संपूर्ण रामायण कथा बालकाण्ड: विवाह पूर्व की औपचारिकताएं, राम सीता विवाह, श्री राम सीता विवाह कथा, विवाह के समय राम और सीता की आयु कितनी थी,राम सीता की शादी,सीता विवाह, राम- लक्ष्मण-भरत और शत्रुघ्न का विवाह (Sampurna Ramayan Bal Kand- Ram Sita Vivah Story, Shree Ram Vivah, Ram Sita Wedding, Ram Sita Vivah, What Was the Age of Ram and Sita During Marriage)
विवाह पूर्व की औपचारिकताएँ
महाराज जनक के कनिष्ठ भ्राता कुशध्वज सांकाश्यपुरी में रहकर राज्य का प्रबन्ध किया करते थे। सीता के विवाह का समाचार पाकर महाराज वे भी सांकाश्यपुरी से मिथिला आ गये। अपने अग्रज महाराज जनक तथा गुरु शतानन्द जी को प्रणाम करने के पश्चात् वे बोले, हे भ्राता! अयोध्यापति पधार चुके हैं इसलिये अब विवाह सम्बंधी कार्यों का शुभारम्भ कर देना चाहिये। इस पर जनक जी ने शतानन्द जी से कहा, हे गुरुवर! भाई कुशध्वज के कहने के अनुसार हमें शुभ रीतियों और विधि-विधानों के अनुसार कार्य प्रारम्भ करना चाहिये। अतः आप शीघ्र जाकर अयोध्यापति महाराज दशरथ को राजकुमारों सहित आदरपूर्वक यहाँ लिवा लाइये।
शतानन्द जी जनवासे में महाराज दशरथ के पास पहुँचे और उनसे आदरपूर्वक बोले, महाराजाधिराज! मिथिला नरेश महाराज जनक अपने कनिष्ठ भ्राता कुशध्वज, परिजनों एवं समस्त मन्त्रियों के साथ आपके दर्शनों के लिये उत्सुक हैं और अपने दरबार में आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। इसलिये आप अपने मन्त्रियों सहित पधार कर उन्हें कृतार्थ कीजिये। राजा जनक का संदेश पाकर राजा दशरथ गुरु वशिष्ठ, मन्त्रियों एवं राजकुमारों के साथ वहाँ पहुँचे जहाँ राजा जनक उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। मिथिलापति ने खड़े होकर उन सबका स्वागत किया और उन्हें बैठने के लिये यथोचित स्थान प्रदान किया। जब सब अपने-अपने स्थानों पर विराजमान हो गये तो इक्ष्वाकु वंश के गुरु वशिष्ठ जी ने राजकुमारों का गोत्र पढ़ना प्रारम्भ किया जो इस प्रकार था –
आदि रूप स्वयंभू ब्रह्मा जी से मरीचि का जन्म हुआ। मरीचि के पुत्र कश्यप हुये। कश्यप के विवस्वान् और विवस्वान् के वैवस्वत मनु हुये। वैवस्वत मनु के पुत्र इक्ष्वाकु हुये। इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुल की स्थापना की। इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुये। कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था। विकुक्षि के पुत्र बाण और बाण के पुत्र अनरण्य हुये। अनरण्य से पृथु और पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ। त्रिशंकु के पुत्र धुन्धुमार हुये। धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था। युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुये और मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ। सुसन्धि के दो पुत्र हुये – ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित। ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुये। भरत के पुत्र असित हुये और असित के पुत्र सगर हुये। सगर के पुत्र का नाम असमञ्ज था।
असमञ्ज के पुत्र अंशुमान तथा अंशुमान के पुत्र दिलीप हुये। दिलीप के पुत्र भगीरथ हुये, इन्हीं भगीरथ ने अपनी तपोबल से गंगा को पृथ्वी पर लाया। भगीरथ के पुत्र ककुत्स्थ और ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुये। रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने के कारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया। रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुये जो एक शाप के कारण राक्षस हो गये थे, इनका दूसरा नाम कल्माषपाद था। प्रवृद्ध के पुत्र शंखण और शंखण के पुत्र सुदर्शन हुये। सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था। अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग और शीघ्रग के पुत्र मरु हुये। मरु के पुत्र प्रशुश्रुक और प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुये। अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था। नहुष के पुत्र ययाति और ययाति के पुत्र नाभाग हुये। नाभाग के पुत्र का नाम अज था। अज के पुत्र दशरथ हुये और दशरथ के ये चार पुत्र रामचन्द्र, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हैं। इक्ष्वाकु कुल का वर्णन करने के पश्चात् वशिष्ठ जी ने कहा, हे राजन्! अब आप भी अपनी वंश परम्परा का परिचय दीजिये क्योंकि विवाह जैसे मांगलिक अवसरों पर दोनों ही कुल अपने-अपने वंश का परिचय देते हैं।
