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Delivery Ke Baad Dekhbhal
प्रसव के बाद माँ की देखभाल, Prasav Ke Baad Maa Ki Dekhbhal
गर्भवती महिलाएँ प्रसव के बाद राहत महसूस करती हैं और उनकी शरीर प्रणाली गर्भावस्था पूर्व स्थिति में लौट जाती है। यह अवधि आम तौर पर 6 सप्ताह की होती है और इसे प्रसवोत्तर काल या सूतिकावस्था कहा जाता है। इस अवधि में उचित देखभाल महत्वपूर्ण है। प्रसव के बाद की जाँच प्रसवोत्तर काल के बाद की जानी चाहिए ताकि संपूर्ण स्वास्थ्य-लाभ सुनिश्चित हो सके। इसके अलावा, यह दंपतियों द्वारा परिवार नियोजन के लिए गर्भनिरोधक विधि के बारे में चर्चा करने हेतु उचित समय है ताकि भावी पारिवारिक जीवन के लिए अच्छा आधार हासिल कर सकें।
शिशु के जन्म के बाद महिलाओं में होने वाले परिवर्तन
प्रसव के बाद की अवधि ढेरों चुनौतियों के साथ आती है और यहाँ पर हम वह बता रहे हैं जो आपके लिए अपेक्षित हो सकता है। प्रसव के बाद, आपका शरीर शारीरिक और भावनात्मक रूप से,अनेक परिवर्तनों से गुजरता है।
शारीरिक परिवर्तन
यहाँ कुछ ऐसी शारीरिक चुनौतियां दी गई हैं जिनकी आप अपेक्षा कर सकती हैं :
- कब्ज़: चाहे आपका सामान्य प्रसव हुआ हो या शल्यक्रिया से, आपको कब्ज़ होने की संभावना है। यह लौह तत्व के पूरक (सप्लीमेंट) आहार के प्रभाव के कारण हो सकता है क्योंकि जब आपके मूलाधार (गुदा व योनिमुख के बीच का भाग) में घाव होता है तो आप मल त्याग की इच्छा के बारे में आशंकित होती हैं।
- स्तनों में पीड़ा: प्रसव के साथ स्तनपान करवाना आ ही जाता है। आपके स्तन, दूध से भरे होते हैं और आपको हर कुछ घंटों में अपने शिशु को दूध पिलाना पड़ सकता है। इससे कभी-कभी स्तनों में दर्द भी हो सकता है।
- शरीर का गर्म और ठंडा होना (शारीरिक तापमान): आपको पसीना आता है, गर्मी लगती है या ठंड लगती है? आप अकेली नहीं हैं, अधिकांश मांओं को गर्भावस्था के बाद हफ्तों तक, शरीर का गर्म और ठंडा होना महसूस होता है।
- मूत्र असंयमितता: प्रसव के कारण श्रोणि की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं जिससे मूत्र असंयम हो जाता है। सामन्यतः यह योनि द्वारा हुए प्रसव के मामलों में होता है, विशेष रूप से उनको जिनके प्रसव में चिमटी या अन्य हस्तक्षेप प्रयोग होते हैं।
- वजन घटना: शिशु का जन्म होने के बाद, आप थोड़ा हल्का महसूस कर सकती हैं, लेकिन हो सकता है कि इसके बाद आपका वजन कुछ घट भी जाए। यदि आप शिशु को स्तनपान करा रही हैं, तो वजन कम होने की निश्चित संभावना है क्योंकि स्तनपान, गर्भावस्था के पहले जितना वजन वापस लाने में मदद करने के लिए जाना जाता है।
भावनात्मक परिवर्तन
जन्म देने वाली हर माँ अपने-अपने तरीके से प्रतिक्रिया देती है। हालांकि कुछ खुश, हर्षित और सतर्क महसूस कर सकती हैं, वहीं कुछ ऐसी भी होती हैं जो क्षतिग्रस्त, थकी, उदास और निराश महसूस करती हैं। सभी माँओं में भावनात्मक परिवर्तनों के कुछ सामान्य लक्षण दिखाई देते हैं।
- शिशु को जन्म देने के बाद की उदासी: अधिकांश माँओं को शिशु को जन्म देने के बाद, पहले सप्ताह के दौरान रोना आता है और चिढ़ महसूस होती है। इसे अक्सर “शिशु को जन्म देने के बाद की उदासी” कहा जाता है और यह लगभग सभी माँओं द्वारा अनुभव की जाती है, यह शिशु के जन्म के दो से चार दिन बाद रासायनिक और हार्मोन के स्तर में उतार-चढ़ाव से जुड़ा होता है।
- प्रसवोत्तर निराशा: शिशु के जन्म के बाद उदास होना अक्सर सामान्य माना जाता है; हालांकि, यदि आप प्रसव के बाद हफ्तों या महीनों तक लगातार भयभीत, उदास, निराश, थका हुआ महसूस करती हैं, तो आप प्रसवोत्तर निराशा से पीड़ित हो सकती हैं। यह हर 10 महिलाओं में से 1 को प्रभावित करता है और कई महिलाएं प्रसव के बाद हर प्रकार की स्थिति में एकदम खिन्न सी रहने लगती हैं। आपकी निराशा शिशु के साथ आपके बंधन को प्रभावित कर सकती है इसलिए चिकित्सीय सलाह लें।
- चिड़चिड़ापन: शिशु के आगमन के साथ, आपकी नींद का समय उलट-पुलट हो जाता है। नींद की कमी आपको परेशान कर सकती है और इससे निजात पाने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप समय मिलने पर या जब आपका बच्चा सो रहा हो तब सो जाएं।
- चिंता: एक नई माँ के रूप में, आपके लिए चिंतित होने के कई कारण हो सकते हैं। यह स्तनपान से संबंधित, शिशु की नींद से संबंधित या इस बात की आशंका से संबंधित भी हो सकता है कि आप कुछ महीने बाद बच्चे की देखभाल कैसे करेंगी। बहुत अधिक सोचने की कोशिश न करें और चीजों को खुद से व्यवस्थित होने का समय दें।
- मनोदशा में उतार-चढ़ाव: एक नई माँ को शिशु और उसके स्वयं के स्वास्थ्य से संबंधित थकावट और तनाव के कारण मनोदशा में उतार-चढ़ाव का अनुभव होना निश्चित है।
- अपराधबोध: बच्चा अपने आगमन के साथ माता-पिता को करीब लाता है। हालांकि एक माँ, जो प्रमुख रूप से शिशु की देखभाल में व्यस्त होती है, उसे अपने जीवन-साथी के साथ बिताने के लिए समय नहीं मिल पाता है, यह परिस्थिति अपराधबोध की भावना पैदा कर सकती है। प्रयास करें और दिन का कुछ समय ऐसा निकालें जो आप अपने साथी के साथ बिता सकें। यह आपकी उदासी को दूर करने में मदद कर सकता है।
