Sugriv Ka Abhishek

किष्किन्धाकाण्ड: सुग्रीव का अभिषेक, बाली वध के बाद सुग्रीव का राज्याभिषेक (Sampurna Ramayan Katha Kishkindha Kand : Sugriv Ka Abhishek, Sugriv Ka Rajyabhishek Story in Hindi)

संपूर्ण रामायण कथा किष्किन्धाकाण्ड: सुग्रीव का अभिषेक, बाली वध के बाद सुग्रीव का राज्याभिषेक (Sampurna Ramayan Katha Kishkindha Kand : Sugriv Ka Abhishek, Sugriv Ka Rajyabhishek Story in Hindi)

सुग्रीव का अभिषेक, बाली वध के बाद सुग्रीव का राज्याभिषेक
वालि के अन्तिम संस्कार से निवृत हो जाने के पश्चात् हनुमान ने हाथ जोड़कर श्री रामचन्द्र जी से निवेदन किया, हे ककुत्स्थनन्दन! वानरराज सुग्रीव को आपकी कृपा से उनके पूर्वजों का राज्य पुनः प्राप्त हो गया है। यह अत्यन्त कठिन कार्य था जो कि आपके प्रसाद स्वरूप ही सम्पन्न हो पाया है। अब आप कृपा कर के उनका राजतिलक कर अंगद को युवराज पद प्रदान करें।

हनुमान की प्रार्थना सुन कर राम बोले, हनुमन्! सौम्य! मैं पिता की आज्ञा का पालन करते हुये वन में निवास कर रहा हूँ अतः चौदह वर्ष की अवधि पूर्ण होने के पूर्व किसी नगर अथवा ग्राम में जाना मेरे लिये उचित नहीं है। अतएव तुम लोग सुग्रीव के साथ नगर में जा कर राज्याभिषेक की प्रक्रिया पूर्ण करो।
फिर राम ने सुग्रीव से कहा, हे मित्र! तुम लौकिक और शास्त्रीय व्यवहार के ज्ञाता हो, नीतिवान और लोकव्यवहार कुशल हो, इसलिये अपने भतीजे अंगद को युवराज का पद प्रदान करो। वह तुम्हारे ज्येष्ठ भ्राता का पुत्र ही नहीं है, पराक्रमी और वीर भी है। कुछ दिन तुम लोग राज्य में रह कर शासन व्यवस्था को सुव्यवस्थित करो और प्रजा की भलाई में मन लगाओ। श्रावण का महीना आ गया है और वर्षा की ऋतु का आरम्भ हो चुका है। अतः चार मास तक सीता की खोज सम्भव नहीं है। वर्षा की समाप्ति पर जानकी की खोज कराना। मैं इस अवधि में लक्ष्मण सहित इसी पर्वत पर निवास करूँगा।

राम से विदा हो कर सुग्रीव किष्किन्धा जा कर किष्किन्धापुरी की शासन व्यवस्था में व्यस्त हो गये।
इस अन्तराल में राम लक्ष्मण के साथ प्रस्रवण पर्वत पर निवास करने लगे। एक सुरक्षित कन्दरा को कुटिया का रूप दे कर वे लक्ष्मण से बोले, हे भाई! हम वर्षा ऋतु यहीं व्यतीत करेंगे। वृक्षादि से सुशोभित यह पर्वत अत्यन्त रमणीक है। इस गुफा के निकट ही सरिता के प्रवाहित होने के कारण यह स्थान हमारे लिये और भी सुविधाजनक रहेगा। यहाँ से किष्किन्धा भी अधिक दूर नहीं है, किन्तु इस शान्तिप्रद वातावरण में भी जानकी का वियोग मुझे दुःखी कर रहा है। उसके बिना मेरे हृदय में भयंकर पीड़ा होती है।