महाराज जनक बोले, महर्षि! आपने सर्वथा उचित बात कही है। अब मैं भी अपने कुल का परिचय देता हूँ। प्राचीन काल में निमि नामक एक धर्मात्मा राजा थे। उनके मिथि नामक पुत्र हुआ जिन्होंने मिथिला बसाई। मिथि के पुत्र का नाम जनक था, उन्हीं के नाम पर मिथिला के राजा लोग जनक कहलाते हैं। जनक के पुत्र उदावसु और उदावसु के पुत्र नन्दिवर्धन हुये। नन्दिवर्धन के पुत्र का नाम शूरवीर था। शूरवीर के पुत्र सुकेतु और सुकेतु के पुत्र देवरात हुये। देवरात के पुत्र का नाम बृहद्रथ था। बृहद्रथ के पुत्र महावीर और महावीर के पुत्र सुधृति हुये। सुधृति के पुत्र का नाम धृष्टकेतु था। धृष्टकेतु के पुत्र हर्यश्व और हर्यश्व के पुत्र मरु हुये। मरु के यहाँ प्रतीन्धक की उत्पत्ति हुई। प्रतीन्धक के पुत्र कीर्तिरथ, कीर्तिरथ के पुत्र देवमीढ़, देवमीढ़ के पुत्र विबुध और विबुध के पुत्र महीन्ध्रक हुये। महीन्ध्रक के पुत्र का नाम कीर्तिरथ था। कीर्तिरथ के पुत्र महारोमा, महारोमा के पुत्र स्वर्णरोमा और स्वर्णरोमा के पुत्र हृस्वरोमा हुये। हृस्वरोमा के दो पुत्र हुये। उनमें से बड़ा मैं हूँ और मुझसे छोटा कुशध्वज है। हम दोनों भाई इसी प्रदेश में रहकर राजकाज सम्भालते थे।
कुछ काल पहले सांकाश्य के पराक्रमी राजा सुधन्वा ने मिथिला पर आक्रमण कर दिया। वह चाहता था कि मैं सीता का विवाह उसके साथ कर दूँ। मैंने उसकी माँग पूरी नहीं की इसलिये उसके साथ मेरा युद्ध हुआ जिसमें सुधन्वा मेरे हाथ से मारा गया। तब से मेरा कनिष्ठ भ्राता कुशध्वज सांकाश्य पर शासन करता है और मैं मिथिला पर। मैं अपनी बड़ी पुत्री सीता का विवाह राजकुमार रामचन्द्र के साथ और छोटी पुत्री उर्मिला का विवाह उनके कनिष्ठ भ्राता लक्ष्मण के साथ करना चाहता हूँ। मैं तीन बार इस बात को दुहराकर अपनी दोनों कन्याएँ आपको वधुओं के रूप में समर्पित करता हूँ। फिर वे राजा दशरथ से कहने लगे, हे नृपश्रेष्ठ! अब आप इनसे गौ दान कराकर नान्दीमुख श्राद्ध का कार्य सम्पन्न कीजिये। इसके पश्चात् लोक प्रचलित पद्धति के अनुसार विवाह का कार्य आरम्भ कीजिये। यह अवसर सर्वथा उपयुक्त एवं कल्याणकारी है।
आज मघा नक्षत्र है, आज से तीसरे दिन फाल्गुनी नक्षत्र होगा। इससे अधिक उपयुक्त समय विवाह के लिये दूसरा नहीं हो सकता। आप इन दोनों भाइयों के अभ्युदय के लिये गौ, भूमि, स्वर्ण, तिल आदि का दान कराइये। राजा जनक के कथन समाप्त होने पर महामुनि विश्वामित्र बोले, हे राजन्! आप और राजा दशरथ दोनों के ही कुल पूर्णतया धर्मपरायण, कीर्तियुक्त एवं समान हैं। अतः इन दोनों कुलों में विवाह सम्बंध सर्वथा उपयुक्त है। सीता और उर्मिला भी राम और लक्ष्मण के सर्वथा उपयुक्त हैं। आपके कनिष्ठ भ्राता कुशध्वज भी आपकी ही भाँति धर्मपरायण एवं प्रतिभासम्पन्न हैं। इनकी भी दो रूपवती, सुन्दर एवं विवाह योग्य कन्याएँ हैं। हे नरश्रेष्ठ! मैं चाहता हूँ उनका भी विवाह महारज दशरथ के दो योग्य और पराक्रमी पुत्रों, भरत और शत्रुघ्न, के साथ हो जाये।
विश्वामित्र की बात सुनकर जनक बोले, हे मुनिवर! आपके इस आदेश को स्वीकारते हुये मैं अपने कुल को धन्य समझता हूँ। आप भरत और शत्रुघ्न को आज्ञा दीजिये कि वे कुशध्वज की दोनों कन्याओं, माण्डवी एवं श्रुतकीर्ति, को अपनी-अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करें। इसके बाद मिथिला नरेश से अनुमति लेकर राजा दशरथ वशिष्ठ जी और विश्वामित्र जी के सा जनवासे में लौट गये। दूसरे दिन चारों राजकुमारों ने याचकों को एक एक लाख स्वर्ण मण्डित सींगों वाली गौएँ दान दीं और भी बहुत सारा धन, आभूषण, रत्न आदि ब्रह्मणों को दान दिये।
राम सीता विवाह तथा लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का विवाह
