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नवरात्रि का पहला दिन (नवरात्रि प्रथमा तिथि)-Navratri 1st Day: मां शैलपुत्री की पूजा विधि, प्रथम शैलपुत्री मंत्र, शैलपुत्री के मंत्र, शैलपुत्री की कथा, शैलपुत्री की आरती, माता शैलपुत्री की पूजा का महत्व, Maa Shailputri Puja Vidhi, Shailputri Mantra, Shailputri Ki Aarti, Mata Shailputri Ki Katha in Hindi

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नवरात्रि का पहला दिन -Navratri 1st Day (नवरात्रि प्रथमा तिथि)
नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मान्यता है कि नवरात्र में पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा करने से व्यक्ति को चंद्र दोष से मुक्ति मिल जाती है। इस दिन घरों में घटस्थापना की जाती है। कलश या घट स्थापना के पश्चात मां शैलपुत्री की पूजा विधि विधान से की जाती है। माता शैल पुत्री शांति और उत्साह देने वाली और भय नाश करने वाली हैं। उनकी आराधना से भक्तों को यश, कीर्ति, धन, विद्या और मोक्ष की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं मां शैलपुत्री को प्रसन्न करने के लिए दिनचर्या, पूजाविधि , मां के मंत्र, कथा, आरती व महत्व के बारे में…

नवरात्र व्रत के पहले दिन कैसी हो आपकी दिनचर्या
नवरात्रि में आहार और दिनचर्या का विशेष महत्व है. ऐसा माना जाता है कि बिना इसके नवरात्रि का शुभ फल नहीं मिल पाता. नवरात्रि में भक्त नौ दिनों तक फलाहार व्रत करते हैं तो कुछ भक्त निर्जला उपवास भी करते हैं. नवरात्र में पूरे नौ दिन तक व्रत रखना आसान बात नहीं है इसलिए यह व्रत बहुत ही कठिन माना जाता है. इन नौं दिनों में माता आदिशक्ति भवानी की कृपा प्राप्त करने के लिए केवल पूजा अर्चना करना ही काफी नहीं होता है बल्कि अपने व्यवहार और दिनचर्या का भी खास ध्यान रखना चाहिए. तभी आपको माता रानी की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है. जानिए नवरात्र व्रत के दौरान कैसी हो आपकी दिनचर्या-

1. बाकि के दिन भले ही आप कुछ देर अधिक सो लें, लेकिन अगर नवरात्र का व्रत करते हैं तो आपको ब्रह्म मुहूर्त में ही सोकर उठ जाना चाहिए. पूरे नौ दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें घर की सफाई करें और नहाएं.
2. इसके बाद सूर्य देव को जल दें, पूरे घर में गौमूत्र और गंगाजल का छिड़काव करें और फिर अपने घर के पूजास्थल या मंदिर में जाकर विधि विधान से मैय्या की पूजा करें.
3. व्रत-उपवास में माता जी की पूजा करने के बाद ही फलाहार करें. यानि सुबह माता जी की पूजा के बाद दूध और कोई फल ले सकते हैं. नमक न खाएं या खाने में सेंधा नमक का ही प्रयोग करें.
4. उसके बाद दिनभर मन ही मन माता जी का ध्यान करते रहें. नवरात्रि के दौरान अपने मन को पूर्णतया मां दुर्गा के ध्यान में लगाना चाहिए.
5. इस समय कोई भी नकारात्मक विचार मन में न लाएं और न ही किसी के प्रति अपने मन में दुर्भावना रखें. शांत रहने की कोशिश करें. झूठ न बोलें और गुस्सा करने से भी बचें. अपनी इंद्रियों पर काबु रखें और मन में कामवासना जैसे गलत विचारों को न आने दें.
6. व्रत रखने वाले लोगों को दिन में नहीं सोना चाहिए.

