संपूर्ण रामायण कथा बालकाण्ड: अहिल्या की कथा – कौन थीं अहिल्या, क्यों और कैसे अहिल्या बन गई थी पत्थर? अहिल्या को श्राप क्यों मिला? अहिल्या को गौतम ऋषि ने दिया श्राप, देवराज इंद्र और अहिल्या की कहानी, अहिल्या के उद्धार की कथा (Sampurna Ramayan Baalkand- Gautam Rishi Ahilya Ki Katha, Devi Ahilya Story in Hindi, Ahalya Story, Gautam Rishi Ahilya Story, Gautam Rishi Ki Patni Ahalya Story)
अहिल्या की कथा, अहिल्या को श्राप क्यों मिला
प्रातःकाल राम और लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिलापुरी के वन उपवन आदि देखने के लिये निकले। एक उपवन में उन्होंने एक निर्जन स्थान देखा। राम बोले, गुरुदेव! यह स्थान देखने में तो आश्रम जैसा दिखाई देता है किन्तु क्या कारण है कि यहाँ कोई ऋषि या मुनि दृष्टिगोचर नहीं हो रहे हैं?
इस पर विश्वामित्र जी ने कहा, यह स्थान कभी महात्मा गौतम का आश्रम था। वे अपनी पत्नी अहिल्या के साथ यहाँ रह कर तपस्या करते थे। एक दिन गौतम ऋषि की अनुपस्थिति में इन्द्र ने गौतम के वेश में आकर अहिल्या से प्रणय-याचना की। अहिल्या ने देवराज इन्द्र को अपनी स्वीकृति दे दी। जब इन्द्र अपने लोक लौट रहे थे तभी अपने आश्रम को वापस आते हुये गौतम ऋषि की दृष्टि इन्द्र पर पड़ी। उस समय इन्द्र उन्हीं का वेश धारण किये हुये था। तत्काल वे सब कुछ समझ गये और उन्होंने इन्द्र को शाप दे दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी को शाप दिया कि रे दुराचारिणी! तू हजारों वर्ष तक केवल हवा पीकर कष्ट उठाती हुई यहाँ राख में पड़ी रहे। जब राम इस वन में प्रवेश करेंगे तभी उनकी कृपा से तेरा उद्धार होगा। तभी तू अपना पूर्व शरीर धारण करके मेरे पास आ सकेगी। यह कह कर गौतम ऋषि इस आश्रम को छोड़कर हिमालय पर जाकर तपस्या करने चले गये। अतः हे राम! अब तुम आश्रम के अन्दर जाकर अहल्या का उद्धार करो।
विश्वामित्र जी की आज्ञा पाकर वे दोनों भाई आश्रम के भीतर प्रविष्ट हुये। वहाँ तपस्यारत अहल्या कहीं दिखाई नहीं दे रही थी, केवल उसका तेज सम्पूर्ण वातावरण में व्याप्त हो रहा था। जब अहल्या की दृष्टि राम पर पड़ी तो उनके पवित्र दर्शन पाकर वह एक बार फिर सुन्दर नारी के रूप में दिखाई देने लगी। नारी रूप में अहल्या को सम्मुख पाकर राम और लक्ष्मण ने श्रद्धापूर्वक उनके चरणस्पर्श किये। तत्पश्चात् उससे उचित आदर सत्कार ग्रहण कर वे मुनिराज के साथ पुनः मिथिला पुरी को लौट आये।
कौन थीं अहिल्या, क्यों और कैसे अहिल्या बन गई थी पत्थर?