इतना कह कर वे शोक में डूब गये। अपने अग्रज को शोकातुर देख कर लक्ष्मण बोले, हे वीर! इस प्रकार व्यथित होने से कोई लाभ नहीं है। शोक से तो उत्साह नष्ट होता है। और उत्साहहीन हो जाने पर रावण से हम कैसे प्रतिशोध ले सकेंगे? इसलिये आप धैर्य धारण कीजिये। हम रावण को मार कर भाभी को अवश्य मुक्त करायेंगे। केवल कुछ दिनों की बात और है। लक्ष्मण के वचनों से राम ने अपने हृदय को स्थिर किया और वे प्रकृति की शोभा निहारने लगे। थोड़ी देर तक वे वर्षाकालीन प्राकृतिक दृश्यों का अवलोकन करते रहे। फिर लक्ष्मण से बोले, हे लक्ष्मण! देखो इस वर्षा ऋतु में प्रकृति कितनी सुन्दर प्रतीत होती है। ये दीर्घाकार मेघ पर्वतों का रूप धारण किये आकाश में दौड़ रहे हैं। इस वर्षा ऋतु में ये मेघ अमृत की वर्षा करेंगे। उस अमृत से भूतलवासियों का कल्याण करने वाली नाना प्रकार की औषधियाँ, वनस्पति, अन्न आदि उत्पन्न होंगे।

इधर इन बादलों को देखो, एक के ऊपर एक खड़े हुये ये ऐसे प्रतीत होते हैं मानो प्रकृति ने सूर्य तक पहुँचने के लिये इन कृष्ण-श्वेत सीढ़ियों का निर्माण किया है। शीतल, मंद, सुगन्धित समीर हृदय को किस प्रकार प्रफुल्लित करने का प्रयत्न कर रही हैं, किन्तु विरहीजनों के लिये यह अत्यधिक दुःखदायी भी है। उधर पर्वत पर से जो जलधारा बह रही है, उसे देख कर मुझे ऐसा आभास होता है कि सीता भी मेरे वियोग में इसी प्रकार अश्रुधारा बहा रही होगी। इन पर्वतों को देखो, इन्हें देखकर लगता है जैसे ब्रह्मचारी बैठे हों। ये काले-काले बादल इनकी मृगछालाएँ हों। नद-नाले इनके यज्ञोपववीत हों और बादलों की गम्भीर गर्जना वेदमंत्रों का पाठ हो।

कभी कभी ऐसा प्रतीत होता है कि ये बादल गरज नहीं रहे हैं अपितु बिजली के कोड़ों से प्रताड़ित हो कर पीड़ा से कराहते हुये आर्तनाद कर रहे हैं। काले बादलों में चमकती हुई बिजली ऐसी प्रतीत हो रही है मानो राक्षसराज रावण की गोद में मूर्छित पड़ी जानकी हो। हे लक्ष्मण! जब भी मैं वर्षा के दृश्यों को देख कर अपने मन को बहलाने की चेष्टा करता हूँ तभी मुझे सीता का स्मरण हो आता है। यह देखो, काले मेघों ने दसों दिशाओं को अपनी काली चादर से इस प्रकार आवृत कर लिया है जैसे मेरे हृदय की समस्त भावनाओं को जानकी के वियोग ने आच्छादित कर लिया है।

