Chanakya biography

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चाणक्य की जीवनी
आज हम आपको बताने जा रहें है भारत के महान अर्थशास्त्री कूटनीतिज्ञ और चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री विष्णुगुप्त कौटिल्य के बारें में, आपको बता दें कि वे कौटिल्य नाम से भी विख्यात हैं. उन्होने नंदवंश का नाश करके चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया. उनके द्वारा रचित अर्थशास्त्र राजनीति, अर्थनीति, कृषि, समाजनीति आदि का महान ग्रंन्थ है. अर्थशास्त्र मौर्यकालीन भारतीय समाज का दर्पण माना जाता है. मुद्राराक्षस के अनुसार इनका असली नाम विष्णुगुप्त था. विष्णुपुराण, भागवत आदि पुराणों तथा कथासरित्सागर आदि संस्कृत ग्रंथों में तो चाणक्य का नाम आया ही है, बौद्ध ग्रंथो में भी इसकी कथा बराबर मिलती है.

पूरा नाम Born – विष्णुगुप्त, कौटिल्य Vishnugupta, Kautilya
उपनाम – चाणक्य और भारतीय मेकियावली Chanakya and Indian Machiavelli
राष्ट्रीयता Nationality – भारतीय Indian
जन्म – 375 ई. (उम्र 75 वर्ष)
जन्मस्थान – तक्षशिला (अब जिला रावलपिंडी, पाकिस्तान) गोला क्षेत्र में गांव चणक (वर्तमान में उड़ीसा) (जैन पाठ्यक्रम के अनुसार) Taxila (now District Rawalpindi, Pakistan)
Village Chanak in Gola area (present-day Orissa) (according to Jain curriculum)
मृत्यु – 275 ई.
शिक्षा Education – तक्षशिला या टैक्सिला विश्वविद्यालय, प्राचीन भारत (वर्तमान में रावलपिंडी, पाकिस्तान) Taxila or Taxila University, Ancient India (present-day Rawalpindi, Pakistan)
शैक्षिक योग्यता educational qualification – समाजशास्त्र, राजनीति शास्त्र, अर्थशास्त्र, दर्शनशास्त्र आदि में अध्ययन Studies in Sociology, Political Science, Economics, Philosophy etc.
काम Occupation – शिक्षक, दार्शनिक, अर्थशास्त्री, कूटनीतिज्ञ और चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री Teacher, philosopher, economist, diplomat and general secretary of Chandragupta Maurya
शौक/अभिरुचि Hobby / interest – पुस्तकें पढ़ना, लेखन करना, भाषण देना Reading books, writing, giving speeches

बुद्धघोष की बनाई हुई विनयपिटक की टीका तथा महानाम स्थविर रचित महावंश की टीका में चाणक्य का वृत्तांत दिया हुआ है. चाणक्य तक्षशिला (एक नगर जो रावलपिंडी के पास था) के निवासी थे. इनके जीवन की घटनाओं का विशेष संबंध मौर्य चंद्रगुप्त की राज्यप्राप्ति से है. ये उस समय के एक प्रसिद्ध विद्वान थे, इसमें कोई संदेह नहीं. कहते हैं कि चाणक्य राजसी ठाट-बाट से दूर एक छोटी सी कुटिया में रहते थे.

ऐसी किंवदन्ती है कि एक बार मगध के राजदरबार में किसी कारण से उनका अपमान किया गया था, तभी उन्होंने नंद – वंश के विनाश का बीड़ा उठाया था. उन्होंने चन्द्रगुप्त मौर्य / Chandragupta Maurya को राजगद्दी पर बैठा कर वास्तव में अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली तथा नंद – वंश को मिटाकर मौर्य वंश की स्थापना की. चाणक्य देश की अखण्डता के भी अभिलाषी थे, इसलिये उन्होंने चंद्रगुप्त व्दारा यूनानी आक्रमणकारियों को भारत से बाहर निकलवा दिया और नंद – वंश के अत्याचारों से पीड़ित प्रजा को भी मुक्ति दिलाई.

