Upar Niche Aur Darmiyaan by Saadat Hasan Manto

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ऊपर नीचे और दरमियान कहानी, Upar Niche Aur Darmiyaan Hindi Kahani
मियां साहब! बहुत देर के बाद आज मिल बैठने का इत्तिफ़ाक़ हुआ है।
बेगम साहिबा! जी हाँ!
मियां साहब! मस्रूफ़ियतें… बहुत पीछे हटता हूँ मगर नाअह्ल लोगों का ख़याल करके क़ौम की पेश की हुई ज़िम्मेदारियां सँभालनी ही पड़ती हैं।
बेगम साहिबा! अस्ल में आप ऐसे मुआमलों में बहुत नर्म दिल वाक़े हुए हैं, बिल्कुल मेरी तरह।
मियां साहब! हाँ! मुझे आपकी सोशल ऐक्टिविटीज़ का इल्म होता रहता है। फ़ुर्सत मिले तो कभी अपनी वो तक़रीरें भेजवा दीजिएगा जो पिछले दिनों आप ने मुख़्तलिफ़ मौक़ों पर की हैं… मैं फ़ुर्सत के औक़ात में उनका मुतालआ करना चाहता हूँ।
बेगम साहबा! बहुत बेहतर!
मियां साहब! हाँ बेगम! वो मैंने आपसे इस बात का ज़िक्र किया था!
बेगम साहबा! किस बात का?
मियां साहब! मेरा ख़याल है, ज़िक्र नहीं किया… कल इत्तिफ़ाक़ से मैं मँझले साहबज़ादे के कमरे में जा निकला, वो लेडी चटर्लीज़ लवर पढ़ रहा था।
बेगम साहिबा! वो रुस्वा-ए-ज़माना किताब!
मियां साहब! हाँ बेगम!
बेगम साहिबा! आपने क्या किया?
मियां साहब! मैंने उससे किताब छीन कर ग़ायब कर दी।
बेगम साहिबा! बहुत अच्छा किया आपने।
मियां साहब! अब मैं सोच रहा हूँ कि डाक्टर से मशवरा करूं और उसकी रोज़ाना ग़िज़ा में तबदीली क़रा दूँ।
बेगम साहिबा! बड़ा सही क़दम उठाएंगे आप।
मियां साहब! मिज़ाज कैसा है आपका?
बेगम साहिबा! ठीक है।
मियां साहब! मेरा ख़याल था कि आज आप से… दरख़ास्त करूं।
बेगम साहबा! ओह! आप बहुत बिगड़ते जा रहे हैं।
मियां साहब! ये सब आपकी करिश्मा साज़ियाँ हैं।
बेगम साहबा! लेकिन आपकी सेहत?
मियां साहब! सेहत? अच्छी है लेकिन डाक्टर से मशवरा किए बगै़र कोई क़दम नहीं उठाऊंगा… और आपकी तरफ़ से भी मुझे पूरा इत्मिनान होना चाहिए।
बेगम साहबा! मैं आज ही मिस सलढाना से पूछ लूंगी।
मियां साहब! और में डाक्टर जलाल से।
बेगम साहिबा! क़ाइदे के मुताबिक़ ऐसा ही होना चाहिए।
मियां साहब! अगर डाक्टर जलाल ने इजाज़त दे दी?
बेगम साहबा! अगर मिस सलढाना ने इजाज़त दे दी… मफ़लर अच्छी तरह लपेट लीजिए। बाहर सर्दी है।
मियां साहब! शुक्रिया!
डाक्टर जलाल! तुम ने इजाज़त दे दी?
मिस सलढाना! जी हाँ!
डाक्टर जलाल! मैंने भी इजाज़त दे दी… हालाँकि शरारत के तौर पर…
मिस सलढाना! मुझे भी।
डाक्टर जलाल! पूरे एक बरस के बाद वो..
मिस सलढाना! हाँ पूरे एक बरस के बाद।
डाक्टर जलाल! मेरी उंगलियों के नीचे उसकी नब्ज़ तेज़ होगई, जब मैंने उसको इजाज़त दी।
मिस सलढाना! उसकी भी यही कैफ़ियत थी।
डाक्टर जलाल! उसने मुझसे डरते हुए कहा, डाक्टर! ऐसा मालूम होता है, मेरा दिल कमज़ोर होगया है… आप कार्डियोग्राम लीजिए…
मिस सलढाना! उसने भी मुझसे यही कहा।
डाक्टर जलाल! मैंने उसके टीका लगा दिया।
मिस सलढाना! मैंने भी… सिर्फ़ सादा पानी का।
डाक्टर जलाल! सादा पानी बेहतरीन चीज़ है।
मिस सलढाना! जलाल! अगर तुम उस बेगम के शौहर होते?
