संपूर्ण रामायण कथा बालकाण्ड : ताड़का वध, राक्षसी ताड़का वध, ताड़का का वध कैसे हुआ, राम ने ताड़का का वध कैसे किया, ताड़का वध कहाँ हुआ था, ताड़का वन कहाँ है, ताड़का किसकी पुत्री थी, ताड़का के पुत्र का क्या नाम था, ताड़का वध रामलीला (Ramayan Balkand : Tadka Vadh, Rakshasi Tadka Vadh, Tadka Ka Vadh Kaise Hua, How Ram Killed Tadka, Ram Ne Tadka Ka Vadh Kaise Kiya, Tadka Vadh Kaha Hua Tha, Tadka Van Kaha Hai, Tadka Kiski Putri Thi, Tadka Ke Putra Ka Kya Naam Tha, Tadka Vadh Ramleela)
ताड़का वध, राक्षसी ताड़का वध
राम, लक्ष्मण, भरत एवम शत्रुघ्न चारों राजकुमार अपनी शिक्षा पूरी कर अयोध्या लौटते हैं उनके पराक्रम की चर्चा सभी जगह हो रही हैं | उसी दौरान कुछ हिस्सों में राक्षसी राज होने के कारण जन मानुष बहुत दुखी एवम प्रताड़ित हैं तब सभी मुनि मिलकर इस समस्या के निवारण हेतु एक उपाय सोचते हैं एवम अयोध्या जाकर दशरथ नंदन को इस दुविधा के अंत के लिए बुलाना तय करते हैं | इसके लिए मुनिराज विश्वामित्र अयोध्या के लिये प्रस्थान करते हैं |
अयोध्या पहुंचकर विश्वामित्र राजा दशरथ से सारी स्थिती स्पष्ट करते हैं और राम को अपने साथ भेजने का आग्रह करते हैं | राजा दशरथ जनकल्याण के लिए सहर्ष राम को जाने की आज्ञा दे देते हैं | यह सुन लक्षमण गुरु विश्वामित्र के चरण पकड़ कर अपने भैया राम के साथ ले चलने का आग्रह करते हैं | भातृप्रेम के आगे सभी हार मान जाते है और लक्षमण को भाई राम के साथ जाने की आज्ञा दे देते हैं |
सुबह के समय राम, लक्ष्मण एवम मुनि विश्वामित्र नदी के किनारे पहुँचते हैं | दो राज कुमारो को देख सभी मुनि विश्वामित्र से उनका परिचय जानना चाहते हैं | तब विश्वामित्र सभी को बताते है कि ये दोनों अयोध्या के राजकुमार हैं | उनकी बाते सुनने के बाद वहाँ के लोग उन्हें नाव देते हैं और कहते हैं कि वे इस नदी को इसी नाव से पार करें | मुनिराज सभी को धन्यवाद देते हैं और नाव लेकर निकल पड़ते हैं | किनारे पर पहुँचने के बाद उन्हें एक घना जंगल मिलता हैं तब राम विश्वामित्र से पहुँचते हैं – गुरुवर यह कैसा घना डरावना जंगल हैं ? जहाँ चारों तरफ खतरनाक जंगली जानवरों का शोर हैं अंधकार इतना अधिक गहरा हैं पेड़ो की घनी शाखाओं के कारण सूर्य का तेज प्रकाश भी यहाँ तक पहुँच नहीं पा रहा | क्या नाम हैं इस डरावने जंगल का ? विश्वामित्र उत्तर देते हैं – हे राम ! जहाँ तुम इस भयावह जंगल को देख रहे हों, वहाँ कई वर्षों पहले दो समृद्ध राज्य करूप एवम मालदा हुआ करते थे | वे दोनों ही राज्य बहुत सम्पन्न थे | जहाँ धन सम्पदा की प्रचुर मात्रा थी और प्रजा भी खुशहाल थी |
लक्ष्मण ने उत्सुक्ता से पूछा – हे गुरुवर जब यहाँ इतने सुंदर राज्य थे तब उनका ऐसा भयावह परिणाम कैसे हुआ ? विश्वामित्र ने बताया – यह सब सम्पन्नता यक्ष की पुत्री ताड़का ने समाप्त की उसने इस सुंदर जगह को एक भयानक जंगल बना दिया | ताड़का एक साधारण स्त्री नहीं बल्कि दानव सुन्द की पत्नी एवम राक्षस मारिच की माता एक राक्षसी हैं जिसमे हजार हाथियों के समान बल हैं जिसके कारण उसने और उसके पुत्र ने इस जगह पर बसे सुंदर राज्यों को उजाड़ दिया और यहाँ के नागरिको को मार डाला अथवा अपना दास बन लिया तब ही से इस जगह कोई आने की हिम्मत नहीं करता और अगर कोई गलती से आ भी जाये तो यहाँ से जिन्दा वापस नहीं जाता | यही कारण हैं जो मैं तुम दोनों को यहाँ लाया हूँ अब तुम्ही इस राक्षसी ताड़का का वध कर सकते हो |
