ram lakshman bandhan mein

युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): राम लक्ष्मण बन्धन में, नागपाश में राम लक्ष्मण, धूम्राक्ष और वज्रदंष्ट्र का वध, राक्षस सेनापति धूम्राक्ष का वध, अकम्पन का वध, प्रहस्त का वध (Sampoorna Ramayan Yuddha Kand (Lanka Kand): Ram Lakshman Bandhan Mein, Nagpash Mein Ram Lakshman, Dhumraksha Aur Vajradanti Ka Vadh, Akampan Ka Vadh, Prahast Ka Vadh)

रामायण कथा संपूर्ण युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): राम लक्ष्मण बन्धन में, नागपाश में राम लक्ष्मण, धूम्राक्ष और वज्रदंष्ट्र का वध, राक्षस सेनापति धूम्राक्ष का वध, अकम्पन का वध, प्रहस्त का वध (Sampoorna Ramayan Yuddha Kand (Lanka Kand): Ram Lakshman Bandhan Mein, Nagpash Mein Ram Lakshman, Dhumraksha Aur Vajradanti Ka Vadh, Akampan Ka Vadh, Prahast Ka Vadh)

राम लक्ष्मण बन्धन में – युद्धकाण्ड
जब हर्षोन्मत्त वानरों का तुमुलनाद सुन कर रावण को आश्चर्य हुआ और आशंका ने उसे आ घेरा। उसने तत्काल मन्त्रियों से कहा, वानरसेना में इतना उत्साह कैसे आ गया? मेघनाद ने तो राम और लक्ष्मण का वध कर दिया था। शीघ्र पता लगाकर बताओ, इसका क्या कारण है? कहीं भरत तो अयोध्या से विशाल सेना लेकर नहीं आ गया? आखिर ऐसी कौन सी बात हुई है जो वानर सेना राम की मुत्यु का दुःख भी भूलकार गर्जना कर रही है।

तभी एक गुप्तचर ने आकर सूचना दी कि राम और लक्ष्मण मरे नहीं हैं, वे नागपाश से मुक्त होकर युद्ध की तैयारी कर रहे हैं।

यह सुनते ही रावण का मुख फीका पड़ गया। उसने क्रोधित होकर पराक्रमी धूम्राक्ष को आज्ञा दी, हे वीरश्रेष्ठ धूम्राक्ष! तुमने अब तक अनेक बार अद्भुत पराक्रम प्रदर्शित किया है। तुम सहस्त्रों वीरों को अकेले मार सकते हो। एक विशाल सेना लेकर जाओ और राम-लक्ष्मण सहित शत्रु सेना का वध करो।

रावण की आज्ञा पाते ही शूल, गदा, तोमर, भाले, पट्टिश आदि शस्त्रों से युक्त राक्षसों की विशाल सेना लेकर धूम्राक्ष रणभूमि में जा पहुँचा। इस विशाल वाहिनी को देख कर वानर सेना घोर गर्जना करती हुई उस पर टूट पड़ी। धूम्राक्ष कंकपत्रों वाले तीक्ष्ण बाणों से वानरों को घायल करने लगा। वे भी राक्षसों के वार बचाकर बड़े-बड़े शिलाखण्ड ले आकाश में उड़ कर उन पर फेंकने लगे। आकाश को उद्यत राक्षसी सेना को अपने प्राण बचाने कठिन हो गये। फिर भी राक्षस सेना का एक भाग अपने प्राणों की चिन्ता न करके बाणों, त्रिशूलों आदि से वानरों का लहू बहा रहा था। चारों ओर रक्त की नदियाँ बहने लगीं। जिधर देखो उधर ही राक्षसों और वानरों के रुण्ड-मुण्ड दिखाई देते थे। कानों के पर्दों को फाड़ने वाला चीत्कार और हाहाकार सुनाई दे रहा था। रणोन्मत्त धूम्राक्ष हताहत वीरों के शरीरों को रौंदता हुआ अपने अग्नि बाणों से वानर सेना को भस्मीभूत कर रहा था। उसके आक्रमण की ताव न लाकर वानर सेना इधर-उधर भागने लगी। अपनी सेना की यह दुर्दशा देख कर हनुमान ने क्रोध से भरकर एक विशाल शिला उखाड़ी और लक्ष्य तानकर धूम्राक्ष की ओर फेंक दी। उस शिला को अपनी ओर आते देख वह फुर्ती से रथ से कूद पड़ा। इस बीच में रथ चूर-चूर हो चुका था और घोड़े तथा सारथी मर चुके थे। राक्षस सेनापति को इस प्रकार बचता देख हनुमान का क्रोध और भी भड़क उठा। उन्होंने दाँतों, नाखूनों से उनके और धूम्राक्ष के बीच में आने वाले राक्षस समुदाय का विनाश करके मार्ग साफ कर लिया। जब उसने हनुमान को भयंकर रूप से अपनी ओर आते देखा तो लोहे के काँटों से भरी हुई गदा उठाकर उनके सिर पर दे मारी। हनुमान ने वार बचा कर एक भारी शिला उठाई और आकाश में उड़ कर धूम्राक्ष को दे मारी। इससे उसके शरीर की समस्त हड्डियाँ टूट गईं और वह पृथ्वी पर गिरकर यमलोक सिधार गया। उसके मरते ही राक्षस भी भाग छूटे।