डाक्टर जलाल! अगर तुम उस मियां की बीवी होतीं?
मिस सलढाना! मेरा कैरेक्टर ख़राब हो गया होता!
डाक्टर जलाल! मेरा जनाज़ा उठ गया होता!
मिस सलढाना! ये भी तुम्हारे कैरेक्टर की ख़राबी कहलाती।
डाक्टर जलाल! हम जब भी सोसाइटी के इन उल्लूओं को देखने आते हैं, हमारा कैरेक्टर ख़राब हो जाता है।
मिस सलढाना! आज भी होगा?
डाक्टर जलाल! बहुत ज़्यादा।
मिस सलढाना! मगर मुसीबत ये है कि उनका लंबे लंबे वक़्फ़ों के बाद होता है।
बेगम साहिबा! लेडी चटर्लीज़ लवर, ये आपने तकिए के नीचे क्यूँ रखी हुई है?
मियां साहब! मैं देखना चाहता था कि ये किताब कितनी बेहूदा और वाहियात है।
बेगम साहिबा! मैं भी आपके साथ देखूंगी।
मियां साहब! मैं जस्ता-जस्ता देखूंगा, पढ़ता जाऊंगा। आप भी सुनती जाइए।
बेगम साहिबा! बहुत अच्छा रहेगा।
मियां साहब! मैंने मँझले साहबज़ादे की रोज़ाना ग़िज़ा में डाक्टर के मशवरे से तबदीलियां करा दी हैं।
बेगम साहिबा! मुझे यक़ीन था कि आपने इस मुआमले में ग़फ़लत नहीं बरती होगी।
मियां साहब! मैंने अपनी ज़िंदगी में कभी आज का काम कल पर नहीं छोड़ा।
बेगम साहिबा! मैं जानती हूँ… और ख़ास कर आज का काम तो आप कभी…
मियां साहब! आपका मिज़ाज कितना शगुफ़्ता है…
बेगम साहिबा! ये सब आपकी करिश्मासाज़ियाँ हैं।
मियां साहब! मैं बहुत महफ़ूज़ हुआ हूँ… अगर आपकी इजाज़त हो तो…
बेगम साहिबा! ठहरिए! क्या आपने दाँत साफ़ किए?
मियां साहब! जी हाँ! मैं दाँत साफ़ कर के और डेटॉल के ग़रारे कर के आया था।
बेगम साहिबा! मैं भी।
मियां साहब! अस्ल में हम दोनों एक दूसरे के लिए बनाए गए थे।
बेगम साहिबा! इसमें क्या शक है।
मियां साहब! में जस्ता-जस्ता ये बेहूदा किताब पढ़ना शुरू करूं।
बेगम साहिबा! ठहरिए! ज़रा मेरी नब्ज़ देखिए।
मियां साहब! कुछ तेज़ चल रही है… मेरी देखिए।
बेगम साहिबा! आपकी भी तेज़ चल रही है।
मियां साहब! वजह?
बेगम साहिबा! दिल की कमज़ोरी!
मियां साहब! यही वजह हो सकती है… लेकिन डाक्टर जलाल ने कहा था कोई ख़ास बात नहीं।
बेगम साहिबा! मिस सलढाना ने भी यही कहा था।
मियां साहब! अच्छी तरह इम्तिहान कर के उसने इजाज़त दी थी?
बेगम साहिबा! बहुत अच्छी तरह इम्तिहान कर के इजाज़त दी थी।
मियां साहब! तो मेरा ख़याल है कोई हरज नहीं।
बेगम साहिबा! आप बेहतर समझते हैं… ऐसा न हो, आपकी सेहत…
मियां साहब! और आपकी सेहत भी…
बेगम साहिबा! अच्छी तरह सोच समझ कर ही क़दम उठाना चाहिए।
मियां साहब! मिस सलढाना ने इसका तो बंदोबस्त कर दिया है न?
बेगम साहिबा! किसका? हाँ, हाँ, उसका तो बंदोबस्त कर दिया है उसने।
मियां साहब! यानी उस तरफ़ से तो पूरा इत्मिनान है।
बेगम साहिबा! जी हाँ!
