Chanakya Niti

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चाणक्य नीति अध्याय 12, Chanakya Niti Chapter 12 In Hindi
कुशल राजनीतिज्ञ, चतुर कूटनीतिज्ञ, प्रकांड अर्थशास्त्री के रूप में विश्वविख्‍यात और मौर्य साम्राज्य के संस्थापक आचार्य चाणक्य एक ऐसी महान विभूति थे, जिन्होंने अपनी विद्वत्ता, बुद्धिमता और क्षमता के बल पर भारतीय इतिहास की धारा को बदल दिया. आज हम आपके लिए “चाणक्य नीति” के सभी सत्रह अध्याय लेकर आए हैं. जानकारी के लिए बता दें कि “चाणक्य नीति” आचार्य चाणक्य की नीतियों का अद्भुत संग्रह है, जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना वह दो हजार चार सौ साल पहले था, जब इसे लिखा गया था.

चाणक्य नीति द्वारा मित्र-भेद से लेकर दुश्मन तक की पहचान, पति-परायण तथा चरित्र हीन स्त्रियों में विभेद, राजा का कर्तव्य और जनता के अधिकारों तथा वर्ण व्यवस्था का उचित निदान हो जाता है. जैसा कि हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि महापंडित आचार्य चाणक्य की ‘चाणक्य नीति’ में कुल सत्रह अध्याय है, इन्हे आप यहां पढ़ सकते हैं. हमने आपकी सुविधा के लिए हर एक अध्याय के नीचे बाकि के बचे सभी अध्याय की लिंक्स भी प्रकाशित कर दी है, ताकि आप एक ही जगह से संपूर्ण चाणक्य नीति का अध्ययन कर सके.

चाणक्य नीति बारहवां अध्याय, Chanakya Niti Chapter 12
1- वह गृहस्थ भगवान की कृपा को पा चुका है जिसके घर में आनंददायी वातावरण है. जिसके बच्चे गुणी है. जिसकी पत्नी मधुर वाणी बोलती है. जिसके पास अपनी ज़रूरतें पूरा करने के लिए पर्याप्त धन है. जो अपनी पत्नी से सुखपूर्ण सम्बन्ध रखता है. जिसके नौकर उसका कहा मानते है. जिसके घर में मेहमान का स्वागत किया जाता है. जिसके घर में मंगल दायी भगवान की पूजा रोज की जाती है. जहाँ स्वाद भरा भोजन और पान किया जाता है. जिसे भगवान के भक्तों की संगति में आनंद आता है.
2- जो एक संकट का सामना करने वाले ब्राह्मण को भक्ति भाव से अल्प दान देता है उसे बदले में विपुल लाभ होता है.
3- वे लोग जो इस दुनिया में सुखी है. जो अपने संबंधियों के प्रति उदार है. अनजाने लोगों के प्रति सह्रदय है. अच्छे लोगों के प्रति प्रेम भाव रखते है. नीच लोगों से धूर्तता पूर्ण व्यवहार करते है. विद्वानों से कुछ नहीं छिपाते. दुशमनों के सामने साहस दिखाते है. बड़ो के प्रति विनम्र और पत्नी के प्रति सख्त है.
4- अरे लोमड़ी !!! उस व्यक्ति के शरीर को तुरंत छोड़ दे. जिसके हाथों ने कोई दान नहीं दिया. जिसके कानों ने कोई विद्या ग्रहण नहीं की. जिसके आँखों ने भगवान का सच्चा भक्त नहीं देखा. जिसके पाँव कभी तीर्थ क्षेत्रों में नहीं गए. जिसने अधर्म के मार्ग से कमाए हुए धन से अपना पेट भरा. और जिसने बिना मतलब ही अपना सर ऊँचा उठा रखा है. अरे लोमड़ी !! उसे मत खा. नहीं तो तू दूषित हो जाएगी.
5- धिक्कार है उन्हें जिन्हें भगवान श्री कृष्ण जो माँ यशोदा के लाडले है उन के चरण कमलों में कोई भक्ति नहीं. मृदंग की ध्वनि धिक तम धिक तम करके ऐसे लोगों का धिक्कार करती है.

