रामायण कथा संपूर्ण सुन्दरकाण्ड: हनुमान सीता भेंट, सीता जी से मिले हनुमान, अशोक वाटिका में हनुमान सीता संवाद, हनुमान का सीता को मुद्रिका देना, हनुमान जी ने सीता माता को दी राम की मुद्रिका, हनुमान का सीता को धैर्य बँधाना (Ramayan Sampoorna Sunder Kand: Ashok Vatika Mein Hanuman Sita Milan, Ashok Vatika Mein Sita Hanuman Samvad, Ramayan Ashok Vatika Mein Hanuman Ji)

हनुमान सीता भेंट-  सुन्दरकाण्ड
पराक्रमी हनुमान जी विचार करने लगे कि सीता का अनुसंधान करते करते मैंने गुप्तरूप से शत्रु की शक्ति का पता लगा लिया है तथा राक्षसराज रावण के प्रभाव का भी निरीक्षण भी कर लिया है। जिन सीता जी को हजारों-लाखों वानर समस्त दिशाओं में ढूँढ रहे हैं, आज उन्हें मैंने पा लिया है। ये शोक के कारण व्याकुल हो रही हैं अतः इन्हें सान्त्वना देना उचित है। परन्तु राक्षसियों की उपस्थिति में इनसे बात करना मेरे लिये ठीक नहीं होगा। अब मेरे समक्ष समस्या यह है कि मैं अपने इस कार्य को कैसे सम्पन्न करूँ।

यदि रात्रि के व्यतीत होते होते मैंने सीता जी को सान्त्वना नहीं दिया तो निःसन्देह ये सर्वथा अपने जीवन का परित्याग कर देंगी। यदि किसी कारणवश मैं सीता से न मिल सका तो मेरा सारा प्रयत्न निष्फल हो जायेगा। रामचन्द्र और सुग्रीव को सीता के यहाँ उपस्थित होने का समाचार देने से भी कोई लाभ नहीं होगा, क्योंकि इनकी दुःखद दशा को देखते हुये यह नहीं कहा जा सकता कि ये किस समय निराश हो कर अपने प्राण त्याग दें। इसलिये उचित यही होगा कि मैं सीता जी, जिनका चित्त अपने स्वामी में ही लगा हुआ है, को श्री राम के गुण गा-गाकर सुनाऊँ जिससे उन्हें मुझ पर विश्वास हो जाये।

इस प्रकार भली-भाँति विचार कर के हनुमान मन्द-मन्द मृदु स्वर में बोलने लगे, इक्ष्वाकुओं के कुल में परमप्रतापी, तेजस्वी, यशस्वी एवं धन-धान्य समृद्ध विशाल पृथ्वी के स्वामी चक्रवर्ती महाराज दशरथ हुये हैं। उनके ज्येष्ठ पुत्र उनसे भी अधिक तेजस्वी, परमपराक्रमी, धर्मपरायण, सर्वगुणसम्पन्न, अतीव दयानिधि श्री रामचन्द्र जी अपने पिता द्वारा की गई प्रतिज्ञा का पालन करने के लिये अपने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ जो उतने ही वीर, पराक्रमी और भ्रातृभक्त हैं, चौदह वर्ष की वनवास की अवधि समाप्त करने के लिये अनेक वनों में भ्रमण करते हुये चित्रकूट में आकर निवास करने लगे। उनके साथ उनकी परमप्रिय पत्नी महाराज जनक की लाड़ली सीता जी भी थीं। वनों में ऋषि-मुनियों को सताने वाले राक्षसों का उन्होंने सँहार किया।

लक्ष्मण ने जब दुराचारिणी शूर्पणखा के नाक-कान काट लिये तो उसका प्रतिशोध लेने के लिये उसके भाई खर-दूषण उनसे युद्ध करने के लिये आये जिनको रामचन्द्र जी ने मार गिराया और उस जनस्थान को राक्षसविहीन कर दिया। जब लंकापति रावण को खर-दूषण की मृत्यु का समाचार मिला तो वह अपने मित्र मारीच को ले कर छल से जानकी का हरण करने के लिये पहुँचा। मायावी मारीच ने एक स्वर्ण मृग का रूप धारण किया, जिसे देख कर जानकी जी मुग्ध हो गईं। उन्होंने राघवेन्द्र को प्रेरित कर के उस माया मृग को पकड़ कर या मार कर लाने के लिये भेजा।

दुष्ट मारीच ने मरते-मरते राम के स्वर में हा सीते! हा लक्ष्मण! कहा था। जानकी जी भ्रम में पड़ गईं और लक्ष्मण को राम की सुधि लेने के लिये भेजा। लक्ष्मण के जाते ही रावण ने छल से सीता का अपहरण कर लिया। लौट कर राम ने जब सीता को न पाया तो वे वन-वन घूम कर सीता की खोज करने लगे। मार्ग में वानरराज सुग्रीव से उनकी मित्रता हुई। मुग्रीव ने अपने लाखों वानरों को दसों दिशाओं में जानकी जी को खोजने के लिये भेजा. मुझे भी आपको खोजने का काम सौंपा गया। मैं चार सौ कोस चौड़े सागर को पार कर के यहाँ पहुँचा हूँ। श्री रामचन्द्र जी ने जानकी जी के रूप-रंग, आकृति, गुणों आदि का जैसे वर्णन किया था, उस शुभ गुणों वाली देवी को आज मैंने देख लिया है। इतना कह कर हनुमान चुप हो गये।

