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  • कितने दिन तक रखें शनिवार व्रत , Shaniwar Ke Vrat Kitne Rakhne Chahiye
  • शनिदेव को क्या चढ़ावें, शनिदेव को क्या भोग लगाएं , Shani Dev Ko Kya Prasad Chadaye
  • शनिवार व्रत में क्या खाना चाहिए , Shanivar Vrat Me Kya Khaye
  • शनिवार व्रत के लाभ , Shanivar Vrat Karne Ke Fayde
  • शनिवार व्रत की पौराणिक कथा , Shanivar Vrat Katha
  • शनिवार व्रत आरती , Shanivar Vrat Aarti
  • शनिवार व्रत उद्यापन विधि , Shanivar Vrat Ka Udyapan Kaise Kare, Shanivar Vrat Udyapan Vidhi

शनिवार व्रत विधि , शनिवार व्रत किसे करना चाहिए 
कर्महीनता या वक्त की मार से मिले हर अभावों से मुक्ति के लिए शनिवार व्रत व पूजा का महत्व बताया गया है। शास्त्रों में ग्रहों का प्रभाव बहुत ही प्रबल माना जाता है और ऐसे में अगर शनि ग्रह अशांत हो जाएं तो जीवन में कष्टों और दुखों का आगमन शुरू हो जाता है. सभी ग्रहों में शनि ग्रह का मनुष्य पर सबसे हानिकारक प्रभाव पड़ता है। शनि की कुदृष्टि से राजाओं तक का वैभव पलक झपकते ही नष्ट हो जाता है। शनि की साढ़े साती दशा जीवन में अनेक दुःखों, विपत्तियों का समावेश करती है। इसलिए शनि दोष से पीड़ित जातकों को शनिवार व्रत करना चाहिए. शनि देव विलक्षण शक्तियों वाले देवता हैं। जगत की आत्मा व ईश्वर का रूप माने जाने वाले तेजस्वी सूर्य पुत्र होने से शनि भी बेजोड़ शक्तियों के देवता है। शास्त्रों के अनुसार कर्म दोष से छुटकारा पाने के लिए भी शनि देवता की पूजा अर्चना की जाती है. अतः मनुष्य को शनि की कुदृष्टि से बचने, दु:ख-दरिद्रता, रोग-शोक का नाश करने व धन-वैभव की प्राप्ती के लिए शनिवार का व्रत अवश्य करना चाहिए। जो लोग शनि की साढ़ेसाती से परेशान हैं, उनको ये व्रत करना चाहिए. इससे साढ़ेसाती के कारण आने वाली परेशानियां कम हो जाती हैं.आइए जानते हैं शनिवार व्रत कब और कैसे करें? शनिवार व्रत में क्या खाएं आदि संपूर्ण जानकारी.

शनिवार व्रत कब से शुरू करें
शास्त्रों के मुताबिक शनिवार व्रत किसी भी शनिवार से शुरू कर सकते हैं, लेकिन श्रावण मास में शनिवार का व्रत प्रारंभ करने का विशेष महत्व माना गया है। 7, 19, 25, 33 या 51 शनिवार व्रत सारे दु:ख-दरिद्रता, रोग-शोक का नाश कर धन-वैभव से संपन्न करने वाले माने गए हैं।

