Biography of Manya Surve,

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मन्या सुर्वे की जीवनी
आज इस लेख में हम आपको एक जाने माने गैंगस्टर के बारें में बताने जा रहे है जिसका असली नाम मनोहर अर्जुन सुर्वे था, लेकिन उसकी गैंग के लोग उसे मन्या के नाम से बुलाते थे. मन्या का नाम उन राक्षसों में से एक थे, जिसने सिर्फ दो वर्षों के भीतर मुंबई के अंडरवर्ल्ड में प्रभाव डाला. उनका गिरोह इतनी प्रमुखता से बढ़ गया कि दो दशकों तक अंडरवर्ल्ड पर शासन करने वाले पठानों ने अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी गिरोह के नेता, कोंकणी बोलने वाले कास्कर समूह को खत्म करने के लिए उसकी मदद मांगी.

आपको बता दें कि वह मुंबई में पैदा नहीं हुआ, पर वह पला , पढ़ा और बड़ा हुआ मुंबई में ही. उसमे मुंबई के कीर्ति कॉलेज से ग्रेजुएशन (बी.ए.) किया और जब वह अपराध की दुनिया में आया, तो उसने अपने साथ पढ़े अपने कुछ दोस्तों को भी अपने गैंग में शामिल कर लिया. मन्या को अपराध की दुनिया में उसका सौतेला भाई भार्गव दादा लाया. भार्गव की अपने जमाने में दादर इलाके में खासी दहशत थी. भार्गव और उसके दोस्त मन्या पोधाकर के साथ मिलकर मन्या सुर्वे ने सन 1969 में किसी दांदेकर का मर्डर किया था. इस कत्ल में तीनों गिरफ्तार हुए, उन पर मुकदमा चला और तीनों को आजीवन कारावास की सजा हुई. सजा के बाद उन्हें मुंबई नहीं, बल्कि पुणे की यरवदा जेल में शिफ्ट कर दिया गया. पर सजा दिए जाने से मन्या सुर्वे सुधरा नहीं, बल्कि और खूंख्वार हो गया. उसका यरवदा जेल में ऐसा आतंक हो गया कि वह प्रतिद्वंद्वी डॉन सुहास भटकर के छोकरों को वहां पीटने और मारने लगा. परेशान जेल प्रशासन ने उसे फौरन वहां से हटाने का फैसला किया और फिर रत्नागिरी जेल भेज दिया. नाराज मन्या सुर्वे ने इसके बाद रत्नागिरी जेल में भूख हड़ताल कर दी. हड़ताल के दौरान वह एक चर्चित विदेशी उपन्यास पढ़ता रहा, जिसमें लूट की कई अनूठी मोडस ऑपरेंडी लिखी हुई थीं.

मन्या सुर्वे का एनकाउंटर उस समय के एसीपी ईशाक बागवन ने किया था. ये घटना 11 जनवरी 1982 को घटित हुई थी. मन्या सुर्वे को धोखे से पकड़कर एसीपी ईशाक ने मन्या की हत्या कर उसकी हत्या को एनकाउण्टर का रूप दे दिया. मन्या की मौत जहाँ कई लोगों के लिए एक चौंका देने वाली खबर थी वहीँ कुछ लोगों के लिए राहत देने वाली खबर बन गई थी. उस राहत और सुकून की सांस लेने वालों में से एक नाम दाऊद भी था जिसके बड़े भाई सबीर इब्राहिम को मन्या ने सरे आम गोली से उड़ा दिया था और खुद दाउद भी कई बार मन्या की गोलियाँ का शिकार होते-होते बचा था.

ये भी माना जाता है कि मन्या सुर्वे उस दौरान दाऊद से कई गुना ज्यादा ताकतवर था. मन्या की मौत दाऊद के लिए फायदेमंद थी और आगे बढ़ने के लिए बेहद जरूरी भी. मन्या के एनकाउंटर ने दाऊद और पाकिस्तान समर्थक अफगान माफियाओं को मुम्बई पर हावी होने का मौका दे दिया. मन्या के डर से जो अफगानी गैंगेस्टर चूहे के जैसे बिल में दुबके बैठे थे वे अब खुल के सक्रिय हो गये और जिसकी परिणति मुम्बई बम धमाके 1992 के रूप में सामने आयी.

मुंबई अंडरवर्ल्ड
उस समय के सबसे प्रसिद्ध पठान डॉन को पूरी तरह से भयभीत कर दिया था, जो पिछले दो दशको से मुंबई अंडरवर्ल्ड पर राज कर रहे थे. लेकिन पठान ने भी अपनी विरोधी गैंग केसर ग्रुप को पराजित करने के लिए मन्या सुर्वे की सहायता ली थी. इस गैंग का नेतृत्व दाऊद इब्राहिम का बड़ा भाई सबीर कर रहा था. मन्या की सफलता का यही सबसे सुलझा हुआ राज था. उस समय शहर की सबसे मशहूर गैंग भी उससे सहायता लेने के लिए आती थी और ऐसा करते हुए वह दूसरो को ख़त्म कर देता था. यह मुंबई के उन अंडरवर्ल्ड का पहला पढ़ा-लिखा हिन्दू गैंगस्टर था, जिसका दादर के आगरा बाज़ार में सम्मान किया जाता था.