उनकी बातें सुनकर जनकनन्दिनी सीता को विस्मययुक्त प्रसन्नता हुई। जब उन्होंने ऊपर-नीचे तथा इधर-उधर दृष्टिपात किया तो शाखा के भीतर छिपे हुए, विद्युतपुञ्ज के सामन अत्यन्त पिंगल वर्ण वाले श्वेत वस्त्रधारी हनुमान जी पर उनकी दृष्टि पड़ी। स्वयं पर सीता जी की दृष्टि पड़ते देख कर मूँगे के समान लाल मुख वाले महातेजस्वी पवनकुमार उस अशोक वृक्ष से नीचे उतर आये। माथे पर अञ्जलि बाँध सीता जी निकट आकर उन्होंने विनीतभाव से दीनतापूर्वक प्रणाम किया और मधुर वाणी में कहा, हे देवि! आप कौन हैं? आपका कोमल शरीर सुन्दर वस्त्राभूषणों से सुसज्जित होने योग्य होते हुये भी आप इस प्रकार का नीरस जीवन व्यतीत कर रही हैं। आपके अश्रु भरे नेत्रों से ज्ञात होता है कि आप अत्यन्त दुःखी हैं।

आपको देख कर ऐसा प्रतीत होता है किस आप आकाशमण्डल से गिरी हुई रोहिणी हैं। आपके शोक का क्या कारण है? कहीं आपका कोई प्रियजन स्वर्ग तो नहीं सिधार गया? कहीं आप जनकनन्दिनी सीता तो नहीं हैं जिन्हें लंकापति रावण जनस्थान से चुरा लाया है? जिस प्रकार आप बार-बार ठण्डी साँसें लेकर हा राम! हा राम! पुकारती हैं, उससे ऐसा अनुमान लगता है कि आप विदेहकुमारी जानकी ही हैं। यदि आप सीता जी ही हैं तो आपका कल्याण हो। आप मुझे सही-सही बताइये, क्या मेरा यह अनुमान सही है?

हनुमान का प्रश्न सुन कर सीता बोली, हे वानरराज! तुम्हारा अनुमान अक्षरशः सही है। मैं जनकपुरी के महाराज जनक की पुत्री, अयोध्या के चक्रवर्ती महाराज दशरथ की पुत्रवधू तथा परमतेजस्वी धर्मात्मा श्री रामचन्द्र जी की पत्नी हूँ। जब श्री रामचन्द्र जी अपने पिता की आज्ञा से वन में निवास करने के लिये瓥 आये तो मैं भी उनके साथ वन में आ गई थी। वन से ही यह दुष्ट पापी रावण छलपूर्वक मेरा अपहरण करके मुझे यहाँ ले आया। वह मुझे निरन्तर यातनाएँ दे रहा है। आज भी वह मुझे दो मास की अवधि देकर गया है। यदि दो मास के अन्दर मेरे स्वामी ने मेरा उद्धार नहीं किया तो मैं अवश्य प्राण त्याग दूँगी। यही मेरे शोक का कारण है। अब तुम मुझे कुछ अपने विषय में बताओ।

हनुमान का सीता को मुद्रिका देना – सुन्दरकाण्ड
सीता के वचन सुनकर वानरशिरोमणि हनुमान जी ने उन्हें सान्त्वना देते हुए कहा, देवि! मैं श्री रामचन्द्र का दूत हनुमान हूँ और आपके लिये सन्देश लेकर आया हूँ। विदेहनन्दिनी! श्री रामचन्द्र और लक्ष्मण सकुशल हैं और उन्होंने आपका कुशल-समाचार पूछा है। रामचन्द्र जी केवल आपके वियोग में दुःखी और शोकाकुल रहते हैं। उन्होंने मेरे द्वारा आपके पास अपना कुशल समाचार भेजा है और तेजस्वी लक्ष्मण जी ने आपके चरणों में अपना अभिवादन कहलाया है।

पुरुषसिंह श्री राम और लक्ष्मण का समाचार सुनकर देवी सीता के सम्पूर्ण अंगों में हर्षजनित रोमाञ्च हो आया और उनका मुर्झाया हुआ हृदयकमल खिल उठा। विषादग्रस्त मुखमण्डल पर आशा की किरणें प्रदीप्त होने लगीं। इस अप्रत्याशित सुखद समाचार ने उनके मृतप्राय शरीर में नवजीवन का संचार किया। तभी अकस्मात् सीता को ध्यान आया कि राम दूत कहने वाला यह वानर कहीं स्वयं मायावी रावण ही न हो। यह सोच कर वह वृक्ष की शाखा छोड़ कर पृथ्वी पर चुपचाप बैठ गईं और बोली, हे मायावी! तुम स्वयं रावण हो और मुझे छलने के लिये आये हो। इस प्रकार के छल प्रपंच तुम्हें शोभा नहीं देते और न उस रावण के लिये ही ऐसा करना उचित है। और यदि तुम स्वयं रावण हो तो तुम्हारे जैसे विद्वान, शास्त्रज्ञ पण्डित के लिये तो यह कदापि शोभा नहीं देता। एक बार सन्यासी के भेष में मेरा अपहरण किया, अब एक वानर के भेष में मेरे मन का भेद जानने के लिये आये हो। धिक्कार है तुम पर और तुम्हारे पाण्डित्य पर! यह कहते हुये सीता शोकमग्न होकर जोर-जोर से विलाप करने लगी।