इस वर्षा ऋतु में राजा लोग अपने शत्रु पर आक्रमण नहीं करते, गृहस्थ लोग घर से परदेस नहीं जाते। घर उनके लिये अत्यन्त प्रिय हो जाता है। राजहंस भीमानसरोवर की ओर चल पड़ते हैं। चकवे अपनी प्रिय चकवियों के साथ मिलने को आतुर हो जाते हैं और उनसे मिल कर अपूर्व प्राप्त करते हैं। किन्तु मैं एक ऐसा अभागा हूँ जिसकी चकवी रूपी सीता अपने चकवे से दूर है। मोर अपनी प्रियाओं के साथ नृत्य कर रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि बगुलों की पंक्तियों से शोभायमान, जल से भरे, श्यामवर्ण मेघ मानो किसी लम्बी यात्रा पर जा रहे हैं। वे पर्वतों के शिखरों पर विश्राम करते हुये चल रहे हैं। पृथ्वी पर नई-नई घास उग आई है और उस पर बिखरी हुई लाल-लाल बीरबहूटियाँ ऐसी प्रतीत होती हैं मानो कोई नवयौवना कामिनी हरे परिधान पर लाल बूटे वाली बेल लगाये लेटी हो। सारी पृथ्वी इस वर्षा के कारण हरीतिमामय हो रही हैं। सरिताएँ कलकल नाद करती हुईं बह रही हैं। वानर वृक्षों पर अठखेलियाँ कर रहे हैं। इस सुखद वातावरण में केवल विरहीजन अपनी प्रियाओं के वियोग में तड़प रहे हैं। उन्हें इस वर्षा की सुखद फुहार में भी शान्ति नहीं मिलती।

देखो, ये पक्षी कैसे प्रसन्न होकर वर्षा की मंद-मंद फुहारों में स्नान कर रहे हैं। उधर वह पक्षी पत्तों में अटकी हुई वर्षा की बूँद को चाट रहा है। सूखी मिट्टी में सोये हुये मेंढक मेघों की गर्जना से जाग कर ऊपर आ गये हैं और टर्र-टर्र की गर्जना करते हुये बादलों की गर्जना से स्पर्द्धा करने लगे हैं। जल की वेगवती धाराओं से निर्मल पर्वत-शिखरों से पृथ्वी की ओर दौड़ती हुई सरिताओं की पंक्तियाँ इस प्रकार बिखर कर बह रही हैं जैसे किसी के धवल कण्ठ से मोतियों की माला टूट कर बिखर रही हो। लो, अब पक्षी घोंसलों में छिपने लगे हैं, कमल सकुचाने लगे हैं और मालती खिलने लगी है, इससे प्रतीत होता है कि अब शीघ्र ही पृथ्वी पर सन्ध्या की लालिमा बिखर जायेगी।

फिर राम निःश्वास छोड़ कर बोले, वालि के मरने से सुग्रीव ने अपना राज्य पा लिया। अब वह अपनी बिछुड़ी हुई पत्नी को पुनः पाकर इस वर्षा का आनन्द उठा रहा होगा। पता नहीं, मैं अपनी बिछुड़ी हुई सीता के कब दर्शन करूँगा। अब तो श्रावण मास का अन्त हो चला है। शीघ्र ही शरद ऋतु का प्रारम्भ होगा। दुर्गम मार्ग फिर आवागमन के लिये खुल जायेंगे। मुझे विश्वास है, शरद ऋतु आते ही सुग्रीव अपने गुप्तचरों से अवश्य सीता की खोज करायेगा। इतना कह कर राम गम्भीर कल्पना सागर में गोते लगाने लगे।