रावण ने जब धूम्राक्ष की मृत्यु का समाचार सुना तो वह क्रोध से पागल हो गया। उसके नेत्रों से चिंगारियाँ निकलने लगीं। उसने वज्रदंष्ट्र को बुलाकर आज्ञा दी कि वह राम-लक्ष्मण तथा हनुमान सहित वानरसेना का वध करके अपने शौर्य का परिचय दे। वज्रदंष्ट्र जितना वीर था, उससे अधिक मायावी था। वह अपनी भीमकर्मा पराक्रमी सेना लेकर दक्षिण द्वार से चला। युद्धभूमि में पहुँचते ही उसने अपने सम्मुख अंगद को पाया जो अपनी सेना के साथ उससे युद्ध करने के लिये तत्पर खड़ा था। वज्रदंष्ट्र को देखते ही वानर सेना किचकिचा कर राक्षसों पर टूट पड़ी। दोनों ओर से भयंकर मारकाट मच गई। सम्पूर्ण युद्धभूमि रुण्ड-मुण्डों, हताहत सैनिकों तथा रक्त के नालों एवं सरिताओं से भर गई। रक्त सरिताओं में नाना प्रकार के शस्त्र-शस्त्र, कटे हुये हाथ तथा मस्तक छोटे-छोटे द्वीपों की भाँति दिखाई देने लगे। अंगद तथा वानर सेनापतियों द्वारा बार-बार की जाने वाली सिंहगर्जना ने राक्षस सैनिकों का मनोबल तोड़ दिया। जब उन्हें अपने चारों ओर राक्षसों के कटे हुये अंग दिखाई देने लगे तो वह अपने प्राणों के मोह से रणभूमि से पलायन करने लगे।

अपनी सेना को मरते-कटते और कायरों की तरह भागते देख वज्रदंष्ट्र दुगने पराक्रम और क्रोध से युद्ध करने लगा। उसने तीक्ष्णतर बाणों का प्रयोग करके वानरों को घायल करना आरम्भ कर दिया। क्रुद्ध वज्रदंष्ट्र के भयानक आक्रमण से पीड़ित होकर वानर सेना भी इधर-उधर छिपने लगी। उनकी यह दशा देखकर अंगद ने उस राक्षस सेनापति को ललकारा, वज्रदंष्ट्र! तूने बहुत मारकाट कर ली। तेरा अंत समय आ गया है। अब मैं तुझे धूम्राक्ष के पास भेजता हूँ। यह कहकर अंगद उससे जाकर भिड़ गये। दोनों महान योद्धा मस्त हाथियों की भाँति एक दूसरे पर प्रहार करने लगे। दोनों ही रक्त से लथपथ हो गये। फिर अवसर पाकर अंगद ने तलवार से वज्रदंष्ट्र का सिर काट डाला। अपने सेनापति के मरते ही राक्षस सेना मैदान से भाग खड़ी हुई।

धूम्राक्ष और वज्रदंष्ट्र का वध – युद्धकाण्ड
वालिपुत्र अंगद के हाथ से वज्रदंष्ट्र के वध का समाचार सुनकर रावण ने सेनापति अकम्पन को उसके शौर्य एवं पराक्रम की प्रशंसा करते हुये राम-लक्ष्मण के विरुद्ध युद्ध करने के लिये भेजा। महापराक्रमी अकम्पन सोने के रथ में बैठकर असंख्य चुने हुये भयानक नेत्रोंवाले भयंकर राक्षस सैनिकों के साथ नगर से बाहर निकला। महासमर में देवता भी उसे कम्पित नहीं कर सकते थे, इसीलिये वह अकम्पन नाम से विख्यात था। रणभूमि में पहुँचते ही उसने दसों दिशाओं को कँपाने वाला सिंहनाद दिया। उसके सिंहनाद से अविचल वीर वानर सेना राक्षस दल पर टूट पड़ी। एक बार फिर अभूतपरूर्व युद्ध आरम्भ हो गया। उन सबके ललकारने और गरजने के स्वर के सामने सागर की गर्जना भी फीकी प्रतीत होने लगी।

