सिक्का बदल गया कहानी, Sikka Badal Gaya Kahani, हिंदी कहानी सिक्का बदल गया, Hindi Kahani Sikka Badal Gaya, सिक्का बदल गया कृष्णा सोबती, Sikka Badal Gaya Krishna Sobti, सिक्का बदल गया कहानी का उद्देश्य, Sikka Badal Gaya Kahani Ki Mool Samvedna

सिक्का बदल गया कहानी, Sikka Badal Gaya Kahani,
Sikka Badal Gaya Krishna Sobti- खद्दर की चादर ओढ़े, हाथ में माला लिए शाहनी जब दरिया के किनारे पहुंची तो पौ फट रही थी। दूर-दूर आसमान के परदे पर लालिमा फैलती जा रही थी। शाहनी ने कपड़े उतारकर एक ओर रक्खे और ‘श्रीराम, श्रीराम’ करती पानी में हो ली। अंजलि भरकर सूर्य देवता को नमस्कार किया, अपनी उनीदी आंखों पर छींटे दिये और पानी से लिपट गयी! चनाब का पानी आज भी पहले-सा ही सर्द था, लहरें लहरों को चूम रही थीं। वह दूर सामने काश्मीर की पहाड़ियों से बंर्फ पिघल रही थी। उछल-उछल आते पानी के भंवरों से टकराकर कगारे गिर रहे थे लेकिन दूर-दूर तक बिछी रेत आज न जाने क्यों खामोश लगती थी! शाहनी ने कपड़े पहने, इधर-उधर देखा, कहीं किसी की परछाई तक न थी। पर नीचे रेत में अगणित पांवों के निशान थे। वह कुछ सहम-सी उठी!

आज इस प्रभात की मीठी नीरवता में न जाने क्यों कुछ भयावना-सा लग रहा है। वह पिछले पचास वर्षों से यहां नहाती आ रही है। कितना लम्बा अरसा है! शाहनी सोचती है, एक दिन इसी दुनिया के किनारे वह दुलहिन बनकर उतरी थी। और आज…आज शाहजी नहीं, उसका वह पढ़ा-लिखा लड़का नहीं, आज वह अकेली है, शाहजी की लम्बी-चौड़ी हवेली में अकेली है। पर नहींयह क्या सोच रही है वह सवेरे-सवेरे! अभी भी दुनियादारी से मन नहीं फिरा उसका! शाहनी ने लम्बी सांस ली और ‘श्री राम, श्री राम’, करती बाजरे के खेतों से होती घर की राह ली। कहीं-कहीं लिपे-पुते आंगनों पर से धुआं उठ रहा था। टनटनबैलों, की घंटियां बज उठती हैं। फिर भी…फिर भी कुछ बंधा-बंधा-सा लग रहा है। ‘जम्मीवाला’ कुआं भी आज नहीं चल रहा। ये शाहजी की ही असामियां हैं। शाहनी ने नंजर उठायी। यह मीलों फैले खेत अपने ही हैं। भरी-भरायी नयी फसल को देखकर शाहनी किसी अपनत्व के मोह में भीग गयी। यह सब शाहजी की बरकतें हैं। दूर-दूर गांवों तक फैली हुई जमीनें, जमीनों में कुएं सब अपने हैं। साल में तीन फसल, जमीन तो सोना उगलती है। शाहनी कुएं की ओर बढ़ी, आवांज दी, “शेरे, शेरे, हसैना हसैना…।”

शेरा शाहनी का स्वर पहचानता है। वह न पहचानेगा! अपनी मां जैना के मरने के बाद वह शाहनी के पास ही पलकर बड़ा हुआ। उसने पास पड़ा गंडासा ‘शटाले’ के ढेर के नीचे सरका दिया। हाथ में हुक्का पकड़कर बोला”ऐ हैसैना-सैना…।” शाहनी की आवांज उसे कैसे हिला गयी है! अभी तो वह सोच रहा था कि उस शाहनी की ऊंची हवेली की अंधेरी कोठरी में पड़ी सोने-चांदी की सन्दूकचियां उठाकर…कि तभी ‘शेरे शेरे…। शेरा गुस्से से भर गया। किस पर निकाले अपना क्रोध? शाहनी पर! चीखकर बोला”ऐ मर गयीं एं एब्ब तैनू मौत दे”

