Mauni-Amavasya-2021

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मौनी अमावस्या 2021 कब है, मौनी अमावस्या 2021 मुहूर्त
हिन्दू पंचांग के अनुसार, माघ माह की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहते हैं. मौनी अमावस्या 11 फरवरी 2021 को पड़ रही है. धार्मिक दृष्टि से यह तिथि बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है. मौनी अमावस्या के दिन मौन रहकर स्नान और दान करने का विशेष महत्व माना गया है. ऐसी मान्यता है कि अगर इस अमावस्या पर मौन रहें तो इससे अच्छे स्वास्थ्य और ज्ञान की प्राप्ति होती है. ग्रह दोष दूर करने के लिए भी ये अमावस्या खास मानी गई है. आइए जानते हैं मौनी अमावस्या व्रत की पूजा विधि, मुहूर्त, नियम, महत्व व उपाय के बारे में-

मौनी अमावस्या 2021 मुहूर्त
माघ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि का प्रारंभ 10 फरवरी को देर रात 01 बजकर 08 मिनट पर हो रहा है, जो 11 फरवरी को देर रात 12 बजकर 35 मिनट तक रहेगी. ऐसे में उदया तिथि 11 फरवरी को प्राप्त हो रही है, ऐसे में मौनी अमावस्या 11 फरवरी को होगी. 11 फरवरी को ही मौनी अमावस्या का स्नान, दान, व्रत, पूजा-पाठ आदि किया जाएगा.
फरवरी 11, 2021 को 01:10:48 से अमावस्या आरम्भ.
फरवरी 12, 2021 को 00:37:12 पर अमावस्या समाप्त.

मौनी अमावस्या के दिन मौन रहने का कारण ?
शास्‍त्रों में चंद्रमा को मन का देवता माना गया है. अमावस्‍या के दिन चंद्रमा के दर्शन न होने से मन की स्थिति शिथिलता पूर्ण रहती है. इसलिए इस दिन मौन रहकर मन को संयमित करने का विधान बताया गया है. इस दिन मन ही मन ईश्‍वर का जप करते हुए व्रत और दान करना चाहिए. मौनी अमावस्या के दिन ऋषियों की तरह चुप रहने से उत्तम फल की प्राप्ति होती है. इस दिन मुंह से कटु शब्द कहने से भी बचना चाहिए. इस अमावस्या के दिन भगवान विष्णु-शिव दोनों की पूजा करने का विधान है इससे धन और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग खुलता है. धार्मिक मान्‍यताओं के अनुसार मौनी अमावस्या के दिन मन और वाणी पर नियंत्रण करके गंगा में स्‍नान करने के बाद दान करने से व्‍यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. पाठ स्वयं करें या किसी युवा ब्राह्मण सन्यासी से कराएं.

मौनी अमावस्या पूजा विधि (Mauni Amavasya Vrat Vidhi)
1. मौनी अमावस्या के दिन गंगा स्नान के बाद मौन व्रत का संकल्प लेना चाहिए.
2. भगवान विष्णु की प्रतिमा का पीले फूल, केसर, चंदन, घी का दीपक और प्रसाद के साथ पूजन करें.
3. भगवान का ध्यान करने के बाद विष्णु चालीस या विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें. फिर किसी ब्राह्मण को दान दक्षिणा देना चाहिए.
4. मंदिर में दीप दान करके, सांयकाल धूप-दीप से आरती अवश्य करें.
5. इसके पश्चात श्रीहरि विष्णु को पीले मीठे पकवान का भोग लगाएं.
6. गाय को मीठी रोटी या हरा चारा खिलाने के बाद व्रत खोलें.

मौनी अमावस्या के नियम
1- सुबह या शाम को स्नान के पहले संकल्प लें.
2- पहले जल को सिर पर लगाकर प्रणाम करें फिर स्नान करें.
3- साफ कपड़े पहनें और जल में काले तिल डालकर सूर्य को अर्घ्य दें.
4- फिर मंत्र जाप करें और सामर्थ्य के अनुसार वस्तुओं का दान करें.
5- चाहें तो इस दिन जल और फल ग्रहण करके उपवास रख सकते हैं.

मौनी अमावस्या का महत्व
माघ माह की इस अमावस्या में गंगा स्नान बहुत महत्व है. मान्यता है कि इस दिन गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों में देवताओं का निवास होता है. इसीलिए इस दिन प्रयागराज में मौजूद त्रिवेणी संगम में स्नान का महत्व बहुत बढ़ जाता है. खासकर कुंभ (Kumbh 2021) के दौरान मौनी अमावस्या के दिन लाखों की संख्या में तीर्थयात्री आते हैं. कुंभ के दौरान सोमवार के दिन पड़ने वाले शाही स्नान बेहद ही शुभ माने जाते हैं. इसके साथ ही यह भी मान्यता है कि पूरे मन से इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाए तो आयु लंबी होती है.

