्वरी ग्रंथ मराठी भाषा में लिखित अप्रितम ग्रंथ माना जाता है. आपको बता दें कि संत ज्ञानेश्वर जी ने अपने इस प्रसिद्ध ग्रंथ में करीब 10 हजार पद्यों में लिखा गया है. इसके अलावा संत ज्ञानेश्वर जी ने हरिपाठ नामक किताब की रचना की है, जो कि भागवतमत से प्रभावित है. इसके अलावा संत ज्ञानेश्वर जी द्धारा रचित अन्य प्रमुख ग्रंथों में योगवसिष्ठ टीका, चांगदेवपासष्टी, अमृतानुभव आदि है.

संत ज्ञानेश्वर जी की मृत्यु
महज 21 साल की अल्पायु में 1296 ईसवी में भारत के महान संत एवं प्रसिद्ध मराठी कवि संत ज्ञानेश्वर जी ने संसारिक मोह-माया को त्याग कर समाधि ग्रहण कर ली. उनकी समाधि अलंदी में सिध्देश्वर मंदिर परिसर में स्थित है. वहीं उनके उपदेशों और उनके द्धारा रचित महान ग्रंथों के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है.

ज्ञानेश्वर जी के कुछ महत्वपूर्ण मराठी अभंग
अधिक देखणें तरी
अरे अरे ज्ञाना झालासी
अवघाचि संसार सुखाचा
अवचिता परिमळू
आजि सोनियाचा दिनु
एक तत्त्व नाम दृढ धरीं
काट्याच्या अणीवर वसले
कान्होबा तुझी घोंगडी
घनु वाजे घुणघुणा
जाणीव नेणीव भगवंती
जंववरी रे तंववरी
तुज सगुण ह्मणों कीं
तुझिये निडळीं
दिन तैसी रजनी झाली गे
मी माझें मोहित राहिलें
पांडुरंगकांती दिव्य तेज
पंढरपुरीचा निळा
पैल तो गे काऊ
पडिलें दूरदेशीं
देवाचिये द्वारीं उभा
मोगरा फुलला
योगियां दुर्लभ तो म्यां
रुणुझुणु रुणुझुणु रे
रूप पाहतां लोचनीं

संत ज्ञानेश्वर के Pasaydan – पसायदान मराठी
आता विश्वात्मकें देवें. येणे वाग्यज्ञें तोषावें.
तोषोनिं मज द्यावे. पसायदान हें॥
जें खळांची व्यंकटी सांडो.
तया सत्कर्मी- रती वाढो.
भूतां परस्परे पडो. मैत्र जिवाचें॥
दुरितांचे तिमिर जावो.
विश्व स्वधर्म सूर्यें पाहो.
जो जे वांच्छिल तो तें लाहो. प्राणिजात॥
वर्षत सकळ मंगळी.
ईश्वरनिष्ठांची मांदियाळी.
अनवरत भूमंडळी. भेटतु भूतां॥
चलां कल्पतरूंचे आरव.
चेतना चिंतामणींचें गाव.
बोलते जे अर्णव. पीयूषाचे॥
चंद्रमे जे अलांछन.
मार्तंड जे तापहीन.
ते सर्वांही सदा सज्जन. सोयरे होतु॥
किंबहुना सर्व सुखी. पूर्ण होऊनि तिन्हीं लोकी.
भजिजो आदिपुरुखी. अखंडित॥
आणि ग्रंथोपजीविये. विशेषीं लोकीं इयें.
दृष्टादृष्ट विजयें. होआवे जी.
येथ ह्मणे श्री विश्वेशराओ. हा होईल दान पसावो.
येणें वरें ज्ञानदेवो. सुखिया जाला॥

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