7. शाम को फिर से माता जी की पूजा और आरती करें. इसके बाद एक बार और फलाहार (फल खाना) कर सकते हैं. अगर न कर सके तो शाम की पूजा के बाद एक बार भोजन कर सकते हैं.
8. माता जी की पूजा के बाद रोज 1 कन्या की पूजा करें और भोजन करवाकर उसे दक्षिणा दें.
नवरात्रि के दौरान तामसिक भोजन नहीं करें. यानि इन 9 दिनों में लहसुन, प्याज, मांसाहार, ठंडा और झूठा भोजन नहीं करना चाहिए.
9. नवरात्रि के नौं दिनों तक साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए. इन दिनों में क्षौरकर्म न करें. यानि बाल और नाखून न कटवाएं और शेव भी न बनावाएं. इनके साथ ही तेल मालिश भी न करें. नवरात्रि के दौरान दिन में नहीं सोएं.
10. नवरात्रि के व्रत-उपवास बीमार, बच्चों और बूढ़ों को नहीं करना चाहिए. क्योंकि इनसे नियम पालन नहीं हो पाते हैं.
11. घर के मंदिर में कभी भी अंधेरा न रखें. किसी न किसी तरह से उसमें रोशनी आती रहे.
12. कभी भी घर को अकेला न छोड़ें. अखंड ज्योति जला रहे हैं तो उसमें समय समय पर घी डालते रहें.
13. व्रत रखने वाले लोगों को नौ दिन विधि विधान मां की पूजा करनी चाहिए और कथा भी सुनी या पढ़नी चाहिए.

नवरात्रि पर घटस्थापना विधि
1. नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि पर ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान आदि के बाद साफ कपड़े पहनें. पूजा स्थल की साफ-सफाई करके ईशान कोण में एक लकड़ी की चौकी बिछाएं.
2. इसके बाद एक मिट्टी का चौड़े मुंह वाला बर्तन लेकर उसमें मिट्टी रखें. इस मिट्टी के पात्र में थोड़ा सा पानी डालकर मिट्टी गिली करके उसमें जौ बो दें.
3. अब उसके ऊपर एक मिट्टी का कलश या फिर पीतल के कलश में जल भरें और उसके ऊपरी भाग (गर्दन) में कलावा बांधें.
4. कलश में एक बताशा, पूजा की सुपारी, लौंग का जोड़ा और एक सिक्का डालें. अब कलश के ऊपर आम या अशोक के पत्तें लगाएं.
5. इसके बाद एक जटा वाला नारियल लेकर उसके ऊपर लाल कपड़ा लपेटकर मौली बांधकर कलश के ऊपर रख दें. और सबसे पहले गणपति वंदन करें और कलश पर स्वास्तिक बनाएं.
6. घटस्थापना पूरी होने के पश्चात मां दुर्गा का आह्वान करते हुए विधि-विधान से माता शैलपुत्री का पूजन करें.
7. नवरात्र के खत्म होने पर कलश के जल का घर में छींटा मारें और कन्या पूजन के बाद प्रसाद वितरण करें.

मां शैलपुत्री की पूजा विधि
मां शैलपुत्री की अराधना करने से पहले चौकी पर मां शैलपुत्री की तस्वीर या प्रतिमा को स्थापित करें। इसके बाद उस पर एक कलश स्थापित करें। कलश के ऊपर नारियल और पान के पत्ते रख कर एक स्वास्तिक बनाएं। इसके बाद कलश के पास अंखड ज्योति जला कर ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ओम् शैलपुत्री देव्यै नम: मंत्र का जाप करें। इसके बाद मां को सफेद फूल की माला अर्पित करते हुए मां को सफेद रंग का भोग जैसे खीर या मिठाई आदि लगाएं। इसेक बाद माता कि कथा सुनकर उनकी आरती करें। शाम को मां के समक्ष कपूर जलाकर हवन करें।