एक दिन चाणक्य की भेंट बालक चन्द्रगुप्त हुयी , जो उस समय अपने साथियों के साथ राजा और प्रजा का खेल खेल रहा था. राजा के रूप में चन्द्रगुप्त जिस कौशल से अपने संगी साथियो की समस्या को सुलझा रहा था वो चाणक्य को भीतर तक प्रभावित कर गया. चाणक्य को चन्द्रगुप्त में भावी राजा की झलक दिखाई देने लगी. उन्होंने चन्द्रगुप्त के बारे में विस्तृत जानकारी हासिल की और उसे अपने साथ तक्षशिला ले गये. वहा चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को वेद शाश्त्रो से लेकर युद्ध और राजनीति तक की शिक्षा दी. लगभग 8 साल तक अपने संरक्ष्ण में चन्द्रगुप्त को शिक्षित करके चाणक्य ने उसे शूरवीर बना दिया.

उन्ही दिनों में विश्वविजय पर निकले यूनानी सम्राट सिकन्दर विभिन्न देशो पर विजय प्राप्त करता हुआ भारत की ओर बढ़ा चला आ रहा था. गांधार का राजा आम्भी सिकन्दर का साथ देकर अपने पुराने शत्रु राजा पुरु को सबक सिखाना चाहता है. चाणक्य को आम्भी की यह योजना पता चली तो वो उसे समझाने के लिए गये. आम्भी से चाणक्य ने इस सन्दर्भ में विस्तारपूर्वक बातचीत की , उसे समझाना चाहा , विदेशी हमलावरों से देश की रक्षा करने के लिए उसे प्रेरित करना चाहा , किन्तु आम्भी ने चाणक्य की एक भी बात नही मानी. वो सिकन्दर का साथ देने को कटिबद्ध रहा.

संस्कृत-साहित्य में नीतिपरक ग्रन्थों की कोटि में चाणक्य नीति का महत्त्वपूर्ण स्थान है. इसमें सूत्रात्मक शैली में जीवन को सुखमय एवं सफल-सम्पन्न बनाने के लिए उपयोगी अनेक विषयों पर प्रकाश डाला गया है. चाणक्य के अनुसार आदर्श राज्य संस्था वही है जिसकी योजनाएं प्रजा को उसके भूमि, धन-धान्यादि पाते रहने के मूलाधिकार से वंचित कर देनेवाली न हों, उसे लम्बी-चौड़ी योजनाओं के नाम से कर-भार से आक्रांत न कर डालें.

राष्ट्रोद्धारक योजनाएं राजकीय व्ययों में से बचत करके ही चलाई जानी चाहिए. राजा का ग्राह्य भाग देकर बचे प्रजा के टुकड़ों के भरोसे पर लंबी-चौड़ी योजना छेड़ बैठना प्रजा का उत्पीड़न है. चाणक्य का साहित्य समाज में शांति, न्याय, सुशिक्षा, सर्वतोन्मुखी प्रगति सिखानेवाला ज्ञान-भंडार है. राजनीतिक शिक्षा का यह दायित्व है कि वह मानव समाज को राज्य संस्थापन, संचालन, राष्ट्र-संरक्षण-तीनों काम सिखाए.

आचार्य चाणक्य मगध के प्रधानमन्त्री होकर भी वह अपना जीवन बहुत सादगी के साथ व्यतीत करते थे. चीन के प्रसिध ऐतिहासिक यात्री ने कहा था, इतने बड़े देश के प्रधानमंत्री ऐसी झोपडी में रहता है यह सुनकर आचार्य चाणक्य ने उतर दिया, जहा का प्रधानमंत्री झोपडी में रहता है वहा के निवासी भव्य भवनों ने निवास करते है और जिस देश का प्रधानमंत्री राजमहलो में रहता है, वहा की सामान्य जनता झोपड़ियो में रहती है.

कहा जाता है की आचार्य चाणक्य कुरूप चेहरे वाले, काले रंग के अति कुर्द स्वभाव वाले ब्राह्मण थे. आचार्य चाणक्य ने राजनीति, कूटनीति, अर्थनीति आदि से लेकर व्यक्तिगत जीवन की व्य्व्हारिकता, मित्र – शत्रुभेद और नारी के विषय में जो कुछ लिखा है वह सदेव सदेव के लिए प्रेरणा और ज्ञान का भंडार बना रहेगा.