- उदासी की लंबी अवधि: प्रसव के बाद शरीर बहुत सारे हार्मोनल परिवर्तनों से गुजरता है और कई माँओं को प्रसव के बाद लंबे समय तक उदास, निराश, दयनीय और दुखी महसूस होता है। ऐसे मामलों में चिकित्सीय सलाह लेना जरुरी है।
प्रसव के बाद सावधानियां, Prasav Ke Baad Savdhaniya
क्या आप जानना चाहती हैं कि प्रसव के बाद की जरूरी सावधानियां क्या हैं? विस्तृत सूची के लिए आगे पढ़ें।
- पैड का उपयोग करें और टैम्पोन का नहीं – लोकिया एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें प्रसव के बाद गर्भाशय की परत झड़ती है और मासिक धर्म के समान ही खून बहता है। यह लगभग छह सप्ताह तक होता है, जिस कारण आपको संक्रमण का खतरा हो सकता है। इस अवधि में पैड का उपयोग करना बेहतर है क्योंकि वह किसी भी संक्रमण की संभावना को कम कर सकता है।
- योनि क्षेत्र के आसपास दर्द के लिए बर्फ की थैली का उपयोग करें – बर्फ की थैली, शिशु के जन्म के बाद योनि के आसपास के दर्द को कम करने में मदद करती है। योनि में बर्फ के सीधे संपर्क से बचने के लिए, थैली को एक नर्म तौलिए में लपेटें।
- खुद को साफ करने के लिए गर्म पानी का उपयोग करें – आपकी योनि और मलाशय के बीच के क्षेत्र में घाव हो सकता है और इसे साफ करने में मुश्किल हो सकती है। संक्रमण से बचाव के लिए इसे गर्म पानी से धीरे-धीरे धोएं।
- सिट्ज बाथ – सिट्ज बाथ यानि नहाने के लिए रोजाना कुछ देर तक गुनगुने पानी में बैठना, विशेष रूप से मल त्याग के बाद। यह प्रक्रिया योनि के आसपास की पीड़ा को कम करने में मदद करती है।
- आराम – पर्याप्त आराम और अच्छी नींद, एक माँ की प्राथमिक आवश्यकताएं हैं। नवजात शिशु को हर तीन घंटे में खिलाया, साफ किया और आराम करवाया जाता है। ऐसे में एक साथ 7-8 घंटे तक सोना आपके लिए व्यावहारिक रूप से असंभव है, अपनी नींद का समय बदलें। इसका महत्वपूर्ण नियम है “जब शिशु सो रहा होता है, तो आप भी सो जाएं”। सुनिश्चित करें कि आपके शिशु का बिस्तर आपके बिस्तर के करीब है, इससे ऊर्जा और समय की बचत होती है। पहले कुछ सप्ताह तक अपने शिशु की देखभाल करने के अलावा कोई अतिरिक्त जिम्मेदारी न लें, यह काम आपको बहुत थका सकता है। अगर यह कार्य आपको बहुत थकाने वाला हो जाता है तो आप घर पर मिलने के लिए आने वालों की खातिरदारी करने की कोशिश न करें, जो आपको और बच्चे को देखना चाहते हैं। पहले कुछ हफ्तों के बाद, दूध को बोतल में निकाल कर रखने की कोशिश करें और विशेष रूप से रात के समय में बोतल का इस्तेमाल करें ताकि आपका जीवनसाथी भी शिशु को बोतल से दूध पिलाने की जिम्मेदारी बांटे और आपको कुछ समय की नींद मिल सके।
- पोषण – माँओं का समय पर भोजन करना भूल जाना या भोजन छोड़ देना आम बात है, लेकिन स्तनपान कराने वाली माँओं को समय पर पूरा भोजन करना चाहिए और साथ ही यह भी सुनिश्चित करें कि जब उन्हें भूख लगे तभी वे भोजन ग्रहण कर लें। गर्भावस्था के बाद की देखभाल और शिशु को स्तनपान के फायदों के लिए, पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ खाएं। नवजात शिशु को अपने दूध के साथ पोषण देने के लिए स्वस्थ आहार ही ग्रहण करें। अनाज, सब्जियां, दुग्ध उत्पाद फल, प्रोटीन फलियां और सीरियल्स जैसे सप्लीमेंट्स के साथ अपने आहार को पूर्ण करें। आपकी भोजन थाली प्रोटीन, लौह तत्व और कैल्शियम से भरपूर होनी चाहिए। प्रसव के बाद स्वस्थ पोषण लेना सबसे महत्वपूर्ण सावधानियों में से एक होता है।
- लयुक्त (हाइड्रेटेड) बने रहना – थकावट को दूर करने के लिए खूब सारा तरल पदार्थ पिएं। कब्ज़ से बचने के लिए ढेर सारा पानी पीना भी महत्वपूर्ण है। रेशा (फाइबर) से परिपूर्ण भोजन का सेवन करें और भरपूर पानी पीकर इसे संतुलित करें।
- व्यायाम – व्यायाम करने के लिए समय निकालें और उसे नियमानुसार पूर्ण करें। दिन में कम से कम एक बार घर से बाहर निकलें और अपनी मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए चलने-फिरने की कोशिश करें।
- मदद – आपका साथी पूरे दिन आपके साथ नहीं रह सकता है । अपने घर के कामों को करने में मदद के लिए नौकरानी रख लें या कुछ समय के लिए शिशु की देखभाल करने के लिए ‘आया’ रख लें, ताकि आप थकावट दूर करने के लिए थोड़ी नींद ले सकें। परिवार और दोस्तों से संपर्क करते समय यह देखें कि क्या वे बच्चे की देखभाल करने के लिए सहयोग कर सकते हैं, कोई भी अतिरिक्त मदद अमूल्य होती है।
डिलीवरी के बाद क्या खाना चाहिए
यह समझना जरूरी है कि प्रसव के बाद किस तरह के पौष्टिक तत्व आपको अपने खानपान में शामिल करने चाहिएं, जो आपको पोषण दे सकें। नीचे हम नई मां की डाइट में शामिल होने वाले खाद्य पदार्थों की लिस्ट दे रहे हैं। ये सभी विटामिन, खनिज, प्रोटीन, आयरन, कैल्शियम और ओमेगा-3 एस से भरपूर हैं, जो नई मां के लिए जरूरी हैं। इनकी मदद से महिला को डिलीवरी के बाद सामान्य अवस्था में आने में मदद मिलती है । आप इस डाइट को सी-सेक्शन के बाद भी ले सकती हैं । फिर भी सी-सेक्शन के बाद और सही खानपान के लिए एक बार अपने डॉक्टर से सलाह जरूर ले लें।
- कम फैट वाले डेयरी उत्पाद : प्रसव के बाद महिला को डेयरी उत्पादों का सेवन करना चाहिए। यह स्तनपान के लिए जरूरी है। इनमें कैल्शियम, प्रोटीन और विटामिन-ई होता है, जो महिला के लिए जरूरी है। आपको बता दें कि नवजात शिशु मां के दूध से ही कैल्शियम ग्रहण करता है, जिससे उसकी हड्डियां मजबूत होती हैं। ऐसे में मां के लिए कैल्शियम बहुत जरूरी हो जाता है। इसलिए, आप रोजाना तीन कप डेयरी उत्पादों को अपने खानपान में शामिल करें।