दान आदि से निवृत होकर महाराज दशरथ मिथिलेश के राजभवन में जाने की तैयारी करने लगे। तभी भरत के मामा अर्थात् राजा कैकेय के पुत्र युधाजित वहाँ आ पहुँचे। अभिवादन तथा कुशल समाचार जानने की औपचारिकता के पश्चात् उन्होंने कैकेय नरेश का सन्देश देते हुये कहा, महाराज! हमारे पिताजी को भरत को देखने की उत्कट इच्छा हो रही है। अतः कृपा करके आप कुछ दिन के लिये भरत को मेरे साथ उनके ननिहाल भेज दें। इस संदेश को लेकर मैं अयोध्या गया था किन्तु वहाँ पर ज्ञात हुआ कि आप जनक पुरी गये हुये हैं इसलिए मैं भी यहाँ आ गया। महारज दशरथ ने युधाजित का समुचित सत्कार किया और उन्हें सारा वृत्तान्त सुनाया फिर उन्हें लेकर ऋषियों, मन्त्रियों एवं बन्धु-बान्धवों सहित यज्ञशाला के द्वार पर पहुँचे। थोड़ी देर बाद नाना प्रकार के आभूषणों को धारण किये हुये रामचन्द्र अपने भाइयों भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न के साथ उनके पास आकर खड़े हो गये। गुरु वशिष्ठ ने जनक के पास जाकर कहा, हे विदेहराज! महाराज दशरथ अपने पुत्रों के साथ अन्दर आने की अनुमति चाहते हैं।
इस पर महाराज जनक बोले, हे महर्षि! इस प्रकार अनुमति मांग कर वे मुझे क्यों लज्जित कर रहे हैं। वे अयोध्या के ही नहीं मिथिला पुरी के भी स्वामी हैं और मैं तो उनका अकिंचन दास हूँ। क्या कभी स्वामी अपने सेवक से आज्ञा माँगता है? उनसे कहिये चारों कन्याएँ विवाह वेदी पर प्रतीक्षारत हैं। वे निःसंकोच अन्दर पधारने का कष्ट करें। शुभ लग्न का समय भी हो रहा है। मैं स्वयं चलकर उन्हें सादर ले आता हूँ। इतना कहकर वे महाराज दशरथ के पास पहुँचे और उन सबको यज्ञ स्थल मे ले आये। सबको यथोचित आसन देकर जनक ने उनकी पूजा की। फिर वशिष्ठ जी से बोले, हे ब्रह्मर्षि! आप इन ऋषि-मुनियों के साथ विवाह कार्य सम्पन्न कराइये। आपसे अधिक योग्य पुरोहित और कौन हो सकता है?
गुरु वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र और मिथिला के राजपुरोहित शतानन्द विवाह कार्य सम्पन्न कराने लगे। सबसे पहले वैदिक विधि के अनुसार विवाह के लिये वेदी का निर्माण कराया गया। फिर अनेक प्रकार के सुगन्धयुक्त फूलों से उसे सजाया गया। कुछ दूरी पर चारों ओर गमले सजाये गये जिनमें चित्त को प्रसन्न करने वाली सुगन्धित रंग बिरंगे फूल लगे हुये थे। वेदी के निकट कई स्थानों पर स्वर्ण पात्रों में धूप, केशर, नैवेद्य, अक्षत, घी, दही, शहद आदि सामग्री रखी हुई थी। यज्ञ सम्पन्न कराने वाले महानुभावों के लिये कुश के आसन बिछा दिया गये। गुरु वशिष्ठ एवं अन्य महर्षियों ने वेद मन्त्रों का उच्चारण करते हुये हवन कुण्ड में अग्नि प्रज्जवलित की। फिर वशिष्ठ जी के आदेश पर राजप्रासाद की महिलाओं ने जनककुमारी सीता को लाकर यज्ञ वेदी के निकट खड़ा कर दिया। उस समय सीता जी का मुखमण्डल प्रातःकालीन बाल रवि की भाँति अनुपम सौन्दर्य से देदीप्यमान हो रहा था। नख से शिख तक वे बहुमूल्य रत्नजटित आभूषणों से सजी हुई थीं। संक्षेप में कहा जाय तो उस समय सीता की छवि को देखकर करोड़ रतियों का संयुक्त रूप भी नगण्य प्रतीत होता था। सीता इन सब बातों से अनजान दृष्टि झुकाये एकटक पृथ्वी को निहार रही थीं।
महाराज जनक अपनी लाडली पुत्री सीता को श्री रामचन्द्र के निकट खड़ा करके विनीत स्वर में बोले, हे रघुकुलतिलक रामचन्द्र! मैं अपनी पुत्री सीता का हाथ आपके सशक्त हाथों में सौंपते हुये यह कामना करता हूँ कि मेरी पुत्री आपकी अर्द्धांगिनी होकर सदैव छाया की भाँति आपका अनुसरण करती रहे। अतः हे कौशल्याकुमार! इसे आप अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कीजिये। आज से यह आपके सुख-दुःख की संगिनी हुई। यह कहकर राजा जनक ने अंजलि में संकल्प के लिये लिया हुआ जल वेद मन्त्रों से पवित्र करके हृदय की सम्पूर्ण भावनाओं के साथ छोड़ दिया। महिलायें मंगलगान करने लगीं। मृदंग दुंदुभी तथा नाना प्रकार के वाद्य यन्त्रों का सुमधुर स्वर चारों ओर गूंजकर इस हर्ष पूर्ण घटना की सूचना देने लगा।