परस्पर युद्ध करते हुए वानरों और राक्षसों के द्वारा उड़ाई गई लाल रंग के धूल ने दसों दिशाओं को आच्छादित कर दिया और सम्पूर्ण वातावरण अन्धकारमय हो गया। उस महाअन्धकार में योद्धा अपने तथा विपक्षी दल के सैनिकों में भेद न कर सके। वानर वानरों को और राक्षस राक्षसों को मारने लगे। इस युद्ध में वीर वानर कुमुद, नल, मैन्द और द्विविद ने कुपित हो अपना उत्तम वेग प्रकट किया तथा उनके इस वेग से उत्साहित वानरों ने क्रुद्ध होकर वृक्षों, शिलाओं, दाँतों तथा नाखूनों से रिपुदल में भयंकर मारकाट मचा दी जिससे उसके पाँव उखड़ने लगे।

अपनी सेना के पैर उखड़ते देख अकम्पन मेघों के समान गर्जना करके अग्नि बाणों से वानर दल को जलाने लगा। वानर सेना को इस प्रकार अग्नि में भस्म होते देख परम तेजस्वी पवनपुत्र हनुमान ने आगे बढ़कर अकम्पन को ललकारा। जब अन्य वानरों ने हनुमान का रौद्ररूप देखा तो वे भी उनके साथ फिर फुर्ती से युद्ध करने लगे। उधर हनुमान को देखकर अकम्पन भी गरजा। उसने अपने तरकस से तीक्ष्ण बाण निकालकर हनुमान को अपने लक्ष्य बनाया। उन्होंने वार बचाकर एक विशाल शिला अकम्पन की ओर फेंकी। जब तक वह शिला अकम्पन तक पहुँचती तब कर उसने अर्द्धचन्द्राकार बाण छोड़कर उस शिला को चूर-चूर कर दिया। इस प्रकार शिला के नष्ट होने पर हनुमान ने कर्णिकार का वृक्ष उखाड़कर अकम्पन की ओर फेंका। अकम्पन ने अपने एक बाण से उस वृक्ष को भी नष्ट किया और एक साथ चौदह बाण छोड़कर हनुमान के शरीर को रक्तरंजित कर दिया। इससे हनुमान के क्रोध की सीमा न रही। उन्होंने एक विशाल वृक्ष उखाड़कर अकम्पन के सिर पर दे मारा। इससे वह प्राणहीन होकर भूमि पर गिर पड़ा। अकम्पन के मरते ही सारे राक्षस सिर पर पैर रख कर भागे। वानरों ने उन भागते हुये शत्रुओं को पेड़ों तथा पत्थरों से वहीं कुचल दिया। जो शेष बचे, उन्होंने रावण को अकम्पन के मरने की सूचना सुनाई।

अकम्पन का वध – युद्धकाण्ड
रावण अकम्पन को अदम्य समझता था इसलिये उसकी मृत्यु से रावण को भारी आघात पहुँचा। वह गहन शोक में ड़ूब गया। रात्रि को वह शान्ति से विश्राम भी न कर सका। दूसरे दिन उसने मन्त्रियों को बुलाकर कहा, वानरों की सेना हमारी कल्पना से भी अधिक शक्तिशाली और पराक्रमी सिद्ध हुई है। पिछले चार दिनों में हमारी बहुत सी सेना मारी जा चुकी है। सैनिकों का मनोबल टूटने लगा है। नागरिकों को शत्रु के घेरे के कारण बाहर से उपलब्ध होने वाली खाद्य सामग्री प्राप्त नहीं हो रही है। वे अत्यन्त दुःखी हो रहे हैं। चार दिन के युद्ध को देखकर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि शत्रु पर विजय प्राप्त करना साधारण राक्षसों के लिये सम्भव नहीं है। इसलिये हे वीर प्रहस्त! मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि शत्रु को परास्त करने के लिये कुम्भकर्ण को, मेघनाद को, तुम्हें अथवा मुझे ही आगे आना पड़ेगा। अतः आज युद्ध का नेतृत्व तुम करो। तुम युद्ध कला विशारद हो। ये वानर चंचल और वीर तो हैं, परन्तु प्रशिक्षित नहीं हैं। तुम युद्ध नीति से उन पर विजय प्राप्त कर सकते हो। इसलिये हे वीर! तुम शीघ्र जाकर राम-लक्ष्मण सहित समस्त शत्रुओं का संहार कर मुझे निश्चिंत करो।

अपने ऊपर इस प्रकार का विश्वास व्यक्त करते देख प्रहस्त ने कहा, आज मैं अपने अतुल पराक्रम से शत्रु सेना का विनाश करके आप को निश्चिंत कर दूँगा। आज मेरे कृपाण के शौर्य से मैं रणचण्डी को प्रसन्न करके चील, कौवों, गीदड़ों आदि को शत्रु का माँस खिलाकर तृप्त करूँगा।

