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गायत्री मंत्र, Gayatri Mantra, गायत्री मंत्र इन हिंदी, गायत्री मंत्र हिंदी में
चारों वेदों से मिलकर बने गायत्री मंत्र का उच्‍चारण करने से व्‍यक्ति के जीवन में खुशियों का संचार होता है. इस मंत्र का जाप करने से शरीर निरोग बनता है और इंसान को यश, प्रसिद्धि और धन की प्राप्ति भी होती है.
गायत्री मंत्र, Gayatri Mantra
ॐ भूर्भुवः स्वः
तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्यः धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।।
गायत्री मंत्र का अर्थ – उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अन्तरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

मंत्र के प्रत्येक शब्द की व्याख्या
गायत्री मंत्र के पहले नौ शब्द प्रभु के गुणों की व्याख्या करते हैं-
ॐ = प्रणव
भूर = मनुष्य को प्राण प्रदाण करने वाला
भुवः = दुख़ों का नाश करने वाला
स्वः = सुख़ प्रदाण करने वाला
तत = वह, सवितुर = सूर्य की भांति उज्जवल
वरेण्यं = सबसे उत्तम
भर्गो = कर्मों का उद्धार करने वाला
देवस्य = प्रभु
धीमहि = आत्म चिंतन के योग्य (ध्यान)
धियो = बुद्धि, यो = जो, नः = हमारी,
प्रचोदयात् = हमें शक्ति दें (प्रार्थना)

गायत्री मंत्र का जाप कब करें, गायत्री मंत्र जप का समय, Gayatri Mantra Ka Jaap Kab Kare
यूं तो इस बेहद सरल मंत्र को कभी भी पढ़ा जा सकता है लेकिन शास्त्रों के अनुसार इसका दिन में तीन बार जप करना चाहिए, गायत्री मंत्र का जाप 1, 7 , 21, या 108 बार कर सकते है-
1- गायत्री मंत्र के जाप का पहला समय सुबह का है. सूर्योदय से थोड़ी देर पहले मंत्र जप शुरू किया जाना चाहिए और जप सूर्योदय के बाद तक करना चाहिए.
2- मंत्र के जाप का दूसरा समय है दोपहर का. दोपहर में भी इस मंत्र का जप किया जा सकता है.
3- मंत्र के जाप का तीसरा समय है शाम को सूर्यास्त से कुछ देर पहले। सूर्यास्त से पहले मंत्र जप शुरू करके सूर्यास्त के कुछ देर बाद तक जप करना चाहिए.
4- यदि इन तीनो समय के अलावा गायत्री मंत्र का जप करना हो तो मौन रहकर या मानसिक रूप से करना चाहिए। मंत्र जप अधिक तेज आवाज में नहीं करना चाहिए.

गायत्री मंत्र जाप विधि, Gayatri Mantra Jaap Vidhi
गायत्री मंत्र जाप करने से पहले स्नान आदि कर्मों से खुद को पवित्र कर लेना चाहिए.ज्‍योत‍िषशास्‍त्र के अनुसार यदि संध्याकाल के अतिरिक्त गायत्री मंत्र का जप करना हो, तो ऐसे में मौन रहकर या मानसिक रूप से मंत्र जप करना चाहिए. इस बात ध्‍यान रखें क‍ि इस प्रहर में मंत्र जप अधिक तेज आवाज में नहीं करना चाहिए. इसके अलावा गायत्री मंत्र जप करने के हमेशा रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करना चाहिए. मंत्र जप की संख्या कम से कम 108 होनी चाहिए. ध्‍यान रखें क‍ि घर के मंदिर में या किसी पवित्र स्थान पर गायत्री माता का ध्यान करते हुए मंत्र का जप करना चाहिए. इस मंत्र के जप करने के लिए रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करना श्रेष्ठ होता है.

गायत्री मंत्र के फायदे, Gayatri Mantra Ke Fayde
हिन्दू धर्म में गायत्री मंत्र को विशेष मान्यता प्राप्त है. कई शोधों द्वारा यह भी प्रमाणित किया गया है कि गायत्री मंत्र के जाप से कई फायदे भी होते हैं जैसे-
1- मानसिक शांति, चेहरे पर चमक, खुशी की प्राप्ति, चेहरे में चमक, इन्द्रियां बेहतर होती हैं, गुस्सा कम आता है और बुद्धि तेज होती है.
2- गायत्री मन्त्र का नियमित रुप से सात बार जप करने से व्यक्ति के आसपास नकारात्मक शक्तियाँ बिलकुल नहीं आती. उत्साह एवं सकारात्मकता बढ़ती है.
3- गायत्री मंत्र पाठ लगातार करने से पूर्वाभास होने लगता है. जप से कई प्रकार के लाभ होते हैं, व्यक्ति का तेज बढ़ता है और मानसिक चिन्ताओं से मुक्ति मिलती है. बौद्धिक क्षमता और मेधाशक्ति यानी स्मरणशक्ति बढ़ती है.
4- गायत्री मंत्र जाप से आप धार्मिक प्रवर्ति बनी रहती है, धर्म और सेवा कार्यों में मन लगता है.
5- गायत्री मंत्र पाठ से आशीर्वाद देने की शक्ति बढ़ती है.
6- गायत्री मंत्र पाठ से स्वप्न सिद्धि प्राप्त होती है.
7- आप गुस्से पे काबू पा लेते है और क्रोध शांत होता है.
8- चेहरे पे एक आकर्षण आ जाता है, त्वचा में चमक आती है.
9- मन साफ़ रहता है, बुराइयों से मन दूर होता है.