हसैना आटेवाली कनाली एक ओर रख, जल्दी-जल्दी बाहिर निकल आयी। “ऐ आयीं आं क्यों छावेले (सुबह-सुबह) तड़पना एं?”
अब तक शाहनी नंजदीक पहुंच चुकी थी। शेरे की तेजी सुन चुकी थी। प्यार से बोली, “हसैना, यह वक्त लड़ने का है? वह पागल है तो तू ही जिगरा कर लिया कर।”
“जिगरा !” हसैना ने मान भरे स्वर में कहा, “शाहनी, लड़का आखिर लड़का ही है। कभी शेरे से भी पूछा है कि मुंह अंधेरे ही क्यों गालियां बरसाई हैं इसने?” शाहनी ने लाड़ से हसैना की पीठ पर हाथ फेरा, हंसकर बोली”पगली मुझे तो लड़के से बहू प्यारी है! शेरे”

“हां शाहनी!”
“मालूम होता है, रात को कुल्लूवाल के लोग आये हैं यहां?” शाहनी ने गम्भीर स्वर में कहा।
शेरे ने जरा रुककर, घबराकर कहा, “नहीं शाहनी…” शेरे के उत्तर की अनसुनी कर शाहनी जरा चिन्तित स्वर से बोली, “जो कुछ भी हो रहा है, अच्छा नहीं। शेरे, आज शाहजी होते तो शायद कुछ बीच-बचाव करते। पर…” शाहनी कहते-कहते रुक गयी। आज क्या हो रहा है। शाहनी को लगा जैसे जी भर-भर आ रहा है। शाहजी को बिछुड़े कई साल बीत गये, परपर आज कुछ पिघल रहा है शायद पिछली स्मृतियां…आंसुओं को रोकने के प्रयत्न में उसने हसैना की ओर देखा और हल्के-से हंस पड़ी। और शेरा सोच ही रहा है, क्या कह रही है शाहनी आज! आज शाहनी क्या, कोई भी कुछ नहीं कर सकता। यह होके रहेगा क्यों न हो? हमारे ही भाई-बन्दों से सूद ले-लेकर शाहजी सोने की बोरियां तोला करते थे। प्रतिहिंसा की आग शेरे की आंखों में उतर आयी। गंड़ासे की याद हो आयी। शाहनी की ओर देखानहीं-नहीं, शेरा इन पिछले दिनों में तीस-चालीस कत्ल कर चुका है परपर वह ऐसा नीच नहीं…सामने बैठी शाहनी नहीं, शाहनी के हाथ उसकी आंखों में तैर गये। वह सर्दियों की रातें कभी-कभी शाहजी की डांट खाके वह हवेली में पड़ा रहता था। और फिर लालटेन की रोशनी में वह देखता है, शाहनी के ममता भरे हाथ दूध का कटोरा थामे हुए ‘शेरे-शेरे, उठ, पी ले।’ शेरे ने शाहनी के झुर्रियां पड़े मुंह की ओर देखा तो शाहनी धीरे से मुस्करा रही थी। शेरा विचलित हो गया। ‘आंखिर शाहनी ने क्या बिगाड़ा है हमारा? शाहजी की बात शाहजी के साथ गयी, वह शाहनी को जरूर बचाएगा। लेकिन कल रात वाला मशवरा! वह कैसे मान गया था फिरोंज की बात! ‘सब कुछ ठीक हो जाएगासामान बांट लिया जाएगा!’

“शाहनी चलो तुम्हें घर तक छोड़ आऊं!”
शाहनी उठ खड़ी हुई। किसी गहरी सोच में चलती हुई शाहनी के पीछे-पीछे मंजबूत कदम उठाता शेरा चल रहा है। शंकित-सा-इधर उधर देखता जा रहा है। अपने साथियों की बातें उसके कानों में गूंज रही हैं। पर क्या होगा शाहनी को मारकर?
“शाहनी!”
“हां शेरे।”
शेरा चाहता है कि सिर पर आने वाले खतरे की बात कुछ तो शाहनी को बता दे, मगर वह कैसे कहे?
“शाहनी”
शाहनी ने सिर ऊंचा किया। आसमान धुएं से भर गया था। “शेरे”

शेरा जानता है यह आग है। जबलपुर में आज आग लगनी थी लग गयी! शाहनी कुछ न कह सकी। उसके नाते रिश्ते सब वहीं हैं हवेली आ गयी। शाहनी ने शून्य मन से डयोढ़ी में कदम रक्खा। शेरा कब लौट गया उसे कुछ पता नहीं। दुर्बल-सी देह और अकेली, बिना किसी सहारे के! न जाने कब तक वहीं पड़ी रही शाहनी। दुपहर आयी और चली गयी। हवेली खुली पड़ी है। आज शाहनी नहीं उठ पा रही। जैसे उसका अधिकार आज स्वयं ही उससे छूट रहा है! शाहजी के घर की मालकिन…लेकिन नहीं, आज मोह नहीं हट रहा। मानो पत्थर हो गयी हो। पड़े-पड़े सांझ हो गयी, पर उठने की बात फिर भी नहीं सोच पा रही। अचानक रसूली की आवांज सुनकर चौंक उठी। “शाहनी-शाहनी, सुनो ट्रकें आती हैं लेने?”

