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बसंत पंचमी पूजा विधि, सरस्वती पूजा विधि मंत्र
माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी का त्योहार (Basant Panchami Festival) मनाया जाता है. इस दिन विद्या की देवी सरस्वती का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन मां सरस्वती की विशेष पूजा-अराधना की जाती है. बंसत पंचमी (Basant Panchami) के दिन से ही बंसत ऋतु (Basant Ritu) की शुरुआत होती है. शास्त्रो में इस दिन को ऋषि पंचमी (Rishi Panchami), श्री पंचमी (Shree Panchami) और सरस्वती पंचमी (Saraswati Panchami) के नाम से भी जाता है. भारत के साथ-साथ पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल सहित विश्वभर में जहां भी भारतीय बसे हैं इस पर्व को धूमधाम से मनाते हैं. इस त्योहार पर पवित्र नदियों में लोग स्नान आदि करते हैं और इसके साथ ही वसंत मेले आदि का भी आयोजन किया जाता है. इस दिन पीले वस्त्र धारण करना अत्यंत ही शुभ होता है. घरों ही नहीं स्कूलों में भी इस दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है, विद्यार्थी इस दिन अपनी किताब कॉपी और पढ़ने वाली वस्तुओं की पूजा करते हैं. तो आइए जानते हैं बसंत पंचमी का महत्व, सरस्वती पूजा विधि, माता सरस्वती व्रत कथा, सरस्वती मंत्र और माता सरस्वती की आरती…
वंसत पंचमी की पूजा विधि/ मां सरस्वती की पूजा विधि (Saraswati Puja Vidhi)
1- बसंत पंचमी की पूजा सूर्योदय के ढाई घंटे बाद या सूर्योस्त के ढाई घंटे बाद ही की जाती है. सुबह के समय स्नानादि करके सफ़ेद अथवा पीले वस्त्र धारण करें. पूजा के लिए पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुख करके बैठ जाएं.
2- पूजा के लिए एक चौकी लें, उसपर गंगाजल छिड़क कर पीला या सफेद रंग का वस्त्र बीछा दें. सफ़ेद कमल पर बैठी वीणाधारिणी मां सरस्वती की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें. पूजा स्थान पर वाद्य यंत्र और किताबें रखें और बच्चों को भी पूजा स्थल पर बैठाएं.
3- मां सरस्वती को पीले फूल और सफेद चंदन अर्पित करें. इसके पश्चात माता को सिन्दूर व अन्य श्रृंगार की सामग्री चढ़ाएं. इसके बाद मां सरस्वती के चरणों में गुलाल अर्पित करें. गुलाल अर्पित करने के बाद मां सरस्वती की विधिवत पूजा करें.
4- पूजा के सरस्वती कवच का पाठ करें. इस दिन श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा मंत्र का 108 बार जप करें. मां सरस्वती का पूजन करने के बाद पुस्तकों और वाद्य यंत्रों की भी अवश्य पूजा करें.
5- इसके बाद वसंत पंचमी की कथा सुने या पढ़ें. अंत में मां सस्वती की धूप व दीप से आरती उतारें और पूजा में हुई किसी भी भूल के लिए क्षमा मांगे.
6– मां को पीले चावल, केसर मिश्रित खीर या पीले रंग के प्रसाद का भोग लगाएं. भोग लगाकर पूजा के बाद बच्चों को तोहफे में पुस्तक दें व लोगों को प्रसाद बांट कर स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करें.
7- कुछ जगहों पर वसंत पंचमी के दिन मां की मूर्ति विर्सजन करने की भी परंपरा है. यदि आप भी ऐसा करते हैं तो मां सरस्वती की मूर्ति के साथ उनका सारा समान भी प्रवाहित करें.
मां सरस्वती को लगाएं इन चीजों का भोग
बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की विधि विधान से पूजा करने के दौरान उनको पीले पुष्प, पीले रंग की मिठाई अर्पित करनी चाहिए. मां सरस्वती का केसर या पीले चंदन का तिलक करना चाहिए एवं उन्होंने पीले रंग के वस्त्र भेंट करने चाहिए. इसके अलावा बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती को प्रसन्न करने हेतु उन्हें मालपुए और खीर का भी भोग लगाएं.