सीता को अपने ऊपर सन्देह करते देख हनुमान को बहुत दुःख हुआ। वे बोले, देवि! आपको भ्रम हुआ है। मैं रावण या उसका गुप्तचर नहीं हूँ। मैं वास्तव में आपके प्राणेश्वर राघवेन्द्र का भेजा हुआ दूत हूँ। अपने मन से सब प्रकार के संशयों का निवारण करें और विश्वास करें कि मुझसे आपके विषय में सूचना पाकर श्री रामचन्द्र जी अवश्य दुरात्मा रावण का विनाश करके आपको इस कष्ट से मुक्ति दिलायेंगे। वह दिन दूर नहीं है जब रावण को अपने कुकर्मों का दण्ड मिलेगा और लक्ष्मण के तीक्ष्ण बाणों से लंकापुरी जल कर भस्मीभूत हो जायेगी। मैं वास्तव में श्री राम का दूत हूँ। वे वन-वन में आपके वियोग में दुःखी होकर आपको खोजते फिर रहे हैं। मैं फिर कहता हूँ कि भरत के भ्राता श्री रामचन्द्र जी ने आपके पास अपना कुशल समाचार भेजा है और शत्रुघ्न के सहोदर भ्राता लक्ष्मण ने आपको अभिवादन कहलवाया है।

हम सबके लिये यह बड़े आनन्द और सन्तोष की बात है कि राक्षसराज के फंदे में फँस कर भी आप जीवित हैं। अब वह दिन दूर नहीं है जब आप पराक्रमी राम और लक्ष्मण को सुग्रीव की असंख्य वानर सेना के साथ लंकापुरी में देखेंगीं। वानरों के स्वामी सुग्रीव रामचन्द्र जी के परम मित्र हैं। मैं उन्हीं सुग्रीव का मन्त्री हनुमान हूँ, न कि रावण या उसका गुप्तचर, जैसा कि आप मुझे समझ रही हैं। जब रावण आपका हरण करके ला रहा था, उस समय जो वस्त्राभूषण आपने हमें देख कर फेंके थे, वे मैंने ही सँभाल कर रखे थे और मैंने ही उन्हें राघव को दिये थे। उन्हें देख कर रामचन्द्र जी वेदना से व्याकुल होकर विलाप करने लगे थे। अब भी वे आपके बिन 瓥6; वन में उदास और उन्मत्त होकर घूमते रहते हैं। मैं उनके दुःख का वर्णन नहीं कर सकता।

हनुमान के इस विस्तृत कथन को सुन कर जानकी का सन्देह कुछ दूर हुआ, परन्तु अब भी वह उन पर पूर्णतया विश्वास नहीं कर पा रही थीं। वे बोलीं, हनुमान! तुम्हारी बात सुनकर एक मन कहता है कि तुम सच कह रहे हो, मुझे तुम्हारी बात पर विश्वास कर लेना चाहिये। परन्तु मायावी रावण के छल-प्रपंच को देख कर मैं पूर्णतया आश्वस्त नहीं हो पा रही हूँ। क्या किसी प्रकार तुम मेरे इस सन्देह को दूर कर सकते हो? सीता जी के तर्कपूर्ण वचनों को सुन कर हनुमान ने कहा, हे महाभागे! इस मायावी कपटपूर्ण वातावरण में रहते हुये आपका गृदय शंकालु हो गया है, इसके लिये मैं आपको दोष नहीं दे सकता; परन्तु आपको यह विश्वास दिलाने के लिये कि मैं वास्तव में श्री रामचन्द्र जी का दूत हूँ आपको एक अकाट्य प्रमाण देता हूँ। रघुनाथ जी भी यह समझते थे कि सम्भव है कि आप मुझ पर विश्वास न करें, उन्होंने अपनी यह मुद्रिका दी है। इसे आप अवश्य पहचान लेंगी। यह कह कर हनुमान ने रामचन्द्र जी की वह मुद्रिका सीता को दे दी जिस पर राम का नाम अंकित था।

हनुमान का सीता को धैर्य बँधाना – सुन्दरकाण्ड
पति के हाथ को सुशोभित करने वाली उस मुद्रिका को लेकर सीता जी उसे ध्यानपूर्वक देखने लगीं। उसे देखकर जानकी जी को इतनी प्रसन्नता हुई मानो स्वयं उनके पतिदेव ही उन्हें मिल गये हों। उनका लाल, सफेद और विशाल नेत्रों से युक्त मनोहर मुख हर्ष से खिल उठा, मानो चन्द्रमा राहु के ग्रण से मुक्त हो गया हो। पूर्णरूप से सन्तुष्ट हो कर वे हनुमान के साहसपूर्ण कार्य की सराहना करती हुई बोलीं, हे वानरश्रेष्ठ! तुम वास्तव में अत्यन्त चतुर, साहसी तथा पराक्रमी हो। जो कार्य सहस्त्रों मेधावी व्यक्ति मिल कर नहीं कर सकते, उसे तुमने अकेले कर दिखाया। तुमने दोनों रघुवंशी भ्राताओं का कुशल समाचार सुना कर मुझ मृतप्राय को नवजीवन प्रदान किया है।

हे पवनसुत! मैं समझती हूँ कि अभी मेरे दुःखों का अन्त होने में समय लगेगा। अन्यथा ऐसा क्या कारण है कि विश्वविजय का सामर्थ्य रखने वाले वे दोनों भ्राता अभी तक रावण को मारने में सफल नहीं हुये। कहीं ऐसा तो नहीं है कि दूर रहने के कारण राघवेन्द्र का मेरे प्रति प्रेम कम हो गया हो? अच्छा, यह बताओ क्या कभी अयोध्या से तीनों माताओं और मेरे दोनों देवरों का कुशल समाचार उन्हें प्राप्त होता है? क्या तेजस्वी भरत रावण का नाश करके मुझे छुड़ाने के लिये अयोध्या से सेना भेजेंगे? क्या मैं कभी अपनी आँखों से दुरात्मा रावण को राघव के बाणों से मरता देख सकूँगी? हे वीर! अयोध्या से वन के लिये चलते समय रामचन्द्र जी के मुख पर जो अटल आत्मविश्वास तथा धैर्य था, क्या अब भी वह वैसा ही है?