आचार्य चाणक्य एक ऐसी महान विभूति थे, जिन्होंने अपनी विद्वत्ता और क्षमताओं के बल पर भारतीय इतिहास की धारा को बदल दिया. मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चाणक्य कुशल राजनीतिज्ञ, चतुर कूटनीतिज्ञ, प्रकांड अर्थशास्त्री के रूप में भी विश्वविख्‍यात हुए. इतनी सदियाँ गुजरने के बाद आज भी यदि चाणक्य के द्वारा बताए गए सिद्धांत ‍और नीतियाँ प्रासंगिक हैं तो मात्र इसलिए क्योंकि उन्होंने अपने गहन अध्‍ययन, चिंतन और जीवानानुभवों से अर्जित अमूल्य ज्ञान को, पूरी तरह नि:स्वार्थ होकर मानवीय कल्याण के उद्‍देश्य से अभिव्यक्त किया. वर्तमान दौर की सामाजिक संरचना, भूमंडलीकृत अर्थव्यवस्था और शासन-प्रशासन को सुचारू ढंग से बताई गई नीतियाँ और सूत्र अत्यधिक कारगर सिद्ध हो सकते हैं.

चाणक्य सम्राट् चंद्रगुप्त मौर्य (321-298 ई.) के महामंत्री थे. उन्होंने चंद्रगुप्त के प्रशासकीय उपयोग के लिए इस ग्रंथ की रचना की थी. यह मुख्यत: सूत्रशैली में लिखा हुआ है और संस्कृत के सूत्रसाहित्य के काल और परंपरा में रखा जा सकता है. यह शास्त्र अनावश्यक विस्तार से रहित, समझने और ग्रहण करने में सरल एवं कौटिल्य द्वारा उन शब्दों में रचा गया है जिनका अर्थ सुनिश्चित हो चुका है. (अर्थशास्त्र, 15.6) अर्थशास्त्र में समसामयिक राजनीति, अर्थनीति, विधि, समाजनीति, तथा धर्मादि पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है. इस विषय के जितने ग्रंथ अभी तक उपलब्ध हैं उनमें से वास्तविक जीवन का चित्रण करने के कारण यह सबसे अधिक मूल्यवान् है.

इस शास्त्र के प्रकाश में न केवल धर्म, अर्थ और काम का प्रणयन और पालन होता है अपितु अधर्म, अनर्थ तथा अवांछनीय का शमन भी होता है (अर्थशास्त्र, 15.431). इस ग्रंथ की महत्ता को देखते हुए कई विद्वानों ने इसके पाठ, भाषांतर, व्याख्या और विवेचन पर बड़े परिश्रम के साथ बहुमूल्य कार्य किया है. शाम शास्त्री और गणपति शास्त्री का उल्लेख किया जा चुका है. इनके अतिरिक्त यूरोपीय विद्वानों में हर्मान जाकोबी (ऑन दि अथॉरिटी ऑव कौटिलीय, इं.ए., 1918), ए. हिलेब्रांड्ट, डॉ॰ जॉली, प्रो॰ए.बी. कीथ (ज.रा.ए.सी.) आदि के नाम आदर के साथ लिए जा सकते हैं.

अन्य भारतीय विद्वानों में डॉ॰ नरेन्द्रनाथ ला (स्टडीज इन ऐंशेंट हिंदू पॉलिटी, 1914), श्री प्रमथनाथ बनर्जी (पब्लिक ऐडमिनिस्ट्रेशन इन ऐंशेंट इंडिया), डॉ॰ काशीप्रसाद जायसवाल (हिंदू पॉलिटी), प्रो॰ विनयकुमार सरकार (दि पाज़िटिव बैकग्राउंड ऑव् हिंदू सोशियोलॉजी), प्रो॰ नारायणचंद्र वंद्योपाध्याय, डॉ॰ प्राणनाथ विद्यालंकांर आदि के नाम उल्लेखनीय हैं.