मियां साहब! ज़रा अब देखिए नब्ज़?
बेगम साहिबा! अब तो… ठीक चल रही है… मेरी?
मियां साहब! आपकी भी नोर्मल है।
बेगम साहिबा! इस बेहूदा किताब का कोई पैरा तो पढ़िए।
मियां साहब! बेहतर… नब्ज़ फिर तेज़ होगई।
बेगम साहिबा! मेरी भी।
मियां साहब! नौकरों से मतलूबा सामान रखवा दिया है आपने कमरे में?
बेगम साहिबा! जी हाँ! सब चीज़ें मौजूद हैं।
मियां साहब! अगर आपको ज़हमत न हो तो मेरा टेमप्रेचर ले लीजिए।
बेगम साहिबा! क्या आप तकलीफ़ नहीं कर सकते… स्टॉप वाच मौजूद है। नब्ज़ की रफ़्तार भी देख लीजिए।
मियां साहब! हाँ! ये भी नोट होनी चाहिए।
बेगम साहिबा! सिमलिंग साल्ट कहाँ है?
मियां साहब! दूसरी चीज़ों के साथ होना चाहिए।
बेगम साहिबा! जी हाँ! पड़ा है तिपाई पर।
मियां साहब! कमरे का टेमप्रेचर मेरा ख़याल है थोड़ा सा बढ़ा देना चाहिए।
बेगम साहिबा! मेरा भी यही ख़याल है।
मियां साहब! नक़ाहत ज़्यादा होगई तो मुझे दवा देना न भूलिएगा।
बेगम साहिबा! मैं कोशिश करूंगी अगर…
मियां साहब! हाँ हाँ…! बसूरत-ए-दीगर आप तकलीफ़ न उठाईएगा।
बेगम साहिबा! आप ये सफ़ा… ये पूरा सफ़ा पढ़िए…
मियां साहब! सुनीए!…
बेगम साहिबा! ये आपको छींक क्यूँ आई?
मियां साहब! मालूम नहीं।
बेगम साहिबा! हैरत है।
मियां साहब! मुझे ख़ुद हैरत है।
बेगम साहिबा! ओह… मैंने कमरे का टेमप्रेचर बढ़ाने के बजाय घटा दिया था… माफ़ी चाहती हूँ।
मियां साहब! ये अच्छा हुआ कि छींक आगई और बर वक़्त पता चल गया।
बेगम साहिबा! मुझे बहुत अफ़सोस है।
मियां साहब! कोई बात नहीं। बारह क़तरे ब्रांडी इसकी तलाफ़ी कर देंगे।
बेगम साहिबा! ठहरिए…! मुझे डालने दें। आपसे गिन्ने में ग़लती हो जाया करती है।
मियां साहब! ये तो दुरुस्त है, आप डाल दीजिए।
बेगम साहिबा! आहिस्ता आहिस्ता पीछे।
मियां साहब! इससे ज़्यादा आहिस्ता और क्या होगा?
बेगम साहिबा! तबीयत बहाल हुई?
मियां साहब! हो रही है।
बेगम साहिबा! आप थोड़ी देर आराम कर लें।
मियां साहब! हाँ… मैं ख़ुद इसकी ज़रूरत महसूस कर रहा हूँ।
नौकर! क्या बात है , आज बेगम साहिबा नज़र नहीं आईं?
नौकरानी! तबीयत नासाज़ है उनकी।
नौकर! मियां साहब की तबीयत भी नासाज़ है।
नौकरानी! हमें मालूम था।
नौकर! हाँ! लेकिन कुछ समझ में नहीं आता।
नौकरानी! क्या?
नौकर! ये क़ुदरत का तमाशा… हमें तो आज बिस्तर-ए-मर्ग पर होना चाहिए था।
नौकरानी! कैसी बातें मुँह से निकालते हो। बिस्तर-ए-मर्ग पर हों वो…
नौकर! न छेड़ो उनके बिस्तर-ए-मर्ग का ज़िक्र… बड़ा शानदार होगा… ख़्वाह मख़्वाह मेरा जी चाहेगा कि उठा कर अपनी कोठरी में ले जाऊं।
नौकरानी! कहाँ चले?
नौकर! बढ़ई ढ़ूढ़ने जा रहा हूँ… चारपाई अब बिल्कुल जवाब दे चुकी है।
नौकरानी! हाँ! इसमें कहना, मज़बूत लकड़ी लगाए।

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