राम और सीता के विवाह के सम्पन्न हो जाने के पश्चात् लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का विवाह उर्मिला, माण्डवी और श्रुतकीर्ति के साथ वैदिक विधि विधान से सम्पन्न कराया गया। राजा जनक अपने नेत्रों मे स्नेहपूर्ण अश्रु भर कर बोले, हे अयोध्या के राजकुमारों! आप चारों भाई सूर्यकुल के गौरव, पराक्रमी, धर्मपरायण, तेजस्वी, सौम्य, विद्वान एवं सदाचार के गुणों से मण्डित हैं। जनक पुरी के इस राजकुल की हार्दिक कामना है कि उसकी ये चारों कन्याएँ गुण, कर्म, स्वभाव से आपके अनुकूल बनकर सब प्रकार से आपकी सुयोग्य अर्द्धांगिनियाँ सिद्ध हों। इसके पश्चात् वशिष्ठ जी की आज्ञा से चारों राजकुमारों ने अपने अपनी नवविवाहित पत्नियों के साथ अग्नि की प्रदक्षिणा की।
विवाह सम्पन्न होने के पश्चात् महाराज दशरथ समस्त मन्त्रियों, ऋषि-मुनियों और सपत्नीक राजकुमारों के साथ अपने ठहरने के स्थान पर चले गये। जनक पुरी में रात्रि विश्राम करके प्रातःकाल मुनि विश्वामित्र विदा लेकर उत्तराखण्ड की ओर चले गये। महाराज जनक ने दहेज के रूप में असंख्य दास दासियाँ, हाथी, घोड़े, गौएँ, रत्नजटित आभूषण, वस्त्र, बर्तन आदि नाना प्रकार की वस्तुयें देकर अयोध्यापति दशरथ को विदा किया और उन्हें पहुँचाने के लिये नगर के द्वार तक आये। वे हाथ जोड़ कर बड़ी नम्रता के साथ बोले, हे राजन्! मुझे सब प्रकार से अपना दास समझकर मुझ पर कृपा बनाये रखिये। मैं एक बार फिर आभारपूर्वक कहना चाहता हूँ कि आपने मेरे कुल के साथ सम्बंध स्थापित करके मुझे गौरवान्वित किया है। मेरी कन्याएँ आपकी आज्ञाकारिणी एवं दोनों कुलों का गौरव बढ़ाने वाली हों। यही मेरी मनोकामना है। फिर उन्होंने तथा कुशध्वज ने अश्रुपूर्ण नेत्रों से चारों कन्याओं को आशीर्वाद देते हुये विदा किया।
अक्सर लोगो के मन में यह प्रश्न उठता है की जिस समय भगवान राम ने माँ सीता से विवाह किया था उस समय उनकी आयु के बीच कितना अंतर था ? आईये इसे जानते है…
अलग-अलग विद्वान अपने अनुसार माता सीता और प्रभु श्री राम के बीच विवाह का अंतर बताते है | लेकिन हम आपके सामने ऋषियों के द्वारा विशेष ग्रन्थ में उत्कीर्णित तथ्य का ही उल्लेख करेंगे | महर्षि तुलसीदास का हिंदी साहित्य में काफी योगदान है | इन्होने हिन्दुस्तान में मुग़ल बादशाह अकबर की हुकूमत होने के बावजूद भी रामचरित मानस जैसा महान ग्रन्थ लिखा था |
इस समय पहली बार रामायण का अनुवाद संस्कृत से अवधि भाषा में किया गया था | रामचरित मानस की रचना दोहे, चोपाई और छंद में की गयी है | इसमें एक दोहा आता है जिसमे लिखा है:- “वर्ष अठ्ठारह की सिया, सत्ताईस के राम || कीन्हो मन अभिलाष तब, करनो है सुर काम” ||
इस दोहे में स्पष्ट रूप से माँ सीता और प्रभु श्री राम की आयु का उल्लेख किया गया है | इसमें लिखा है जिस समय माता सीता और भगवान श्री राम का विवाह हुआ था उस समय उनकी आयु के बीच लगभग 9 वर्ष का अंतर था | सीता स्वयंवर के समय भगवान राम की आयु 27 वर्ष थी जबकि माता सीता उस समय 18 वर्ष की थी | इस उम्र में भगवान राम का विवाह हुआ था | तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस के अतिरिक्त महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में भी प्रभु राम और माँ सीता की आयु का उल्लेख किया गया है.
सभी रामायण कथा पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक्स पर क्लिक करें –
- संपूर्ण रामायण, Sampoorna Ramayan – सारी कथा पढ़ने के लिए क्लिक करें
- रामायण बालकाण्ड, Ramayan Bal Kand- सारी कथा पढ़ने के लिए क्लिक करें
- रामायण अयोध्याकाण्ड, Ramayan Ayodhya Kand- सारी कथा पढ़ने के लिए क्लिक करें
- रामायण अरण्यकाण्ड, Ramayan Aranya Kand- सारी कथा पढ़ने के लिए क्लिक करें
- रामायण किष्किन्धाकाण्ड, Ramayan Kishkindha Kand- सारी कथा पढ़ने के लिए क्लिक करें
- रामायण सुन्दरकाण्ड, Ramayan Sunder Kand- सारी कथा पढ़ने के लिए क्लिक करें
- रामायण युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड), Ramayan Yuddha Kand (Lanka Kand)- सारी कथा पढ़ने के लिए क्लिक करें
- रामायण उत्तरकाण्ड, Ramayan Uttar Kand- सारी कथा पढ़ने के लिए क्लिक करें
- संपूर्ण रामायण कथा बालकाण्ड : राम का जन्म , भगवान राम का जन्म कब हुआ , श्री राम जी का जन्म कब हुआ था, राम जी का जन्म कहाँ हुआ था, राम के जन्म की क्या कथा है.
- बालकाण्ड : विश्वामित्र का आगमन, ऋषि विश्वामित्र का आगमन, विश्वामित्र आगमन, विश्वामित्र ने राम को मांगा, विश्वामित्र का आश्रम कहां था, विश्वामित्र कौन थे.
