Maa laxmi ki katha

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मां लक्ष्मी की कथा, Maa Laxmi Ki Katha
पुराणों में माता लक्ष्मी की उत्पत्ति के बारे में विरोधाभास पाया जाता है. एक कथा के अनुसार माता लक्ष्मी की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान निकले रत्नों के साथ हुई थी, लेकिन दूसरी कथा के अनुसार वे भृगु ऋषि की बेटी हैं. दरअसल, पुराणों की कथा में छुपे रहस्य को जानना थोड़ा मुश्किल होता है, इसे समझना जरूरी है. आपको शायद पता ही होगा कि शिवपुराण के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश के माता-पिता का नाम सदाशिव और दुर्गा बताया गया है. उसी तरह तीनों देवियों के भी माता-पिता रहे हैं. समुद्र मंथन से जिस लक्ष्मी की उत्पत्ति हुई थी, दरअसल वह स्वर्ण के पाए जाने के ही संकेत रहे होंगे. जन्म समय-शास्त्रों के अनुसार देवी लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था. कार्तिकेय का जन्म भी शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था. कार्तिक कृष्ण अमावस्या को उनकी पूजा की जाती है.

नाम –  देवी लक्ष्मी.
नाम का अर्थ –  लक्ष्मी शब्द दो शब्दों के मेल से बना है- एक लक्ष्य तथा दूसरा मी अर्थात लक्ष्य तक ले जाने वाली देवी लक्ष्मी.
अन्य नाम –  श्रीदेवी, कमला, धन्या, हरिवल्लभी, विष्णुप्रिया, दीपा, दीप्ता, पद्मप्रिया, पद्मसुन्दरी, पद्मावती, पद्मनाभप्रिया, पद्मिनी, चन्द्र सहोदरी, पुष्टि, वसुंधरा आदि नाम प्रमुख हैं.
माता-पिता –  ख्याति और भृगु.
भाई  –  धाता और विधाता
बहन  –  अलक्ष्मी
पति  –  भगवान विष्णु.
पुत्र –  18 पुत्रों में से प्रमुख 4 पुत्रों के नाम हैं- आनंद, कर्दम, श्रीद, चिक्लीत.
निवास –  क्षीरसागर में भगवान विष्णु के साथ कमल पर वास करती हैं.

पर्व –  दिवाली.
दिन –  ज्योतिषशास्त्र एवं धर्मग्रंथों में शुक्रवार की देवी मां लक्ष्मी को माना गया है.
वाहन –  उल्लू और हाथी. एक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु की पत्नी देवी लक्ष्मी का वाहन उल्लू है और धन की देवी महालक्ष्मी का वाहन हाथी है. कुछ के अनुसार उल्लू उनकी बहन अलक्ष्मी का प्रतीक है, जो सदा उनके साथ रहती है. देवी लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू पर बैठकर भगवान विष्णु के साथ पृथ्वी भ्रमण करने आती हैं.
दो रूप –  लक्ष्मीजी की अभिव्यक्ति को दो रूपों में देखा जाता है- 1. श्रीरूप और 2. लक्ष्मी रूप. श्रीरूप में वे कमल पर विराजमान हैं और लक्ष्मी रूप में वे भगवान विष्णु के साथ हैं. महाभारत में लक्ष्मी के विष्णुपत्नी लक्ष्मी एवं राज्यलक्ष्मी दो प्रकार बताए गए हैं.
एक अन्य मान्यता के अनुसार लक्ष्मी के दो रूप हैं –  भूदेवी और श्रीदेवी. भूदेवी धरती की देवी हैं और श्रीदेवी स्वर्ग की देवी. पहली उर्वरा से जुड़ी हैं, दूसरी महिमा और शक्ति से. भूदेवी सरल और सहयोगी पत्नी हैं जबकि श्रीदेवी चंचल हैं. विष्णु को हमेशा उन्हें खुश रखने के लिए प्रयास करना पड़ता है.