इतना कहकर वह भयानक राक्षसों की सेना को लेकर युद्धस्थल की ओर चल दिया।इस विशालकाय सेनापति को सदल-बल आते देख रामचन्द्र जी ने विभीषण से पूछा, हे लंकापति! यह विशाल देह वाला सेनापति कौन है? क्या शूरवीर है?विभीषण ने उत्तर दिया, हे रघुकुलतिलक! यह रावण का मन्त्री और वीर सेनापति प्रहस्त है। लंका की सेना का तीसरा भाग इसके अधिकार में है। यह बड़ा बलवान, पराक्रमी तथा युद्धकला विशारद है।यह सुनकर श्रीराम ने सुग्रीव से कहा, हे वानराधिपति! ऐसा प्रतीत होता है कि रावण को इस पर बहुत विश्वास है। तुम इसे मारकर रावण का विश्वास भंग करो। इसके मरने पर रावण का मनोबल गिर जायेगा।

राम का निर्देश पाते ही सुग्रीव ने श्रेष्ठ वानर सेनापतियों को यथोचित आज्ञा दी, जो बड़े वेग से राक्षसों पर टूट पड़े। राक्षस भी तोमर, त्रिशूल, गदा, तीर-कमान आदि से वानर सेना पर आक्रमण करने लगे। प्रहस्त ने स्वयं और उसके सेनानायकों ने अपने अप्रतिम रण कौशल से भयंकर दृश्य उपस्थित कर दिया और सहस्त्रों वानरों का सफाया करके रणभूमि को शवागार बना दिया। यह देख अनेक महारथी वानर अपनी पूरी शक्ति से राक्षसों से जूझने लगे। उन्होंने भी भयानक प्रतिशोध लेकर सहस्त्रों राक्षसों को सदा के लिये समरभूमि में सुला दिया। एक ओर राक्षसों की तलवार से कट-कट कर सैकड़ों वानर भूमि पर धराशायी हो रहे थे तो दूसरी ओर वानरों के घूँसों और थप्पड़ों की मार से सहस्त्रों राक्षस रक्त की उल्टियाँ कर रहे थे। कभी वीरों की गर्जना से भूमि काँप उठती और कभी आहतों के चीत्कार से आकाश थर्रा उठता। ऐसा प्रतीत होता था कि रक्त की सरिता में बाढ़ आ गई है और उसने सागर का रूप धारण कर लिया है।

जब वानर वीर द्विविद ने महावीर नरात्तक के हाथों अपने सैनिकों की दुर्गति होती देखी तो एक भारी शिला का वार करके उसका प्राणान्त कर दिया। द्विविद के इस शौर्य से उत्साहित होकर दुर्मुख ने प्रहस्त के प्रमुख सेनापति समुन्नत को मार गिराया। उधर जाम्बवन्त ने एक भारी शिला से प्रहार करके महानाद का अन्त कर दिया। फिर तारा नामक वानर ने अपने नाखूनों से कम्भानु का पेट चीरकर उसे यमलोक भेज दिया। कुछ ही क्षणों में इन चार सेनानायकों को मरते देख प्रहस्त ने क्रोध करके चारों दिशाओं में बाण छोड़ने आरम्भ कर दिये। इस आकस्मिक आक्रमण से अत्यधिक क्रुद्ध होकर वानर सेना अपने प्राणों का मोह छोड़कर शत्रुओं पर पिल पड़ी। उधर सेनापति नील पर्वत का एक टीला उठाकर प्रहस्त को मारने के लिये दौड़ा। मार्ग में ही प्रहस्त ने अपने बाणों से उस टीले की धज्जियाँ उड़ा दीं। इस पर नील ने एक दूसरा टीला उठाकर उसके रथ पर दे मारा जिससे उसका रथ टूट गया और घोड़े मर गये। रथ के टूटते ही प्रहस्त हाथ में मूसल लेकर नील को मारने के लिये दौड़ा। नील भी कम न था। दोनों परस्पर भिड़ गये। अवसर पाकर प्रहस्त ने मूसल नील के सिर पर दे मारा जिससे उसका सिर फट गया और रक्त बहने लगा। इससे नील को और भी क्रोध आ गया। उसने फुर्ती से एक शिला उठाकर प्रहस्त के सिर पर पूरे वेग से दे मारा जिससे उसका सिर चूर-चूर हो गया और वह मर गया। प्रहस्त के मरते ही उसकी सेना ने पलायन कर दिया।