- बालकाण्ड : कामदेव का आश्रम, कामेश्वर धाम, वाल्मीकि रामायण, राम और लक्ष्मण, ऋषि विश्वामित्र (Ramayana Balakand: Kamdev’s Ashram
- बालकाण्ड : ताड़का वध, राक्षसी ताड़का वध, ताड़का का वध कैसे हुआ, राम ने ताड़का का वध कैसे किया, ताड़का वध कहाँ हुआ था, ताड़का वन कहाँ है.
- बालकाण्ड : अलभ्य अस्त्रों का दान, विश्वामित्र द्वारा राम को अलभ्य अस्त्रों का दान, गुरु विश्वामित्र ने श्री राम को अस्त्र क्यों दिए? Vishvaamitra Dwara Ram Ko Alabhy Astron Ka Daan
- बालकाण्ड : महर्षि विश्वामित्र का आश्रम, सिद्धाश्रम, विश्वामित्र के आश्रम का नाम सिद्धाश्रम क्यों पड़ा? Sampoorn Ramayan Katha Bal Kand: Vishwamitra Ka Ashram
- बालकाण्ड: मारीच -सुबाहु का उत्पात, मारीच और सुबाहु वध, राम ने कैसे किया मारीच और सुबाहु का वध, मारीच और सुबाहु की माता का नाम क्या था?
- बालकाण्ड: धनुष यज्ञ के लिये प्रस्थान, रामचंद्र का धनुष यज्ञ के लिये प्रस्थान, धनुष यज्ञ का उद्देश्य, सीता स्वयंवर के लिए धनुष यज्ञ, शिवधनुष की विशेषता
- बालकाण्ड: गंगा-जन्म की कथा, गंगा की उत्पत्ति कथा, गंगा की उत्पत्ति कहां से हुई, गंगा की कहानी, गंगा की कथा, गंगा किसकी पुत्री थी, गंगा का जन्म कैसे हुआ
- बालकाण्ड: गुरु विश्वामित्र के साथ जनकपुरी पहुंचे राम व लक्ष्मण, जनकपुरी में राम का आगमन, श्री राम-लक्ष्मण सहित विश्वामित्र का जनकपुर आगमन
- बालकाण्ड: अहिल्या की कथा – कौन थीं अहिल्या, क्यों और कैसे अहिल्या बन गई थी पत्थर? अहिल्या को श्राप क्यों मिला? अहिल्या को गौतम ऋषि ने दिया श्राप
- बालकाण्ड: विश्वामित्र का पूर्व चरित्र, विश्वामित्र का जीवन, विश्वामित्र की कहानी, विश्वामित्र के पिता का नाम, विश्वामित्र की संपूर्ण कथा, विश्वामित्र का जन्म कैसे हुआ
- बालकाण्ड: त्रिशंकु की स्वर्ग यात्रा, विश्वामित्र ने क्यों बनाया त्रिशंकु स्वर्ग, त्रिशंकु की कहानी, त्रिशंकु स्वर्ग क्या है और इसे किसने बनाया, त्रिशंकु को स्वर्ग जाने में किसने मदद की
- बालकाण्ड: ब्राह्मणत्व की प्राप्ति, विश्वामित्र को ब्राह्मणत्व की प्राप्ति, विश्वामित्र जी की कथा (Sampurna Ramayan Katha Bal Kand: Brahmanatva Ki Praapti
- बालकाण्ड: राम ने धनुष तोड़ा, धनुष यज्ञ राम विवाह, सीता स्वयंवर धनुष भंग, राम द्वारा धनुष भंग, शिवधनुष पिनाक की कथा, शिवधनुष की कथा
- बालकाण्ड: विवाह पूर्व की औपचारिकताएं, राम सीता विवाह, श्री राम सीता विवाह कथा, विवाह के समय राम और सीता की आयु कितनी थी,राम सीता की शादी
- बालकाण्ड: परशुराम जी का आगमन, राम का अयोध्या आगमन, विवाह के बाद राम सीता जी का अयोध्या में आगमन, पत्नियों सहित राजकुमारों का अयोध्या में आगमन
- अयोध्याकाण्ड: राम के राजतिलक की घोषणा, राजतिलक की तैयारी, श्री राम का राजतिलक, राम का राज्याभिषेक Sampurna Ramayan Katha Ayodhya Kand
- अयोध्याकाण्ड: कैकेयी का कोपभवन में जाना, कैकेयी कोपभवन, कैकेयी क्रंदन, राजा दशरथ ने क्यों दिए कैकेयी को दो वरदान, कैकेयी द्वारा वरों की प्राप्ति
- अयोध्याकाण्ड: राम वनवास, राम को 14 वर्ष का वनवास, राम के वनवास जाने का कारण, राम 14 वर्ष के लिए वनवास क्यों गए, केकई ने राम को 14 वर्ष का वनवास क्यों दिया
- अयोध्याकाण्ड: तमसा नदी के तट पर राम लक्ष्मण और सीता, तमसा नदी कहां से निकली है, तमसा नदी किस जिले में है, तमसा नदी किस राज्य में है, टोंस नदी का इतिहास
- अयोध्याकाण्ड: भीलराज गुह, गंगा पार करना, केवट ने राम-लक्ष्मण और मां सीता को गंगा पार कराया, केवट और प्रभु श्रीराम का प्रसंग
- अयोध्याकाण्ड: राम, लक्ष्मण और सीता का चित्रकूट के लिये प्रस्थान, चित्रकूट की यात्रा, चित्रकूट धाम यात्रा, श्री रामजी के बनवास की कहानी
- अयोध्याकाण्ड: सुमन्त का अयोध्या लौटना, दशरथ सुमन्त संवाद (Sampurna Ramayan Katha Ayodhya Kand- Sumant’s Return to Ayodhya
- अयोध्याकाण्ड: श्रवण कुमार की कथा, राजा दशरथ और श्रवण कुमार, श्रवण कुमार की कहानी, मातृ और पितृभक्त श्रवण कुमार