शैलपुत्री की पूजा का महत्व
मां शैलपुत्री के मस्तिष्क पर अर्धचन्द्र्मा विराजित है। इसलिए यदि जातक की कुंडली में चन्द्रमा निर्बल है, तो उसे बलिष्ठ करने के लिए मां शैलपुत्री की आराधना अति-उत्तम है। देवी शैलपुत्री के हाथ में सुशोभित त्रिशूल जातक की कुंडली के छठे भाव जो कि शत्रुओं का भाव है, उसे निर्बल करता है, अत : शत्रुओं को परास्त करने के लिए भी मां शैलपुत्री की आराधना करनी चाहिए। मां के हाथ में उपस्थित कमल पुष्प, जातक की कुंडली के द्वादश भाव, जो की कुंडली का अंतिम भाव है का प्रतीक है, द्वादश भाव को भी बलिष्ठ करती हैं माँ शैलपुत्री। मां शैलपुत्री देवी पार्वती का ही स्वरुप हैं जो सहज भाव से पूजन करने से शीघ्र प्रसन्न हो जाती हैं और भक्तों को  मनोवांछित फल प्रदान करती हैं। मन विचलित होता हो और आत्मबल में कमी हो तो मां शैलपुत्री की आराधना करने से लाभ मिलता हैं।

नवरात्रि के पहले दिन उपवास में क्या खाये
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री (Navratri First Day Maa Shailputri) का होता है. इस दिन देवी मां की आराधना कर भक्त उचित मात्रा में दूध, पनीर भरा हुआ कुट्टू का चीला, नारियल पानी और सेब, सब्जियों के साथ साबुदाना खिचड़ी, दही, शकरकंद का चाट आवश्यकतानुसार सुबह 7 बजे, दोपहर 2 बजे और रात्रि में 8 बजे समय के अनुसार खा सकते हैं.

प्रतिपदा का रंग है पीला-
पीला रंग ब्रह्स्पति का प्रतीक है। किसी भी मांगलिक कार्य में इस रंग की उपयोगिता सर्वाधिक मानी गई है। इस रंग का संबंध जहां वैराग्य से है वहीं पवित्रता और मित्रता भी इसके दो प्रमुख गुण हैं।
ये लगाएं मां शैलपुत्री को भोग
मां शैलपुत्री के चरणों में गाय का घी अर्पित करने से भक्तों को आरोग्य का आशीर्वाद मिलता है और उनका मन एवं शरीर दोनों ही निरोगी रहता है।
मंत्र Mantra, प्रथम शैलपुत्री मंत्र
ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
प्रार्थना – Prarthana
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
स्तुति – Stuti
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

ध्यान – Dhyana
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
पूणेन्दु निभाम् गौरी मूलाधार स्थिताम् प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता॥
प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम्॥

स्त्रोत – Stotra
प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागरः तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥
त्रिलोजननी त्वंहि परमानन्द प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥
चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह विनाशिनीं।
मुक्ति भुक्ति दायिनीं शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥

कवच – Kavacha
ॐकारः में शिरः पातु मूलाधार निवासिनी।
हींकारः पातु ललाटे बीजरूपा महेश्वरी॥
श्रींकार पातु वदने लावण्या महेश्वरी।
हुंकार पातु हृदयम् तारिणी शक्ति स्वघृत।
फट्कार पातु सर्वाङ्गे सर्व सिद्धि फलप्रदा॥

मां शैलपुत्री की कथा
एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। इसमें उन्होंने सारे देवताओं को अपना-अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया, लेकिन शंकरजी को उन्होंने इस यज्ञ में निमंत्रित नहीं किया। सती ने जब सुना कि उनके पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तब वहां जाने के लिए उनका मन विकल हो उठा।
अपनी यह इच्छा उन्होंने शंकरजी को बताई। सारी बातों पर विचार करने के बाद उन्होंने कहा- प्रजापति दक्ष किसी कारण से हमसे नाराज हैं। अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है। उनके यज्ञ-भाग भी उन्हें समर्पित किए हैं, लेकिन हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है। कोई सूचना तक नहीं भेजी है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहां जाना सही नहीं होगा।
शंकरजी के यह कहने से भी सती नहीं मानी। उनका प्रबल आग्रह देखकर भगवान शंकरजी ने उन्हें वहां जाने की अनुमति दे दी। सती ने पिता के घर पहुंचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बातचीत नहीं कर रहा है। केवल उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव भरे हुए थे।
परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को बहुत दुख पहुंचा। यह सब देखकर सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा। उन्होंने सोचा भगवान शंकरजी की बात न मान, यहां आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है। वे अपने पति भगवान शंकर के इस अपमान को सह न सकीं। उन्होंने अपने उस रूप को तत्क्षण वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया। वज्रपात के समान इस दारुण-दुःखद घटना को सुनकर शंकरजी ने क्रुद्ध हो अपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया।
सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वे शैलपुत्री नाम से विख्यात हुर्ईं।