 प्रहस्त का वध – युद्धकाण्ड
अग्निपुत्र नील के हाथों प्रहस्त के वध का समाचार सुनते ही रावण क्रोध से तमतमा उठा; किन्तु थोड़ी ही देर में उसका चित्त उसके लिये शोक से व्याकुल हो गया। उसके मन में भय उत्पन्न होने लगा। वह मन्त्रियों से बोला, शत्रुओं को नगण्य समझकर मैं उनकी अवहेलना करता रहा इसी का परिणाम है प्रहस्त भी मारा गया। अब मैं समझता हूँ कि मुझे परमवीर कुम्भकर्ण को जगाकर रणभूमि में भेजना होगा। केवल वही ऐसा पराक्रमी है जो देखते-देखते शत्रु की सम्पूर्ण सेना का संहार कर सकता है।

रावण की आज्ञा पाकर उसके मन्त्री ब्रह्मा के शाप के कारण सोये हुये कुम्भकर्ण के पास जाकर उसे जगाने लगे। जब वह चीखने-चिल्लाने और झकझोरने से भी न उठा तो वे लाठियों और मूसलों से मार-मार उसे उठाने लगे। साथ ही ढोल, नगाड़े तथा तुरहियों को बजाकर भारी शोर करने लगे, किन्तु उसकी नींद न खुली। अन्त में तोपों को दागकर, उसकी नाक में डोरी डालकर बड़ी कठिनाई से उसे जगाया गया। जब उसकी नींद टूटी तो माँस-मदिरा का असाधारण कलेवा करके वह बोला, तुम लोगों ने मुझे कच्ची नींद से क्यों जगा दिया? सब कुशल तो है?

कुम्भकर्ण का प्रश्न सुनकर मन्त्री यूपाक्ष ने हाथ जोड़कर निवेदन किया, हे राक्षस शिरोमणि! लंका पर वानरों ने आक्रमण कर दिया है। अब तक हमारे बहुत से पराक्रमी वीरों तथा असंख्य राक्षस सैनिकों का संहार हो चुका है। मारे जाने वालों में खर-दूषण, प्रहस्त आदि महारथी सम्मिलित हैं। लंका भी जला दी गई है। ये सब वानर अयोध्या के राजकुमार राम की ओर से युद्ध कर रहे हैं। इस भयंकर परिस्थिति के कारण ही महाराज ने आपको जगाने की आज्ञा दी है। अब आप जाकर उन्हें धैर्य बँधायें।यह समाचार सुनकर कुम्भकर्ण स्नानादि से निवृत होकर राजसभा में रावण के पास पहुँचा। उसके चरणस्पर्श करके बोले, महाराज! आपने मुझे किसलिये स्मरण किया है?

कुम्भकर्ण को देखकर रावण प्रसन्न हुआ। वह बोला, महाबली वीर! दीर्घकाल तक सोते रहने के कारण तुम्हें यहाँ के विषय में कोई जानकारी नहीं है। अयोध्या के राजकुमार राम और लक्ष्मण वानरों की सेना को लेकर लंका का विनाश कर रहे हैं। उन्होंने समुद्र पर पुल बाँधकर उसे पार कर लिया है। इस समय लंका के चारों ओर वानर ही वानर दिखाई देते हैं। प्रहस्त, खर, दूषण आदि असंख्य वीर राक्षस सेना के साथ मारे जा चुके हैं। लंका में भय से त्राहि-त्राहि मच रही है। तुम पर मुझे पूर्ण विश्वास है। तुमने देवासुर संग्राम में देवताओं को खदेड़ कर जो अद्भुत वीरता दिखाई थी, वह मुझे आज भी स्मरण है। इसलिये तुम वानर सेना सहित दोनों भाइयों का संहार करके लंका को बचाओ।इसके अतिरिक्त रावण ने विभीषण के निष्कासन आदि की बातें भी उसे विस्तारपूर्वक बताईं।

यह सुनकर कुम्भकर्ण ने पहले तो रावण को नीति सम्बंधी बहुत सी बातें कहते हुए रावण को उपालम्भ दिया। फिर वह बोले, भैया! आप भाभी मन्दोदरी और भैया विभीषण द्वारा दी हुई सम्मति के अनुसार कार्य करते तो आज लंका की यह दुर्दशा न होती। आपने मूर्ख मन्त्रियों के कहने में आकर स्वयं दुर्दिन को आमन्त्रण दिया है। परन्तु अब जो हो गया सो हो गया। उस पर पश्चाताप करने से क्या लाभ? अब आप के अनुचित कर्मों के फलस्वरूप उत्पन्न भय को मैं दूर करूँगा। मैं उन दोनों भाइयों का वध करूँगा और दुःखी राक्षसों के आँसू पोछूँगा। आप शोक न करें। मैं शीघ्र ही राम-लक्ष्मण का सिर आपके चरणों में रखूँगा।