कैसे करें शनिवार व्रत, शनिवार व्रत पूजा विधि, Shanivar Vrat Puja Vidhi
1- ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नदी या कुएं के जल से स्नान करें।
2- तत्पश्चात पीपल के वृक्ष पर जल अर्पण करें।
3- लोहे से बनी शनि देवता की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराएं।
4- फिर इस मूर्ति को चावलों से बनाए चौबीस दल के कमल पर स्थापित करें।
5- इसके बाद काले तिल, फूल, धूप, काला वस्त्र व तेल आदि से पूजा करें।
6- पूजन के दौरान शनि के इन 10 नामों का उच्चारण करें- कोणस्थ, कृष्ण, पिप्पला, सौरि, यम, पिंगलो, रोद्रोतको, बभ्रु, मंद, शनैश्चर।
7- पूजन के बाद पीपल के वृक्ष के तने पर सूत के धागे से सात परिक्रमा करें।
8- इसके पश्चात निम्न मंत्र से शनि देव की प्रार्थना करें-
शनैश्चर नमस्तुभ्यं नमस्ते त्वथ राहवे।
केतवेअथ नमस्तुभ्यं सर्वशांतिप्रदो भव॥
9- इसी तरह 7 शनिवार तक व्रत करते हुए शनि के प्रकोप से सुरक्षा के लिए शनि मंत्र की समिधाओं में, राहु की कुदृष्टि से सुरक्षा के लिए दूर्वा की समिधा में, केतु से सुरक्षा के लिए केतु मंत्र में कुशा की समिधा में, कृष्ण जौ, काले तिल से 108 आहुति प्रत्येक के लिए देनी चाहिए।
10- ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर शनिदेव की प्रतिमा की विधि समेत पूजन करना चाहिए। शनि भक्तों को इस दौरान शनि मंदिर में शनि देव को नीले रंग के पुष्प अर्पित करने से विशेष लाभ मिलता है।
11- फिर अपनी क्षमतानुसार ब्राह्मणों को भोजन कराएं तथा लौह वस्तु, धन आदि का दान करें। इस तरह शनि देव का व्रत रखने से दुर्भाग्य को भी सौभाग्य में बदला जा सकता है तथा हर विपत्ति दूर होती है।

शनिवार व्रत में शनिदेव का लगाएं ये भोग, Shani Dev Kay Priya Bhog
वैसे तो शनि महाराज को काली वस्तुएं पसंद होती हैं, जैसे- काले तिल, उड़द की दाल, काले चने, मीठी पूड़ी, काले उड़द की दाल से बनी खिचड़ी.  शनिदेव को इन चीजों का भोग तो लगाया ही जाता है, पर शायद ये कम ही लोग जानते होंगे की इन्हें सबसे ज्यादा अगर कोई चीज पसंद है तो वे हैं मीठी पूड़ी और काले उड़द की दाल से बनी खिचड़ी का भोग । आपके लिए यहां यह भी जानना बेहद जरूरी हैं की शनि देव को चावल से बनी खिचड़ी का भोग नहीं लगता हैं, इसलिए जब काले उड़द दाल की खिचड़ी बनावें तो उसमें चावल नहीं बल्की दलिया मिलाकर ही खिचड़ी बनाकर शनिदेव को भोग लगाने से उनकी कृपा भरपूर बरसने लगती हैं ।

अगर कोई भक्त शनि देव को शीघ्र प्रसन्न् करना चाहते है और अपने जीवन की सभी समस्याओं से छूटकारा पाना चाहते हैं तो वे शनिवार के दिन सुबह 10 बजे से पहले और शाम को 6 से 7 बजे के बीच मीठी पूड़ी या काले उड़द की दाल की खिचड़ी का भोग जरूर लगायें । ऐसे करने से शनि देव प्रसन्न होकर व्यक्ति की साढ़ेसाती, ढैया या महादशा-अंतर्दशा को कम या खत्म ही कर देते है जिसका असर भी जल्दी ही दिखाई देने लगता हैं ।

शनिवार व्रत में क्या खाएं, Shanivar Vrat Me Kya Khaye
1- शनिवार व्रत के दौरान भोजन सूर्यास्त से 2 घंटे बाद करना चाहिए। शनिवार के व्रत में एक समय के भोजन का विधान है.
2- भोजन में उड़द के आटे से बना खाना खाएं।
3- उड़द की दाल की खिचड़ी अथवा दाल खाई जाती है.
4- साथ में कुछ तला हुआ भी लें, फल में केला लें।
5- शनि की पूजा में काले तिल, काले वस्त्र, तेल, उड़द आदि का उपयोग किया जाता है क्योंकि ये सभी शनि महाराज की वस्तुएँ मानी जाती है. उड़द दाल वाली खिचड़ी का सेवन करना अच्छा होता हैं। इससे शनि दोष से राहत मिलती है।
6- खिचड़ी, काले चने की सब्जी, चावल, चिवड़ा या चने का भुजियां और भुजे चने खुद भी खाएं और सारे परिवार को भी खिलाएं।
7- तिल के लड्डू, उड़द की दाल, मीठी पूड़ी बना कर शनि देव को भोग लगाएं फिर गाय, कुत्ते और कौओं को खिलाने के बाद प्रसाद के रूप में पारिवारिक सदस्यों को खिला कर स्वयं भी खाएं।
8- आप महीने के पहले शनिवार को उड़द का भात , दूसरे शनिवार को खीर , तीसरे शनिवार को खजला और अंतिम शनिवार को घी और पूरी से शनिदेव को भोग लगा सकते हैं।