चाणक्य के विचार
1- ऋण, शत्रु और रोग को समाप्त कर देना चाहिए.
2- वन की अग्नि चन्दन की लकड़ी को भी जला देती है अर्थात दुष्ट व्यक्ति किसी का भी अहित कर सकते है.
3- शत्रु की दुर्बलता जानने तक उसे अपना मित्र बनाए रखें.
4- सिंह भूखा होने पर भी तिनका नहीं खाता.
5- एक ही देश के दो शत्रु परस्पर मित्र होते है.
6- आपातकाल में स्नेह करने वाला ही मित्र होता है.
7- एक बिगड़ैल गाय सौ कुत्तों से ज्यादा श्रेष्ठ है. अर्थात एक विपरीत स्वाभाव का परम हितैषी व्यक्ति, उन सौ लोगों से श्रेष्ठ है जो आपकी चापलूसी करते है.
8- आग सिर में स्थापित करने पर भी जलाती है. अर्थात दुष्ट व्यक्ति का कितना भी सम्मान कर लें, वह सदा दुःख ही देता है.
9- अपने स्थान पर बने रहने से ही मनुष्य पूजा जाता है.
10- सभी प्रकार के भय से बदनामी का भय सबसे बड़ा होता है.
11- सोने के साथ मिलकर चांदी भी सोने जैसी दिखाई पड़ती है अर्थात सत्संग का प्रभाव मनुष्य पर अवश्य पड़ता है.
12- ढेकुली नीचे सिर झुकाकर ही कुँए से जल निकालती है. अर्थात कपटी या पापी व्यक्ति सदैव मधुर वचन बोलकर अपना काम निकालते है.
13- जो जिस कार्ये में कुशल हो उसे उसी कार्ये में लगना चाहिए.
14- कठोर वाणी अग्निदाह से भी अधिक तीव्र दुःख पहुंचाती है.
15- शक्तिशाली शत्रु को कमजोर समझकर ही उस पर आक्रमण करे.
16- चाणक्य ने कभी भी अग्नि, गुरू, ब्राह्मण, गौ, कुमारी कन्या, वृद्ध और बालक पर पैर न लगाने को कहा है. इन्हें पैर से छूने से आप पर बदकिस्मती का पहाड़ टूट सकता है.
17- कहा जा सकता है कि ऋण मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है. यदि जीवन में खुशहाल रहना है तो ऋण की एक फूटी कौड़ी भी पास नहीं रखनी चाहिए. मनुष्य सबसे दुखी भूतकाल और भविष्यकाल की बातों को सोचकर होता है. केवल वर्तमान के विषय में सोचकर अपने जीवन को सफल बनाया जा सकता
18- आचार्य चाणक्य कहते हैं कि शिक्षा ही मनुष्य की सबसे अच्छी और सच्ची दोस्त होती है क्योंकि एक दिन सुंदरता और जवानी छोड़कर चली जाती है परन्तु शिक्षा एक मात्र ऐसी धरोहर है जो हमेशा उसके साथ रहती है.
19- व्यवसाय में लाभ से जुड़े अपने राज किसी भी व्यक्ति के साथ साझा करना आर्थिक दृष्टी से हानिकारक हो सकती है. अत: व्यवसाय की वास्तविक ज्ञान को अपने तक ही सिमित रखें तो उत्तम होगा.
20- किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले कुछ प्रश्नों का उत्तर अपने आप से जरुर कर लें कि- क्या तुम सचमुच यह कार्य करना चाहते हैं? आप यह काम क्यों करना चाहते हैं? यदि इन सब का जवाब सकारात्मक मिलता है तभी उस काम की शुरुआत करनी चाहिए.