करें ये उपाय
1. इस दिन पितरों का ध्यान करते हुए पीपल के पेड़ पर कच्ची लस्सी, थोड़ा गंगाजल, काले तिल, चीनी, चावल, जल तथा पुष्प अर्पित करें.
2. कोई भी रोग होने पर गुड़ व आटा दान करें.
3. इस दिन पितृसूक्त तथा पितृस्तोत्र का पाठ करना चाहिए.
4. विद्या की प्राप्ति हेतु रेवड़ी को मीठे जल में प्रवाह करें.
5. अमावस्या के दिन सूर्यदेव को तांबे के लोटे में लाल चंदन, गंगा जल और शुद्ध जल मिलाकर ॐ पितृभ्य: नम: का बीज मंत्र पढ़ते हुए तीन बार अर्घ्य देना फलदायी माना जाता है.
6. ॐ पितृभ्य: नम: मंत्र का 108 बार अथवा जितना भी हो सके ज्यादा से ज्यादा जाप करना शुभ फल प्रदान करता है.
7. अमावस्या को दक्षिणाभिमुख होकर दिवंगत पितरों के लिए पितृ तर्पण करना चाहिए.

माघ अमावस्या व्रत कथा
कांचीपुरी नगर में एक ब्राह्मण देवस्वामी था. उसकी पत्नी धनवती और पुत्री गुणवती थी. ब्राह्मण के सात पुत्र भी थे. देवस्वामी ने सभी पुत्रों का विवाह करने के बाद पुत्री के विवाह के लिए योग्य वर की तलाश के लिए अपने बड़े बेटे को नगर से बाहर भेज दिया. फिर उसने गुणवती की कुंडली एक ज्योतिषी से दिखाई. ज्योतिषी ने बताया कि विवाह के समय सप्तपदी होते ही यह कन्या विधवा हो जाएगी.

यह सुनकर देवस्वामी दुखी हो गया, उसने उपाय पूछा. ज्योतिषी ने बताया कि इस योग का निवारण सिंहलद्वीप निवासी सोमा नामक धोबिन को घर बुलाकर उसकी पूजा करने से ही संभव होगा. यह सुनकर देवस्वामी ने अपने सबसे छोटे पुत्र के साथ पुत्री गुणवती को सोमा धोबन को घर लाने के लिए सिंहलद्वीप भेजा. वे दोनों समुद्र तट पर पहुंचे और समुद्र को पार करने का उपाय सोचने लगे, लेकिन कोई उपाय नहीं सूझा तो दोनों भाई-बहन भूखे-प्यासे एक वट वृक्ष की छाया में उदास हो कर बैठ गए.

उस वट वृक्ष पर एक गिद्ध का परिवार रहता था. उसके बच्चों ने देखा कि दोनों भाई-बहन दिन भर परेशान रहे. जब शाम को गिद्धों की मां अपने बच्चों के लिए कुछ भोजन लेकर आई और उन्हें खिलाने लगी, तो उन बच्चों ने कुछ नहीं खाया और वृक्ष के नीचे बैठे भाई-बहन की बात बताई. बच्चों की बातें सुनकर गिद्धनी को दया आ गई. उसने दोनों भाई-बहन के पास जाकर कहा कि तुम दोनों की इच्छा उसे पता है. तुम दोनों भोजन कर लो. सुबह तुम दोनों को समुद्र पार सोमा के पास पहुंचा दूंगी.

गिद्धनी की बात सुनकर वे दोनों बेहद खुश हुए. सुबह होते होते गिद्धनी ने उन्हें सोमा के घर पहुंचा दिया. फिर वे सोमा धोबिन को घर लेकर आए और उसकी पूजा की, जिसके बाद ब्राह्मण देवस्वामी की पुत्री का विवाह हुआ. सप्तपदी होते ही उसके पति की मृत्यु हो गई. तब सोमा ने गुणवती को अपने पुण्य का फल दान कर दिया, जिससे उसका पति जीवित हो उठा. इसके बाद सोमा उन दोनों को आशीर्वाद देकर वह सिंहलद्वीप चली गई.

सोमा का पुण्य चले जाने से उसके पुत्र, दामाद और पति की मौत हो गई. तब उसने एक नदी के किनारे स्थित एक पीपल के वृक्ष के नीचे भगवान विष्णु की पूजा की और पीपल की 108 बार परिक्रमा की. ऐसा करने से उसके पुण्य फिर से प्राप्त हो गए. उसके पति, पुत्र और दामाद फिर जीवित हो उठे.

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