Biography of Deendayal Upadhyay

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पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जीवनी
आज हम इस लेख में आपको एक भारतीय विचारक, अर्थशाष्त्री, समाजशाष्त्री, इतिहासकार और पत्रकार दीनदयाल उपाध्याय के बारें में बताने जा रहे है. बता दें कि उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निर्माण में महत्वपूर्ण भागीदारी निभाई और भारतीय जनसंघ (वर्तमान, भारतीय जनता पार्टी) के अध्यक्ष भी बने. इन्होने ब्रिटिश शासन के दौरान भारत द्वारा पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता और पश्चिमी लोकतंत्र का आँख बंद कर समर्थन का विरोध किया. यद्यपि उन्होंने लोकतंत्र की अवधारणा को सरलता से स्वीकार कर लिया, लेकिन पश्चिमी कुलीनतंत्र, शोषण और पूंजीवादी मानने से साफ इनकार कर दिया था. इन्होंने अपना जीवन लोकतंत्र को शक्तिशाली बनाने और जनता की बातों को आगे रखने में लगा दिया.

पूरा नाम Born – पण्डित दीनदयाल उपाध्याय Pandit Deendayal Upadhyay
राष्ट्रीयता Nationality – भारतीय Indian
जन्म – 25 सितम्बर 1916 (उम्र 51 वर्ष)
जन्मस्थान – जिला मथुरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत
मृत्यु – 11 फ़रवरी 1968
शिक्षा Education – राजकीय उच्च विद्यालय, पिलानी झुनझुनू, राजस्थान, सनातन धर्म कॉलेज, कानपुर
सेंट जॉन्स कॉलेज, आगरा Government High School, Pilani Jhunjhunu, Rajasthan, Sanatan Dharma College, Kanpur St. John’s College, Agra
शैक्षिक योग्यता educational qualification – अंग्रेजी में परास्नातक (पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी) Masters in English (dropped out of studies)
काम Occupation – राजनीतिज्ञ Politician

दीनदयाल उपाध्याय का बचपन और प्रारंभिक जीवन
आपको बता दें कि दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितम्बर, 1916 को राजस्थान के धन्किया में एक मध्यम वर्गीय प्रतिष्ठित हिंदू परिवार में हुआ था. उनके परदादा का नाम पंडित हरिराम उपाध्याय था, जो एक प्रख्यात ज्योतिषी थे. उनके पिता जी का नाम श्री भगवती प्रसाद उपाध्याय तथा मां का नाम रामप्यारी था. उनके पिता जलेसर में सहायक स्टेशन मास्टर के रूप में कार्यरत थे और माँ बहुत ही धार्मिक विचारधारा वाली महिला थीं. इनके छोटे भाई का नाम शिवदयाल उपाध्याय था. दुर्भाग्यवश जब उनकी उम्र मात्र ढाई वर्ष की थी तो उनके पिता का असामियक निधन हो गया. इसके बाद उनका परिवार उनके नाना के साथ रहने लगा. यहां उनका परिवार दुखों से उबरने का प्रयास ही कर रहा था कि तपेदिक रोग के इलाज के दौरान उनकी माँ दो छोटे बच्चों को छोड़कर संसार से चली गयीं. सिर्फ यही नहीं जब वे मात्र 10 वर्षों के थे तो उनके नाना का भी निधन हो गया.

उनके मामा ने उनका पालन पोषण अपने ही बच्चों की तरह किया. छोटी अवस्था में ही अपना ध्यान रखने के साथ-साथ उन्होंने अपने छोटे भाई के अभिभावक का दायित्व भी निभाया परन्तु दुर्भाग्य से भाई को चेचक की बीमारी हो गयी और 18 नवंबर, 1934 को उसका निधन हो गया. दीनदयाल ने कम ऊम्र में ही अनेक उतार-चढ़ाव देखा, परंतु अपने दृढ़ निश्चय से जिन्दगी में आगे बढ़े. उन्होंने सीकर से हाई स्कूल की परीक्षा पास की. जन्म से बुद्धिमान और उज्ज्वल प्रतिभा के धनी दीनदयाल को स्कूल और कॉलेज में अध्ययन के दौरान कई स्वर्ण पदक और प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त हुए. उन्होंने अपनी स्कूल की शिक्षा जीडी बिड़ला कॉलेज, पिलानी, और स्नातक की की शिक्षा कानपुर विश्वविद्यालय के सनातन धर्म कॉलेज से पूरी की. इसके पश्चात उन्होंने सिविल सेवा की परीक्षा पास की लेकिन आम जनता की सेवा की खातिर उन्होंने इसका परित्याग कर दिया.