शनिवार व्रत में क्या न खाएं, Shanivar Vrat Me Kya Na Khaye
1- खट्टी चीजें ना खाएं. अचार खाने से बचें. शनिदेव को कसैली चीजें भी पसंद नहीं हैं.
2- शनिवार के दिन सादा दूध और दही का सेवन कभी नहीं करना चाहिए. आप इसमें हल्दी या गुड़ मिलालर इसे पी या खा सकते हैं.
3- शनिवार के दिन लाल मिर्च का प्रयोग नहीं करना चाहिए। लाल मिर्च शनि को रुष्ट करती है |
4- शन‌िवार के ‌द‌िन चना, उड़द और मूंग की दाल खा सकते हैं लेक‌िन जितना हो सके उतना मसूर की दाल खाने से बचें। यह मंगल से प्रभाव‌ित होता है | मंगल शनि के दोष को उत्तजित कर सकता है |
5- व्रत वाले दिन मांस, तंबाकू, सिगरेट और अन्य व्यसन से दूर रहें।इस दिन शराब से दूर रहें. शन‌िवार के द‌िन मद‌िरा पीने से कुंडली में शुभ शन‌ि होने पर भी शन‌ि का शुभ फल नहीं म‌िल पाता है। दुर्घटना की आशंका बढ़ जाती है।
6- ज्योतिष शास्त्री राम पांडे के अनुसार शनिवार को कभी भी पीला भोजन नहीं करना चाहिए। क्योंकि ये बृहस्पति देव का अन्न माना जाता है और शनि एवं गुरू में नहीं बनती है। इसलिए इसे खाने से व्यक्ति के जीवन में कठिनाइयां आ सकती हैं।
7- सरसों के तेल या उससे बने पकवान दान तो कर सकते हैं लेकिन खाने नहीं चाहिए। शनि महाराज को सरसों का तेल चढ़ाया जाता है लेकिन खाया नहीं जा सकता।

शनि व्रत करने से लाभ, Shanivar Vrat Karne Ke Fayde
1- आप अगर शनिवार की पूजा सूर्योदय के समय करें तो श्रेष्ठ फल मिलता है।
2- शनि व्रत के बहुत लाभ है जैसे शनिवार का व्रत और पूजा करने से शनि के प्रकोप से सुरक्षा के साथ साथ राहु, केतु की कुदृष्टि से भी सुरक्षा होती है।
3- मनुष्य की सभी मंगलकामनाएं सफल होती हैं।
4- शनिवार का व्रत करने तथा शनि स्तोत्र के पाठ से मनुष्य के जीवन में धन, संपत्ति, सामाजिक सम्मान, बुद्धि का विकास और परिवार में पुत्र, पौत्र आदि की प्राप्ति होती है। अत: शनिदेव की पूजा अवश्य करना चाहिए।
5- शनि प्रदोष के दिन शनिदेव और शंकरजी की पूजा एकसाथ करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
6- शनिदेव की पूजा करके ब्राह्मणों को तेल का दान करने से भी शनि दोष में राहत मिलती है।
7- ज्‍योतिष के अनुसार यह दिन स्‍थायी संपत्ति खरीदने के लिए भी शुभ माना जाता है।
8- यदि आप शनिवार का व्रत न कर पाएं तो शनिवार के दिन ‘ऊॅं प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः, ऊॅं शं शनिश्चराय नमः।’ मंत्र का जाप अवश्य करें। शनिदेव प्रसन्न होते हैं।

