Ekadashi Vrat vidhi or katha kis din hai ekadashi 2020 main - Know which days will be fasting for which Ekadashi - Ekadashi Vrat Katha

एकादशी का व्रत – क्या है एकादशी, एकादशी का महत्व, एकादशी व्रत का नियम, एकादशी को क्या न करें, वरुथिनी एकादशी व्रत कथा का महत्व, जानिए कौन से दिन होगा किस एकादशी का व्रत – 2021 – Ekadashi (एकादशी तिथि) -Ekadashi Vrat Vidhi or Katha 

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एकादशी का व्रत – क्या है एकादशी , एकादशी का महत्व, एकादशी का व्रत – 2021
हिंदू धर्म में एकादशी या ग्यारस एक महत्वपूर्ण तिथि है। एकादशी व्रत की बड़ी महिमा है। एक ही दशा में रहते हुए अपने आराध्य देव का पूजन एवं वंदन करने की प्रेरणा देने वाला व्रत एकादशी व्रत कहलाता है। पद्म पुराण के अनुसार स्वयं महादेव ने नारद जी को उपदेश देते हुए कहा था, एकादशी महान पुण्य देने वाली होती है। कहा जाता है कि जो मनुष्य एकादशी का व्रत रखता है उसके पितृ और पूर्वज कुयोनि को त्याग स्वर्ग लोक चले जाते हैं।

क्या है एकादशी
हिंदू पंचांग की ग्यारहवीं तिथि को एकादशी कहते हैं। एकादशी संस्कृत भाषा से लिया गया शब्द है जिसका अर्थ होता है ‘ग्यारह’। हर महीने में एकादशी दो बार आती है, एक शुक्ल पक्ष के बाद और दूसरी कृष्ण पक्ष के बाद। पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहते हैं। प्रत्येक पक्ष की एकादशी का अपना अलग महत्व है।

एकादशी का महत्व
पुराणों के अनुसार एकादशी को ‘हरी दिन’ और ‘हरी वासर’ के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत को वैष्णव और गैर-वैष्णव दोनों ही समुदायों द्वारा मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि एकादशी व्रत हवन, यज्ञ, वैदिक कर्म-कांड आदि से भी अधिक फल देता है। इस व्रत को रखने की एक मान्यता यह भी है कि इससे पूर्वज या पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। स्कन्द पुराण में भी एकादशी व्रत के महत्व के बारे में बताया गया है। जो भी व्यक्ति इस व्रत को रखता है उनके लिए एकादशी के दिन गेहूं, मसाले और सब्जियां आदि का सेवन वर्जित होता है।

एकादशी व्रत का नियम 
एकादशी व्रत करने का नियम बहुत ही सख्त होता है जिसमें व्रत करने वाले को एकादशी तिथि के पहले सूर्यास्त से लेकर एकादशी के अगले सूर्योदय तक उपवास रखना पड़ता है। यह व्रत किसी भी लिंग या किसी भी आयु का व्यक्ति स्वेच्छा से रख सकता है। एकादशी व्रत करने की चाह रखने वाले लोगों को दशमी (एकादशी से एक दिन पहले) के दिन से कुछ जरूरी नियमों को मानना पड़ता है। दशमी के दिन से ही श्रद्धालुओं को मांस-मछली, प्याज, दाल (मसूर की) और शहद जैसे खाद्य-पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। रात के समय भोग-विलास से दूर रहते हुए, पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

एकादशी के दिन सुबह दांत साफ़ करने के लिए लकड़ी का दातून इस्तेमाल न करें। इसकी जगह आप नींबू, जामुन या फिर आम के पत्तों को लेकर चबा लें और अपनी उंगली से कंठ को साफ कर लें। इस दिन वृक्ष से पत्ते तोड़ना भी ‍वर्जित होता है इसीलिए आप स्वयं गिरे हुए पत्तों का इस्तेमाल करें और यदि आप पत्तों का इंतज़ाम नहीं कर पा रहे तो आप सादे पानी से कुल्ला कर लें। स्नान आदि करने के बाद आप मंदिर में जाकर गीता का पाठ करें। सच्चे मन से ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र जप करें। भगवान विष्णु का स्मरण और उनकी प्रार्थना करें। इस दिन दान-धर्म की भी बहुत मान्यता है इसीलिए अपनी यथाशक्ति दान करें।