महर्षि गौतम की पत्नी
भारतीय पौराणिक कथा संसार के अनुसार अहिल्या महर्षि गौतम की पत्नी थीं। ज्ञान में अनुपम अहिल्या स्वर्गिक रूप-गुणों से संपन्न थीं। अपने अतुलनीय सौंदर्य और सरलता के कारण वे अपने पति की प्रिय थीं। इसके साथ ही वे अपने पति के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित थीं, इसीलिए उन्हें सती अहिल्या का नाम मिला था। दोनों ही पति-पत्नी धर्म का पालन करते हुए प्रेम रस से परिपूर्ण दांपत्य का निर्वहन कर रहे थे। ऐसे अद्भुत प्रेम को अचानक एक दिन बुरी नजर लग गई।
देवराज इंद्र
यह बुरी नजर थी देवराज इंद्र की, जो अहिल्या के सौंदर्य पर आसक्त होकर उनका प्रेम पाने के लिए लालायित हो उठा। इंद्र को महर्षि गौतम की दैवीय शक्तियों और सामर्थ्य का ज्ञान था, इसके साथ ही वह अहिल्या के पतिनिष्ठ होने के सत्य से भी परिचित था। इंद्र के पास इन शक्तियों से पार पाने का सामर्थ्य नहीं था, पर वह अहिल्या को भूलना भी नहीं चाहता थे। वह स्वयं को संयमित कर सही अवसर की प्रतीक्षा करने लगा।
एकांतवास में तपस्या करने जाना है…
समय अपनी गति से चलता रहा और एक दिन महर्षि गौतम ने अहिल्या से कहा कि उन्हें एक विशेष सिद्धि की प्राप्ति के लिए कम से कम 6 माह तक वन के एकांतवास में तपस्या करने जाना है। अहिल्या ने उन्हें सहमति देते हुए उनकी प्रतीक्षा करने की बात कह विदा कर दिया। इंद्र बस ऐसे ही एक अवसर की प्रतीक्षा जाने कब से कर रहा था। ऋषि के जाते ही वह महर्षि गौतम का वेश धारण कर अहिल्या के पास पहुंच गया। पति को वापस देख जब अहिल्या चौंकीं तो उसने प्रेम जताते हुए कहा कि उनके सौंदर्य पाश ने वन में जाना असंभव बना दिया इसीलिए तपस्या का विचार छोड़ वापस आ गया।
तो तू भी पत्थर की ही हो जा
पति की बात सुनकर अहिल्या का मन मयूर नाच उठा और वे दोनों पहले से भी अधिक प्रेम से जीवन का आनंद लेने लगे। देखते ही देखते 6 माह का समय बीत गया और एक दिन अहिल्या ने सुबह सवेरे अपने आंगन में अपने पति की चिर-परिचित पुकार सुनी, जबकि ऋषि का रूप धरे इंद्र तब तक सो ही रहे थे। एक पल में ही अहिल्या को अनर्थ का ज्ञान हो गया। महर्षि गौतम को सामने पाकर अहिल्या पत्ते की तरह कांपते हुए उनके चरणों में गिर पड़ीं। तब तक इंद्र को भी ऋषि के आने का भान हो गया था तो बिना देरी किए वह वहां से भाग निकला। अहिल्या से सारा वृतांत जान ऋषि क्रोध से भर उठे और तुरंत ही उन्होंने श्राप दे दिया कि जिस स्त्री को अपने पति के स्पर्श का भान ना हुआ, वह जीवित नहीं हो सकती। तन और मन से पत्थर की तरह कठोर व्यवहार किया है, तो तू भी पत्थर की ही हो जा।
तन-मन से पति संग थी
ऋषि के श्राप और अपनी अज्ञानता से निराश अहिल्या ने तब अपने पति को रोते हुए समझाया कि आप इतनी दिव्य शक्तियों से संपन्न हैं। आप मुझे अकेला छोड़कर गए और बीते 6 माह में आपको एक बार भी आभास ना हुआ कि मेरे साथ कोई छल कर रहा है, तो मैं तो एक साधारण स्त्री हूं। मैंने अनजाने में अपराध किया है। भले ही मैं पराए पुरूष के साथ रही हूं, पर मेरा मन पवित्र है क्योंकि उस पुरूष को मैंने आप यानि अपना पति जानकर ही अपनाया था। तन और मन दोनों से ही मैं अपने पति के ही साथ थी।
श्रीराम ने किया श्राप मुक्त
अहिल्या की बात सुनकर ऋषि उनसे सहमत हुए और कहा कि अब तो श्राप दिया जा चुका है, उसे वापस नहीं लिया जा सकता, किंतु त्रेतायुग में भगवान विष्णु, श्रीराम के रूप में अवतार लेंगे और वनवास के दौरान तुम्हें स्पर्श करेंगे। उनके स्पर्श से ही तुम्हारा पाप धुलेगा और तुम वापस अपने स्त्री रूप को प्राप्त करोगी। ऋषि के श्राप को धारण करते हुए अहिल्या पत्थर की शिला बन गईं और घोर प्रतीक्षा के बाद श्रीराम के पावन चरणों के स्पर्श से पुनः स्त्री रूप में प्रकट हुईं।
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