मां शैलपुत्री की आरती – Maa Shailputri Ki Arati
शैलपुत्री मां बैल असवार। करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।
घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।

नवरात्रि व्रत में करें इन 6 नियमों का पालन-
1- कन्याओं/महिलाओं का सम्मान करें
भारतीय परंपरा में कन्याओं को मां दुर्गा का स्वरूप माना गया है. यही कारण है कि नवरात्रि में कन्या पूजन या कंजका पूजन कर लोग पुण्य की प्राप्ति करते हैं. नवरात्रि के दिनों में सभी महिलाओं में किसी न किसी देवी का स्वरूप होता है. इसलिए किसी भी कन्या या महिला के प्रति असम्मान का भाव मन में भी नहीं आना चाहिए. कन्याओं को देवी स्वरूप मानकर उन्हें मन ही मन प्रणाम करना चाहिए. हमारे शास्त्रों में यहां तक कहा गया है कि यत्र नार्यास्तु पूजयंते रमंते तत्र देवता.
2- धार्मिक कार्यों में मन लगाएं
माना जाता है कि व्रत करने वाले को नवरात्रि नौ दिनों तक अपना समय भौतिकता वाली बातों में न लगाकर धार्मिक ग्रंथों का अध्यन करना चाहिए. इन दिनों दुर्गा चालीसा या दुर्गा सप्तसती का पाठ कर सकते हैं.

3- घर अकेला न छोड़ें
यदि आपने घर में कलश (घट) स्थापना की है या माता की चौकी या अखंड ज्योति लगा रखी है तो उसके पास किसी एक व्यक्ति का रहना जरूरी होता है. इस दौरान नौ दिनों तक घर में किसी एक व्यक्ति का रहना जरूरी होता है. साथ व्रत के दौरान दिन में सोना भी मना है.
4- तामसिक भोजन से परहेज करें
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नवरात्रि के पावन दिनों में सात्विकता का विशेष ध्यान रखना चाहिए. आहार, व्यवहार और विचार में आपके सात्विकता होना जरूरी है. आप इन दिनों तामसिक प्रवृत्ति का भोजन जैसे नॉनवेज, प्याज-लहसुन और मदिरा आदि का सेवन नहीं करना चाहिए. कम से कम नवरात्रि के नौ दिनों तक पूरी तरह से सात्विक आहार लेना चाहिए.

5- व्रत के दौरान गुस्सा न करें
नवरात्रि के दिनों में बहुत से लोग क्रोध पर काबू नहीं रख पाते और कलह का वातावरण पैदा करते हैं. ऐसे लोगों को कम से कम नौ दिनों तक व्रत के दौरान गुस्सा करने से बचना चाहिए. हो सकते ज्यादा से ज्यादा मौन व्रत रखें या कम से कम बात करें. व्रत में शारीरिक ऊर्जा की कमी होती है ऐसे में व्रत के दौरान ज्यादा बोलने से आपके शरीर में और ज्यादा कमजोरी आ सकती है. इसलिए शांतिपूर्वक व्रत करना उत्तम माना गया है.
6 – काम वासना पर कंट्रोल रखें
नवरात्रि के दिनों में काम भावना पर नियंत्रण रखने को भी जरूरी बताया गया. नवरात्रि के दौरान महिलाओं और पुरुषों दोनों को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए. संभव हो तो अलग-अलग बिस्तर पर सोना चाहिए.

माता शैलपुत्री की कथा और पूजा विधि (Video Credit- The Divine Tales)

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