शनिवार को ये काम न करें
आपको अगर शनि की विशेष कृपा पानी है, तो आपको शनिवार पर कुछ काम करने से बचना चाहिए, जैसे अगर आप नाखून या बाल काटते हैं, तो शनिदेव आपसे नाराज हो सकते हैं।
शनिवार को तेल लेने से क्या होता है – ज्योतिष के अनुसार, शनिवार को सरसों या किसी भी पदार्थ का तेल खरीदने से वह रोगकारी होता है। शनिवार को लोहे का बना सामान नहीं खरीदना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि शनिवार को लोहे का सामान क्रय करने से शनि देव कुपित होते हैं। इस दिन लोहे से बनी चीजों के दान का विशेष महत्व है।
1- जुआ-सट्टा ना खेलें।
2- शनिवार को शराब ना पिये और ना ही निर्दोष लोगों को सतायें।
3- शनि व्रत में ब्याजखोरी और झूठी गवाही बिलकुल भी ना दें, शनिदेव को पसंद नहीं है।
4- आप शनिवार को किसी के पीठ पीछे उसके खिलाफ कोई का ना करें और नाही अपने बड़ो व गुरु का अपमान करें।
5- इस दिन आपको जितना हो सके, उतना दान करना चाहिए। आप मंदिर के अलावा किसी जरुरतमंद व्यक्ति आदि को जरुरत का सामान दान कर सकते हैं।
6- शनिदेव को जानवरों से विशेष लगाव है।शनि को खुश रखने के लिए आपको जानवरों पर अत्याचार नहीं करना चाहिए।साथ ही कुत्तों, गाय, बकरी आदि पशु-पक्षियों को रोटी खिलानी चाहिए।
7- शनिवार को लोहे को घर में लाना वर्जित माना जाता है, अगर आप घर में कोई लोहे का सामान लाने का मन बना रहे हैं, तो आपको इससे बचना चाहिए।

शनिवार व्रत के बारे में जरूरी बातें जानिए 
1- शनि व्रत शुक्ल पक्ष के पहले शनिवार से किया जा सकता है।
2- सूर्याेदय से पहले या सुबह 9 बजे तक तांबे के कलश में जल में थोड़ी सी शक्कर और दूध मिला कर पश्चिम दिशा में मुंह कर के पीपल के पेड़ को अर्घ्य देना चाहिए।
3- शनिवार को पीपल के वृक्ष के चारों ओर सात बार कच्चा सूत लपेटें. इस दौरान शनि मंत्र का जाप करें. इसे करने से साढ़ेसाती की सभी परेशानियां दूर हो जाएंगी.
4- इस दिन नीले, बैंगनी तथा काले रंग के कपड़े पहनना चाहिए।
5- भोजन सूर्यास्त से 2 घंटे बाद करना चाहिए।
6- खाने में नमक न लें और मौन व्रत रखें तो श्रेष्ठ रहेगा। ऐसा न हो पाए तो व्रत वाले दिन कम से कम बोलें।
7- मछलियों को दाना खिलाना चाहिए।
8- व्रत वाले दिन गरीब लोगों को भी खाना खिलाएं।
9- व्रत के दिन अपने हाथ से एक ऐसा पौधा लगाएं जिसपर काले, नीले या बैंगनी फूल खिलते हों।
10- आकाश मंडल को देखने से भी शनि ग्रह का शुभ प्रभाव मिलता है।
11- जो लोग कर्जे में हैं वो व्रत वाले दिन काली गाय जिसके सींग न हों तथा जो बिनब्याई हो, ऐसी गाय को घास खिलाएं। बहुत जल्दी फायदा मिलेगा।
12- व्रत वाले दिन बजरंगबली की आराधना तथा उनके सामने सरसों या तिल के तेल का दीपक पश्चिम दिशा में लौ कर के जलाएं। दीपक मिट्टी या फिर पीतल का श्रेष्ठ है।
13- अंतिम व्रत के दिन उद्यापन में संक्षिप्त हवन करना चाहिए।
उक्त के साथ ही शनि देव का विशेष आरती करनी चाहिए और विनती करनी चाहिए कि सदैव आपकी कृपा घर परिवार पर बनी रहें।

अगर बीच में कोई व्रत छूट जाए तो क्या करे
अगर किसी कारणवश आपका कोई व्रत मिस हो जाये तो आप उस दिन को टोटल व्रत में मत जोड़िये। आप 7, 19, 25, 33 या 51 शनिवार व्रत ही रखिये। और छूटे हुए व्रत को अगले शनिवार को कर लीजिये।