“ट्रके…?” शाहनी इसके सिवाय और कुछ न कह सकी। हाथों ने एक-दूसरे को थाम लिया। बात की बात में खबर गांव भर में फैल गयी। बीबी ने अपने विकृत कण्ठ से कहा”शाहनी, आज तक कभी ऐसा न हुआ, न कभी सुना। गजब हो गया, अंधेर पड़ गया।” शाहनी मूर्तिवत् वहीं खड़ी रही। नवाब बीबी ने स्नेह-सनी उदासी से कहा “शाहनी, हमने तो कभी न सोचा था!”
शाहनी क्या कहे कि उसीने ऐसा सोचा था। नीचे से पटवारी बेगू और जैलदार की बातचीत सुनाई दी। शाहनी समझी कि वक्त आन पहुंचा। मशीन की तरह नीचे उतरी, पर डयोढ़ी न लांघ सकी। किसी गहरी, बहुत गहरी आवांज से पूछा”कौन? कौन हैं वहां?”

कौन नहीं है आज वहां? सारा गांव है, जो उसके इशारे पर नाचता था कभी। उसकी असामियां हैं जिन्हें उसने अपने नाते-रिश्तों से कभी कम नहीं समझा। लेकिन नहीं, आज उसका कोई नहीं, आज वह अकेली है! यह भीड़ की भीड़, उनमें कुल्लूवाल के जाट। वह क्या सुबह ही न समझ गयी थी?
बेगू पटवारी और मसीत के मुल्ला इस्माइल ने जाने क्या सोचा। शाहनी के निकट आ खड़े हुए। बेगू आज शाहनी की ओर देख नहीं पा रहा। धीरे से जरा गला सांफ करते हुए कहा”शाहनी, रब्ब नू एही मंजूर सी।”

शाहनी के कदम डोल गये। चक्कर आया और दीवार के साथ लग गयी। इसी दिन के लिए छोड़ गये थे शाहजी उसे? बेजान-सी शाहनी की ओर देखकर बेगू सोच रहा है ‘क्या गुंजर रही है शाहनी पर! मगर क्या हो सकता है! सिक्का बदल गया है…’
शाहनी का घर से निकलना छोटी-सी बात नहीं। गांव का गांव खड़ा है हवेली के दरवाजे से लेकर उस दारे तक जिसे शाहजी ने अपने पुत्र की शादी में बनवा दिया था। तब से लेकर आज तक सब फैसले, सब मशविरे यहीं होते रहे हैं। इस बड़ी हवेली को लूट लेने की बात भी यहीं सोची गयी थी! यह नहीं कि शाहनी कुछ न जानती हो। वह जानकर भी अनजान बनी रही। उसने कभी बैर नहीं जाना। किसी का बुरा नहीं किया। लेकिन बूढ़ी शाहनी यह नहीं जानती कि सिक्का बदल गया है…

देर हो रही थी। थानेदार दाऊद खां जरा अकड़कर आगे आया और डयोढ़ी पर खड़ी जड़ निर्जीव छाया को देखकर ठिठक गया! वही शाहनी है जिसके शाहजी उसके लिए दरिया के किनारे खेमे लगवा दिया करते थे। यह तो वही शाहनी है जिसने उसकी मंगेतर को सोने के कनफूल दिये थे मुंह दिखाई में। अभी उसी दिन जब वह ‘लीग’ के सिलसिले में आया था तो उसने उद्दंडता से कहा था’शाहनी, भागोवाल मसीत बनेगी, तीन सौ रुपया देना पड़ेगा!’ शाहनी ने अपने उसी सरल स्वभाव से तीन सौ रुपये दिये थे। और आज…?