तब आश्चर्य के भाव के साथ राम पूछते हैं – गुरुवर एक स्त्री में तो सदैव कोमलता के भाव होते हैं | उसमे ममता और उदारता होती हैं फिर क्या कारण हैं जो ताड़का में हजारों हाथियों का बल हैं और वो उसका इतना भयानक उपयोग कर रही हैं |विश्वामित्र कहते हैं पुत्र राम तुम बिलकुल सही कह रहे हो | इस सबके पीछे एक बड़ा कारण हैं | बहुत समय पहले एक सुकेतु नामक यक्ष था जिनकी कोई संतान नहीं थी इसलिये उसने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्म देव ने उसे एक कन्या संतान के रूप में दी | सुकेतु ने ब्रह्मदेव से अपनी संतान के लिये हजार हाथियों जितना बल माँगा और ब्रह्मदेव ने उसकी इच्छा पूरी की इसलिए ताड़का में इतना बल हैं | जब ताड़का की आयु विवाह योग्य हुई तब उसका विवाह दानव सुन्द से किया गया | सुन्द से उसकी दो संतान जन्मी जिसका नाम मारीच और सुबाहु रखा गया | मारीच भी अपनी माँ के समान महाबलशाली था लेकिन मारीच सुन्द का पुत्र होते हुए भी दानव नहीं था लेकिन वो बहुत उपद्रवी था वो ऋषि मुनियों को बहुत प्रताड़ित करता था उसके इस कृत्य के कारण मुनि अगस्त ने उसे श्राप दिया और उसे एक दानव बना दिया | यह देख सुन्द को क्रोध आया और उसने अगस्त मुनि को मारने हेतु उन पर आक्रमण किया | सुन्द के आगे बढ़ते ही अगस्त मुनि ने उसे अपने श्राप से भस्म कर दिया | अपने पति की मृत्यु को देख ताड़का क्रोध से भर गई और अगस्त मुनि पर आक्रमण कर दिया तब मुनि उसे भी श्राप दिया और उसके सुंदर कोमल शरीर को भयानक कुरूप बना दिया |
तब ही से राक्षसी ताड़का बदले की आग में जल रही हैं और निर्दोष मानवों पर अत्याचार कर रही हैं | उसके इसी अत्याचार से मनुष्यों को मुक्ति दिलाने के लिये मैं तुम दोनों को यहाँ लाया हूँ और अब तुम्हे ताड़का का वध करना होगा बिना यह सोचे की वो एक स्त्री हैं क्यूंकि वो एक श्रापित जिन्दगी जी रही हैं और मनुष्य जाति को प्रताड़ित कर रही हैं ऐसी स्त्री को मारना अधर्म नहीं है तुम बिना अड़चन उसका वध कर सकते हों क्यूंकि तुम्ही हो जो ताड़का को श्रापमुक्त कर सकता हैं और उसका सामना कर सकता हैं |
राम विश्वामित्र की बात मानते हैं और गुरु के आदेशानुसार ताड़का का वध करने के लिये एक नये शस्त्र ‘टंकार’ का आविष्कार करते हैं | टंकार एक ऐसा धनुष हैं जिसे खीचने पर असहनीय आवाज होती हैं जो चारों तरफ हाहाकार मचा देती हैं जिसे सुनकर जंगली जानवर डर कर भागने लगते हैं इस सबके कारण ताड़का को क्रोध आने लगता हैं और जब वो राम को धनुष बाण से सज्ज देख सोचती हैं कि यह राजकुमार विश्वामित्र द्वारा लाया गया हैं इसलिये अवश्य ही मेरे साम्राज्य को तबाह कर सकता हैं | वो तेजी से राम के उस शस्त्र पर झप्टा मारती हैं उसे देखकर राम लक्ष्मण से कहते हैं – लक्ष्मण देखो यह एक राक्षसी हैं जिसकी काया इतनी बड़ी हैं और कितनी कुरूप हैं यह मनुष्यों को मारने में आनंद अनुभव करती हैं और उनके रक्त का सेवन करती हैं इसलिए सावधान रहो और देखो मैं कैसे इसका संहार करता हूँ |
अपने विशाल काय शरीर के साथ ताड़का राम और लक्ष्मण के आस-पास घूम रही हैं उसकी गति प्रकाश की गति के समान तीव्र हैं | राम को विश्वामित्र ने कई शस्त्र प्रदान कर इस भयावह युद्ध के लिये पहले ही तैयार कर रखा था | राम और ताड़का के बीच बहुत देर तक युद्ध चलता हैं | अंत में राम ताड़का के ह्रदय स्थल पर तीर से आघात करते हैं और ताड़का पीड़ा से चीखती हुई चक्कर खाकर भूमि पर गिर पड़ी और अगले ही क्षण उसके प्राण पखेरू उड़ गये। राम के इस रण कौशल और ताड़का की मृत्यु से ऋषि विश्वामित्र अत्यंत प्रसन्न हुये। उनके मुख से रामचन्द्र के लिये आशीर्वचन निकलने लगे। | और भयावह वन वापस सुंदर राज्य में बदल जाता हैं |
गुरु की आज्ञा से वहीं पर सभी ने रात्रि व्यतीत किया। प्रातःकाल उन्होंने देखा कि ताड़का के आतंक से मुक्ति पा जाने के कारण उस वन की भयंकरता और विकरालता समाप्त हो चुकी है। कुछ समय तक उस वन की शोभा निहारने के उपरान्त स्नान-पूजन से निवृत हो कर वे महर्षि विश्वामित्र के आश्रम की ओर चल पड़े।
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