चाणक्य से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें
1- चाणक्य के द्वारा अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र, अर्थनीति, कृषि, समाजनीति आदि महान ग्रंन्थ रचित है. जिसके चलते अर्थशास्त्र को मौर्यकालीन भारतीय समाज का दर्पण माना जाता है.
2- चाणक्य तक्षशिला (वर्तमान में रावलपिंडी, पाकिस्तान) के निवासी थे और राजसी ठाट-बाट से दूर एक छोटी सी कुटिया में रहते थे.
3- चाणक्य के पिता एक गरीब ब्राह्मण थे और किसी तरह अपना गुजर-बसर करने के लिए छोटा-मोटा कार्य करते थे. जिसके चलते चाणक्य का बचपन बहुत गरीबी और दिक्कतों में गुजरा.
4- कई विद्वानों के मतानुसार यह कहा जाता है कि वह बड़े ही स्वाभिमानी एवं क्रोधी स्वभाव के व्यक्ति थे.
5- उन्होंने उस समय के महान शिक्षा केंद्र तक्षशिला से शिक्षण प्राप्त किया था.
6- विभिन्न स्त्रोतों के अनुसार यह माना जाता है कि एक बार मगध के राजा महानंद ने श्राद्ध के अवसर पर चाणक्य को बुलाया और अपमानित किया. जिसके चलते चाणक्य ने क्रोध में वशीभूत होकर अपनी शिखा (बालों की चोटी) खोलकर यह प्रतिज्ञा ली, कि जब तक वह 7- नंदवंश का नाश नहीं कर देंगे, तब तक वह अपनी शिखा नहीं बाँधेंगे.
8- नंदवंश के विनाश के बाद उन्होंने चन्द्रगुप्त मौर्य को राजगद्दी का उत्तरदायित्व सौंपा. उसके बाद मौर्य साम्राज्य का विस्तार करने के उद्देश्य से चाणक्य ने व्यावहारिक राजनीति में प्रवेश किया और चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री बने.
9- भारत पर सिकन्दर के आक्रमण के कारण छोटे-छोटे राज्यों की पराजय से अभिभूत होकर चाणक्य ने व्यावहारिक राजनीति में प्रवेश करने का संकल्प किया. जिसके चलते वह भारत को एक गौरवशाली और विशाल राज्य बनाना चाहते थे.
10- चाणक्य की विद्वता, निपुणता और दूरदर्शिता का बखान भारत के शास्त्रों, काव्यों तथा अन्य ग्रंथों में निहित है.
11- उन्होंने पाश्चात्य राजनीतिक चिन्तकों द्वारा प्रतिपादित राज्य के चार आवश्यक तत्त्वों – भूमि, जनसंख्या, सरकार व सम्प्रभुता का विवरण न देकर राज्य के सात तत्वों का विवेचन किया है. जिसमें स्वामी (राजा), अमात्य (मंत्री), जनपद (भूमि तथा प्रजा या जनसंख्या), दुर्ग (किला), कोष (राजकोष), दण्ड (बल, डण्डा या सेना), सुहृद (मित्र), इत्यादि शामिल है.
12- चाणक्य चंद्रगुप्त के भोजन में प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा जहर मिलाया करते थे, ताकि भविष्य में उनके दुश्मनों द्वारा जहर दिए जाने पर भी वह सुरक्षित रह सके. लेकिन, चंद्रगुप्त को इस बारे में कुछ पता नहीं था, एक बार उन्होंने गर्भवती रानी के साथ अपना खाना साझा किया, जो प्रसव से सात दिन दूर थे. भोजन करने से रानी की मृत्यु हो गई, लेकिन चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य के अजन्मे बच्चे को बचा लिया.
13- उन्होंने सम्राट चंद्रगुप्त और उनके बेटे बिंदुसारा दोनों के साथ मुख्य राजनीतिक और आर्थिक सलाहकार के रूप में कार्य किया.
14- कुछ विद्वानों के अनुसार चाणक्य ने वास्तव में महिलाओं की एक सेना को बनाया था. जिन्हे विश्वकण्य के नाम से जाना जाता था. विद्वानों के मतानुसार, विषकन्या जो बेहद खूबसूरत लड़कियां थीं, जो अपने होठों से जहर छोड़ती थी. इन विषकन्याओं का प्रयोग युद्ध में किया जाता था. यही-नहीं विषकन्याओं को अधिक मात्रा में जहर देकर बहुत घातक बना दिया, मात्र उनके चुंबन से किसी भी व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है.
15- अर्थशास्त्र के अलावा, चाणक्य की प्रसिद्ध पुस्तक चाणक्य नीति को भी चाणक्य नीती-शास्त्र कहा जाता है, जो मुख्य रूप से एफ़ोरिज्म (सामान्य सत्य और सिद्धांत) पर आधारित है.
16- आज के विद्वानों द्वारा चाणक्य के महिलाओं पर विचारों की निंदा की जाती है, क्योंकि चाणक्य ने महिलाओं पर बड़े पैमाने पर शोध किया था और अपने पाठ में दर्ज किया था.

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