“शाहनी!” डयोढ़ी के निकट जाकर बोला “देर हो रही है शाहनी। (धीरे से) कुछ साथ रखना हो तो रख लो। कुछ साथ बांध लिया है? सोना-चांदी”
शाहनी अस्फुट स्वर से बोली “सोना-चांदी!” जरा ठहरकर सादगी से कहा”सोना-चांदी! बच्चा वह सब तुम लोगों के लिए है। मेरा सोना तो एक-एक जमीन में बिछा है।”
दाऊद खां लज्जित-सा हो गया। “शाहनी तुम अकेली हो, अपने पास कुछ होना जरूरी है। कुछ नकदी ही रख लो। वक्त का कुछ पता नहीं”
“वक्त?” शाहनी अपनी गीली आंखों से हंस पड़ी। “दाऊद खां, इससे अच्छा वक्त देखने के लिए क्या मैं जिन्दा रहूंगी!” किसी गहरी वेदना और तिरस्कार से कह दिया शाहनी ने।

दाऊद खां निरुत्तर है। साहस कर बोला “शाहनी कुछ नकदी जरूरी है।”
“नहीं बच्चा मुझे इस घर से (शाहनी का गला रुंध गया) नकदी प्यारी नहीं। यहां की नकदी यहीं रहेगी।”
शेरा आन खड़ा गुजरा कि हो ना हो कुछ मार रहा है शाहनी से। “खां साहिब देर हो रही है”
शाहनी चौंक पड़ी। देरमेरे घर में मुझे देर ! आंसुओं की भँवर में न जाने कहाँ से विद्रोह उमड़ पड़ा। मैं पुरखों के इस बड़े घर की रानी और यह मेरे ही अन्न पर पले हुए…नहीं, यह सब कुछ नहीं। ठीक हैदेर हो रही हैपर नहीं, शाहनी रो-रोकर नहीं, शान से निकलेगी इस पुरखों के घर से, मान से लाँघेगी यह देहरी, जिस पर एक दिन वह रानी बनकर आ खड़ी हुई थी। अपने लड़खड़ाते कदमों को संभालकर शाहनी ने दुपट्टे से आंखें पोछीं और डयोढ़ी से बाहर हो गयी। बडी-बूढ़ियाँ रो पड़ीं। किसकी तुलना हो सकती थी इसके साथ! खुदा ने सब कुछ दिया था, मगरमगर दिन बदले, वक्त बदले…

शाहनी ने दुपट्टे से सिर ढाँपकर अपनी धुंधली आंखों में से हवेली को अन्तिम बार देखा। शाहजी के मरने के बाद भी जिस कुल की अमानत को उसने सहेजकर रखा आज वह उसे धोखा दे गयी। शाहनी ने दोनों हाथ जोड़ लिए यही अन्तिम दर्शन था, यही अन्तिम प्रणाम था। शाहनी की आंखें फिर कभी इस ऊंची हवेली को न देखी पाएंगी। प्यार ने जोर मारासोचा, एक बार घूम-फिर कर पूरा घर क्यों न देख आयी मैं? जी छोटा हो रहा है, पर जिनके सामने हमेशा बड़ी बनी रही है उनके सामने वह छोटी न होगी। इतना ही ठीक है। बस हो चुका। सिर झुकाया। डयोढ़ी के आगे कुलवधू की आंखों से निकलकर कुछ बन्दें चू पड़ीं। शाहनी चल दीऊंचा-सा भवन पीछे खड़ा रह गया। दाऊद खां, शेरा, पटवारी, जैलदार और छोटे-बड़े, बच्चे, बूढ़े-मर्द औरतें सब पीछे-पीछे।

ट्रकें अब तक भर चुकी थीं। शाहनी अपने को खींच रही थी। गांववालों के गलों में जैसे धुंआ उठ रहा है। शेरे, खूनी शेरे का दिल टूट रहा है। दाऊद खां ने आगे बढ़कर ट्रक का दरवांजा खोला। शाहनी बढ़ी। इस्माइल ने आगे बढ़कर भारी आवांज से कहा” शाहनी, कुछ कह जाओ। तुम्हारे मुंह से निकली असीस झूठ नहीं हो सकती!” और अपने साफे से आंखों का पानी पोछ लिया। शाहनी ने उठती हुई हिचकी को रोककर रुंधे-रुंधे से कहा, “रब्ब तुहानू सलामत रक्खे बच्चा, खुशियां बक्शे…।”

वह छोटा-सा जनसमूह रो दिया। जरा भी दिल में मैल नहीं शाहनी के। और हमहम शाहनी को नहीं रख सके। शेरे ने बढ़कर शाहनी के पांव छुए, “शाहनी कोई कुछ कर नहीं सका। राज भी पलट गया” शाहनी ने कांपता हुआ हाथ शेरे के सिर पर रक्खा और रुक-रुककर कहा”तैनू भाग जगण चन्ना!” (ओ चाँद तेरे भाग्य जागें) दाऊद खां ने हाथ का संकेत किया। कुछ बड़ी-बूढ़ियां शाहनी के गले लगीं और ट्रक चल पड़ी।