एकादशी के अगले दिन को द्वादशी के नाम से जाना जाता है। द्वादशी दशमी और बाक़ी दिनों की तरह ही आम दिन होता है। इस दिन सुबह जल्दी नहाकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और सामान्य भोजन को खाकर व्रत को पूरा करते हैं। इस दिन ब्राह्मणों को मिष्ठान्न और दक्षिणा आदि देने का रिवाज़ है। ध्यान रहे कि श्रद्धालु त्रयोदशी आने से पहले ही व्रत का पारण कर लें। इस दिन कोशिश करनी चाहिए कि एकादशी व्रत का नियम पालन करें और उसमें कोई चूक न हो।

एकादशी व्रत का भोजन: शास्त्रों के अनुसार श्रद्धालु एकादशी के दिन ताजे फल, मेवे, चीनी, कुट्टू, नारियल, जैतून, दूध, अदरक, काली मिर्च, सेंधा नमक, आलू, साबूदाना और शकरकंद का प्रयोग कर सकते हैं। एकादशी व्रत का भोजन सात्विक होना चाहिए। कुछ व्यक्ति यह व्रत बिना पानी पिए संपन्न करते हैं जिसे निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है।

एकादशी को क्या न करें
1- वृक्ष से पत्ते न तोड़ें।
2- घर में झाड़ू न लगाएं। ऐसा इसीलिए किया जाता है क्यूंकि घर में झाड़ू आदि लगाने से चीटियों या छोटे-छोटे जीवों के मरने का डर होता है और इस दिन जीव हत्या करना पाप होता है।
3- बाल नहीं कटवाएं।
4- ज़रूरत हो तभी बोलें। कम से कम बोलने की कोशिश करें।
5- एकादशी के दिन चावल का सेवन भी वर्जित होता है।
6- किसी का दिया हुआ अन्न आदि न खाएं।
7- मन में किसी प्रकार का विकार न आने दें।
8- यदि कोई फलाहारी है तो वे गोभी, पालक, शलजम आदि का सेवन न करें। वे आम, केला, अंगूर, पिस्ता
9- और बादाम आदि का सेवन कर सकते है।

वरुथिनी एकादशी व्रत कथा का महत्व
वरुथिनी एकादशी व्रत का महत्व धार्मिक पौराणिक ग्रंथों में हैं। वरुथिनी एकादशी के बारे में कथा इस प्रकार है- बहुत समय पहले की बात है, माँ नर्मदा नदी के किनारे एक राज्य था जिसका राजा मांधाता था। राजा बहुत ही पुण्यात्मा थे, अपनी दानशीलता के लिये वे दूर-दूर तक प्रसिद्ध थे, वे तपस्वी भी और भगवान विष्णु के अनन्य उपासक थे। एक बार राजा जंगल में तपस्या के लिये चले गये और एक विशाल वृक्ष के नीचे अपना आसन लगाकर तपस्या आरंभ कर दी।

राजा अभी तपस्या में ही लीन थे कि एक जंगली भालू ने उन पर हमला कर दिया वह उनके पैर को चबाने लगा। लेकिन राजा मान्धाता तपस्या में इतने एकाग्रचित थे कि भालू उन्हें घसीट कर ले जाने लगा, ऐसे में राजा को घबराहट होने लगी, लेकिन उन्होंने तपस्वी धर्म का पालन करते हुए क्रोध नहीं किया और भगवान विष्णु से ही इस संकट रक्षा के लिए निवेदन किया।