मां सरस्वती की आराधना करते वक्त इस श्लोक का उच्चारण करना चाहिए
सरस्वती पूजा मंत्र -1 या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता। या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥ या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता। सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥1॥ शुक्लाम् ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम्। वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्॥ हस्ते स्फटिकमालिकाम् विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम्। वन्दे ताम् परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धिप्रदाम् शारदाम्॥2॥ सरस्वती पूजा मंत्र -2 ॐ श्री सरस्वती शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम्।। कोटिचंद्रप्रभामुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम्। वह्निशुद्धां शुकाधानां वीणापुस्तकमधारिणीम्।। रत्नसारेन्द्रनिर्माणनवभूषणभूषिताम्। सुपूजितां सुरगणैब्रह्मविष्णुशिवादिभि:।। वन्दे भक्तया वन्दिता च सरस्वती पूजा मंत्र -3 सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणी, विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु में सदा।
इस पर्व के महत्व का वर्णन पुराणों और अनेक धार्मिक ग्रंथों में विस्तारपूर्वक किया गया है. खासतौर से देवी भागवत में उल्लेख मिलता है कि माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही संगीत, काव्य, कला, शिल्प, रस, छंद, शब्द शक्ति जिह्वा को प्राप्त हुई थी. किसी भी शुभ काम की शुरुआत करने के लिए वसंत पंचमी का दिन बेहद ही शुभ माना गया है. वसंत पंचमी को मुहूर्त शास्त्र के अनुसार एक स्वयंसिद्धि मुहूर्त और अनसूज साया भी माना गया है अर्थात इस दिन कोई भी शुभ मंगल कार्य करने के लिए पंचांग शुद्धि की आवश्यकता नहीं होती. ज्योतिषविदों के अनुसार, इस दिन नींव पूजन, गृह प्रवेश, वाहन खरीदना, व्यापार आरम्भ करना, सगाई और विवाह आदि मंगल कार्य किए जा सकते हैं. विद्यार्थी इस दिन अपनी किताब कॉपी और पढ़ने वाली वस्तुओं की पूजा करते हैं. इसी दिन शिशुओं को पहला अक्षर लिखना सिखाया जाता है. विद्या का आरंभ करने के लिए ये दिन सबसे शुभ माना गया है.
बसंत पंचमी कथा/ वसंत पंचमी के दिन क्यों की जाती है सरस्वती की पूजा ? (Saraswati Vrat Katha)
सृष्टि रचना के दौरान भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की. ब्रह्माजी अपने सृजन से संतुष्ट नहीं थे. उन्हें लगा कि कुछ कमी है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया है. विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल का छिड़काव किया, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही कंपन होने लगा. इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति प्रकट हुई. यह शक्ति एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री थी. जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरे हाथ में वर मुद्रा था. अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी.
ब्रह्माजी ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया. जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हुई. जलधारा में कोलाहल व्याप्त हुआ. पवन चलने से सरसराहट होने लगी. तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा. सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है. ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं. संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं. बसन्त पंचमी के दिन को इनके प्रकटोत्सव के रूप में भी मनाते हैं. ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है- प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु.
अर्थात ये परम चेतना हैं. सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं. हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं. इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है. पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और तभी से इस वरदान के फलस्वरूप भारत देश में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी जो कि आज तक जारी है. पतंगबाज़ी का वसंत से कोई सीधा संबंध नहीं है. लेकिन पतंग उड़ाने का रिवाज़ हज़ारों साल पहले चीन में शुरू हुआ और फिर कोरिया और जापान के रास्ते होता हुआ भारत पहुँचा.
मां सरस्वती की आरती, Maa Saraswati Ki Aarti जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता, सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता.. जय सरस्वती माता.. चन्द्रवदनि पद्मासिनि, द्युति मंगलकारी, सोहे शुभ हंस सवारी, अतुल तेजधारी.. जय सरस्वती माता.. बाएं कर में वीणा, दाएं कर माला, शीश मुकुट मणि सोहे, गल मोतियन माला.. जय सरस्वती माता.. देवी शरण जो आए, उनका उद्धार किया, पैठी मंथरा दासी, रावण संहार किया.. जय सरस्वती माता.. विद्या ज्ञान प्रदायिनि, ज्ञान प्रकाश भरो, मोह अज्ञान और तिमिर का, जग से नाश करो.. जय सरस्वती माता.. धूप दीप फल मेवा, माँ स्वीकार करो, ज्ञानचक्षु दे माता, जग निस्तार करो.. जय सरस्वती माता.. माँ सरस्वती की आरती, जो कोई जन गावे, हितकारी सुखकारी ज्ञान भक्ति पावे.. जय सरस्वती माता.. जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता, सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता.. जय सरस्वती माता..
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