बीज मंत्र –  ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभ्यो नम:
व्रत-पूजा
लक्ष्मी चालीसा, लक्ष्मीजी की आरती, लक्ष्मी की महिमा, लक्ष्मी व्रत, लक्ष्मी पूजन आदि. दीपावली पर लक्ष्मीजी की पूजा गणेशजी के साथ की जाती है. देवी लक्ष्मी की पूजा भगवान विष्णु के साथ ही होती है. जहां ऐसा नहीं होता वहां लक्ष्मी की बड़ी बहन अलक्ष्मी निवास करती है.
माता लक्ष्मी के प्रिय भोग
मखाना, सिंघाड़ा, बताशे, ईख, हलुआ, खीर, अनार, पान, सफेद और पीले रंग के मिष्ठान्न, केसर-भात आदि.
माता लक्ष्मी के प्रमुख मंदिर
पद्मावती मंदिर तिरुचुरा, लक्ष्मीनारायण मंदिर वेल्लूर, महालक्ष्मी मंदिर मुंबई, लक्ष्मीनारायण मंदिर दिल्ली, लक्ष्मी मंदिर कोल्हापुर, अष्टलक्ष्मी मंदिर चेन्नई, अष्टलक्ष्मी मंदिर हैदराबाद, लक्ष्मी-कुबेर मंदिर वडलूर (चेन्नई), लक्ष्मीनारायण मंदिर जयपुर, महालक्ष्मी मंदिर इंदौर, श्रीपुरम् का स्वर्ण मंदिर तमिलनाडु, पचमठा मंदिर जबलपुर आदि.

अष्टलक्ष्मी क्या है?
अष्टलक्ष्मी माता लक्ष्मी के 8 विशेष रूपों को कहा गया है. माता लक्ष्मी के 8 रूप ये हैं- आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी.
पुराणानुसार लक्ष्मीजी के 8 अवतार
1. महालक्ष्मी, जो वैकुंठ में निवास करती हैं.
2. स्वर्गलक्ष्मी, जो स्वर्ग में निवास करती हैं.
3. राधाजी, जो गोलोक में निवास करती हैं.
4. दक्षिणा, जो यज्ञ में निवास करती हैं.
5. गृहलक्ष्मी, जो गृह में निवास करती हैं.
6. शोभा, जो हर वस्तु में निवास करती हैं.
7. सुरभि (रुक्मणी), जो गोलोक में निवास करती हैं
8. राजलक्ष्मी (सीता) जी, जो पाताल और भूलोक में निवास करती हैं.

समुद्र मंथन वाली लक्ष्मी
समुद्र मंथन की लक्ष्मी को धन की देवी माना जाता है. उनके हाथ में स्वर्ण से भरा कलश है. इस कलश द्वारा लक्ष्मीजी धन की वर्षा करती रहती हैं. उनके वाहन को सफेद हाथी माना गया है. दरअसल, महालक्ष्मीजी के 4 हाथ बताए गए हैं. वे 1 लक्ष्य और 4 प्रकृतियों (दूरदर्शिता, दृढ़ संकल्प, श्रमशीलता एवं व्यवस्था शक्ति) के प्रतीक हैं और मां महालक्ष्मी जी सभी हाथों से अपने भक्तों पर आशीर्वाद की वर्षा करती हैं.
मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन से कुल 14 तरह के रत्न आदि उत्पन्न हुए थे. उनको सुरों (देव) और असुरों ने आपस में बांट लिया था. पहले हलाहल विष निकला, फिर क्रमश: कामधेनु गाय, उच्चै:श्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ मणि, कल्पद्रुम ग्रंथ, रम्भा नामक अप्सरा, अप्सरा के बाद महालक्ष्मी निकलीं. कहते हैं कि महालक्ष्मी के रूप में सोना निकला था जिसे भगवान विष्णु ने धारण कर लिया. इसके बाद वारुणी नामक मदिरा, फिर चन्द्रमा, फिर पारिजात का वृक्ष, फिर पांचजञ्य शंख, धन्वंतरि वैद्य (औषधि) और अंत में अमृत निकला था.