6- बसंत ऋतु क्या करेगी यदि बास पर पत्ते नहीं आते. सूर्य का क्या दोष यदि उल्लू दिन में देख नहीं सकता. बादलों का क्या दोष यदि बारिश की बूँदें चातक पक्षी की चोंच में नहीं गिरती. उसे कोई कैसे बदल सकता है जो किसी के मूल में है.
7- एक दुष्ट के मन में सद्गुणों का उदय हो सकता है यदि वह एक भक्त से सत्संग करता है. लेकिन दुष्ट का संग करने से भक्त दूषित नहीं होता. जमीन पर जो फूल गिरता है उससे धरती सुगन्धित होती है लेकिन पुष्प को धरती की गंध नहीं लगती.
8- उसका सही में कल्याण हो जाता है जिसे भक्त के दर्शन होते है. भक्त में तुरंत शुद्ध करने की क्षमता है. पवित्र क्षेत्र में तो लम्बे समय के संपर्क से शुद्धि होती है.
9- एक अजनबी ने एक ब्राह्मण से पूछा. “बताइए, इस शहर में महान क्या है?”. ब्राह्मण ने जवाब दिया की खजूर के पेड़ का समूह महान है.
अजनबी ने सवाल किया की यहाँ दानी कौन है? जवाब मिला के वह धोबी जो सुबह कपड़े ले जाता है और शाम को लौटाता है.
प्रश्न हुआ यहाँ सबसे काबिल कौन है. जवाब मिला यहाँ हर कोई दूसरे का द्रव्य और दारा हरण करने में काबिल है.
प्रश्न हुआ की आप ऐसी जगह रह कैसे लेते हो? जवाब मिला की जैसे एक कीड़ा एक दुर्गन्ध युक्त जगह पर रहता है.
10- वह घर जहाँ ब्राह्मणों के चरण कमल को धोया नहीं जाता, जहाँ वैदिक मंत्रो का जोर से उच्चारण नहीं होता. और जहाँ भगवान को और पितरो को भोग नहीं लगाया जाता वह घर एक स्मशान है.

11- सत्य मेरी माता है. अध्यात्मिक ज्ञान मेरा पिता है. धर्माचरण मेरा बंधु है. दया मेरा मित्र है. भीतर की शांति मेरी पत्नी है. क्षमा मेरा पुत्र है. मेरे परिवार में ये छह लोग है.
12- हमारे शारीर नश्वर है. धन में तो कोई स्थायी भाव नहीं है. मृत्यु हरदम हमारे निकट है. इसीलिए हमें तुरंत पुण्य कर्म करने चाहिए.
13- ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन में आनंद आता है. गायों को ताज़ी कोमल घास खाने में. पत्नी को पति के सान्निध्य में. क्षत्रियों को युद्ध में आनंद आता है.
14- जो दूसरे के पत्नी को अपनी माता मानता है, दूसरे को धन को मिट्टी का ढेला, दूसरे के सुख दुःख को अपने सुख दुःख. उसी को सही दृष्टि प्राप्त है और वही विद्वान है.
15- भगवान राम में ये सब गुण है. १. सद्गुणों में प्रीति. २. मीठे वचन ३. दान देने की तीव्र इच्छा शक्ति. ४. मित्रों के साथ कपट रहित व्यवहार. ५. गुरु की उपस्थिति में विनम्रता ६. मन की गहरी शास्ति. ६. शुद्ध आचरण ७. गुणों की परख ८. शास्त्र के ज्ञान की अनुभूति ८. रूप की सुन्दरता ९. भगवत भक्ति.

16- कल्प तरु तो एक लकड़ी ही है. सुवर्ण का सुमेर पर्वत तो निश्छल है. चिंता मणि तो एक पत्थर है. सूर्य में ताप है. चन्द्रमा तो घटता बढ़ता रहता है. अमर्याद समुद्र तो खारा है. काम देव का तो शरीर ही जल गया. महाराज बलि तो राक्षस कुल में पैदा हुए. कामधेनु तो पशु ही है. भगवान राम के समान कौन है.
17- विद्या सफ़र में हमारा मित्र है. पत्नी घर पर मित्र है. औषधि रुग्ण व्यक्ति की मित्र है. मरते वक्त तो पुण्य कर्म ही मित्र है.
18- राज परिवारों से शिष्टाचार सीखे. पंडितों से बोलने की कला सीखे. जुआरियो से झूठ बोलना सीखे. एक औरत से छल सीखे.
19- बिना सोचे समझे खर्च करने वाला, नटखट बच्चा जिसे अपना घर नहीं, झगड़े पर आमादा आदमी, अपनी पत्नी को दुर्लक्षित करने वाला, जो अपने आचरण पर ध्यान नहीं देता है. ये सब लोग जल्दी ही बर्बाद हो जायेंगे.
20- एक विद्वान व्यक्ति ने अपने भोजन की चिंता नहीं करनी चाहिए. उसे सिर्फ अपने धर्म को निभाने की चिंता होनी चाहिए. हर व्यक्ति का भोजन पर जन्म से ही अधिकार है.
21- जिसे दौलत, अनाज और विद्या अर्जित करने में और भोजन करने में शर्म नहीं आती वह सुखी रहता है.
22- बूंद-बूंद से सागर बनता है. इसी तरह बूंद-बूंद से ज्ञान, गुण और संपत्ति प्राप्त होते है.
23- जो व्यक्ति अपने बुढ़ापे में भी मूर्ख है वह सचमुच ही मूर्ख है. उसी प्रकार जिस प्रकार इन्द्र वरुण का फल कितना भी पके मीठा नहीं होता.

चाणक्य नीति के सभी अध्याय यहां पढ़ें

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