- लीन मीट : अगर महिला मांसाहारी है, तो डिलीवरी के बाद उन्हें लीन मीट भी अपने खानपान में शामिल करना चाहिए। इसमें आयरन, प्रोटीन और विटामिन बी-12 प्रचुर मात्रा में होता है, जो महिला को ऊर्जा देता है। यह उस समय आपको ऊर्जा देता है, जब स्तनपान के बाद आपकी ऊर्जा कम होने लगती है।
- दालें : एक अच्छी डाइट के लिए जरूरी है कि आपके खानपान में दालें जरूर शामिल हों। ये प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और खनिज का बेहतर स्रोत हैं। आप हरी और लाल दाल उबाल कर खा सकती हैं या इनका हलवा बनाकर खाना भी बेहतर विकल्प है। दालें आपको ताकत देंगी और अतिरिक्त फैट से भी बचाएंगी।
- फलियां : गहरे रंग की फलियां जैसे राजमा और ब्लैक बीन्स में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन होता है। ये स्तनपान कराने वाली माताओं को ऊर्जा देती हैं और शाकाहारी महिलाओं के लिए काफी फायदेमंद हैं।
- हरी सब्जियां : इनमें विटामिन-ए, विटामिन-सी और कैल्शियम प्रचुर मात्रा में होता है। इसके अलावा, इनमें कम कैलोरी पाई जाती हैं, जो प्रेग्नेंसी के बाद के बढ़े हुए वजन को कम करने में मदद करती हैं। आप ब्रॉकली, पालक, बीन्स, परवल और टिंडा जैसी हरी सब्जियों को अपने खानपान में जरूर शामिल करें।
- भूरे चावल : इसमें कोई दो राय नहीं है कि प्रेग्नेंसी के बाद महिला का वजन काफी बढ़ जाता है, जिसे कम करना बहुत मुश्किल होता है। इसलिए, अपने खानपान में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा को कम करें। आप अपने खाने में सफेद चावल की जगह भूरे चावल को शामिल करें। इससे आपको ऊर्जा भी मिलेगी और नुकसान भी नहीं होगा।
- ब्लूबेरी : गर्भावस्था के बाद अपनी डाइट में ब्लूबेरी शामिल करना एक बेहतर विकल्प है। इसमें भरपूर मात्रा में विटामिन और खनिज होते हैं, जो फायदा पहुंचाते हैं। इसके अलावा, यह आपको स्वस्थ कार्बोहाइड्रेट देते हैं, जिससे ऊर्जा मिलती है।
- संतरे : डिलीवरी के बाद आप संतरे का सेवन जरूर करें। इसमें विटामिन-सी होता है, जो स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए ज्यादा जरूरी होता है। आप चाहें तो इसे फल के तौर पर खा सकती हैं या संतरे का जूस भी पी सकती हैं।
- साल्मन : इसे नई मां के लिए पोषण का खजाना कहा जाता है। अन्य फैटी मछली की तरह साल्मन में डीएचए होता है, जो बच्चे के तंत्रिका विकास के लिए जरूरी होता है। हालांकि, मां के दूध में भी प्राकृतिक डीएचए होता है, लेकिन अगर महिला डीएचए युक्त चीजें खाए, तो यह बच्चे को ज्यादा फायदा पहुंचाता है। डीएचए, डिलीवरी के बाद अवसाद को कम करने में भी मदद करता है। यूएस एफडीए के अनुसार, नई मां को सप्ताह में दो सर्विंग साल्मन का सेवन करना चाहिए, ताकि उसमें मौजूद मर्करी आपको बच्चे को नुकसान न पहुंचाए ।
- गेहूं की ब्रेड : आप गेहूं की ब्रेड को भी अपने खानपान में शामिल कर सकती हैं। इसमें भरपूर मात्रा में आयरन और फाइबर होते हैं, जो नई मां के लिए जरूरी है।
- ओटमील : सुबह के नाश्ते में आप ओटमील का सेवन कर सकती हैं। इनमें भरपूर मात्रा में पोषक तत्व होते हैं, जो आपको दिनभर ऊर्जा से भरपूर रखते हैं। ओट्स में कैल्शियम, आयरन, प्रोटीन और स्वस्थ कार्बोहाइड्रेट होते हैं। इसके अलावा, इनमें भरपूर मात्रा में फाइबर पाया जाता है, जो कब्ज की समस्या से राहत दिलाता है। आप चाहें तो दूध में ओटमील, फल और सूखे मेवे डालकर खा सकती हैं। आप खिचड़ी या ओट्स का उपमा भी बनाकर खा सकती हैं।
- अंडे : अंडों में भरपूर मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है, जो नई मां को फायदा पहुंचाता है। इसके लिए आप उबला अंडा, अंडे की भुर्जी या फिर ऑमलेट के रूप में अपने खानपान में अंडे को शामिल कर सकती हैं। आप अपने दूध में आवश्यक फैटी एसिड के स्तर को सुधारने के लिए डीएचए-फोर्टिफाइड अंडे चुन सकती हैं।
- पानी : जब नई मां स्तनपान कराती है, तो उसे डिहाइड्रेशन का खतरा ज्यादा रहता है। आपको डिहाइड्रेशन न हो, उसके लिए जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा पानी पिएं। इसके अलावा, खुद में एनर्जी बनाए रखने के लिए दूध और जूस का भी नियमित रूप से सेवन करें।
- हल्दी : हल्दी में विटामिन-बी6, विटामिन-सी, पोटैशियम व मैंगनीज होते हैं। इसमें सूजन कम करने के गुण होते हैं और यह घाव को भी जल्दी भरती है। इसलिए, डिलीवरी के बाद घाव को भरने में और पेट संबंधी परेशानियों को ठीक करने में हल्दी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है । आप रोजाना रात को सोते समय एक गिलास गर्म दूध में आधा चम्मच हल्दी डालकर पी सकती हैं।
- अदरक का चूर्ण : इसमें विटामिन-बी6, विटामिन-ई, मैग्नीशियम व पोटैशियम होता है, जो डिलीवरी के बाद आपको फायदा पहुंचाता है। इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो शरीर से सूजन कम करने में मदद करते हैं। आप एक चुटकी अदरक का चूर्ण अपनी सब्जी या चटनी में डालकर खा सकती हैं।