शनिवार व्रत की पौराणिक कथा
एक समय स्वर्गलोक में ‘सबसे बड़ा कौन?’ के प्रश्न पर नौ ग्रहों में वाद-विवाद हो गया। विवाद इतना बढ़ा कि परस्पर भयंकर युद्ध की स्थिति बन गई। निर्णय के लिए सभी देवता देवराज इंद्र के पास पहुंचे और बोले- ‘हे देवराज! आपको निर्णय करना होगा कि हममें से सबसे बड़ा कौन है?’ देवताओं का प्रश्न सुनकर देवराज इंद्र उलझन में पड़ गए।इंद्र बोले- ‘मैं इस प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ हूं। हम सभी पृथ्वीलोक में उज्जयिनी नगरी में राजा विक्रमादित्य के पास चलते हैं।

देवराज इंद्र सहित सभी ग्रह (देवता) उज्जयिनी नगरी पहुंचे। महल में पहुंचकर जब देवताओं ने उनसे अपना प्रश्न पूछा तो राजा विक्रमादित्य भी कुछ देर के लिए परेशान हो उठे क्योंकि सभी देवता अपनी-अपनी शक्तियों के कारण महान थे। किसी को भी छोटा या बड़ा कह देने से उनके क्रोध के प्रकोप से भयंकर हानि पहुंच सकती थी।

अचानक राजा विक्रमादित्य को एक उपाय सूझा और उन्होंने विभिन्न धातुओं- स्वर्ण, रजत (चांदी), कांसा, ताम्र (तांबा), सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक व लोहे के नौ आसन बनवाए। धातुओं के गुणों के अनुसार सभी आसनों को एक-दूसरे के पीछे रखवाकर उन्होंने देवताओं को अपने-अपने सिंहासन पर बैठने को कहा।
देवताओं के बैठने के बाद राजा विक्रमादित्य ने कहा- ‘आपका निर्णय तो स्वयं हो गया। जो सबसे पहले सिंहासन पर विराजमान है, वहीं सबसे बड़ा है।’

राजा विक्रमादित्य के निर्णय को सुनकर शनि देवता ने सबसे पीछे आसन पर बैठने के कारण अपने को छोटा जानकर क्रोधित होकर कहा- ‘राजा विक्रमादित्य! तुमने मुझे सबसे पीछे बैठाकर मेरा अपमान किया है। तुम मेरी शक्तियों से परिचित नहीं हो। मैं तुम्हारा सर्वनाश कर दूंगा।’
शनि ने कहा- ‘सूर्य एक राशि पर एक महीने, चंद्रमा सवा दो दिन, मंगल डेढ़ महीने, बुध और शुक्र एक महीने, वृहस्पति तेरह महीने रहते हैं, लेकिन मैं किसी राशि पर साढ़े सात वर्ष (साढ़े साती) तक रहता हूँ। बड़े-बड़े देवताओं को मैंने अपने प्रकोप से पीड़ित किया है।

राम को साढ़े साती के कारण ही वन में जाकर रहना पड़ा और रावण को साढ़े साती के कारण ही युद्ध में मृत्यु का शिकार बनना पड़ा। राजा! अब तू भी मेरे प्रकोप से नहीं बच सकेगा।’ इसके बाद अन्य ग्रहों के देवता तो प्रसन्नता के साथ चले गए, परंतु शनि देव बड़े क्रोध के साथ वहां से विदा हुए।
राजा विक्रमादित्य पहले की तरह ही न्याय करते रहे। उनके राज्य में सभी स्त्री-पुरुष बहुत आनंद से जीवन-यापन कर रहे थे। कुछ दिन ऐसे ही बीत गए। उधर शनि देवता अपने अपमान को भूले नहीं थे।

विक्रमादित्य से बदला लेने के लिए एक दिन शनि देव ने घोड़े के व्यापारी का रूप धारण किया और बहुत से घोड़ों के साथ उज्जयिनी नगरी पहुंचे। राजा विक्रमादित्य ने राज्य में किसी घोड़े के व्यापारी के आने का समाचार सुना तो अपने अश्वपाल को कुछ घोड़े खरीदने के लिए भेजा।
घोड़े बहुत कीमती थे। अश्वपाल ने जब वापस लौटकर इस संबंध में बताया तो राजा विक्रमादित्य ने स्वयं आकर एक सुंदर व शक्तिशाली घोड़े को पसंद किया।