सीता के इन प्रश्नों को सुन कर हनुमान बोले, हे देवि! जब रघुनाथ जी को आपकी दशा की सूचना मुझसे प्राप्त होगी, तब वे बिना समय नष्ट किये वानरों और रिक्षों की विशाल सेना को लेकर लंकापति रावण पर आक्रमण करके उसकी इस स्वर्णपुरी को धूल में मिला देंगे और आपको इस बंधन से मुक्त करा के ले जायेंगे। आर्ये! आजकल वे आपके ध्यान में इतने निमग्न रहते हैं कि उन्हें अपने तन-बदन की भी सुधि नहीं रहती, खाना पीना तक भूल जाते हैं। उनके मुख से दिन रात हा सीते! शब्द ही सुनाई देते हैं। आपके वियोग में वे रात को भी नहीं सो पाते। यदि कभी नींद आ भी जाय तो हा सीते! कहकर नींद में चौंक पड़ते हैं और इधर-उधर आपकी खोज करने लगते हैं। उनकी यह दशा हम लोगों से देखी नहीं जाती। हम उन्हें धैर्य बँधाने का प्रयास करते हैं, किन्तु हमें सफलता नहीं मिलती। उनकी पीड़ा बढ़ती जाती है।

अपने प्राणनाथ की दशा का यह करुण वर्णन सुनकर जानकी के नेत्रों से अविरल अश्रुधारा बह चली। वे बोलीं, हनुमान! तुमने जो यह कहा है कि वे मेरे अतिरिक्त किसी अन्य का ध्यान नहीं करते इससे तो मेरे स्त्री-हृदय को अपार शान्ति प्राप्त हुई है, किन्तु मेरे वियोग में तुमने उनकी जिस करुण दशा का चित्रण किया है, वह मुझे विषमिश्रित अमृत के समान लगा है और उससे मेरे हृदय को प्राणान्तक पीड़ा पहुँची है। वानरशिरोमणे! दैव के विधान को रोकना प्राणियों के वश की बात नहीं है। यह सब विधाता का विधान है जिसने हम दोनों को एक दूसरे के विरह में तड़पने के लिये छोड़ दिया है।

न जाने वह दिन कब आयेगा जब वे रावण का वध करके मुझ दुखिया को दर्शन देंगे? उनके वियोग में तड़पते हुये मुझे दस मास व्यतीत हो चुके हैं। यदि दो मास के अन्दर उन्होंने मेरा उद्धार नहीं किया तो दुष्ट रावण मुझे मृत्यु के घाट उतार देगा। वह बड़ा कामी तथा अत्याचारी है। वह वासना में इतना अंधा हो रहा है कि वह किसी की अच्छी सलाह मानने को तैयार नही होता। उसी के भाई विभीषण की पुत्री कला मुझे बता रही थी किस उसके पिता विभषण ने रावण से अनेक बार अनुग्रह किया कि वह मुझे वापस मेरे पति के पास पहुँचा दे, परन्तु उसने उसकी एक न मानी। वह अब भी अपनी हठ पर अड़ा हुआ है। मुझे अब केवल राघव के पराक्रम पर ही विश्वास है, जिन्होंने अकेले ही खर-दूषण को उनके चौदह सहस्त्र युद्धकुशल सेनानियों सहित मार डाला था। देखें, अब वह घड़ी कब आती है जिसकी मैं व्याकुलता से प्रतीक्षा कर रही हूँ। यह कहते युये सीता अपने नेत्रों से आँसू बहाने लगी।

सीता को विलापयुक्त वचन को सुनकर हनुमान ने उन्हें धैर्य बँधाते हुये कहा, देवि! आप दुःखी न हों। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मेरे पहुँचते ही प्रभु वानर सेना सहित लंका पर आक्रमण करके दुष्ट रावण का वध कर आपको मुक्त करा देंगे। मुझे तो यह लंकापति कोई असाधारण बलवान दिखाई नहीं देता। यदि आप आज्ञा दें तो मैं अभी इसी समय आपको अपनी पीठ पर बिठा कर लंका के परकोटे को फाँद कर विशाल सागर को लाँघता हुआ श्री रामचन्द्र जी के पास पहुँचा दूँ। मैं चाहूँ तो इस सम्पूर्ण लंकापुरी को रावण तथा राक्षसों सहित उठा कर राघव के चरणों में ले जाकर पटक दूँ। इनमें से किसी भी राक्षस में इतनी सामर्थ्य नहीं है कि वह मेरे मार्ग में बाधा बन कर खड़ा हो सके।

सभी रामायण कथा पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक्स पर क्लिक करें –

