Chanakya Niti

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चाणक्य नीति अध्याय 17, Chanakya Niti Chapter 17 In Hindi
कुशल राजनीतिज्ञ, चतुर कूटनीतिज्ञ, प्रकांड अर्थशास्त्री के रूप में विश्वविख्‍यात और मौर्य साम्राज्य के संस्थापक आचार्य चाणक्य एक ऐसी महान विभूति थे, जिन्होंने अपनी विद्वत्ता, बुद्धिमता और क्षमता के बल पर भारतीय इतिहास की धारा को बदल दिया। आज हम आपके लिए “चाणक्य नीति” के सभी सत्रह अध्याय लेकर आए हैं. जानकारी के लिए बता दें कि “चाणक्य नीति” आचार्य चाणक्य की नीतियों का अद्भुत संग्रह है, जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना वह दो हजार चार सौ साल पहले था, जब इसे लिखा गया था ।

चाणक्य नीति द्वारा मित्र-भेद से लेकर दुश्मन तक की पहचान, पति-परायण तथा चरित्र हीन स्त्रियों में विभेद, राजा का कर्तव्य और जनता के अधिकारों तथा वर्ण व्यवस्था का उचित निदान हो जाता है। जैसा कि हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि महापंडित आचार्य चाणक्य की ‘चाणक्य नीति’ में कुल सत्रह अध्याय है, इन्हे आप यहां पढ़ सकते हैं. हमने आपकी सुविधा के लिए हर एक अध्याय के नीचे बाकि के बचे सभी अध्याय की लिंक्स भी प्रकाशित कर दी है, ताकि आप एक ही जगह से संपूर्ण चाणक्य नीति का अध्ययन कर सके.

चाणक्य नीति सत्रहवां अध्याय, Chanakya Niti Chapter 17 
1- वह विद्वान जिसने असंख्य किताबों का अध्ययन बिना सद्गुरु के आशीर्वाद से कर लिया वह विद्वानों की सभा में एक सच्चे विद्वान के रूप में नहीं चमकता है. उसी प्रकार जिस प्रकार एक नाजायज औलाद को दुनिया में कोई प्रतिष्ठा हासिल नहीं होती.
2- हमें दूसरों से जो मदद प्राप्त हुई है उसे हमें लौटना चाहिए. उसी प्रकार यदि किसी ने हमसे यदि दुष्टता की है तो हमें भी उससे दुष्टता करनी चाहिए. ऐसा करने में कोई पाप नहीं है.
3- वह चीज जो दूर दिखाई देती है, जो असंभव दिखाई देती है, जो हमारी पहुँच से बहार दिखाई देती है, वह भी आसानी से हासिल हो सकती है यदि हम तप करते है. क्यों की तप से ऊपर कुछ नहीं.
4- लोभ से बड़ा दुर्गुण क्या हो सकता है. पर निंदा से बड़ा पाप क्या है. जो सत्य में प्रस्थापित है उसे तप करने की क्या जरूरत है. जिसका ह्रदय शुद्ध है उसे तीर्थ यात्रा की क्या जरूरत है. यदि स्वभाव अच्छा है तो और किस गुण की जरूरत है. यदि कीर्ति है तो अलंकार की क्या जरूरत है. यदि व्यवहार ज्ञान है तो दौलत की क्या जरूरत है. और यदि अपमान हुआ है तो मृत्यु से भयंकर नहीं है क्या.
5- समुद्र ही सभी रत्नों का भण्डार है. वह शंख का पिता है. देवी लक्ष्मी शंख की बहन है. लेकिन दर-दर पर भीख मांगने वाले हाथ में शंख ले कर घूमते है. इससे यह बात सिद्ध होती है की उसी को मिलेगा जिसने पहले दिया है.

6- जब आदमी में शक्ति नहीं रह जाती वह साधु हो जाता है. जिसके पास दौलत नहीं होती वह ब्रह्मचारी बन जाता है. रुग्ण भगवान का भक्त हो जाता है. जब औरत बूढी होती है तो पति के प्रति समर्पित हो जाती है.
7- साँप के दंश में विष होता है. कीड़े के मुँह में विष होता है. बिच्छू के डंक में विष होता है. लेकिन दुष्ट व्यक्ति तो पूर्ण रूप से विष से भरा होता है.
8- जो स्त्री अपने पति की सम्मति के बिना व्रत रखती है और उपवास करती है, वह उसकी आयु घटाती है और खुद नरक में जाती है.
9- स्त्री दान दे कर, उपवास रख कर और पवित्र जल का पान करके पावन नहीं हो सकती. वह पति के चरणों को धोने से और ऐसे जल का पान करने से शुद्ध होती है.
10- एक हाथ की शोभा गहनों से नहीं दान देने से है. चन्दन का लेप लगाने से नहीं जल से नहाने से निर्मलता आती है. एक व्यक्ति भोजन खिलाने से नहीं सम्मान देने से संतुष्ट होता है. मुक्ति खुद को सजाने से नहीं होती, अध्यात्मिक ज्ञान को जगाने से होती है.