आर.एस.एस. के साथ पंडित दीनदयाल उपाध्याय सम्बन्ध
दीनदयाल उपाध्याय अपने जीवन के प्रारंभिक वर्षों से ही समाज सेवा के प्रति अत्यधिक समर्पित थे. वर्ष 1937 में अपने कॉलेज के दिनों में वे कानपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) के साथ जुड़े. वहां उन्होंने आर.एस.एस. के संस्थापक डॉ. हेडगेवार से बातचीत की और संगठन के प्रति पूरी तरह से अपने आपको समर्पित कर दिया. वर्ष 1942 में कॉलेज की शिक्षा पूर्ण करने के बाद उन्होंने न तो नौकरी के लिए प्रयास किया और न ही विवाह का, बल्कि वे संघ की शिक्षा का प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए आर.एस.एस. के 40 दिवसीय शिविर में भाग लेने नागपुर चले गए.

जनसंघ के साथ पंडित दीनदयाल उपाध्याय सम्बन्ध
भारतीय जनसंघ की स्थापना डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा वर्ष 1951 में किया गया एवं दीनदयाल उपाध्याय को प्रथम महासचिव नियुक्त किया गया. वे लगातार दिसंबर 1967 तक जनसंघ के महासचिव बने रहे. उनकी कार्यक्षमता, खुफिया गतिधियों और परिपूर्णता के गुणों से प्रभावित होकर डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी उनके लिए गर्व से सम्मानपूर्वक कहते थे कि- यदि मेरे पास दो दीनदयाल हों, तो मैं भारत का राजनीतिक चेहरा बदल सकता हूं. परंतु अचानक वर्ष 1953 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के असमय निधन से पूरे संगठन की जिम्मेदारी दीनदयाल उपाध्याय के युवा कंधों पर आ गयी. इस प्रकार उन्होंने लगभग 15 वर्षों तक महासचिव के रूप में जनसंघ की सेवा की. भारतीय जनसंघ के 14वें वार्षिक अधिवेशन में दीनदयाल उपाध्याय को दिसंबर 1967 में कालीकट में जनसंघ का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया.

पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक लेखक के रूप में
दीनदयाल उपाध्याय के अन्दर की पत्रकारिता तब प्रकट हुई जब उन्होंने लखनऊ से प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका राष्ट्रधर्म में वर्ष 1940 के दशक में कार्य किया. अपने आर.एस.एस. के कार्यकाल के दौरान उन्होंने एक साप्ताहिक समाचार पत्र पांचजन्य और एक दैनिक समाचार पत्र स्वदेश शुरू किया था. उन्होंने नाटक चंद्रगुप्त मौर्य और हिन्दी में शंकराचार्य की जीवनी लिखी. उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. के.बी. हेडगेवार की जीवनी का मराठी से हिंदी में अनुवाद किया. उनकी अन्य प्रसिद्ध साहित्यिक कृतियों में सम्राट चंद्रगुप्त, जगतगुरू शंकराचार्य, अखंड भारत क्यों हैं, राष्ट्र जीवन की समस्याएं, राष्ट्र चिंतन और राष्ट्र जीवन की दिशा आदि हैं.

भारतीय लोकतंत्र और समाज के प्रति पंडित दीनदयाल उपाध्याय विचार
दीनदयाल उपाध्याय की अवधारणा थी कि आजादी के बाद भारत का विकास का आधार अपनी भारतीय संस्कृति हो न की अंग्रेजों द्वारा छोड़ी गयी पश्चिमी विचारधारा. हालांकि भारत में लोकतंत्र आजादी के तुरंत बाद स्थापित कर दिया गया था, परंतु दीनदयाल उपाध्याय के मन में यह आशंका थी कि लम्बे वर्षों की गुलामी के बाद भारत ऐसा नहीं कर पायेगा. उनका विचार था कि लोकतंत्र भारत का जन्मसिद्ध अधिकार है न की पश्चिम (अंग्रेजों) का एक उपहार. वे इस बात पर भी बल दिया करते थे कि कर्मचारियों और मजदूरों को भी सरकार की शिकायतों के समाधान पर ध्यान देना चाहिए. उनका विचार था कि प्रत्येक व्यक्ति का सम्मान करना प्रशासन का कर्तव्य होना चाहिए. उनके अनुसार लोकतंत्र अपनी सीमाओं से परे नहीं जाना चाहिए और जनता की राय उनके विश्वास और धर्म के आलोक में सुनिश्चित करना चाहिए.