- अजवायन : प्रसव के बाद अजवायन का सेवन भी काफी फायदेमंद होता है। यह आपको गैस और अपच की समस्या से राहत दिलाती है। इसमें एंटीबैक्टीरियल, एंटीफंगल, एंटीऑक्सीडेंट और एंटीसेप्टिक गुण भी होते हैं। आप रोजाना एक चुटकी अजवायन गुनगुने पानी के साथ खा सकती हैं।
- रागी : रागी में भरपूर मात्रा में आयरन और कैल्शियम होता है, जो डिलीवरी के बाद महिला के लिए जरूरी है। यह बच्चे को जन्म देने के बाद खोई ऊर्जा को फिर से प्राप्त करने में मदद करती है। अगर आपको डेयरी उत्पादों से एलर्जी है, तो रागी एक बेहतरीन विकल्प है। इसके लिए आप रागी के आटे का डोसा, रोटी या हलवा बनाकर खा सकती हैं।
- बादाम : प्रसव के बाद डाइट में बादाम को जरूर शामिल करना चाहिए। इसमें स्वस्थ कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, विटामिन-बी2, विटामिन-ई, मैग्नीशियम, कॉपर, जिंक, कैल्शियम और पोटैशियम होते हैं, जो डिलीवरी के बाद सामान्य अवस्था में आने में मदद करते हैं। आप बादाम को दूध में डालकर पी सकती हैं।
- मेथी के दाने : मेथी के दानों में प्रचुर मात्रा में कैल्शियम, आयरन, विटामिन और खनिज पाए जाते हैं। मेथी आपको जोड़ों के दर्द और पीठ दर्द से राहत दिलाने में मदद करती है। आप अपने खाने में मेथी के दाने डालकर पका सकती हैं।
- काले और सफेद तिल : तिल में प्रचुर मात्रा में कैल्शियम, मैग्नीशियम, कॉपर और फॉस्फोरस होता है, जो डिलीवरी के बाद महिला को फायदा पहुंचाता है। इससे आपका पेट ठीक रहता है और जरूरी खनिज शरीर को मिलते हैं। आप इसे चटनी, सब्जी या किसी मीठे में डालकर खा सकती हैं।
ये थे कुछ जरूरी खाद्य पदार्थ, जिन्हें डिलीवरी के बाद आपको अपने खानपान में शामिल करना चाहिए। इसके अलावा, अगर आप किसी अन्य चीज को अपनी डाइट में शामिल करना चाहती हैं, तो इस बारे में अपने डॉक्टर से सलाह लें।
डिलीवरी के बाद क्या नहीं खाना चाहिए
जिस तरह प्रेग्नेंसी में कई चीजों से परहेज करने की जरूरत होती है, उसी तरह डिलीवरी के बाद भी कुछ चीजों से दूरी बनाए रखनी चाहिए। नीचे हम बता रहे हैं कि डिलीवरी के बाद क्या नहीं खाना चाहिए :
- मसालेदार भोजन : डिलीवरी के बाद भी आपको मसालेदार भोजन खाने से बचना चाहिए। मसालेदार भोजन स्तनपान के जरिए आपके नवजात शिशु को नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिससे उसकी आंतें और रक्त प्रवाह प्रभावित हो सकता है ।
- तैलीय खाद्य पदार्थ : डिलीवरी के बाद तैलीय खाद्य पदार्थ आपके शरीर का फैट और बढ़ा सकते हैं, जिससे आपको सही शेप में आने में और दिक्कत हो सकती है। इसके अलावा, आप ज्यादा मीठा, मक्खन या अन्य वसा युक्त भोजन न खाएं। इसकी बजाए आप स्वस्थ फैट का इस्तेमाल कर सकती हैं, जैसे अखरोट, सोयाबीन, अलसी, वेजिटेबल ऑयल, ओलिव ऑयल (जैतून का तेल) जैसे तेल का इस्तेमाल कर सकती हैं।
- गैस बनाने वाले खाद्य पदार्थ : जिन खाद्य पदार्थों से गैस, एसिडिटी व डकार जैसी समस्याएं हों, उनसे दूर रहें। इनसे शिशु के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ सकता है। यहां तक कि आप सॉफ्ट चीज, आइसक्रीम और कोल्ड ड्रिंक आदि से भी दूर रहें।
- एलर्जी वाली चीजों से दूर रहें : ऐसी कई चीजें होती हैं, जिससे ब्रेस्ट मिल्क के जरिए शिशु को एलर्जी हो सकती है। अगर आपको ऐसा महसूस हो कि ब्रेस्ट मिल्क पीने के बाद शिशु को किसी तरह की एलर्जी हो रही है, तो ध्यान दें कि बच्चे को ऐसा किस चीज की वजह से हो रहा है। इसका पता लगाने के लिए आप अपने डॉक्टर से भी मदद ले सकती हैं।
- कैफीन, एल्कोहल व निकोटिन न लें : अपनी डाइट से कैफीन व एल्कोहल पूरी तरह से हटा दें । अगर आपको लगता है कि प्रेग्नेंसी खत्म हो गई है और अब इनका सेवन किया जा सकता है, तो आप गलत सोच रही हैं। जब तक आपका शिशु आपका दूध पिएगा, आपके खानपान का सीधा असर आपके शिशु पर पड़ता है।
- खुद से दवाएं न लें : आप डॉक्टर की सलाह के बिना खुद से कोई भी दवा न लें। ये दवाएं ब्रेस्ट मिल्क के माध्यम से शिशु के स्वास्थ्य पर असर डाल सकती हैं। यहां तक कि अगर आप मल्टी विटामिन दवा भी लेना चाहती हैं, तो डॉक्टर से पूछकर लें।
नोट : डिलीवरी के बाद क्या खाएं और क्या न खाएं की इस लिस्ट का पालन डिलीवरी के कम से कम तीन महीने बाद तक करते रहें।
प्रसव के बाद स्वस्थ भोजन की आदतें
जब आप लंबे समय तक स्वस्थ खानपान की आदत डाल लेंगी, तो इससे न सिर्फ आपका वजन संतुलित रहेगा, बल्कि शरीर भी स्वस्थ रहेगा। नीचे हम खाने की कुछ आदतों के बारे में बता रहे हैं, जिससे आपको जल्दी असर होगा :
- जब भूख लगे तभी खाएं।
- थोड़ा-थोड़ा और धीरे-धीरे खाएं।
- स्वस्थ वसा का सेवन करें।
- हर भोजन में प्रोटीन शामिल करें।
- पर्याप्त मात्रा में फल और सब्जियां खाएं।
प्रसव के बाद सावधानियों से सम्बंधित सवाल जवाब
सवाल- डिलीवरी के बाद पानी पीने से क्या होता है? , प्रसव के बाद कितना पानी पीना चाहिए ?
जवाब – प्रसव होने के बाद आपको पानी खूब पीना चाहिए। अगर आप कम पानी पीती है तो कम पानी के कारन डिहाइड्रेशन व कब्ज की समस्याएं हो सकती हैं। शरीर को हाइड्रेट रखने के लिए तरल पदार्थ लेना बहुत आवश्यक है , जैसे-सूप, जूस, फ्रूट्स , नारियल पानी, सलाद दलिया आदि लेने चाहिएं। मां और बच्चे को कुछ समय धूप भी लेनी चाहिए। इससे विटामिन-डी मिलता है और बच्चे का पीलिया से बचाव होता है।
सवाल- डिलीवरी होने के बाद कितना पानी पीना चाहिए?