  1. संपूर्ण रामायण, Sampoorna Ramayan – सारी कथा पढ़ने के लिए क्लिक करें
  2. रामायण बालकाण्ड, Ramayan Bal Kand- सारी कथा पढ़ने के लिए क्लिक करें
  3. रामायण अयोध्याकाण्ड, Ramayan Ayodhya Kand- सारी कथा पढ़ने के लिए क्लिक करें
  4. रामायण अरण्यकाण्ड, Ramayan Aranya Kand- सारी कथा पढ़ने के लिए क्लिक करें
  5. रामायण किष्किन्धाकाण्ड, Ramayan Kishkindha Kand- सारी कथा पढ़ने के लिए क्लिक करें
  6. रामायण सुन्दरकाण्ड, Ramayan Sunder Kand- सारी कथा पढ़ने के लिए क्लिक करें
  7. रामायण युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड), Ramayan Yuddha Kand (Lanka Kand)- सारी कथा पढ़ने के लिए क्लिक करें
  8. रामायण उत्तरकाण्ड, Ramayan Uttar Kand- सारी कथा पढ़ने के लिए क्लिक करें
  9. संपूर्ण रामायण कथा बालकाण्ड : राम का जन्म , भगवान राम का जन्म कब हुआ , श्री राम जी का जन्म कब हुआ था, राम जी का जन्म कहाँ हुआ था, राम के जन्म की क्या कथा है.
  10. बालकाण्ड : विश्वामित्र का आगमन, ऋषि विश्वामित्र का आगमन, विश्वामित्र आगमन, विश्वामित्र ने राम को मांगा, विश्वामित्र का आश्रम कहां था, विश्वामित्र कौन थे.
  11. बालकाण्ड : कामदेव का आश्रम, कामेश्वर धाम, वाल्मीकि रामायण, राम और लक्ष्मण, ऋषि विश्वामित्र (Ramayana Balakand: Kamdev’s Ashram
  12. बालकाण्ड : ताड़का वध, राक्षसी ताड़का वध, ताड़का का वध कैसे हुआ, राम ने ताड़का का वध कैसे किया, ताड़का वध कहाँ हुआ था, ताड़का वन कहाँ है.
  13. बालकाण्ड : अलभ्य अस्त्रों का दान, विश्वामित्र द्वारा राम को अलभ्य अस्त्रों का दान, गुरु विश्वामित्र ने श्री राम को अस्त्र क्यों दिए? Vishvaamitra Dwara Ram Ko Alabhy Astron Ka Daan
  14. बालकाण्ड : महर्षि विश्वामित्र का आश्रम, सिद्धाश्रम, विश्वामित्र के आश्रम का नाम सिद्धाश्रम क्यों पड़ा? Sampoorn Ramayan Katha Bal Kand: Vishwamitra Ka Ashram
  15. बालकाण्ड: मारीच -सुबाहु का उत्पात, मारीच और सुबाहु वध, राम ने कैसे किया मारीच और सुबाहु का वध, मारीच और सुबाहु की माता का नाम क्या था?
  16. बालकाण्ड: धनुष यज्ञ के लिये प्रस्थान, रामचंद्र का धनुष यज्ञ के लिये प्रस्थान, धनुष यज्ञ का उद्देश्य, सीता स्वयंवर के लिए धनुष यज्ञ, शिवधनुष की विशेषता
  17. बालकाण्ड: गंगा-जन्म की कथा, गंगा की उत्पत्ति कथा, गंगा की उत्पत्ति कहां से हुई, गंगा की कहानी, गंगा की कथा, गंगा किसकी पुत्री थी, गंगा का जन्म कैसे हुआ
  18. बालकाण्ड: गुरु विश्वामित्र के साथ जनकपुरी पहुंचे राम व लक्ष्मण, जनकपुरी में राम का आगमन, श्री राम-लक्ष्मण सहित विश्वामित्र का जनकपुर आगमन
  19. बालकाण्ड: अहिल्या की कथा – कौन थीं अहिल्या, क्यों और कैसे अहिल्या बन गई थी पत्थर? अहिल्या को श्राप क्यों मिला? अहिल्या को गौतम ऋषि ने दिया श्राप
  20. बालकाण्ड: विश्वामित्र का पूर्व चरित्र, विश्वामित्र का जीवन, विश्वामित्र की कहानी, विश्वामित्र के पिता का नाम, विश्वामित्र की संपूर्ण कथा, विश्वामित्र का जन्म कैसे हुआ
  21. बालकाण्ड: त्रिशंकु की स्वर्ग यात्रा, विश्वामित्र ने क्यों बनाया त्रिशंकु स्वर्ग, त्रिशंकु की कहानी, त्रिशंकु स्वर्ग क्या है और इसे किसने बनाया, त्रिशंकु को स्वर्ग जाने में किसने मदद की
  22. बालकाण्ड: ब्राह्मणत्व की प्राप्ति, विश्वामित्र को ब्राह्मणत्व की प्राप्ति, विश्वामित्र जी की कथा (Sampurna Ramayan Katha Bal Kand: Brahmanatva Ki Praapti
  23. बालकाण्ड: राम ने धनुष तोड़ा, धनुष यज्ञ राम विवाह, सीता स्वयंवर धनुष भंग, राम द्वारा धनुष भंग, शिवधनुष पिनाक की कथा, शिवधनुष की कथा
  24. बालकाण्ड: विवाह पूर्व की औपचारिकताएं, राम सीता विवाह, श्री राम सीता विवाह कथा, विवाह के समय राम और सीता की आयु कितनी थी,राम सीता की शादी
  25. बालकाण्ड: परशुराम जी का आगमन, राम का अयोध्या आगमन, विवाह के बाद राम सीता जी का अयोध्या में आगमन, पत्नियों सहित राजकुमारों का अयोध्या में आगमन
  26. अयोध्याकाण्ड: राम के राजतिलक की घोषणा, राजतिलक की तैयारी, श्री राम का राजतिलक, राम का राज्याभिषेक Sampurna Ramayan Katha Ayodhya Kand
  27. अयोध्याकाण्ड: कैकेयी का कोपभवन में जाना, कैकेयी कोपभवन, कैकेयी क्रंदन, राजा दशरथ ने क्यों दिए कैकेयी को दो वरदान, कैकेयी द्वारा वरों की प्राप्ति