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  52. किष्किन्धाकाण्ड: बाली सुग्रीव युध्द वालि-वध, बाली का वध, राम द्वारा बाली का वध, बाली-राम संवाद, तारा का विलाप
  53. किष्किन्धाकाण्ड: सुग्रीव का अभिषेक, बाली वध के बाद सुग्रीव का राज्याभिषेक (Sampurna Ramayan Katha Kishkindha Kand
  54. किष्किन्धाकाण्ड: हनुमान-सुग्रीव संवाद, हनुमान और सुग्रीव की मित्रता, लक्ष्मण-सुग्रीव संवाद, राम का सुग्रीव पर कोप, रामायण सुग्रीव मित्रता
  55. किष्किन्धाकाण्ड: माता सीता की खोज, माता सीता की खोज में निकले राम, राम द्वारा हनुमान को मुद्रिका देना, माता सीता की खोज में निकले हनुमान
  56. किष्किन्धाकाण्ड: जाम्बवन्त द्वारा हनुमान को प्रेरणा, जाम्बवन्त के प्रेरक वचन Sampurna Ramayan Katha Kishkindha Kand
  57. सुन्दरकाण्ड: हनुमान का सागर पार करना, हनुमान जी ने समुद्र कैसे पार किया, हनुमान जी की लंका यात्रा, हनुमान जी का लंका में प्रवेश
  58. सुन्दरकाण्ड: लंका में सीता की खोज, माता सीता की खोज में लंका पहुंचे हनुमान, अशोक वाटिका में हनुमान, सीता से मिले हनुमान, अशोक वाटिका में हनुमान सीता संवाद
  59. सुन्दरकाण्ड: रावण -सीता संवाद, अशोक वाटिका में रावण संवाद, रावण सीता अशोक वाटिका, रावण की सीता को धमकी
  60. सुन्दरकाण्ड: जानकी राक्षसी घेरे में, माता सीता राक्षसी घेरे में, पति राम के वियोग में व्याकुल सीता, अशोक वाटिका में हनुमान जी किस वृक्ष पर बैठे थे
  61. सुन्दरकाण्ड: हनुमान सीता भेंट, सीता जी से मिले हनुमान, अशोक वाटिका में हनुमान सीता संवाद, हनुमान का सीता को मुद्रिका देना
  62. सुन्दरकाण्ड: हनुमान का विशाल रूप, हनुमान जी का पंचमुखी अवतार, हनुमान जी ने क्यों धारण किया पंचमुखी रूप, हनुमान के साथ क्यों नहीं गईं सीता, बजरंगबली का विराट रूप
  63. सुन्दरकाण्ड: हनुमान ने उजाड़ी अशोक वाटिका, हनुमान जी ने रावण की अशोक वाटिका को किया तहस-नहस, अशोक वाटिका विध्वंस, हनुमान राक्षस युद्ध
  64. सुन्दरकाण्ड: मेधनाद हनुमान युद्ध, लंका में हनुमान जी और मेघनाद का भयंकर युद्ध, मेघनाद ने हनुमान पर की बाणों की वर्षा
  65. सुन्दरकाण्ड: रावण के दरबार में हनुमान, रावण हनुमान संवाद, हनुमान-रावण की लड़ाई, लंका दहन, हनुमान जी द्वारा लंका दहन, हनुमान ने सोने की लंका में लगाई आग
  66. सुन्दरकाण्ड: माता सीता का संदेश देना, हनुमान के द्वारा राम सीता का संदेश, हनुमान ने राम को दिया माता सीता का संदेश
  67. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): समुद्र पार करने की चिन्ता, वानर सेना का प्रस्थान, वानर सेना का सेनापति कौन था, वानर सेना रामायण, वानर सेना का गठन
  68. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): लंका में राक्षसी मन्त्रणा, विभीषण ने रावण को किस प्रकार समझाया, विभीषण का निष्कासन, विभीषण का श्री राम की शरण में आना
  69. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): सेतु बन्धन, राम सेतु पुल, क्यों नहीं डूबे रामसेतु के पत्‍थर, राम सेतु का निर्माण कैसे हुआ, नल-नील द्वारा पुल बाँधना
  70. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): सीता के साथ छल, रावण का छल, रावण ने छल से किया माता सीता का हरण Sampoorna Ramayan Yuddha Kand (Lanka Kand)
  71. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): अंगद रावण दरबार में, अंगद ने तोड़ा रावण का घमंड, रावण की सभा में अंगद-रावण संवाद, रावण की सभा में अंगद का पैर जमाना