जवाब – अगर आप प्रेग्नेंट है तो आपको लगभग 27 सप्ताह तक तो सामान्य पानी की मात्रा होनी चाहिए लेकिन इसके बाद बच्चे की ग्रोथ के साथ ही आपको अपने द्रव्य में लगभग 500 मिलीलीटर की बढ़ोतरी करनी चाहिए। बता दें कि पानी पीने की मात्रा सभी के लिए एक जैसी नहीं है। अगर आपका वजन अधिक है या आप ज्यादा खा रहे हैं तो आपको अधिक पानी पीना चाहिए। फिट रहने के लिए रोजाना 2 लीटर या 8-10 गिलास पानी पीना चाहिए।
और डिलीवरी के बाद भी आप सामान्य पानी की मात्रा से थोड़ा अधिक पानी पिए तो अच्छा होगा और शरीर को हाइड्रेट रखने के लिए तरल पदार्थ लेना बहुत आवश्यक है , जैसे-सूप, जूस, फ्रूट्स , नारियल पानी, सलाद दलिया आदि लेने चाहिएं। आपको डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। आपका वजन और खाने के आधार पर डॉक्टर आपको कितना पानी पीना चाहिए इसकी सलाह देंगे।
सवाल- डिलीवरी के बाद कैसे रहना चाहिए? , प्रसव के बाद हेल्थ लाइफ स्टाइल कैसे बनाये ?
जवाब – प्रसव के बाद कुछ दिन आपको आराम करना चाहिए। ये डिलीवरी कैसे हुई है इस बात पे निर्भर करता है। अगर आपकी डिलीवरी सामान्य तरह से हुई है तो आपको एक दो दिन बाद और जिसकी ऑपरेशन से हुई है उसे डॉक्टर से परामर्श के बाद ही थोड़ी एक्सरसाइज शुरू करनी चाहिए। हलकी एक्सरसाइज से मांसपेशियां अपनी पुरानी अवस्था में आ जाती हैं। प्रसव के बाद लंबे समय तक आराम करना सेहत के लिए ठीक नहीं होता है।
सवाल- नॉर्मल डिलिवरी के बाद दर्द और संकुचन क्यों होता है ?
जवाब – प्रसव के बाद संकुचन और क्रैम्प्स महसूस करना बेहद सामान्य सी बात है। इन संकुचनों के माध्यम से शरीर रक्त वाहिकाओं को संकुचित करने की कोशिश करता है ताकि ब्लीडिंग को कम किया जा सके। खासकर ब्रेस्टफीडिंग के दौरान इस तरह का संकुचन महसूस होना या आफ्टरपेन होना सामान्य सी बात है क्योंकि ब्रेस्टफीडिंग के दौरान शरीर से ऑक्सिटोसिन रिलीज होता है और यह एक नैचरल प्रक्रिया है। लेकिन अगर दर्द बहुत ज्यादा हो रहा हो और आप उसे बर्दाश्त न कर पा रही हों तो आप अपने डॉक्टर के किसी दर्द निवारक गोली के बारे में पूछ सकती हैं।
सवाल- प्रसव के बाद क्या खाने के लिए? , प्रसव के बाद क्या क्या खाना चाहिए ?
जवाब – प्रसव के बाद माँ की केयर बहुत जरूरी है क्यों की अगर माँ सवस्थ है तो बच्चा भी सवस्थ रहेग। हमने जो आहार आपको बताये है आप वो फॉलो कीजिये , और आप डॉक्टर से जरूर सलाह ले।
सवाल- डिलीवरी के बाद की कमजोरी कैसे दूर करें?
जवाब – हमने जो डाइट इस लेख मैं दी है वो आप ले क्यों की आपको संतुलित भोजन करने की जरूरत है जिसमें अनाज, कार्बोहाइड्रेट्स, फल और सब्जियां, डेयरी उत्पाद और प्रोटीन शामिल हो। अपनी डाइट में फाइबर से भरपूर चीजों को भी शामिल करें ताकि आपको प्रसव के बाद कब्ज जैसी दिक्कतें न हों और हाँ अपने शरीर को पानी की कमी न होने दे। अगर आपके जयादा कमजोरी है तो हो सकता है आपके शरीर में विटामिन और मिनरल्स की कमी होगी आप डॉक्टर की सलाह पे सप्लिमेंट्स का सेवन कर सकती हैं।
सवाल- डिलीवरी के बाद पानी कैसे पीना चाहिए? , डिलीवरी के बाद पानी पीने से क्या होता है?
जवाब –प्रसव के बाद आपको पानी अच्छी मात्रा मे पीना चाहिए। पानी नहीं पीने से डिहाइड्रेशन व कब्ज की समस्याएं हो सकती हैं। शरीर को हाइड्रेट रखने के लिए तरल पदार्थ, जैसे-सूप, जूस, नारियल पानी, सलाद दलिया आदि लेने चाहिएं। अच्छी डाइट और पानी की सही मात्रा आपको कमजोर नहीं होने देगी ।
सवाल- डिलीवरी के बाद ब्लीडिंग कब तक होती है ?
जवाब – डिलीवरी के बाद बच्चेदानी पूर्व की अवस्था में आती है जिससे करीब 40 दिन तक ब्लीडिंग होना एक स्वभाविक प्रक्रिया है।अधिक ब्लीडिंग हो तो उसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे प्रेसेंटा के टुकड़े रह जाना, इंफेक्शन, बच्चेदानी में पूर्व से कोई गांठ होना प्रमुख है। अगर ब्लीडिंग जयादा हो तो तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए।
सवाल- सामान्य प्रसव के बाद टांके कितने दिन बाद सही होते है ?
जवाब – सामान्य प्रसव के टांकों का ठीक होने का समय आमतौर पर कम होता है, अगर अच्छी देखभाल की जाए जयादा जल्दी सही होते है। सामान्य भगछेदन में एक छोटा चीरा लगाया जाता है, जिस कारण प्रसव के 2-3 सप्ताह बाद घाव भरता है। लेकिन यह प्रक्रिया एक महिला से दूसरी महिला में अलग – अलग हो सकती है। और , चीरा जितना बड़ा होगा, सही होने का समय उतना ही अधिक हो सकता है। एक सप्ताह के बाद दर्द कम हो जाता है, लेकिन एक या उससे अधिक महीनों तक असुविधा रहती है। अगर चीरा अधिक गंभीर है , जिसमें गहरे टांके लगते हैं उन्हें ठीक होने में अधिक समय लगता है। ऐसे टांकों को पूरी तरह से ठीक होने में 6 से 8 सप्ताह लग सकते हैं। इसमें लगभग एक महीने तक दर्द होता है। जब टांके ठीक होना शुरू होते है, उनमें अक्सर खुजली होती है। टांके ठीक हो रहें या नहीं यह जानने के लिए लगभग छठे सप्ताह में डॉक्टर से जांच करवाना जरूरी है।
सवाल- नॉर्मल डिलिवरी के बाद यूरिन पर कंट्रोल नहीं होता क्या करू ?