  28. अयोध्याकाण्ड: राम वनवास, राम को 14 वर्ष का वनवास, राम के वनवास जाने का कारण, राम 14 वर्ष के लिए वनवास क्यों गए, केकई ने राम को 14 वर्ष का वनवास क्यों दिया
  29. अयोध्याकाण्ड: तमसा नदी के तट पर राम लक्ष्मण और सीता, तमसा नदी कहां से निकली है, तमसा नदी किस जिले में है, तमसा नदी किस राज्य में है, टोंस नदी का इतिहास
  30. अयोध्याकाण्ड: भीलराज गुह, गंगा पार करना, केवट ने राम-लक्ष्मण और मां सीता को गंगा पार कराया, केवट और प्रभु श्रीराम का प्रसंग
  31. अयोध्याकाण्ड: राम, लक्ष्मण और सीता का चित्रकूट के लिये प्रस्थान, चित्रकूट की यात्रा, चित्रकूट धाम यात्रा, श्री रामजी के बनवास की कहानी
  32. अयोध्याकाण्ड: सुमन्त का अयोध्या लौटना, दशरथ सुमन्त संवाद (Sampurna Ramayan Katha Ayodhya Kand- Sumant’s Return to Ayodhya
  33. अयोध्याकाण्ड: श्रवण कुमार की कथा, राजा दशरथ और श्रवण कुमार, श्रवण कुमार की कहानी, मातृ और पितृभक्त श्रवण कुमार
  34. अयोध्याकाण्ड: राजा दशरथ की मृत्यु, राजा दशरथ की मृत्यु कब हुई? अयोध्यापति राजा दशरथ की मृत्यु कैसे हुई? Sampurna Ramayan Katha Ayodhya Kand
  35. अयोध्याकाण्ड: भरत-शत्रुघ्न की वापसी, भरत-शत्रुघ्न की अयोध्या वापसी, भरत कैकयी संवाद Sampurna Ramayan Katha Ayodhya Kand
  36. अयोध्याकाण्ड: दशरथ की अन्त्येष्टि, दशरथ का अन्त्येष्टि संस्कार (Sampurna Ramayan Katha Ayodhya Kand- Dasharatha’s Funeral
  37. अयोध्याकाण्ड: श्री राम-भरत मिलाप कथा, राम और भरत का मिलन, चित्रकूट में भरत मिलाप की कहानी, राम-भरत मिलाप संवाद, श्रीराम की चरण पादुका लेकर अयोध्या लौटे भरत
  38. अयोध्याकाण्ड: महर्षि अत्रि का आश्रम, अत्रि ऋषि के आश्रम पहुंचे श्री राम Sampurna Ramayan Katha Ayodhya Kand- Maharishi Atri Ka Ashram
  39. अरण्यकाण्ड: दण्डक वन में विराध वध, श्री राम द्वारा विराध राक्षस का वध, भगवान श्री राम ने किया दंडकवन के सबसे बड़े राक्षस विराध का वध
  40. अरण्यकाण्ड: महर्षि शरभंग का आश्रम, महर्षि शरभंग, शरभंग ऋषि की कथा, सीता की शंका Sampurna Ramayan Katha Aranyakaand
  41. अरण्यकाण्ड: अगस्त्य का आश्रम, महर्षि अगस्त्य मुनि, श्रीराम और अगस्त मुनि का मिलन स्थल सिद्धनाथ आश्रम Sampurna Ramayan Katha Aranyakaand
  42. अरण्यकाण्ड: पंचवटी में आश्रम, श्री राम-लक्ष्मण एवं सीता पंचवटी आश्रम में कैसे पहुँचे?, पंचवटी किस राज्य में है, पंचवटी की कहानी, पंचवटी क्या है, पंचवटी कहां है
  43. अरण्यकाण्ड: रावण की बहन शूर्पणखा, श्री राम का खर-दूषण से युद्ध, खर-दूषण वध, खर-दूषण का वध किसने किया? Sampurna Ramayan Katha Aranyakaand
  44. अरण्यकाण्ड: सीता की कथा और स्वर्ण मृग, श्री राम और स्वर्ण-मृग प्रसंग, मारीच का स्वर्णमृग रूप, सीता हरण, रामायण सीता हरण की कहानी, सीता हरण कैसे हुआ
  45. संपूर्ण रामायण कथा अरण्यकाण्ड: जटायु वध, रावण द्वारा गिद्धराज जटायु वध, सीता हरण व जटायु वध, रावण जटायु युद्ध, जटायु प्रसंग, जटायु कौन था
  46. अरण्यकाण्ड: रावण-सीता संवाद, रावण की माता सीता को धमकी, रावण और सीता संवाद अशोक वाटिका Sampurna Ramayan Katha Aranyakaand
  47. अरण्यकाण्ड: राम की वापसी और विलाप, श्री राम और लक्ष्मण विलाप, सीता हरण पर श्री राम जी के द्वारा विलाप, जटायु की मृत्यु, पक्षीराज जटायु की मृत्यु कैसे हुई
  48. अरण्यकाण्ड: कबन्ध का वध, राम द्वारा कबन्ध राक्षस का वध, रामायण में कबंध राक्षस, कबंध कौन था Sampurna Ramayan Katha Aranyakaand
  49. अरण्यकाण्ड: शबरी का आश्रम, भगवान राम शबरी के आश्रम क्यों गए, श्री राम शबरी के आश्रम कैसे पहुँचे? शबरी के झूठे बेर प्रभु राम ने खाएं, शबरी के बेर की कहानी
  50. किष्किन्धाकाण्ड: राम हनुमान भेंट, श्रीराम की हनुमान से पहली मुलाकात कहां और कब हुई, राम हनुमान मिलन की कहानी
  51. किष्किन्धाकाण्ड: राम-सुग्रीव मैत्री, राम-सुग्रीव मित्रता, श्री राम और सुग्रीव के मित्रता की कहानी, राम-सुग्रीव वार्तालाप, राम-सुग्रीव संवाद
  52. किष्किन्धाकाण्ड: बाली सुग्रीव युध्द वालि-वध, बाली का वध, राम द्वारा बाली का वध, बाली-राम संवाद, तारा का विलाप
  53. किष्किन्धाकाण्ड: सुग्रीव का अभिषेक, बाली वध के बाद सुग्रीव का राज्याभिषेक (Sampurna Ramayan Katha Kishkindha Kand