  72. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): राम लक्ष्मण बन्धन में, नागपाश में राम लक्ष्मण, धूम्राक्ष और वज्रदंष्ट्र का वध, राक्षस सेनापति धूम्राक्ष का वध, अकम्पन का वध, प्रहस्त का वध
  73. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): रावण कुम्भकर्ण संवाद, कुम्भकर्ण वध, कुंभकरण का वध किसने किया, कुम्भकर्ण की कहानी Sampoorna Ramayan Yuddha Kand (Lanka Kand)
  74. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): त्रिशिरा, अतिकाय आदि का वध, अतिकाय का वध, मायासीता का वध, रावण पुत्र मेघनाद (Sampoorna Ramayan Yuddha Kand (Lanka Kand)
  75. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): लक्ष्मण मेघनाद युद्ध कथा, मेघनाथ लक्ष्मण का अंतिम युद्ध, मेघनाद वध, मेघनाथ को कौन मार सकता था? लक्ष्मण ने मेघनाद को कैसे मारा
  76. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): लक्ष्मण मूर्छित, मेघनाद ने ब्रह्म शक्ति से लक्ष्मण को किया मूर्छित, लक्ष्मण मूर्छित होने पर राम विलाप, संजीवनी बूटी लेकर आए हनुमान
  77. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): रावण का युद्ध के लिये प्रस्थान, श्रीराम-रावण का युद्ध, राम और रावण के बीच युद्ध, रावण वध, मन्दोदरी का विलाप 
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  81. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): भरत मिलाप, राम और भरत का मिलन, राम भरत संवाद, राम का राज्याभिषेक Sampoorna Ramayan Yuddha Kand (Lanka Kand)
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  91. उत्तरकाण्ड: राजा श्वेत क्यों खाया करते थे अपने ही शरीर का मांस, राजा श्वेत की कहानी, राजा श्वेत की कथा Sampoorna Ramayan Uttar Kand: Raja Swet Ki Katha
  92. उत्तरकाण्ड: राजा दण्ड की कथा, दण्डकारण्य जंगल के श्रापित होने की कथा, शुक्राचार्य ने राजा दण्ड को दिया श्राप
  93. उत्तरकाण्ड: वृत्रासुर की कथा, वृत्रासुर का वध, वृत्रासुर कौन था? इंद्र द्वारा वृत्रासुर का वध Sampoorna Ramayan Uttar Kand: Vritrasura Ki Katha
  94. उत्तरकाण्ड: राजा इल की कथा, जब पुरूष से स्त्री बन गये राजा ईल, राजा इल की कहानी (Sampoorna Ramayan Uttar Kand: Raja Ill Ki Kahani, Raja Ill Ki Katha
  95. उत्तरकाण्ड: अश्वमेघ यज्ञ का अनुष्ठान रामायण, अश्वमेध यज्ञ क्या है? Sampoorna Ramayan Uttar Kand: Ashvamedh Yagya Ka Anushthaan, Ashvamedh Yagya Kya Hai
  96. उत्तरकाण्ड: लव-कुश द्वारा रामायण गान, ‘हम कथा सुनाते’ लव-कुश के गीत, लव-कुश ने सुनाई राम कथा, लव कुश गीत, रामायण लव कुश कांड
  97. उत्तरकाण्ड: सीता का रसातल प्रवेश, सीता मैया धरती में क्यों समाई, सीता पृथ्वी समाधि, सीता जी का धरती में समाना, सीता का धरती में प्रवेश करना
  98. उत्तरकाण्ड: भरत व लक्ष्मण के पुत्रों के लिये राज्य व्यवस्था, वाल्मीकि रामायण (Sampoorna Ramayan Uttar Kand: Bharat Aur Lakshman Ke Putron Ke Liye Rajya
  99. उत्तरकाण्ड: लक्ष्मण का परित्याग, राम ने लक्ष्मण का परित्याग क्यों किया, राम द्वारा लक्ष्मण का परित्याग, लक्ष्मण द्वारा प्राण विसर्जन, लक्ष्मण की मृत्यु
  100. उत्तरकाण्ड: महाप्रयाण, लव-कुश का अभिषेक, संपूर्ण वाल्मीकि रामायण, Sampoorna Ramayan Uttar Kand: Mahaprayan, Valmiki Ramayan in Hindi