एकात्म मानववाद की अवधारणा
दीनदयाल द्वारा स्थापित एकात्म मानववाद की अवधारणा पर आधारित राजनितिक दर्शन भारतीय जनसंघ (वर्तमान भारतीय जनता पार्टी) की देन है. उनके अनुसार एकात्म मानववाद प्रत्येक मनुष्य के शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा का एक एकीकृत कार्यक्रम है. उन्होंने कहा कि एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में भारत पश्चिमी अवधारणाओं जैसे- व्यक्तिवाद, लोकतंत्र, समाजवाद, साम्यवाद और पूंजीवाद पर निर्भर नहीं हो सकता है. उनका विचार था कि भारतीय मेधा पश्चिमी सिद्धांतों और विचारधाराओं से घुटन महसूस कर रही है, परिणामस्वरूप मौलिक भारतीय विचारधारा के विकास और विस्तार में बहुत बाधा आ रही है.

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का निधन
19 दिसंबर 1967 को दीनदयाल उपाध्याय को भारतीय जनसंघ का अध्यक्ष चुना गया पर नियति को कुछ और ही मंजूर था. 11 फ़रवरी, 1968 की सुबह मुग़ल सराय रेलवे स्टेशन पर दीनदयाल का निष्प्राण शरीर पाया गया. इसे सुनकर पूरे देश दु:ख में डूब गया. इस महान नेता को श्रद्धांजलि देने के लिए राजेंद्र प्रसाद मार्ग पर भीड़ उमड़ पड़ी. उन्हें 12 फरवरी, 1968 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और मोरारजी देसाई द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित की गई. आजतक उनकी मौत एक अनसुलझी पहेली बनी हुई है.

दीनदयाल उपाध्याय से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें
1- दीनदयाल उपाध्याय का जन्म भगवती प्रसाद उपाध्याय व रामप्यारी के घर नगला चंदभान( फरह, मथुरा) में हुआ था. जहां उनके पिता जलेसर रोड स्टेशन पर सहायक स्टेशन मास्टर थे.
2- उनके पिता का रेलवे में स्टेशन अधिकारी होने के एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरण होता रहता था, जिसके कारण दीनदयाल अपने पिता के साथ न रहकर अपने नाना चुन्नीलाल के यहां रहते थे.
3- जब दीनदयाल 3 साल के थे, तब उनके पिता का निधन हो गया था. जिसके कारण उनकी माँ बीमार रहने लगी और श्रय रोग की घातक बीमारी से मृत्यु को प्राप्त हुई.
4- दीनदयाल उपाध्याय ने पिलानी, आगरा तथा प्रयाग से शिक्षा प्राप्त करते हुए बी०.एससी० बी०टी० की डिग्री प्राप्त की.
5- कॉलेज दिनों से ही वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय कार्यकर्ता थे.
6- वर्ष 1937 में, वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) से जुड़े. जहां उन्होंने संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार से बातचीत की और संगठन के प्रति अपनी सच्ची निष्ठा व्यक्त की.
7- उन्होंने भारत की उच्च स्तरीय परीक्षा सिविल सेवा की परीक्षा पास की, लेकिन आम जनता की सेवा के लिए दीनदयाल ने सिविल सेवा परीक्षा का परित्याग कर दिया.
8- वर्ष 1942 में कॉलेज की शिक्षा पूरी करने के बाद दीनदयाल ने न तो कोई नौकरी की और न ही विवाह किया, बल्कि संघ की शिक्षा का प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए 40 दिवसीय शिविर में भाग लेने नागपुर चले गए.
9- वर्ष 1951 में, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी, जहां दीनदयाल उपाध्याय को प्रथम महासचिव नियुक्त किया गया था.
10- उन्होंने 15 वर्षों तक महासचिव के रूप में जनसंघ की सेवा की और दिसंबर 1967 में, भारतीय जनसंघ के 14वें वार्षिक अधिवेशन कालीकट में उन्हें भारतीय जनसंघ का अध्यक्ष नियुक्त किया गया.
11- वर्ष 1940 के दशक में, उन्होंने लखनऊ में प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका राष्ट्र धर्म में एक पत्रकार के रूप में कार्य किया.
12- उन्होंने कई साहित्यिक कृतियां भी लिखी है – जैसे सम्राट चंद्रगुप्त, जगतगुरू शंकराचार्य, अखंड भारत क्यों हैं, राष्ट्र जीवन की समस्याएं, राष्ट्र चिंतन और राष्ट्र जीवन की दिशा, इत्यादि.
13- 11 फ़रवरी 1968 को, उनका मृत शरीर मुग़ल सराय रेलवे स्टेशन पर संदिग्ध हालत में पाया गया.
14- वर्ष 1978 में, भारत सरकार द्वारा दीनदयाल उपाध्याय को श्रद्धांजलि देते हुए एक स्मारक डाक टिकट जारी किया.
15- हाल ही में, केन्द्र सरकार ने मुगलसराय जंक्शन का नाम दीनदयाल उपाध्याय स्टेशन कर दिया.

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