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  42. अरण्यकाण्ड: पंचवटी में आश्रम, श्री राम-लक्ष्मण एवं सीता पंचवटी आश्रम में कैसे पहुँचे?, पंचवटी किस राज्य में है, पंचवटी की कहानी, पंचवटी क्या है, पंचवटी कहां है
  43. अरण्यकाण्ड: रावण की बहन शूर्पणखा, श्री राम का खर-दूषण से युद्ध, खर-दूषण वध, खर-दूषण का वध किसने किया? Sampurna Ramayan Katha Aranyakaand
  44. अरण्यकाण्ड: सीता की कथा और स्वर्ण मृग, श्री राम और स्वर्ण-मृग प्रसंग, मारीच का स्वर्णमृग रूप, सीता हरण, रामायण सीता हरण की कहानी, सीता हरण कैसे हुआ
  45. संपूर्ण रामायण कथा अरण्यकाण्ड: जटायु वध, रावण द्वारा गिद्धराज जटायु वध, सीता हरण व जटायु वध, रावण जटायु युद्ध, जटायु प्रसंग, जटायु कौन था
  46. अरण्यकाण्ड: रावण-सीता संवाद, रावण की माता सीता को धमकी, रावण और सीता संवाद अशोक वाटिका Sampurna Ramayan Katha Aranyakaand
  47. अरण्यकाण्ड: राम की वापसी और विलाप, श्री राम और लक्ष्मण विलाप, सीता हरण पर श्री राम जी के द्वारा विलाप, जटायु की मृत्यु, पक्षीराज जटायु की मृत्यु कैसे हुई
  48. अरण्यकाण्ड: कबन्ध का वध, राम द्वारा कबन्ध राक्षस का वध, रामायण में कबंध राक्षस, कबंध कौन था Sampurna Ramayan Katha Aranyakaand
  49. अरण्यकाण्ड: शबरी का आश्रम, भगवान राम शबरी के आश्रम क्यों गए, श्री राम शबरी के आश्रम कैसे पहुँचे? शबरी के झूठे बेर प्रभु राम ने खाएं, शबरी के बेर की कहानी
  50. किष्किन्धाकाण्ड: राम हनुमान भेंट, श्रीराम की हनुमान से पहली मुलाकात कहां और कब हुई, राम हनुमान मिलन की कहानी
  51. किष्किन्धाकाण्ड: राम-सुग्रीव मैत्री, राम-सुग्रीव मित्रता, श्री राम और सुग्रीव के मित्रता की कहानी, राम-सुग्रीव वार्तालाप, राम-सुग्रीव संवाद
  52. किष्किन्धाकाण्ड: बाली सुग्रीव युध्द वालि-वध, बाली का वध, राम द्वारा बाली का वध, बाली-राम संवाद, तारा का विलाप
  53. किष्किन्धाकाण्ड: सुग्रीव का अभिषेक, बाली वध के बाद सुग्रीव का राज्याभिषेक (Sampurna Ramayan Katha Kishkindha Kand
  54. किष्किन्धाकाण्ड: हनुमान-सुग्रीव संवाद, हनुमान और सुग्रीव की मित्रता, लक्ष्मण-सुग्रीव संवाद, राम का सुग्रीव पर कोप, रामायण सुग्रीव मित्रता
  55. किष्किन्धाकाण्ड: माता सीता की खोज, माता सीता की खोज में निकले राम, राम द्वारा हनुमान को मुद्रिका देना, माता सीता की खोज में निकले हनुमान
  56. किष्किन्धाकाण्ड: जाम्बवन्त द्वारा हनुमान को प्रेरणा, जाम्बवन्त के प्रेरक वचन Sampurna Ramayan Katha Kishkindha Kand
  57. सुन्दरकाण्ड: हनुमान का सागर पार करना, हनुमान जी ने समुद्र कैसे पार किया, हनुमान जी की लंका यात्रा, हनुमान जी का लंका में प्रवेश
  58. सुन्दरकाण्ड: लंका में सीता की खोज, माता सीता की खोज में लंका पहुंचे हनुमान, अशोक वाटिका में हनुमान, सीता से मिले हनुमान, अशोक वाटिका में हनुमान सीता संवाद
  59. सुन्दरकाण्ड: रावण -सीता संवाद, अशोक वाटिका में रावण संवाद, रावण सीता अशोक वाटिका, रावण की सीता को धमकी
  60. सुन्दरकाण्ड: जानकी राक्षसी घेरे में, माता सीता राक्षसी घेरे में, पति राम के वियोग में व्याकुल सीता, अशोक वाटिका में हनुमान जी किस वृक्ष पर बैठे थे
  61. सुन्दरकाण्ड: हनुमान सीता भेंट, सीता जी से मिले हनुमान, अशोक वाटिका में हनुमान सीता संवाद, हनुमान का सीता को मुद्रिका देना
  62. सुन्दरकाण्ड: हनुमान का विशाल रूप, हनुमान जी का पंचमुखी अवतार, हनुमान जी ने क्यों धारण किया पंचमुखी रूप, हनुमान के साथ क्यों नहीं गईं सीता, बजरंगबली का विराट रूप