  54. किष्किन्धाकाण्ड: हनुमान-सुग्रीव संवाद, हनुमान और सुग्रीव की मित्रता, लक्ष्मण-सुग्रीव संवाद, राम का सुग्रीव पर कोप, रामायण सुग्रीव मित्रता
  55. किष्किन्धाकाण्ड: माता सीता की खोज, माता सीता की खोज में निकले राम, राम द्वारा हनुमान को मुद्रिका देना, माता सीता की खोज में निकले हनुमान
  56. किष्किन्धाकाण्ड: जाम्बवन्त द्वारा हनुमान को प्रेरणा, जाम्बवन्त के प्रेरक वचन Sampurna Ramayan Katha Kishkindha Kand
  57. सुन्दरकाण्ड: हनुमान का सागर पार करना, हनुमान जी ने समुद्र कैसे पार किया, हनुमान जी की लंका यात्रा, हनुमान जी का लंका में प्रवेश
  58. सुन्दरकाण्ड: लंका में सीता की खोज, माता सीता की खोज में लंका पहुंचे हनुमान, अशोक वाटिका में हनुमान, सीता से मिले हनुमान, अशोक वाटिका में हनुमान सीता संवाद
  59. सुन्दरकाण्ड: रावण -सीता संवाद, अशोक वाटिका में रावण संवाद, रावण सीता अशोक वाटिका, रावण की सीता को धमकी
  60. सुन्दरकाण्ड: जानकी राक्षसी घेरे में, माता सीता राक्षसी घेरे में, पति राम के वियोग में व्याकुल सीता, अशोक वाटिका में हनुमान जी किस वृक्ष पर बैठे थे
  61. सुन्दरकाण्ड: हनुमान सीता भेंट, सीता जी से मिले हनुमान, अशोक वाटिका में हनुमान सीता संवाद, हनुमान का सीता को मुद्रिका देना
  62. सुन्दरकाण्ड: हनुमान का विशाल रूप, हनुमान जी का पंचमुखी अवतार, हनुमान जी ने क्यों धारण किया पंचमुखी रूप, हनुमान के साथ क्यों नहीं गईं सीता, बजरंगबली का विराट रूप
  63. सुन्दरकाण्ड: हनुमान ने उजाड़ी अशोक वाटिका, हनुमान जी ने रावण की अशोक वाटिका को किया तहस-नहस, अशोक वाटिका विध्वंस, हनुमान राक्षस युद्ध
  64. सुन्दरकाण्ड: मेधनाद हनुमान युद्ध, लंका में हनुमान जी और मेघनाद का भयंकर युद्ध, मेघनाद ने हनुमान पर की बाणों की वर्षा
  65. सुन्दरकाण्ड: रावण के दरबार में हनुमान, रावण हनुमान संवाद, हनुमान-रावण की लड़ाई, लंका दहन, हनुमान जी द्वारा लंका दहन, हनुमान ने सोने की लंका में लगाई आग
  66. सुन्दरकाण्ड: माता सीता का संदेश देना, हनुमान के द्वारा राम सीता का संदेश, हनुमान ने राम को दिया माता सीता का संदेश
  67. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): समुद्र पार करने की चिन्ता, वानर सेना का प्रस्थान, वानर सेना का सेनापति कौन था, वानर सेना रामायण, वानर सेना का गठन
  68. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): लंका में राक्षसी मन्त्रणा, विभीषण ने रावण को किस प्रकार समझाया, विभीषण का निष्कासन, विभीषण का श्री राम की शरण में आना
  69. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): सेतु बन्धन, राम सेतु पुल, क्यों नहीं डूबे रामसेतु के पत्‍थर, राम सेतु का निर्माण कैसे हुआ, नल-नील द्वारा पुल बाँधना
  70. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): सीता के साथ छल, रावण का छल, रावण ने छल से किया माता सीता का हरण Sampoorna Ramayan Yuddha Kand (Lanka Kand)
  71. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): अंगद रावण दरबार में, अंगद ने तोड़ा रावण का घमंड, रावण की सभा में अंगद-रावण संवाद, रावण की सभा में अंगद का पैर जमाना
  72. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): राम लक्ष्मण बन्धन में, नागपाश में राम लक्ष्मण, धूम्राक्ष और वज्रदंष्ट्र का वध, राक्षस सेनापति धूम्राक्ष का वध, अकम्पन का वध, प्रहस्त का वध
  73. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): रावण कुम्भकर्ण संवाद, कुम्भकर्ण वध, कुंभकरण का वध किसने किया, कुम्भकर्ण की कहानी Sampoorna Ramayan Yuddha Kand (Lanka Kand)
  74. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): त्रिशिरा, अतिकाय आदि का वध, अतिकाय का वध, मायासीता का वध, रावण पुत्र मेघनाद (Sampoorna Ramayan Yuddha Kand (Lanka Kand)
  75. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): लक्ष्मण मेघनाद युद्ध कथा, मेघनाथ लक्ष्मण का अंतिम युद्ध, मेघनाद वध, मेघनाथ को कौन मार सकता था? लक्ष्मण ने मेघनाद को कैसे मारा
  76. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): लक्ष्मण मूर्छित, मेघनाद ने ब्रह्म शक्ति से लक्ष्मण को किया मूर्छित, लक्ष्मण मूर्छित होने पर राम विलाप, संजीवनी बूटी लेकर आए हनुमान