मुंबई आने के बाद सुर्वे ने गैंग बनाना शुरू की और अपने दो भरोसेदार साथी धारावी के शेख मुनीर और डोम्बिवली के विष्णु पाटिल के साथ एक सशक्त गैंग का निर्माण किया. मार्च 1980 में उनकी गैंग में एक और गैंगस्टर, उदय भी शामिल हो गया.

इस गैंग ने अपनी पहली डकैती 5 अप्रैल 1980 को की, जिसमे उन्होंने एम्बेसडर कार चोरी थी. बाद में पता चला की इसी गाड़ी का उपयोग करी रोड पर लक्ष्मी ट्रेडिंग कंपनी में 5700 रुपये लूटने के लिए किया गया था. 15 अप्रैल को, उन्होंने सामूहिक रूप से हमला किया और शेख मुनीर के दुश्मन शेख अज़ीज़ को मार दिया. 30 अप्रैल को, अपने सामूहिक विरोधी विजय घाडगे का दादर के पुलिस स्टेशन में मार्गरक्षण करते समय उन्होंने पुलिस कांस्टेबल पर छुरा भी खोप दिया.

कैसे ग्रैजुएट से गैंगस्टर बना मन्या
मन्या सुर्वे का असली नाम मनोहर अर्जुन सुर्वे था, चूंकि गैंग के साथी उसे मन्या पुकारते थे, इसलिए पुलिस रिकॉर्ड में भी उसका नाम मन्या सुर्वे दर्ज हो गया. उसकी परवरिश मुंबई में ही हुई. मुंबई के कीर्ति कॉलेज से ग्रैजुएशन (BA) किया और जब वह अपराध की दुनिया में आया, तो उसने अपने साथ पढ़े दोस्तों को भी गैंग में शामिल कर लिया. मन्या को अपराध की दुनिया में लाने वाला उसका सौतेला भाई भार्गव दादा था. उस वक्त भार्गव की मुंबई के दादर इलाके में खासी दहशत थी. मन्या सुर्वे ने साल 1969 में किसी दांदेकर का मर्डर किया और उम्र कैद की सजा पाकर यरवदा जेल चला गया.

जेल में चलता था मन्या का सिक्का
पुणे की यरवदा जेल में मन्या का दबदबा बढ़ने लगा और वह पहले से ज्यादा खूंखार हो गया. वह अक्सर जेल में दूसरे गैंग के बदमाशों को पीटता था. जेल में मन्या ने कई मशहूर विदेशी नॉवेल पढ़े और क्राइम की कई अनूठी मोडस ऑपरेंडी (क्राइम का तरीका) सीख लिया. इसके बाद उसे रत्नागिरी जेल में शिफ्ट किया गया, लेकिन वहां उसने भूख हड़ताल कर दी, तबीयत बिगड़ने पर उसे हॉस्पिटल ले जाया गया, जहां 14 नवंबर 1979 को पुलिस को चकमा देकर मन्या फरार हो गया. इसके बाद फिर मुंबई आया और नए सिरे से गैंग की शुरुआत की.

मन्या से जुड़ी कुछ रोचक बातें
1- मन्या सुर्वे भारत का एक गैंगस्टर था जो बहुत अच्छी तरह से शिक्षित था.
2- उन्होंने मुंबई के कीर्ति कॉलेज से बी.ए.
3- उन पर पहली बार एक हत्या का आरोप लगाया गया था जो उन्होंने नहीं किया था और उन्हें यरवडा जेल में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.
4- वह नौ साल बाद जेल से भागने में कामयाब रहा, मुंबई चला गया, और एक अंडरवर्ल्ड गिरोह का गठन किया.
5- धीरे-धीरे लेकिन स्थिर रूप से, मन्या का गिरोह मुंबई में अंडरवर्ल्ड गिरोह के बाद सबसे अधिक मांग वाले लोगों में से एक बन गया.
6- उनका गिरोह अंततः इस तरह के वर्चस्व के लिए बढ़ गया कि इसे मुंबई के अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के लिए एक बड़ा खतरा माना गया.
7- वह मुंबई पुलिस द्वारा किए गए इतिहास में पहली बार हुई मुठभेड़ में मारा गया था
8- उनकी जीवन कहानी को बॉलीवुड फिल्म शूटआउट एट वडाला द्वारा दर्शाया गया है जो 2013 में रिलीज़ हुई थी, जिसमें अभिनेता जॉन अब्राहम ने मुख्य भूमिका निभाई थी.
9- जॉन अब्राहम ने कहा कि वह मन्या और एसीपी इसाक बागवान के कुछ सहपाठियों के साथ मिले थे, जो वर्ष 1982 में मन्या की जान लेने वाले मुठभेड़ दस्ते के प्रभारी थे.

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