  63. सुन्दरकाण्ड: हनुमान ने उजाड़ी अशोक वाटिका, हनुमान जी ने रावण की अशोक वाटिका को किया तहस-नहस, अशोक वाटिका विध्वंस, हनुमान राक्षस युद्ध
  64. सुन्दरकाण्ड: मेधनाद हनुमान युद्ध, लंका में हनुमान जी और मेघनाद का भयंकर युद्ध, मेघनाद ने हनुमान पर की बाणों की वर्षा
  65. सुन्दरकाण्ड: रावण के दरबार में हनुमान, रावण हनुमान संवाद, हनुमान-रावण की लड़ाई, लंका दहन, हनुमान जी द्वारा लंका दहन, हनुमान ने सोने की लंका में लगाई आग
  66. सुन्दरकाण्ड: माता सीता का संदेश देना, हनुमान के द्वारा राम सीता का संदेश, हनुमान ने राम को दिया माता सीता का संदेश
  67. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): समुद्र पार करने की चिन्ता, वानर सेना का प्रस्थान, वानर सेना का सेनापति कौन था, वानर सेना रामायण, वानर सेना का गठन
  68. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): लंका में राक्षसी मन्त्रणा, विभीषण ने रावण को किस प्रकार समझाया, विभीषण का निष्कासन, विभीषण का श्री राम की शरण में आना
  69. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): सेतु बन्धन, राम सेतु पुल, क्यों नहीं डूबे रामसेतु के पत्‍थर, राम सेतु का निर्माण कैसे हुआ, नल-नील द्वारा पुल बाँधना
  70. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): सीता के साथ छल, रावण का छल, रावण ने छल से किया माता सीता का हरण Sampoorna Ramayan Yuddha Kand (Lanka Kand)
  71. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): अंगद रावण दरबार में, अंगद ने तोड़ा रावण का घमंड, रावण की सभा में अंगद-रावण संवाद, रावण की सभा में अंगद का पैर जमाना
  72. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): राम लक्ष्मण बन्धन में, नागपाश में राम लक्ष्मण, धूम्राक्ष और वज्रदंष्ट्र का वध, राक्षस सेनापति धूम्राक्ष का वध, अकम्पन का वध, प्रहस्त का वध
  73. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): रावण कुम्भकर्ण संवाद, कुम्भकर्ण वध, कुंभकरण का वध किसने किया, कुम्भकर्ण की कहानी Sampoorna Ramayan Yuddha Kand (Lanka Kand)
  74. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): त्रिशिरा, अतिकाय आदि का वध, अतिकाय का वध, मायासीता का वध, रावण पुत्र मेघनाद (Sampoorna Ramayan Yuddha Kand (Lanka Kand)
  75. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): लक्ष्मण मेघनाद युद्ध कथा, मेघनाथ लक्ष्मण का अंतिम युद्ध, मेघनाद वध, मेघनाथ को कौन मार सकता था? लक्ष्मण ने मेघनाद को कैसे मारा
  76. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): लक्ष्मण मूर्छित, मेघनाद ने ब्रह्म शक्ति से लक्ष्मण को किया मूर्छित, लक्ष्मण मूर्छित होने पर राम विलाप, संजीवनी बूटी लेकर आए हनुमान
  77. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): रावण का युद्ध के लिये प्रस्थान, श्रीराम-रावण का युद्ध, राम और रावण के बीच युद्ध, रावण वध, मन्दोदरी का विलाप 
  78. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): विभीषण का राज्याभिषेक, रावण के बाद विभीषण बना लंका का राजा (Sampoorna Ramayan Yuddha Kand Lanka Kand)
  79. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): माता सीता की अग्नि परीक्षा, माता सीता ने अग्नि परीक्षा क्यों दी थी? माता सीता ने अग्नि परीक्षा कैसे दी?, माता सीता की अग्नि परीक्षा कहां हुई थी? 
  80. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): अयोध्या को प्रस्थान, राम अयोध्या कब लौटे थे, अयोध्या में राम का स्वागत, राम का अयोध्या वापस आना, वनवास से लौटे राम-लक्ष्मण और सीता