अन्न-जल उठ गया। वह हवेली, नयी बैठक, ऊंचा चौबारा, बड़ा ‘पसार’ एक-एक करके घूम रहे हैं शाहनी की आंखों में! कुछ पता नहींट्रक चल दिया है या वह स्वयं चल रही है। आंखें बरस रही हैं। दाऊद खां विचलित होकर देख रहा है इस बूढ़ी शाहनी को। कहां जाएगी अब वह?
“शाहनी मन में मैल न लाना। कुछ कर सकते तो उठा न रखते! वकत ही ऐसा है। राज पलट गया है, सिक्का बदल गया है…”

रात को शाहनी जब कैंप में पहुंचकर जमीन पर पड़ी तो लेटे-लेटे आहत मन से सोचा ‘राज पलट गया है…सिक्का क्या बदलेगा? वह तो मैं वहीं छोड़ आयी।…’
और शाहजी की शाहनी की आंखें और भी गीली हो गयीं!
आसपास के हरे-हरे खेतों से घिरे गांवों में रात खून बरसा रही थी।
शायद राज पलटा भी खा रहा था और सिक्का बदल रहा था.

सिक्का बदल गया कहानी, Sikka Badal Gaya Kahani, हिंदी कहानी सिक्का बदल गया, Hindi Kahani Sikka Badal Gaya, सिक्का बदल गया कृष्णा सोबती, Sikka Badal Gaya Krishna Sobti, सिक्का बदल गया कहानी का उद्देश्य, Sikka Badal Gaya Kahani Ki Mool Samvedna

ये भी पढ़े –

शेर और चूहा हिंदी कहानी, शेर और चूहे की कहानी, Sher Aur Chuha Ki Kahani, Lion and Mouse Story in Hindi, लायन एंड माउस स्टोरी मोरल इन हिंदी

खरगोश की चतुराई हिंदी कहानी, Khargosh Ki Chaturai Hindi Kahani, चतुर खरगोश पंचतंत्र की कहानी, Khargosh Ki Chaturai Story in Hindi

लालची कुत्ता, Lalachi Kutta, लालची कुत्ता की कहानी, Lalchi Kutta Ki Kahani in Hindi, लालची कुत्ता कहानी, लालची कुत्ता स्टोरी इन हिंदी, Lalchi Kutta in Hindi

पेड़ और राहगीर हिंदी कहानी, पेड़ और राहगीर की कहानी, Ped Aur Rahgir Hindi Kahani, Tree Story in Hindi, Tree Stories in Hindi, the Tree and the Travellers

मोटापा कम करने के लिए डाइट चार्ट, वजन घटाने के लिए डाइट चार्ट, बाबा रामदेव वेट लॉस डाइट चार्ट इन हिंदी, वेट लॉस डाइट चार्ट

ज्यादा नींद आने के कारण और उपाय, Jyada Nind Kyon Aati Hai, Jyada Neend Aane Ka Karan, ज्यादा नींद आने की वजह, Jyada Neend Aane Ka Reason

बच्चों के नये नाम की लिस्ट , बेबी नाम लिस्ट, बच्चों के नाम की लिस्ट, हिंदी नाम लिस्ट, बच्चों के प्रभावशाली नाम , हिन्दू बेबी नाम, हिन्दू नाम लिस्ट, नई लेटेस्ट नाम

ईदगाह हिंदी कहानी, Idgah Hindi Kahani, मुंशी प्रेमचंद की कहानी ईदगाह, Munshi Premchand Ki Kahani Idgah, ईदगाह हिंदी स्टोरी, ईदगाह प्रेमचंद

नयी बीवी हिंदी कहानी, Nayi Biwi Hindi Kahani, मुंशी प्रेमचंद की कहानी नयी बीवी, Munshi Premchand Ki Kahani Nayi Biwi, नयी बीवी प्रेमचंद

शतरंज की बाज़ी हिंदी कहानी, Shatranj Ki Bazi Hindi Kahani, मुंशी प्रेमचंद की कहानी शतरंज की बाज़ी, Munshi Premchand Ki Kahani Shatranj Ki Bazi

दो बहनें हिंदी कहानी, Do Behne Hindi Kahani, मुंशी प्रेमचंद की कहानी दो बहनें, Munshi Premchand Ki Kahani Do Behne, दो बहनें हिंदी स्टोरी