11- टुंडी फल खाने से आदमी की समझ खो जाती है. वच मूल खिलाने से लौट आती है. औरत के कारण आदमी की शक्ति खो जाती है, दूध से वापस आती है.
12- जिसमे सभी जीव के प्रति परोपकार की भावना है वह सभी संकटों पर मात करता है और उसे हर कदम पर सभी प्रकार की सम्पन्नता प्राप्त होती है.
13- वह इंद्र के राज्य में जाकर क्या सुख भोगेगा-
जिसकी पत्नी प्रेम भाव रखने वाली और सदाचारी है.
जिसके पास में संपत्ति है.
जिसका पुत्र सदाचारी और अच्छे गुण वाला है.
जिस को अपने पुत्र द्वारा पौत्र हुए है.
14- मनुष्यों में और निम्न स्तर के प्राणियों में खाना, सोना, घबराना और गमन करना समान है. मनुष्य अन्य प्राणियों से श्रेष्ठ है तो विवेक ज्ञान की बदौलत. इसलिए जिन मनुष्यों में ज्ञान नहीं है वे पशु है.
15- यदि मद मस्त हाथी अपने माथे से टपकने वाले रस को पीने वाले भोरों को कान हिला कर उड़ा देता है, तो भोरों का कुछ नहीं जाता, वे कमल से भरे हुए तालाब की ओर ख़ुशी से चले जाते है. हाथी के माथे का शृंगार कम हो जाता है.

16- ये आठों कभी दूसरों का दुःख नहीं समझ सकते –
१. राजा २. वेश्या ३. यमराज ४. अग्नि ५. चोर ६. छोटा बच्चा ७. भिखारी और ८. कर वसूल करने वाला.
17- हे महिला, तुम नीचे झुककर क्या देख रही हो? क्या तुम्हारा कुछ जमीन पर गिर गया है?
हे मूर्ख, मेरे तारुण्य का मोती न जाने कहा फिसल गया.
18- हे केतकी पुष्प! तुममे तो कीड़े रहते है. तुमसे ऐसा कोई फल भी नहीं बनता जो खाया जाये. तुम्हारे पत्ते काटो से ढके है. तुम टेड़े होकर बढ़ते हो. कीचड़ में खिलते हो. कोई तुम्हें आसानी से पा नहीं सकता. लेकिन तुम्हारी अतुलनीय खुशबू के कारण दूसरे पुष्पों की तरह सभी को प्रिय हो. इसीलिए एक ही अच्छाई अनेक बुराइयों पर भारी पड़ती है.

चाणक्य नीति के सभी अध्याय यहां पढ़ें

  1. चाणक्य नीति अध्याय 1, चाणक्य नीति पहला भाग, Chanakya Niti Adhyay Ek, Chanakya Niti Pratham Adhyay, Chanakya Niti Chapter 1 In Hindi
  2. चाणक्य नीति अध्याय 2, चाणक्य नीति दूसरा भाग, Chanakya Niti Adhyay Do, Chanakya Niti Dwitiya Adhyay, Chanakya Niti Chapter 2 In Hindi
  3. चाणक्य नीति अध्याय 3, चाणक्य नीति तीसरा भाग, Chanakya Niti Adhyay Teen, Chanakya Niti Tritiya Adhyay, Chanakya Niti Chapter 3 In Hindi
  4. चाणक्य नीति अध्याय 4, चाणक्य नीति चौथा भाग, Chanakya Niti Adhyay Char, Chanakya Niti Chautha Adhyay, Chanakya Niti Chapter 4 In Hindi
  5. चाणक्य नीति अध्याय 5, चाणक्य नीति पांचवा भाग, Chanakya Niti Adhyay Paanch, Chanakya Niti Panchwa Adhyay, Chanakya Niti Chapter 5 In Hindi
  6. चाणक्य नीति अध्याय 6, चाणक्य नीति छठवाँ भाग, Chanakya Niti Adhyay Chah, Chanakya Niti Chhatwa Adhyay, Chanakya Niti Chapter 6 In Hindi
  7. चाणक्य नीति अध्याय 7, चाणक्य नीति सातवाँ भाग, Chanakya Niti Adhyay Saat, Chanakya Niti Saatwa Adhyay, Chanakya Niti Chapter 7 In Hindi
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  13. चाणक्य नीति अध्याय 13, चाणक्य नीति तेरहवां भाग, Chanakya Niti Adhyay Terah, Chanakya Niti Terwa Adhyay, Chanakya Niti Chapter 13 In Hindi
  14. चाणक्य नीति अध्याय 14, चाणक्य नीति चौदहवां भाग, Chanakya Niti Adhyay Chaudah, Chanakya Niti Chaudahavaan Adhyay, Chanakya Niti Chapter 14 In Hindi
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  17. चाणक्य नीति अध्याय 17, चाणक्य नीति सतरहवाँ भाग, Chanakya Niti Adhyay Satrah, Chanakya Niti Satrahavaan Adhyay, Chanakya Niti Chapter 17 In Hindi

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