  81. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): भरत मिलाप, राम और भरत का मिलन, राम भरत संवाद, राम का राज्याभिषेक Sampoorna Ramayan Yuddha Kand (Lanka Kand)
  82. उत्तरकाण्ड: रावण के पूर्व के राक्षसों के विषय में, रावण के जन्म की कथा, रावण का जन्म कैसे हुआ, रावण का जन्म कहां हुआ, रावण के कितने भाई थे
  83. उत्तरकाण्ड: हनुमान के जन्म की कथा, रामभक्त हनुमान के जन्म की कहानी, हनुमान की कथा, हनुमान जन्म लीला, पवनपुत्र हनुमान का जन्म कैसे हुआ
  84. उत्तरकाण्ड: अभ्यागतों की विदाई, प्रवासियों में अशुभ चर्चा, सीता का निर्वासन, राम ने सीता का त्याग क्यों किया, राम ने सीता को वनवास क्यों दिया
  85. उत्तरकाण्ड: राजा नृग की कथा, सूर्यवंशी राजा नृग की कथा, राजा नृग कुएँ का गिरगिट, राजा नृग का उद्धार कैसे हुआ? राजा नृग की मोक्ष कथा, राजा नृग का उपाख्यान 
  86. उत्तरकाण्ड: राजा निमि की कथा, शाप से सम्बंधित राजा की कथा, राजा निमि कौन थे? राजा निमि की कहानी, विदेह राजा जनक Sampoorna Ramayan Uttar Kand
  87. उत्तरकाण्ड: राजा ययाति की कथा, कौन थे राजा ययाति, राजा ययाति की कहानी, ययाति का यदु कुल को शाप Sampoorna Ramayan Uttar Kand
  88. उत्तरकाण्ड: कुत्ते का न्याय, राम और कुत्ते की कहानी, भगवान राम से जब न्याय मांगने आया एक कुत्ता, रामायण का अनोखा किस्सा
  89. उत्तरकाण्ड: पूर्व राजाओं के यज्ञ-स्थल एवं लवकुश का जन्म, लव कुश का जन्म कहां पर हुआ था, लव कुश में बड़ा कौन है, वाल्मीकि आश्रम कहां है, च्यवन ऋषि का आगमन
  90. उत्तरकाण्ड: ब्राह्मण बालक की मृत्यु, शंबूक ऋषि की हत्या किसने की, शंबुक कथा, शंबूक ऋषि का वध, राम ने क्यों की शंबूक की हत्या Sampoorna Ramayan Uttar Kand
  91. उत्तरकाण्ड: राजा श्वेत क्यों खाया करते थे अपने ही शरीर का मांस, राजा श्वेत की कहानी, राजा श्वेत की कथा Sampoorna Ramayan Uttar Kand: Raja Swet Ki Katha
  92. उत्तरकाण्ड: राजा दण्ड की कथा, दण्डकारण्य जंगल के श्रापित होने की कथा, शुक्राचार्य ने राजा दण्ड को दिया श्राप
  93. उत्तरकाण्ड: वृत्रासुर की कथा, वृत्रासुर का वध, वृत्रासुर कौन था? इंद्र द्वारा वृत्रासुर का वध Sampoorna Ramayan Uttar Kand: Vritrasura Ki Katha
  94. उत्तरकाण्ड: राजा इल की कथा, जब पुरूष से स्त्री बन गये राजा ईल, राजा इल की कहानी (Sampoorna Ramayan Uttar Kand: Raja Ill Ki Kahani, Raja Ill Ki Katha
  95. उत्तरकाण्ड: अश्वमेघ यज्ञ का अनुष्ठान रामायण, अश्वमेध यज्ञ क्या है? Sampoorna Ramayan Uttar Kand: Ashvamedh Yagya Ka Anushthaan, Ashvamedh Yagya Kya Hai
  96. उत्तरकाण्ड: लव-कुश द्वारा रामायण गान, ‘हम कथा सुनाते’ लव-कुश के गीत, लव-कुश ने सुनाई राम कथा, लव कुश गीत, रामायण लव कुश कांड
  97. उत्तरकाण्ड: सीता का रसातल प्रवेश, सीता मैया धरती में क्यों समाई, सीता पृथ्वी समाधि, सीता जी का धरती में समाना, सीता का धरती में प्रवेश करना
  98. उत्तरकाण्ड: भरत व लक्ष्मण के पुत्रों के लिये राज्य व्यवस्था, वाल्मीकि रामायण (Sampoorna Ramayan Uttar Kand: Bharat Aur Lakshman Ke Putron Ke Liye Rajya
  99. उत्तरकाण्ड: लक्ष्मण का परित्याग, राम ने लक्ष्मण का परित्याग क्यों किया, राम द्वारा लक्ष्मण का परित्याग, लक्ष्मण द्वारा प्राण विसर्जन, लक्ष्मण की मृत्यु
  100. उत्तरकाण्ड: महाप्रयाण, लव-कुश का अभिषेक, संपूर्ण वाल्मीकि रामायण, Sampoorna Ramayan Uttar Kand: Mahaprayan, Valmiki Ramayan in Hindi