समुद्र मंथन के दौरान लक्ष्मी की उत्पत्ति भी हुई. लक्ष्मी अर्थात श्री और समृद्धि की उत्पत्ति. कुछ लोग इसे सोने (गोल्ड) से जोड़ते हैं, लेकिन कुछ लोग इसे देवी मानते हैं. समुद्र मंथन से उत्पन्न लक्ष्मी को कमला कहते हैं, जो 10 महाविद्याओं में से अंतिम महाविद्या है.
अध्ययन से पता चलता है कि समुद्र मंथन से निकली लक्ष्मी को वैभव और समृद्धि से जोड़कर देखा गया जिसमें सोना-चांदी आदि कीमती धातुएं थीं, जो कि लक्ष्मी का प्रतीक है.
लक्ष्मी-विष्णु विवाह कथा-कहते हैं कि समुद्र की पुत्री लक्ष्मी देवी थीं. जब लक्ष्मीजी बड़ी हुईं तो वे भगवान नारायण के गुण-प्रभाव का वर्णन सुनकर उनमें ही अनुरक्त हो गईं और उनको पाने के लिए तपस्या करने लगीं. उसी तरह, जिस तरह पार्वतीजी ने शिव को पाने के लिए तपस्या की थी. वे समुद्र तट पर घोर तपस्या करने लगीं. तदनंतर लक्ष्मीजी की इच्छानुसार भगवान विष्णु ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया.

विष्णुप्रिया लक्ष्मी
ऋषि भृगु की पुत्री माता लक्ष्मी थीं. उनकी माता का नाम ख्याति था. (समुद्र मंथन के बाद क्षीरसागर से जो लक्ष्मी उत्पन्न हुई थीं, उसका इनसे कोई संबंध नहीं.) म‍हर्षि भृगु विष्णु के श्वसुर और शिव के साढू थे. महर्षि भृगु को भी सप्तर्षियों में स्थान मिला है. राजा दक्ष के भाई भृगु ऋषि थे. इसका मतलब वे राजा द‍क्ष की भतीजी थीं. माता लक्ष्मी के दो भाई दाता और विधाता थे. भगवान शिव की पहली पत्नी माता सती उनकी (लक्ष्मीजी की) सौतेली बहन थीं. सती राजा दक्ष की पुत्री थी.
धन की देवी
देवी लक्ष्मी का घनिष्ठ संबंध देवराज इन्द्र तथा कुबेर से है. इन्द्र देवताओं तथा स्वर्ग के राजा हैं तथा कुबेर देवताओं के खजाने के रक्षक के पद पर आसीन हैं. देवी लक्ष्मी ही इन्द्र तथा कुबेर को इस प्रकार का वैभव, राजसी सत्ता प्रदान करती हैं.

लक्ष्मीजी और विष्णुजी का विवाह, विवाह कथा
एक बार लक्ष्मीजी के लिए स्वयंवर का आयोजन हुआ. माता लक्ष्मी पहले ही मन ही मन विष्णुजी को पति रूप में स्वीकार कर चुकी थीं लेकिन नारद मुनि भी लक्ष्मीजी से विवाह करना चाहते थे. नारदजी ने सोचा कि यह राजकुमारी हरि रूप पाकर ही उनका वरण करेगी. तब नारदजी विष्णु भगवान के पास हरि के समान सुन्दर रूप मांगने पहुंच गए. विष्णु भगवान ने नारद की इच्छा के अनुसार उन्हें हरि रूप दे दिया. हरि रूप लेकर जब नारद राजकुमारी के स्वयंवर में पहुंचे तो उन्हें विश्वास था कि राजकुमारी उन्हें ही वरमाला पहनाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. राजकुमारी ने नारद को छोड़कर भगवान विष्णु के गले में वरमाला डाल दी. नारदजी वहां से उदास होकर लौट रहे थे तो रास्ते में एक जलाशय में उन्होंने अपना चेहरा देखा. अपने चेहरे को देखकर नारद हैरान रह गए, क्योंकि उनका चेहरा बंदर जैसा लग रहा था.
हरि का एक अर्थ विष्णु होता है और एक वानर होता है. भगवान विष्णु ने नारद को वानर रूप दे दिया था. नारद समझ गए कि भगवान विष्णु ने उनके साथ छल किया. उनको भगवान पर बड़ा क्रोध आया. नारद सीधे बैकुंठ पहुंचे और आवेश में आकर भगवान को श्राप दे दिया कि आपको मनुष्य रूप में जन्म लेकर पृथ्वी पर जाना होगा. जिस तरह मुझे स्त्री का वियोग सहना पड़ा है उसी प्रकार आपको भी वियोग सहना होगा. इसलिए राम और सीता के रूप में जन्म लेकर विष्णु और देवी लक्ष्मी को वियोग सहना पड़ा.

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