  77. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): रावण का युद्ध के लिये प्रस्थान, श्रीराम-रावण का युद्ध, राम और रावण के बीच युद्ध, रावण वध, मन्दोदरी का विलाप 
  78. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): विभीषण का राज्याभिषेक, रावण के बाद विभीषण बना लंका का राजा (Sampoorna Ramayan Yuddha Kand Lanka Kand)
  79. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): माता सीता की अग्नि परीक्षा, माता सीता ने अग्नि परीक्षा क्यों दी थी? माता सीता ने अग्नि परीक्षा कैसे दी?, माता सीता की अग्नि परीक्षा कहां हुई थी? 
  80. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): अयोध्या को प्रस्थान, राम अयोध्या कब लौटे थे, अयोध्या में राम का स्वागत, राम का अयोध्या वापस आना, वनवास से लौटे राम-लक्ष्मण और सीता
  81. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): भरत मिलाप, राम और भरत का मिलन, राम भरत संवाद, राम का राज्याभिषेक Sampoorna Ramayan Yuddha Kand (Lanka Kand)
  82. उत्तरकाण्ड: रावण के पूर्व के राक्षसों के विषय में, रावण के जन्म की कथा, रावण का जन्म कैसे हुआ, रावण का जन्म कहां हुआ, रावण के कितने भाई थे
  83. उत्तरकाण्ड: हनुमान के जन्म की कथा, रामभक्त हनुमान के जन्म की कहानी, हनुमान की कथा, हनुमान जन्म लीला, पवनपुत्र हनुमान का जन्म कैसे हुआ
  84. उत्तरकाण्ड: अभ्यागतों की विदाई, प्रवासियों में अशुभ चर्चा, सीता का निर्वासन, राम ने सीता का त्याग क्यों किया, राम ने सीता को वनवास क्यों दिया
  85. उत्तरकाण्ड: राजा नृग की कथा, सूर्यवंशी राजा नृग की कथा, राजा नृग कुएँ का गिरगिट, राजा नृग का उद्धार कैसे हुआ? राजा नृग की मोक्ष कथा, राजा नृग का उपाख्यान 
  86. उत्तरकाण्ड: राजा निमि की कथा, शाप से सम्बंधित राजा की कथा, राजा निमि कौन थे? राजा निमि की कहानी, विदेह राजा जनक Sampoorna Ramayan Uttar Kand
  87. उत्तरकाण्ड: राजा ययाति की कथा, कौन थे राजा ययाति, राजा ययाति की कहानी, ययाति का यदु कुल को शाप Sampoorna Ramayan Uttar Kand
  88. उत्तरकाण्ड: कुत्ते का न्याय, राम और कुत्ते की कहानी, भगवान राम से जब न्याय मांगने आया एक कुत्ता, रामायण का अनोखा किस्सा
  89. उत्तरकाण्ड: पूर्व राजाओं के यज्ञ-स्थल एवं लवकुश का जन्म, लव कुश का जन्म कहां पर हुआ था, लव कुश में बड़ा कौन है, वाल्मीकि आश्रम कहां है, च्यवन ऋषि का आगमन
  90. उत्तरकाण्ड: ब्राह्मण बालक की मृत्यु, शंबूक ऋषि की हत्या किसने की, शंबुक कथा, शंबूक ऋषि का वध, राम ने क्यों की शंबूक की हत्या Sampoorna Ramayan Uttar Kand
  91. उत्तरकाण्ड: राजा श्वेत क्यों खाया करते थे अपने ही शरीर का मांस, राजा श्वेत की कहानी, राजा श्वेत की कथा Sampoorna Ramayan Uttar Kand: Raja Swet Ki Katha
  92. उत्तरकाण्ड: राजा दण्ड की कथा, दण्डकारण्य जंगल के श्रापित होने की कथा, शुक्राचार्य ने राजा दण्ड को दिया श्राप
  93. उत्तरकाण्ड: वृत्रासुर की कथा, वृत्रासुर का वध, वृत्रासुर कौन था? इंद्र द्वारा वृत्रासुर का वध Sampoorna Ramayan Uttar Kand: Vritrasura Ki Katha
  94. उत्तरकाण्ड: राजा इल की कथा, जब पुरूष से स्त्री बन गये राजा ईल, राजा इल की कहानी (Sampoorna Ramayan Uttar Kand: Raja Ill Ki Kahani, Raja Ill Ki Katha
  95. उत्तरकाण्ड: अश्वमेघ यज्ञ का अनुष्ठान रामायण, अश्वमेध यज्ञ क्या है? Sampoorna Ramayan Uttar Kand: Ashvamedh Yagya Ka Anushthaan, Ashvamedh Yagya Kya Hai
  96. उत्तरकाण्ड: लव-कुश द्वारा रामायण गान, ‘हम कथा सुनाते’ लव-कुश के गीत, लव-कुश ने सुनाई राम कथा, लव कुश गीत, रामायण लव कुश कांड
  97. उत्तरकाण्ड: सीता का रसातल प्रवेश, सीता मैया धरती में क्यों समाई, सीता पृथ्वी समाधि, सीता जी का धरती में समाना, सीता का धरती में प्रवेश करना
  98. उत्तरकाण्ड: भरत व लक्ष्मण के पुत्रों के लिये राज्य व्यवस्था, वाल्मीकि रामायण (Sampoorna Ramayan Uttar Kand: Bharat Aur Lakshman Ke Putron Ke Liye Rajya
  99. उत्तरकाण्ड: लक्ष्मण का परित्याग, राम ने लक्ष्मण का परित्याग क्यों किया, राम द्वारा लक्ष्मण का परित्याग, लक्ष्मण द्वारा प्राण विसर्जन, लक्ष्मण की मृत्यु
  100. उत्तरकाण्ड: महाप्रयाण, लव-कुश का अभिषेक, संपूर्ण वाल्मीकि रामायण, Sampoorna Ramayan Uttar Kand: Mahaprayan, Valmiki Ramayan in Hindi