जवाब – अगर आपकी नार्मल डिलीवरी हुई है तो अक्सर नॉर्मल डिलिवरी के बाद ऐसा होता है कि यूरिन या ब्लैडर पर आपका नियंत्रण नहीं रहता और यूरिन निकल जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि नॉर्मल डिलिवरी के दौरान पेड़ू (पेल्विक फ्लोर) के स्ट्रेच होने या उसमें चोट लगने का खतरा अधिक होता है। यही पेल्विक फ्लोर गर्भाशय, ब्लैडर, रेक्टम और आंत जैसे अंगों को सपोर्ट करता है। कुछ ही हफ्तों के अंदर यह समस्या अपने आप ठीक भी हो जाती है।
सवाल- ऑपरेशन के बाद क्या करना चाहिए?
जवाब – अगर आपकी डिलीवरी सिजेरियन विधि से हुई है तो डिलीवरी के बाद घावों और ड्रैसिंग का खास ख्याल जरूरी है। टांकों और घाव के ताजा होने की वजह से इंफैक्शन हो सकता है। इससे बचने के लिए कुछ दिन स्नान करने से परहेज करें। पहनने के लिए सूती कपड़ों का प्रयोग करें। कोशिश करे की घाव और टांकों पर पानी नहीं लगे अगर ऐसा होता है तो सूती कपड़ों से हल्के हाथों से पोंछ दें। ड्रेसिंग समय पर जरूर करें। ऑपरेशन के बाद तुंरत चलना न शुरू करें। 5-7 हफ्ते तक पेडू पर खिंचाव घातक साबित हो सकता है। कुछ दिनों के लिए धीरे-धीरे चलना शुरू करें। इसके अलावा बच्चे को स्तनपान कराते रहने से गर्भाशय को सही स्थिति में आने में सहायता मिलती है।
सवाल- ऑपरेशन के बाद पीरियड कब आता है? ,
जवाब – पीरियड्स साइकल के दोबारा शुरू होने के पीछे कई कारण जिम्मेदार होते हैं। जैसे- आप अपने शिशु को ब्रेस्टफीडिंग करवाती हैं या नहीं। अधिकांश मामलों में प्रसव के बाद 1 महीने से लेकर 6 महीने के बीच कभी भी दोबारा से पहला पीरियड्स शुरू हो सकता है। ऐसा भी हो सकता है कि जब तक आप अपने बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग करवाती रहें तब तक आपका मेन्स्ट्रुअल साइकल फिर से शुरू ना हो।बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग करवाने का सीधा संबंध प्रेग्नेंसी के बाद दोबारा पीरियड्स शुरू होने से होता है। ये इसलिए क्योंकि महिलाओं के शरीर में ब्रेस्ट मिल्क के उत्पादन के लिए जिम्मेदार हॉर्मोन प्रोलैक्टिन, ऑव्यूलेशन की प्रक्रिया को रोक देता है और इसलिए पीरियड्स फिर से शुरू नहीं होते। यही वजह है कि जो महिलाएं बच्चे को अपना दूध नहीं पिलातीं उन्हें जल्दी पीरियड्स आ जाते है जैसे 4 से 8 हफ्तों के अंदर दोबारा पीरियड्स आ जाता है , पर जो महिलाएं बच्चे को नियमित रूप से ब्रेस्टफीडिंग करवाती हैं उनके पीरियड्स दोबारा शुरू होने में कई महीनों का वक्त लग सकता है। डिलिवरी के 6 महीने बाद तक दोबारा पीरियड्स शुरू न होना एक सामान्य सी बात है।
सवाल – सिजेरियन डिलीवरी के बाद वजन कैसे कम करें?
जवाब – सीजेरियन डिलीवरी के बाद आपको डाइट पर विशेष धयान देना होता है हेल्दी डाइट आपको वजन कम करने में बेहद मददगार होती है। हरी सब्जियों और फलों में मौजूद पोषक तत्व आपके शरीर में मौजूद एक्सट्रा फैट को बर्न करने में मदद करता है। आप फ्रूट्स और हरी सब्जिया खाये ये आपको हेल्दी भी रखती है और कमजोरी भी नहीं होती और साथ ही आपके मेटाबॉलिज्म को बूस्ट करेगा तो वजन कम करने में मदद करती है।
सवाल – सिजेरियन डिलीवरी के बाद पेट में दर्द क्यों होता है?, प्रसव के बाद पेट में दर्द क्यों होता है?
जवाब – प्रेग्नेंसी में आपका गर्भाशय बढ़ जाता है और डिलीवरी के बाद फिर से सिकुड़ता है। इस वजह से पेट में ऐंठन होने लगती है। इसे दूर करने के लिए गर्म पानी की बोतल से सिंकाई की जा सकती है और ध्यान रहे कि अगर सिजेरियन हुआ है तो टांकों से दूर सिंकाई करें। पानी बहुत जयादा गर्म ना हो। अगर दर्द कम नहीं हो रहा तो डॉक्टर को दिखाए।
सवाल – डिलीवरी के बाद कौनसी टॉनिक पीना चाहिए?
जवाब – मार्किट में बहुत ब्रांड्स की टॉनिक उपलब्ध है , आप अपने डॉक्टर से पूछ के टॉनिक ले सकती है। डॉक्टर आपकी हेल्थ से अनुसार ही टॉनिक का सुझाव देंगे की कौन सी टॉनिक आपके लिए सही है। शारीरीक कमजोरी, या डिलीवरी के बाद की कमजोरी को दूर करने के लिए विशेषज्ञ मरीज के इलाज के लिए टॉनिक डॉक्टर की सलाह पे लीजिये।
सवाल – सिजेरियन डिलीवरी के बाद क्या नहीं खाना चाहिए?
जवाब – सिजेरियन डिलीवरी हो या नार्मल आपको खाने पे विशेष धयान देना होता है। आप फ़ास्ट फ़ूड और चाइनीज़ फ़ूड तो बिलकुल भी ना ले। ये आपके स्वास्थ्य पर गलत असर डालेगा।
सवाल – बच्चे की डिलीवरी कैसे होती है? , पहली बार डिलीवरी कैसे होती है?
जवाब – नॉर्मल डिलीवरी अथवा प्रकृतिक प्रसव का समय आने पर बच्चा मां के पेट में नीचे की ओर आने की कोशिश करता है या पुश करने लगता है और धीरे-धीरे मां के यूट्रस का मुंह खुल जाता है और इस प्रक्रिया में डॉक्टर मदद करते हैं और बच्चे को प्राकृतिक रूप से योनिमार्ग से बाहर लाया जाता है. अगर आप की पहली डिलीवरी है तो यह प्रक्रिया समय ले सकती है.
सवाल – ऑपरेशन के कितने दिन बाद काम करना चाहिए? , ऑपरेशन से बच्चा होने पर क्या खाना चाहिए?