घोड़े की चाल देखने के लिए राजा उस घोड़े पर सवार हुए तो वह घोड़ा बिजली की गति से दौड़ पड़ा।
तेजी से दौड़ता घोड़ा राजा को दूर एक जंगल में ले गया और फिर राजा को वहां गिराकर जंगल में कहीं गायब हो गया। राजा अपने नगर को लौटने के लिए जंगल में भटकने लगा। लेकिन उन्हें लौटने का कोई रास्ता नहीं मिला। राजा को भूख-प्यास लग आई। बहुत घूमने पर उसे एक चरवाहा मिला।

राजा ने उससे पानी मांगा। पानी पीकर राजा ने उस चरवाहे को अपनी अंगूठी दे दी। फिर उससे रास्ता पूछकर वह जंगल से निकलकर पास के नगर में पहुंचा। राजा ने एक सेठ की दुकान पर बैठकर कुछ देर आराम किया। उस सेठ ने राजा से बातचीत की तो राजा ने उसे बताया कि मैं उज्जयिनी नगरी से आया हूँ। राजा के कुछ देर दुकान पर बैठने से सेठ जी की बहुत बिक्री हुई। सेठ ने राजा को बहुत भाग्यवान समझा और खुश होकर उसे अपने घर भोजन के लिए ले गया। सेठ के घर में सोने का एक हार खूंटी पर लटका हुआ था। राजा को उस कमरे में छोड़कर सेठ कुछ देर के लिए बाहर गया।

तभी एक आश्चर्यजनक घटना घटी। राजा के देखते-देखते सोने के उस हार को खूंटी निगल गई।
सेठ ने कमरे में लौटकर हार को गायब देखा तो चोरी का संदेह राजा पर ही किया क्योंकि उस कमरे में राजा ही अकेला बैठा था। सेठ ने अपने नौकरों से कहा कि इस परदेसी को रस्सियों से बांधकर नगर के राजा के पास ले चलो। राजा ने विक्रमादित्य से हार के बारे में पूछा तो उसने बताया कि उसके देखते ही देखते खूंटी ने हार को निगल लिया था। इस पर राजा ने क्रोधित होकर चोरी करने के अपराध में विक्रमादित्य के हाथ-पांव काटने का आदेश दे दिया। राजा विक्रमादित्य के हाथ-पांव काटकर उसे नगर की सड़क पर छोड़ दिया गया।

कुछ दिन बाद एक तेली उसे उठाकर अपने घर ले गया और उसे अपने कोल्हू पर बैठा दिया। राजा आवाज देकर बैलों को हांकता रहता। इस तरह तेली का बैल चलता रहा और राजा को भोजन मिलता रहा। शनि के प्रकोप की साढ़े साती पूरी होने पर वर्षा ऋतु प्रारंभ हुई। राजा विक्रमादित्य एक रात मेघ मल्हार गा रहा था कि तभी नगर के राजा की लड़की राजकुमारी मोहिनी रथ पर सवार उस तेली के घर के पास से गुजरी। उसने मेघ मल्हार सुना तो उसे बहुत अच्छा लगा और दासी को भेजकर गाने वाले को बुला लाने को कहा।
दासी ने लौटकर राजकुमारी को अपंग राजा के बारे में सब कुछ बता दिया। राजकुमारी उसके मेघ मल्हार से बहुत मोहित हुई। अतः उसने सब कुछ जानकर भी अपंग राजा से विवाह करने का निश्चय कर लिया।
राजकुमारी ने अपने माता-पिता से जब यह बात कही तो वे हैरान रह गए। रानी ने मोहिनी को समझाया- ‘बेटी! तेरे भाग्य में तो किसी राजा की रानी होना लिखा है। फिर तू उस अपंग से विवाह करके अपने पांव पर कुल्हाड़ी क्यों मार रही है?’