- अयोध्याकाण्ड: राजा दशरथ की मृत्यु, राजा दशरथ की मृत्यु कब हुई? अयोध्यापति राजा दशरथ की मृत्यु कैसे हुई? Sampurna Ramayan Katha Ayodhya Kand
- अयोध्याकाण्ड: भरत-शत्रुघ्न की वापसी, भरत-शत्रुघ्न की अयोध्या वापसी, भरत कैकयी संवाद Sampurna Ramayan Katha Ayodhya Kand
- अयोध्याकाण्ड: दशरथ की अन्त्येष्टि, दशरथ का अन्त्येष्टि संस्कार (Sampurna Ramayan Katha Ayodhya Kand- Dasharatha’s Funeral
- अयोध्याकाण्ड: श्री राम-भरत मिलाप कथा, राम और भरत का मिलन, चित्रकूट में भरत मिलाप की कहानी, राम-भरत मिलाप संवाद, श्रीराम की चरण पादुका लेकर अयोध्या लौटे भरत
- अयोध्याकाण्ड: महर्षि अत्रि का आश्रम, अत्रि ऋषि के आश्रम पहुंचे श्री राम Sampurna Ramayan Katha Ayodhya Kand- Maharishi Atri Ka Ashram
- अरण्यकाण्ड: दण्डक वन में विराध वध, श्री राम द्वारा विराध राक्षस का वध, भगवान श्री राम ने किया दंडकवन के सबसे बड़े राक्षस विराध का वध
- अरण्यकाण्ड: महर्षि शरभंग का आश्रम, महर्षि शरभंग, शरभंग ऋषि की कथा, सीता की शंका Sampurna Ramayan Katha Aranyakaand
- अरण्यकाण्ड: अगस्त्य का आश्रम, महर्षि अगस्त्य मुनि, श्रीराम और अगस्त मुनि का मिलन स्थल सिद्धनाथ आश्रम Sampurna Ramayan Katha Aranyakaand
- अरण्यकाण्ड: पंचवटी में आश्रम, श्री राम-लक्ष्मण एवं सीता पंचवटी आश्रम में कैसे पहुँचे?, पंचवटी किस राज्य में है, पंचवटी की कहानी, पंचवटी क्या है, पंचवटी कहां है
- अरण्यकाण्ड: रावण की बहन शूर्पणखा, श्री राम का खर-दूषण से युद्ध, खर-दूषण वध, खर-दूषण का वध किसने किया? Sampurna Ramayan Katha Aranyakaand
- अरण्यकाण्ड: सीता की कथा और स्वर्ण मृग, श्री राम और स्वर्ण-मृग प्रसंग, मारीच का स्वर्णमृग रूप, सीता हरण, रामायण सीता हरण की कहानी, सीता हरण कैसे हुआ
- संपूर्ण रामायण कथा अरण्यकाण्ड: जटायु वध, रावण द्वारा गिद्धराज जटायु वध, सीता हरण व जटायु वध, रावण जटायु युद्ध, जटायु प्रसंग, जटायु कौन था
- अरण्यकाण्ड: रावण-सीता संवाद, रावण की माता सीता को धमकी, रावण और सीता संवाद अशोक वाटिका Sampurna Ramayan Katha Aranyakaand
- अरण्यकाण्ड: राम की वापसी और विलाप, श्री राम और लक्ष्मण विलाप, सीता हरण पर श्री राम जी के द्वारा विलाप, जटायु की मृत्यु, पक्षीराज जटायु की मृत्यु कैसे हुई
- अरण्यकाण्ड: कबन्ध का वध, राम द्वारा कबन्ध राक्षस का वध, रामायण में कबंध राक्षस, कबंध कौन था Sampurna Ramayan Katha Aranyakaand
- अरण्यकाण्ड: शबरी का आश्रम, भगवान राम शबरी के आश्रम क्यों गए, श्री राम शबरी के आश्रम कैसे पहुँचे? शबरी के झूठे बेर प्रभु राम ने खाएं, शबरी के बेर की कहानी
- किष्किन्धाकाण्ड: राम हनुमान भेंट, श्रीराम की हनुमान से पहली मुलाकात कहां और कब हुई, राम हनुमान मिलन की कहानी
- किष्किन्धाकाण्ड: राम-सुग्रीव मैत्री, राम-सुग्रीव मित्रता, श्री राम और सुग्रीव के मित्रता की कहानी, राम-सुग्रीव वार्तालाप, राम-सुग्रीव संवाद
- किष्किन्धाकाण्ड: बाली सुग्रीव युध्द वालि-वध, बाली का वध, राम द्वारा बाली का वध, बाली-राम संवाद, तारा का विलाप
- किष्किन्धाकाण्ड: सुग्रीव का अभिषेक, बाली वध के बाद सुग्रीव का राज्याभिषेक (Sampurna Ramayan Katha Kishkindha Kand
- किष्किन्धाकाण्ड: हनुमान-सुग्रीव संवाद, हनुमान और सुग्रीव की मित्रता, लक्ष्मण-सुग्रीव संवाद, राम का सुग्रीव पर कोप, रामायण सुग्रीव मित्रता
- किष्किन्धाकाण्ड: माता सीता की खोज, माता सीता की खोज में निकले राम, राम द्वारा हनुमान को मुद्रिका देना, माता सीता की खोज में निकले हनुमान
- किष्किन्धाकाण्ड: जाम्बवन्त द्वारा हनुमान को प्रेरणा, जाम्बवन्त के प्रेरक वचन Sampurna Ramayan Katha Kishkindha Kand
- सुन्दरकाण्ड: हनुमान का सागर पार करना, हनुमान जी ने समुद्र कैसे पार किया, हनुमान जी की लंका यात्रा, हनुमान जी का लंका में प्रवेश
- सुन्दरकाण्ड: लंका में सीता की खोज, माता सीता की खोज में लंका पहुंचे हनुमान, अशोक वाटिका में हनुमान, सीता से मिले हनुमान, अशोक वाटिका में हनुमान सीता संवाद