भगवान अपने भक्तों पर संकट कैसे देख सकते हैं, विष्णु जी प्रकट हुए और भालू को अपने सुदर्शन चक्र से मार गिराया, लेकिन तब तक भालू ने राजा के पैर को लगभग पूरा चबा लिया था। राजा को बहुत पीड़ा हो रही थी, श्री भगवान ने राजा से कहा हे राजन विचलित होने की आवश्यकता नहीं है। तुम वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की वरुथिनी एकादशी तिथि जो मेरे वराह रूप का प्रतिक है, के दिन मेरे वराह रूप की पूजा करना एवं व्रत रखना। मेरी कृपा से तुम पुन: संपूर्ण अंगों वाले हष्ट-पुष्ट हो जाओगे। भालू ने जो भी तुम्हारे साथ किया यह तुम्हारे पूर्वजन्म के पाप कर्मों का फल है। वरुथनी एकादशी के व्रत और पूजन से तुम्हें सभी पापों से भी मुक्ति मिल जायेगी।

भगवान की आज्ञा मानकर मांधाता ने वैसा ही किया और वरूथिनी एकादशी का व्रत पारण करते ही उसका भालू द्वारा खाया हुआ पैर पूरी तरह ठीक हो गया। भगवान वराह की कृपा से जैसे राजा को नवजीवन मिल गया हो। वह फिर से हष्ट पुष्ट होकर अधिक श्रद्धाभाव से भगवान की साधना में लीन रहने लगा। ठीक इसी तरह कोई भी व्यक्ति वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर इस कथा का पाठ करता है उसके सारे कष्ट दूर होने के साथ सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।

जानिए 2021 में कब कौन सी एकादशी होंगी – Ekadashi (एकादशी तिथि)

  • एकादशी                                दिन व दिनांक
  • सफला एकादशी         –     शनिवार, 09 जनवरी 2021
  • पौष पुत्रदा एकादशी     –    रविवार, 24 जनवरी 2021
  • षटतिला एकादशी        –    रविवार, 07 फरवरी 2021
  • जया एकादशी             –     मंगलवार, 23 फरवरी 2021
  • विजया एकादशी          –    मंगलवार, 09 मार्च 2021
  • आमलकी एकादशी      –     गुरुवार, 25 मार्च 2021
  • पापमोचिनी एकादशी    –  बुधवार, 07 अप्रैल 2021
  • कामदा एकादशी        –    शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021
  • वरुथिनी एकादशी      –    शुक्रवार, 07 मई 2021
  • मोहिनी एकादशी       –    रविवार, 23 मई 2021
  • अपरा एकादशी         –    रविवार, 06 जून 2021
  • निर्जला एकादशी       –    सोमवार, 21 जून 2021
  • योगिनी एकादशी       –    सोमवार, 05 जुलाई 2021
  • देवशयनी एकादशी    –     मंगलवार, 20 जुलाई 2021
  • कामिका एकादशी      –    बुधवार, 04 अगस्त 2021
  • श्रावण पुत्रदा एकादशी  –    बुधवार, 18 अगस्त 2021
  • अजा एकादशी            –    शुक्रवार, 03 सितंबर 2021
  • परिवर्तिनी एकादशी     –    शुक्रवार, 17 सितंबर 2021
  • इन्दिरा एकादशी         –    शनिवार, 02 अक्टूबर 2021
  • पापांकुशा एकादशी     –   शनिवार, 16 अक्टूबर 2021
  • रमा एकादशी             –    सोमवार, 01 नवंबर 2021
  • देवोत्थान एकादशी     –     रविवार, 14 नवंबर 2021
  • उत्पन्ना एकादशी         –    मंगलवार, 30 नवंबर 2021
  • मोक्षदा एकादशी         –    मंगलवार, 14 दिसंबर 2021
  • सफला एकादशी         –    गुरुवार, 30 दिसंबर 2021

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