जवाब – अगर आपका ऑपरेशन से डिलीवरी हुई है तो आप को 6 महीने रेस्ट करना चाहिए। 4-6 हफ्ते तक पेडू पर खिंचाव घातक साबित हो सकता है। कुछ दिनों के लिए थोड़ा-थोड़ा और धीरे-धीरे करके चलना शुरू करें। आप धीरे – धीरे अपने शरीर को फिट कीजिये , आप भोजन अच्छा करे और भारी सामान ना उठाये।
सवाल – प्रसव का दर्द कैसे होता है? , डिलीवरी का दर्द कैसे होता है?
जवाब – प्रसव का दर्द कमर से होकर जांघों की तरफ जाता है। जैसे-जैसे डिलीवरी का समय नजदीक आता है, यह दर्द तेजी से बढ़ने लगता है। क्रैम्प्स के साथ कमर दर्द डिलीवरी पेन का स्पष्ट संकेत होता है। अगर आप तनाव से दूर रहेंगी, बच्चे को जन्म देने में आपको उतनी आसानी होगी। डिलीवरी के दौरान लंबी और गहरी सांस लें और छोड़ें। इससे आपको दर्द के बीच भी राहत महसूस होगी और बच्चे के जन्म में कम वक्त भी लगेगा।
सवाल – नार्मल डिलीवरी कितने वीक में होती है? , नार्मल डिलीवरी की अनुमानित वीक या दिन ?
जवाब – नार्मल डिलीवरी में बच्चा पैदा होने में अमूमन बच्चा 37 हफ़्ते (259 दिन) से लेकर 42 हफ़्ते (294 दिन) के बीच का वक्त लगता है. इस समय तक बच्चा पूरी तरह परिपक्व हो जाता है और माँ भी डिलीवरी के लिए तैयार होती है।
सवाल – पीरियड मिस होने से पहले प्रेगनेंसी टेस्ट कब करे?
जवाब – अगर आप प्रेगनेंट होने का सोच रही हों और साइकल मिस हो तो जल्द से जल्द टेस्ट करा लेना चाहिए या डॉक्टर को दिखाना चाहिए। हालांकि, बेहतर और कन्फर्म नतीजों के लिए 7 दिन का इन्तजार करने की सलाह दी जाती है, क्योंकि अगर आप प्रेग्नेंट है भी तो 7 दिन से पहले टेस्ट करा लेती है तो भी आपको रिजल्ट नेगेटिव ही मिलेंगे।
सवाल – डिलीवरी ऑपरेशन के बाद पेट कम कैसे करे?
जवाब – डिलीवरी या प्रसव के दो महीने बाद टांके ठीक दिखने पर आप बेल्ट या कपड़ा बांध सकते हैं। डिलीवरी के बाद पेट अंदर करने के लिए मसाज करवाएं। लेकिन सिजेरियन के कम से कम दो सप्ताह बाद शुरू करवाना चाहिए, उससे पहले नहीं। मसाज से मांसपेशियों को टोन करने में मदद होती है और पेट का साइज भी कम होता है।
सवाल – क्या बिना पीरियड के प्रेग्नेंट हो सकती है? , पीरियड रेगुलर ना हो तो भी प्रेग्नेंट होने में नहीं होगी दिक्कत .
जवाब – आज के डेट में हॉर्मोन बेस्ड पिल्स भी उपलभ्द है।हॉर्मोन बेस्ड पिल्स से पीरियड्स या तो बहुत कम हो जाते हैं या फिर पूरी तरह बंद. कई महिलाएं ये सोचेंगी कि पीरियड्स कम या बंद होने से उनकी गर्भ धारण करने की क्षमता पर असर पड़ सकता है और उनको प्रेग्नेंट होने में दिक्कत होगी. लेकिन इसका फर्टिलिटी पर भी कोई असर नहीं पड़ता है. इस पिल को इंप्लांट या इंजेक्ट करते हैं जिससे हार्मोन्स लेवल में बदलाव होने लगता है. जिसके चलते महिलाओं की ओवरी से एग रिलीज नहीं होते हैं.
सवाल – प्रसव के समय क्या करना चाहिए?
जवाब – अगर आप गर्भवती हैं और चाहती है की नॉर्मल डिलीवरी तो आपको प्रेग्नेंसी के दौरान हर तरह के तनाव और स्ट्रेस से दूर रहने की कोशिश करनी चाहिए। इसके लिए वे चाहें तो मेडिटेशन का सहारा ले सकती हैं, म्यूजिक सुन सकती हैं, किताबें पढ़ सकती हैं या फिर योग कर सकती हैं और हाँ अगर आप घर वालो के साथ जयादा वक्त बिताते हैं तो अपनों का साथ गर्भवती महिला को इमोशनली स्ट्रॉन्ग बनाने में मदद करता है।
सवाल – क्या ऑपरेशन के बाद नार्मल डिलीवरी हो सकती है?
जवाब – अगर आपकी पहली डिलिवरी सिजेरियन के जरिए हुई है तो आपकी दूसरी डिलवरी नॉर्मल हो सकती हैं। पर दो बार सिजेरियन कराने के बाद तीसरी बार नॉर्मल डिलिवरी नहीं की जा सकती। सिजेरियन डिलिवरी और इसके प्रसीजर को बेहतर बनाने के लिए हमारे देश ही नहीं बल्कि लगभग हर देश के डॉक्टर्स स्टडी कर रहे हैं।
सवाल – पीरियड के कितने दिनों बाद प्रेगनेंसी का पता चलता है?
जवाब – पीरियड्स मिस होने के एक हफ्ते बाद प्रेगनेंसी टेस्ट किया जाना चाहिए। इसके अलावा सुबह जब आप पहली बार यूरिन करने जाएं उसमें HCG की मात्रा सबसे ज्यादा होती है इसलिए इसी से प्रेग्नेंसी टेस्ट करना चाहिए।
सवाल – लेबर पेन कब होता है? , प्रसव का दर्द कब शुरू होता है ?
जवाब – संकुचन होने , जब लगातार और थोड़ी-थोड़ी देर पर गर्भ की मांसपेशियों में खिंचाव महसूस होता है तो यह संकुचन की स्थिति होती है। जब यह अधिक समय तक तीव्रता से होता है तो यह लेबर पेन का संकेत होता है। यदि आपको 10 मिनट में दो से तीन बार संकुचन (कॉन्ट्रेक्शन) होता है तो इसका मतलब है कि डिलीवरी का समय नजदीक आ गया है।
सवाल – सी-सेक्शन डिलीवरी क्या है? , सिजेरियन डिलिवरी क्या होती है ? , सिजेरियन डिलीवरी कैसे होती है?
जवाब –ऑपरेशन के द्वारा डिलीवरी कराना सी-सेक्शन डिलीवरी कहलाती है। सी-सेक्शन या फिर सिजेरियन डिलिवरी एक सर्जरी होती है जिसमें पेट का ऑपरेशन करके यूट्रस से बच्चे को बाहर निकाला जाता है। इन दिनों सी-सेक्शन के बहुत ज्यादा केसेज हो रहे हैं , डॉक्टर्स इस दौरान पूरी सावधानी बरतते हैं और यह पूरी तरह से सेफ भी है। सामान्य प्रसव में महिला को जयादातर मामलो में 24 घंटे मे अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है पर सिजेरियन डिलीवरी में कम से कम 5 दिन अस्पताल में रहना पड़ता है।
सवाल – डिलीवरी के लिए बच्चेदानी का मुंह कैसे खुलता है?