- सुन्दरकाण्ड: रावण -सीता संवाद, अशोक वाटिका में रावण संवाद, रावण सीता अशोक वाटिका, रावण की सीता को धमकी
- सुन्दरकाण्ड: जानकी राक्षसी घेरे में, माता सीता राक्षसी घेरे में, पति राम के वियोग में व्याकुल सीता, अशोक वाटिका में हनुमान जी किस वृक्ष पर बैठे थे
- सुन्दरकाण्ड: हनुमान सीता भेंट, सीता जी से मिले हनुमान, अशोक वाटिका में हनुमान सीता संवाद, हनुमान का सीता को मुद्रिका देना
- सुन्दरकाण्ड: हनुमान का विशाल रूप, हनुमान जी का पंचमुखी अवतार, हनुमान जी ने क्यों धारण किया पंचमुखी रूप, हनुमान के साथ क्यों नहीं गईं सीता, बजरंगबली का विराट रूप
- सुन्दरकाण्ड: हनुमान ने उजाड़ी अशोक वाटिका, हनुमान जी ने रावण की अशोक वाटिका को किया तहस-नहस, अशोक वाटिका विध्वंस, हनुमान राक्षस युद्ध
- सुन्दरकाण्ड: मेधनाद हनुमान युद्ध, लंका में हनुमान जी और मेघनाद का भयंकर युद्ध, मेघनाद ने हनुमान पर की बाणों की वर्षा
- सुन्दरकाण्ड: रावण के दरबार में हनुमान, रावण हनुमान संवाद, हनुमान-रावण की लड़ाई, लंका दहन, हनुमान जी द्वारा लंका दहन, हनुमान ने सोने की लंका में लगाई आग
- सुन्दरकाण्ड: माता सीता का संदेश देना, हनुमान के द्वारा राम सीता का संदेश, हनुमान ने राम को दिया माता सीता का संदेश
- युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): समुद्र पार करने की चिन्ता, वानर सेना का प्रस्थान, वानर सेना का सेनापति कौन था, वानर सेना रामायण, वानर सेना का गठन
- युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): लंका में राक्षसी मन्त्रणा, विभीषण ने रावण को किस प्रकार समझाया, विभीषण का निष्कासन, विभीषण का श्री राम की शरण में आना
- युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): सेतु बन्धन, राम सेतु पुल, क्यों नहीं डूबे रामसेतु के पत्थर, राम सेतु का निर्माण कैसे हुआ, नल-नील द्वारा पुल बाँधना
- युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): सीता के साथ छल, रावण का छल, रावण ने छल से किया माता सीता का हरण Sampoorna Ramayan Yuddha Kand (Lanka Kand)
- युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): अंगद रावण दरबार में, अंगद ने तोड़ा रावण का घमंड, रावण की सभा में अंगद-रावण संवाद, रावण की सभा में अंगद का पैर जमाना
- युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): राम लक्ष्मण बन्धन में, नागपाश में राम लक्ष्मण, धूम्राक्ष और वज्रदंष्ट्र का वध, राक्षस सेनापति धूम्राक्ष का वध, अकम्पन का वध, प्रहस्त का वध
- युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): रावण कुम्भकर्ण संवाद, कुम्भकर्ण वध, कुंभकरण का वध किसने किया, कुम्भकर्ण की कहानी Sampoorna Ramayan Yuddha Kand (Lanka Kand)
- युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): त्रिशिरा, अतिकाय आदि का वध, अतिकाय का वध, मायासीता का वध, रावण पुत्र मेघनाद (Sampoorna Ramayan Yuddha Kand (Lanka Kand)
- युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): लक्ष्मण मेघनाद युद्ध कथा, मेघनाथ लक्ष्मण का अंतिम युद्ध, मेघनाद वध, मेघनाथ को कौन मार सकता था? लक्ष्मण ने मेघनाद को कैसे मारा
- युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): लक्ष्मण मूर्छित, मेघनाद ने ब्रह्म शक्ति से लक्ष्मण को किया मूर्छित, लक्ष्मण मूर्छित होने पर राम विलाप, संजीवनी बूटी लेकर आए हनुमान
- युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): रावण का युद्ध के लिये प्रस्थान, श्रीराम-रावण का युद्ध, राम और रावण के बीच युद्ध, रावण वध, मन्दोदरी का विलाप
- युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): विभीषण का राज्याभिषेक, रावण के बाद विभीषण बना लंका का राजा (Sampoorna Ramayan Yuddha Kand Lanka Kand)
- युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): माता सीता की अग्नि परीक्षा, माता सीता ने अग्नि परीक्षा क्यों दी थी? माता सीता ने अग्नि परीक्षा कैसे दी?, माता सीता की अग्नि परीक्षा कहां हुई थी?
- युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): अयोध्या को प्रस्थान, राम अयोध्या कब लौटे थे, अयोध्या में राम का स्वागत, राम का अयोध्या वापस आना, वनवास से लौटे राम-लक्ष्मण और सीता
- युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): भरत मिलाप, राम और भरत का मिलन, राम भरत संवाद, राम का राज्याभिषेक Sampoorna Ramayan Yuddha Kand (Lanka Kand)
- उत्तरकाण्ड: रावण के पूर्व के राक्षसों के विषय में, रावण के जन्म की कथा, रावण का जन्म कैसे हुआ, रावण का जन्म कहां हुआ, रावण के कितने भाई थे
- उत्तरकाण्ड: हनुमान के जन्म की कथा, रामभक्त हनुमान के जन्म की कहानी, हनुमान की कथा, हनुमान जन्म लीला, पवनपुत्र हनुमान का जन्म कैसे हुआ
- उत्तरकाण्ड: अभ्यागतों की विदाई, प्रवासियों में अशुभ चर्चा, सीता का निर्वासन, राम ने सीता का त्याग क्यों किया, राम ने सीता को वनवास क्यों दिया
- उत्तरकाण्ड: राजा नृग की कथा, सूर्यवंशी राजा नृग की कथा, राजा नृग कुएँ का गिरगिट, राजा नृग का उद्धार कैसे हुआ? राजा नृग की मोक्ष कथा, राजा नृग का उपाख्यान
- उत्तरकाण्ड: राजा निमि की कथा, शाप से सम्बंधित राजा की कथा, राजा निमि कौन थे? राजा निमि की कहानी, विदेह राजा जनक Sampoorna Ramayan Uttar Kand
- उत्तरकाण्ड: राजा ययाति की कथा, कौन थे राजा ययाति, राजा ययाति की कहानी, ययाति का यदु कुल को शाप Sampoorna Ramayan Uttar Kand
- उत्तरकाण्ड: कुत्ते का न्याय, राम और कुत्ते की कहानी, भगवान राम से जब न्याय मांगने आया एक कुत्ता, रामायण का अनोखा किस्सा
- उत्तरकाण्ड: पूर्व राजाओं के यज्ञ-स्थल एवं लवकुश का जन्म, लव कुश का जन्म कहां पर हुआ था, लव कुश में बड़ा कौन है, वाल्मीकि आश्रम कहां है, च्यवन ऋषि का आगमन
- उत्तरकाण्ड: ब्राह्मण बालक की मृत्यु, शंबूक ऋषि की हत्या किसने की, शंबुक कथा, शंबूक ऋषि का वध, राम ने क्यों की शंबूक की हत्या Sampoorna Ramayan Uttar Kand
- उत्तरकाण्ड: राजा श्वेत क्यों खाया करते थे अपने ही शरीर का मांस, राजा श्वेत की कहानी, राजा श्वेत की कथा Sampoorna Ramayan Uttar Kand: Raja Swet Ki Katha
- उत्तरकाण्ड: राजा दण्ड की कथा, दण्डकारण्य जंगल के श्रापित होने की कथा, शुक्राचार्य ने राजा दण्ड को दिया श्राप
- उत्तरकाण्ड: वृत्रासुर की कथा, वृत्रासुर का वध, वृत्रासुर कौन था? इंद्र द्वारा वृत्रासुर का वध Sampoorna Ramayan Uttar Kand: Vritrasura Ki Katha
- उत्तरकाण्ड: राजा इल की कथा, जब पुरूष से स्त्री बन गये राजा ईल, राजा इल की कहानी (Sampoorna Ramayan Uttar Kand: Raja Ill Ki Kahani, Raja Ill Ki Katha
- उत्तरकाण्ड: अश्वमेघ यज्ञ का अनुष्ठान रामायण, अश्वमेध यज्ञ क्या है? Sampoorna Ramayan Uttar Kand: Ashvamedh Yagya Ka Anushthaan, Ashvamedh Yagya Kya Hai
- उत्तरकाण्ड: लव-कुश द्वारा रामायण गान, ‘हम कथा सुनाते’ लव-कुश के गीत, लव-कुश ने सुनाई राम कथा, लव कुश गीत, रामायण लव कुश कांड
- उत्तरकाण्ड: सीता का रसातल प्रवेश, सीता मैया धरती में क्यों समाई, सीता पृथ्वी समाधि, सीता जी का धरती में समाना, सीता का धरती में प्रवेश करना
- उत्तरकाण्ड: भरत व लक्ष्मण के पुत्रों के लिये राज्य व्यवस्था, वाल्मीकि रामायण (Sampoorna Ramayan Uttar Kand: Bharat Aur Lakshman Ke Putron Ke Liye Rajya
- उत्तरकाण्ड: लक्ष्मण का परित्याग, राम ने लक्ष्मण का परित्याग क्यों किया, राम द्वारा लक्ष्मण का परित्याग, लक्ष्मण द्वारा प्राण विसर्जन, लक्ष्मण की मृत्यु
- उत्तरकाण्ड: महाप्रयाण, लव-कुश का अभिषेक, संपूर्ण वाल्मीकि रामायण, Sampoorna Ramayan Uttar Kand: Mahaprayan, Valmiki Ramayan in Hindi