राजकुमारी ने अपनी जिद नहीं छोड़ी। अपनी जिद पूरी कराने के लिए उसने भोजन करना छोड़ दिया और प्राण त्याग देने का निश्चय कर लिया। आखिर राजा-रानी को विवश होकर अपंग विक्रमादित्य से राजकुमारी का विवाह करना पड़ा। विवाह के बाद राजा विक्रमादित्य और राजकुमारी तेली के घर में रहने लगे। उसी रात स्वप्न में शनि देव ने राजा से कहा- ‘राजा तुमने मेरा प्रकोप देख लिया।
मैंने तुम्हें अपने अपमान का दंड दिया है।’ राजा ने शनि देव से क्षमा करने को कहा और प्रार्थना की- ‘हे शनि देव! आपने जितना दुःख मुझे दिया है, अन्य किसी को न देना।’ शनि देव ने कुछ सोचकर कहा- ‘राजा! मैं तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार करता हूँ। जो कोई स्त्री-पुरुष मेरी पूजा करेगा, शनिवार को व्रत करके मेरी व्रतकथा सुनेगा, उस पर मेरी अनुकंपा बनी रहेगी।

प्रातःकाल राजा विक्रमादित्य की नींद खुली तो अपने हाथ-पांव देखकर राजा को बहुत खुशी हुई। उसने मन ही मन शनि देव को प्रणाम किया। राजकुमारी भी राजा के हाथ-पांव सही-सलामत देखकर आश्चर्य में डूब गई। तब राजा विक्रमादित्य ने अपना परिचय देते हुए शनि देव के प्रकोप की सारी कहानी सुनाई।
सेठ को जब इस बात का पता चला तो दौड़ता हुआ तेली के घर पहुंचा और राजा के चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगा। राजा ने उसे क्षमा कर दिया क्योंकि यह सब तो शनि देव के प्रकोप के कारण हुआ था।
सेठ राजा को अपने घर ले गया और उसे भोजन कराया। भोजन करते समय वहां एक आश्चर्यजनक घटना घटी। सबके देखते-देखते उस खूंटी ने हार उगल दिया। सेठ जी ने अपनी बेटी का विवाह भी राजा के साथ कर दिया और बहुत से स्वर्ण-आभूषण, धन आदि देकर राजा को विदा किया।

राजा विक्रमादित्य राजकुमारी मोहिनी और सेठ की बेटी के साथ उज्जयिनी पहुंचे तो नगरवासियों ने हर्ष से उनका स्वागत किया। अगले दिन राजा विक्रमादित्य ने पूरे राज्य में घोषणा कराई कि शनि देव सब देवों में सर्वश्रेष्ठ हैं। प्रत्येक स्त्री-पुरुष शनिवार को उनका व्रत करें और व्रतकथा अवश्य सुनें। राजा विक्रमादित्य की घोषणा से शनि देव बहुत प्रसन्न हुए। शनिवार का व्रत करने और व्रत कथा सुनने के कारण सभी लोगों की मनोकामनाएं शनि देव की अनुकंपा से पूरी होने लगीं। सभी लोग आनंदपूर्वक रहने लगे।
नीलांजनं समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तण्ड संभूतं तं नमामि शनैश्च

शनिवार की आरती, Shaniwar Ki Aarti 
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी॥
जय जय श्री शनि देव….
श्याम अंग वक्र-दृष्टि चतुर्भुजा धारी।
नी लाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥
जय जय श्री शनि देव….
क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥
जय जय श्री शनि देव….
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥
जय जय श्री शनि देव….
देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥
जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी।।

शनि व्रत का उद्यापन कैसे किया जाता है, शनिवार व्रत उद्यापन विधि , Shanivar Vrat Ka Udyapan Kaise Kare
विधिपूर्वक शनिवार व्रत पूर्ण होने के उपरांत आने वाले शुक्ल पक्ष के शनिवार को व्रत का उद्यापन करना चाहिए।
1- प्रात: काल बहामुहूर्त में कर समस्त घर में शुद्ब जल / गंगा जल के छींटे दे।
2- विद्बान पंडित जी से हवन कराए | हवी में 108 बार शनि बीज मंत्र का जाप कर आहुति दे।
3- जाग्रत शनि मन्दिर में जाकर 1, 5 या 15 किलो तेल से तेलाभिषेक करे।
4- सोने व चांदी का छ्त्र शनिदेव को अर्पित करे।
5- सामर्थ्य अनुसार मंदिर में प्रसाद (हलवे व काले चने) अथवा भण्डारे का वितरण करें।

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