जवाब – प्रथम चरण जो होता है उसमे योनि की दीवारों का पतला होना, फैलना, खिंचना और धीरे-धीरे करके बच्चे के सिर का खिसकना होता है। योनि का फैला और खिंचा हुआ भाग धीरे-धीरे बच्चेदानी के मुंह को आगे आने में मदद करता है।
सवाल – बच्चेदानी का साइज या आकार कितना होना चाहिए?
जवाब – गर्भाशय का आकार एक तरह से उलटे नाशपाती की तरह होता है और यह 3 से 4 इंच लम्बा और 2.5 इंच चौड़ा होता है।
सवाल – ऑपरेशन से बच्चा क्यों होता है? , सीज़ेरियन ऑपरेशन की जरूरत क्यों पड़ती है ?
जवाब – बच्चा पैदा करने के लिए सीज़ेरियन ऑपरेशन की जरूरत तब पड़ती है जब मां के कूल्हों का आकार छोटा होता है और इसकी वजह से मां और बच्चे दोनों की ज़िंदगी को ख़तरा होता है यही वजह है की सीज़ेरियन ऑपरेशन की मदद से ऐसी मां के बच्चा गर्भाशय से निकला जाता है। और भी कई कारण हो सकते है जैसे अगर आपको जुड़वां बच्चे होने वाले हों ,अगर आपके बच्चे का सिर ऊपर की ओर हो , अगर समय से पहले डिलीवरी हो रही हो ,या फिर अगर गर्भनाल चपटी हो।
सवाल- बच्चेदानी का मुंह कौन से वीक में खुलता है?
जवाब – शिशु का जन्म नॉर्मल डिलीवरी से होने के लिए Cervix यानी बच्चेदानी का मुंह 10 सेंटीमीटर तक खुलना चाहिए तो ही नॉर्मल डिलीवरी होती है। इसलिए नॉर्मल डिलीवरी होने के लिए बच्चेदानी का मुंह 10 सेंटीमीटर तक खुला जरूरी होता है और प्रेगनेंसी में बच्चेदानी का मुंह 39 से 40 हफ्ते में हल्का हल्का खुलने लगता है। महिला में बच्चेदानी का मुंह 1 से 2 सेंटीमीटर खुलने के बाद पेन आना शुरू हो जाता है और दर्द होने लगता है और जब बच्चेदानी का मुंह तीन से चार सेंटीमीटर खुल जाता है तो दर्द तेज हो जाता है और दर्द 2 से 3 मिनट बाद आने लगता है और 1 मिनट तक चलता है। इसलिए इनमें से कोई भी लक्षण दिखने पर डॉक्टर से कंसल्ट करें। डॉक्टर आपका फिंगर टेस्ट करेंगे जिससे आपको साफ पता चल जाएगा कि सर्विस का मुंह कितना खुला है और डिलीवरी में कितना समय है ।
सवाल – पानी में डिलीवरी कैसे होती है? , कैसे होती है वॉटर बर्थ डिलीवरी ? , वॉटर बर्थ डिलीवरी क्या है ? , वॉटर बर्थ डिलीवरी के फायदे।
जवाब – वॉटर बर्थ डिलीवरी भी एक डिलीवरी करवाने का तरीका है. वॉटर बर्थ डिलीवरी नार्मल डिलीवरी की ही एक आधुनिक रूप है. इसमें डिलीवरी के लिए पानी का इस्तेमाल होता है. डॉक्टर्स के मुताबिक वॉटर बर्थ डिलीवरी में लेबर पेन कम होता है. इससे बच्चा पैदा करने में आसानी होती है. पानी के अंदर महिलाओं की बॉडी में एंड्रोफिन हार्मोन ज्यादा मात्रा में निकलता है, इससे दर्द कम होता है. डिलीवरी के समय गर्म पानी का इस्तेमाल करने से दर्द इतना कम हो जाता है कि महिला को पेन किलर देने की जरूरत 50 फीसदी कम हो जाती है.वॉटर बर्थ डिलीवरी में महिला का तनाव नॉर्मल डिलीवरी से 60 फीसदी कम रहता है. डॉक्टर्स का कहना है कि नॉर्मल डिलीवरी में बच्चा पैदा होने के दौरान बेहद खिंचाव होता है जिससे बहुत दर्द होता है. वॉटर बर्थ के दौरान ये दर्द कम हो जाता है, क्योंकि गर्म पानी के संपर्क में आने से टिश्यू बहुत सॉफ्ट हो जाते हैं. इस तकनीक में महिला को दर्द कम होता है.वॉटर बर्थ डिलीवरी के लिए एक गुनगुने पानी का बर्थिंग पूल बनाया जाता है. इसमें तकरीबन 500 लीटर तक पानी भरा जाता है. इस पूल का टेंपरेचर एक जैसा रखने के लिए इस पर कई वॉटर प्रूफ उपकरण लगाए जाते हैं. इसे प्रेगनेंट महिला के शरीर के अनुसार एडजस्ट किया जाता है. लेबर पेन शुरू होने के तीन से चार घंटे के बाद महिला को इसमें ले जाया जाता है.इस तकनीक में मां और बच्चे को इन्फेक्शन होने का खतरा 80 फीसदी कम हो जाता है. इसमें ऐसी तकनीक का इस्तेमाल होता है, जिससे न तो मां को और न ही बच्चे को इन्फेक्शन हो सकता है. पानी में रहने से महिलाओं में टेंशन और एंग्जायटी भी नहीं होती है. खास बात ये कि इस दौरान बीपी भी कंट्रोल में रहता है.
सवाल – डिलिवरी के कितने दिन बाद कब सम्बन्ध बना सकते हैं ?
जवाब – ये डिलीवरी पे निर्भर करता है। अगर डिलीवरी नार्मल हुई हो और टांके ना लगे हो तो डिलिवरी के बाद कम से कम एक महीने हील होने का मौका दें। अगर सिजेरियन डिलीवरी हुई है तो ये डिलीवरी की कंडीशन पर निर्भर करता है। आप ये डॉक्टर से सलाह ले ,नहीं तो जल्दबाज़ी हेल्थ इश्यूज बना सकती है और नयी मदर के हेल्थ पे बुरा असर पड़ सकता है।
नए मेहमान के आगमन की हलचल और उत्साह के साथ, आप सबसे महत्वपूर्ण दूसरे व्यक्ति को पूरी तरह से भूल ही गई होंगी – वह हैं आप खुद! शिशु के जन्म के बाद पर्याप्त आराम करना, पर्याप्त नींद लेना और पौष्टिक आहार लेना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि अपने शिशु की देखभाल करना। अगर आप दुरुस्त हैं, केवल तभी आप अपने बच्चे को भी दुरुस्त रख सकती हैं!
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