गायत्री मंत्र के चौबीस अक्षर चौबीस शक्तियां और सिद्धियां, Gayatri Mantra Ke Chaubees Akshar Chaubees Shaktiya Aur Siddhiya
गायत्री मन्त्र में सब मिलाकर चौबीस अक्षर होते हैं और यह 24 अक्षर चौबीस शक्तियों और सिद्धियों के प्रतीक होते हैं. ऋषियों ने इन अक्षरों में बीजरूप में विराजमान उन शक्तियों और सिद्धियों को पहचाना जिन्हें चौबीस अवतार, चौबीस ऋषि, चौबीस शक्तियां तथा चौबीस सिद्धियां कहा जाता है. गायत्री मंत्र के चौबीस अक्षरों के चौबीस देवता हैं और उनकी चौबीस चैतन्य शक्तियां भी हैं. गायत्री मंत्र के चौबीस अक्षर 24 शक्ति बीज हैं। गायत्री मंत्र का पाठ करने से उन सभी मंत्र शक्तियों का लाभ और सिद्धियां मिलती हैं.
1- तत्:
देवता– गणेश, सफलता शक्ति.
फल– कठिन कामों में सफलता, विघ्नों का नाश, बुद्धि की वृद्धि.
2- स:
देवता- नरसिंह, पराक्रम शक्ति.
फल- पुरुषार्थ, पराक्रम, वीरता, शत्रुनाश, आतंक-आक्रमण से रक्षा.
3- वि:
देवता- विष्णु, पालन शक्ति.
फल- प्राणियों का पालन, आश्रितों की रक्षा, योग्यताओं की वृद्धि.
4- तु:
देवता- शिव, कल्याण शक्ति.
फल- अनिष्ट का विनाश, कल्याण की वृद्धि, निश्चयता, आत्मपरायणता.
5- व:
देवता- श्रीकृष्ण, योग शक्ति.
फल- क्रियाशीलता, कर्मयोग, सौन्दर्य, सरसता, अनासक्ति, आत्मनिष्ठा.
6- रे:
देवता- राधा, प्रेम शक्ति.
फल- प्रेम-दृष्टि, द्वेषभाव की समाप्ति.
7- णि:
देवता- लक्ष्मी, धन शक्ति.
फल- धन, पद, यश और भोग्य पदार्थों की प्राप्ति.
8- यं:
देवता- अग्नि, तेज शक्ति.
फल- प्रकाश, शक्ति और सामर्थ्य की वृद्धि, प्रतिभाशाली और तेजस्वी होना.
9- भ :
देवता- इन्द्र, रक्षा शक्ति.
फल- रोग, हिंसक चोर, शत्रु, भूत-प्रेतादि के आक्रमणों से रक्षा.
10- र्गो :
देवता- सरस्वती, बुद्धि शक्ति.
फल- मेधा की वृद्धि, बुद्धि में पवित्रता, दूरदर्शिता, चतुराई, विवेकशीलता.
11- दे :
देवता- दुर्गा, दमन शक्ति.
फल- विघ्नों पर विजय, दुष्टों का दमन, शत्रुओं का संहार.
12- व :
देवता- हनुमान, निष्ठा शक्ति.
फल : कर्तव्यपरायणता, निष्ठावान, विश्वासी, निर्भयता एवं ब्रह्मचर्य-निष्ठा.
13- स्य :
देवता- पृथिवी, धारण शक्ति.
फल- गंभीरता, क्षमाशीलता, भार वहन करने की क्षमता, सहिष्णुता, दृढ़ता, धैर्य.
14- धी :
देवता- सूर्य, प्राण शक्ति.
फल- आरोग्य-वृद्धि, दीर्घ जीवन, विकास, वृद्धि, उष्णता, विचारों का शोधन.
15- म :
देवता- श्रीराम, मर्यादा शक्ति.
फल- तितिक्षा, कष्ट में विचलित न होना, मर्यादापालन, मैत्री, सौम्यता, संयम.
16- हि :
देवता- श्रीसीता, तप शक्ति.
फल- निर्विकारता, पवित्रता, शील, मधुरता, नम्रता, सात्विकता.
17- धि :
देवता- चन्द्र, शांति शक्ति.
फल- उद्विग्नता का नाश, काम, क्रोध, लोभ, मोह, चिन्ता का निवारण, निराशा के स्थान पर आशा का संचार.
18- यो :
देवता- यम, काल शक्ति.
फल- मृत्यु से निर्भयता, समय का सदुपयोग, स्फूर्ति, जागरुकता.
19- यो :
देवता- ब्रह्मा, उत्पादक शक्ति.
फल- संतानवृद्धि, उत्पादन शक्ति की वृद्धि.
20- न:
देवता- वरुण, रस शक्ति.
फल- भावुकता, सरलता, कला से प्रेम, दूसरों के लिए दयाभावना, कोमलता, प्रसन्नता, आर्द्रता, माधुर्य, सौन्दर्य.
21- प्र :
देवता- नारायण, आदर्श शक्ति.
फल- महत्वकांक्षा-वृद्धि, दिव्य गुण-स्वभाव, उज्जवल चरित्र, पथ-प्रदर्शक कार्यशैली.
22- चो :
देवता- हयग्रीव, साहस शक्ति.
फल- उत्साह, वीरता, निर्भयता, शूरता, विपदाओं से जूझने की शक्ति, पुरुषार्थ.
23- द :
देवता- हंस, विवेक शक्ति.
फल- उज्जवल कीर्ति, आत्म-संतोष, दूरदर्शिता, सत्संगति, सत्-असत् का निर्णय लेने की क्षमता, उत्तम आहार-विहार.
24- यात् :
देवता- तुलसी, सेवा शक्ति.
फल- लोकसेवा में रुचि, सत्यनिष्ठा, पातिव्रत्यनिष्ठा, आत्म-शान्ति, परदु:ख-निवारण.

Gayatri Mantra by Shankar Mahadevan

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