Nayaa Qanoon By Saadat Hasan Manto

दो क़ौमें हिंदी कहानी, Do Kaumein Hindi Kahani, सआदत हसन मंटो की कहानी दो कौमें, Saadat Hasan Manto Ki Kahani Do Qaumein, दो कौमें हिंदी स्टोरी, दो क़ौमें मंटो, Do Kaumein Hindi Story, Do Kaumein Saadat Hasan Manto Hindi Story, Do Qaumein By Manto, दो कौमें कहानी, Do Kaumein Kahani

दो क़ौमें हिंदी कहानी, Do Kaumein Hindi Kahani, सआदत हसन मंटो की कहानी दो कौमें, Saadat Hasan Manto Ki Kahani Do Qaumein, दो कौमें हिंदी स्टोरी, दो क़ौमें मंटो, Do Kaumein Hindi Story, Do Kaumein Saadat Hasan Manto Hindi Story, Do Qaumein By Manto, दो कौमें कहानी, Do Kaumein Kahani

दो क़ौमें हिंदी कहानी,  Saadat Hasan Manto Ki Kahani Do Qaumein
मुख़्तार ने शारदा को पहली मर्तबा झरनों में से देखा। वो ऊपर कोठे पर कटा हुआ पतंग लेने गया तो उसे झरनों में से एक झलक दिखाई दी। सामने वाले मकान की बालाई मंज़िल की खिड़की खुली थी। एक लड़की डोंगा हाथ में लिए नहा रही थी। मुख़्तार को बड़ा ता’ज्जुब हुआ कि ये लड़की कहाँ से आ गई, क्योंकि सामने वाले मकान में कोई लड़की नहीं थी, जो थीं, ब्याही जा चुकी थीं। सिर्फ़ रूप कौर थी, उसका पिलपिला ख़ाविंद कालू मल था, उसके तीन लड़के थे और बस। मुख़्तार ने पतंग उठाया और ठिटक के रह गया… लड़की बहुत ख़ूबसूरत थी। उसके नंगे बदन पर सुनहरे रोएँ थे। उनमें फंसी हुई पानी की नन्ही नन्ही बूंद्नियाँ चमक रही थीं। उसका रंग हल्का साँवला था, साँवला भी नहीं। ताँबे के रंग जैसा, पानी की नन्ही नन्ही बूंद्नियाँ ऐसी लगती थीं जैसे उस का बदन पिघल कर क़तरे क़तरे बन कर गिर रहा है।

मुख़्तार ने झरने के सुराखों के साथ अपनी आँखें जमा दीं और उस लड़की के जो डोंगा हाथ में लिये नहा रही थी, दिलचस्पी और ग़ौर से देखना शुरू कर दिया। उसकी उम्र ज़्यादा से ज़्यादा सोलह बरस की थी, गीले सीने पर उसकी छोटी छोटी गोल छातियां जिन पर पानी के क़तरे फिसल रहे थे, बड़ी दिलफ़रेब थीं। उसको देख कर मुख़्तार के दिल-ओ-दिमाग़ में सिफ़ली जज़्बात पैदा न हुए। एक जवान, ख़ूबसूरत, और बिल्कुल नंगी लड़की उसकी निगाहों के सामने थी। होना ये चाहिए था कि मुख़्तार के अंदर शहवानी हैजान बरपा हो जाता, मगर वो बड़े ठंडे इन्हेमाक से उसे देख रहा था, जैसे किसी मुसव्विर की तस्वीर देख रहा है।

लड़की के निचले होंट के इख़्ततामी कोने पर बड़ा सा तिल था… बेहद मतीन, बेहद संजीदा, जैसे वो अपने वजूद से बेख़बर है, लेकिन दूसरे उसके वजूद से आगाह हैं, सिर्फ़ इस हद तक कि उसे वहीं होना चाहिए था जहां कि वो था। बाँहों पर सुनहरे रोएँ पानी की बूंदों के साथ लिपटे हुए चमक रहे थे। उसके सर के बाल सुनहरे नहीं, भोसले थे, जिन्हों ने शायद सुनहरे होने से इन्कार कर दिया था। जिस्म सुडौल और गदराया हुआ था लेकिन उसको देखने से इश्तआ’ल पैदा नहीं होता था। मुख़्तार देर तक झरने के साथ आँखें जमाए रहा। लड़की ने बदन पर साबुन मला। मुख़्तार तक उसकी ख़ुश्बू पहुंची। सलोने, ताँबे जैसे रंग वाले बदन पर सफ़ेद सफ़ेद झाग बड़े सुहाने मालूम होते थे। फिर जब ये झाग पानी के बहाव से फ़िस्ले तो मुख़्तार ने महसूस किया जैसे उस लड़की ने अपना बुलबुलों का लिबास बड़े इत्मिनान से उतार कर एक तरफ़ रख दिया है।

ग़ुस्ल से फ़ारिग़ हो कर लड़की ने तौलिये से अपना बदन पोंछा। बड़े सुकून और इत्मिनान से आहिस्ता आहिस्ता कपड़े पहने। खिड़की के डंडे पर दोनों हाथ रखे और सामने देखा। एक दम उसकी आँखें शर्माहट की झीलों में ग़र्क़ हो गईं। उसने खिड़की बंद कर दी। मुख़्तार बेइख़्तयार हंस पड़ा। लड़की ने फ़ौरन खिड़की के पट खोले और बड़े ग़ुस्से में झरने की तरफ़ देखा। मुख़्तार ने कहा, “मैं क़सूरवार बिल्कुल नहीं… आप क्यों खिड़की खोल कर नहा रही थीं।” लड़की ने कुछ न कहा। ग़ैज़ आलूदा निगाहों से झरने को देखा और खिड़की बंद करली।

चौथे दिन रूप कौर आई। उसके साथ यही लड़की थी। मुख़्तार की माँ और बहन दोनों सिलाई और क्रोशिए के काम की माहिर थीं, गली की अक्सर लड़कियां उनसे ये काम सीखने के लिए आया करती थीं। रूप कौर भी उस लड़की को इसी ग़रज़ से लाई थी क्योंकि उसको क्रोशिए के काम का बहुत शौक़ था। मुख़्तार अपने कमरे से निकल कर सहन में आया तो उसने रूप कौर को परनाम किया। लड़की पर उसकी निगाह पड़ी तो वो सिमट सी गई। मुख़्तार मुस्कुरा कर वहां से चला गया।

लड़की रोज़ाना आने लगी। मुख़्तार को देखती तो सिमट जाती। आहिस्ता आहिस्ता उसका ये रद्द-ए-अ’मल दूर हुआ और उसके दिमाग़ से ये ख़याल किसी क़दर मह्व हुआ कि मुख़्तार ने उसे नहाते देखा था। मुख़्तार को मालूम हुआ कि उसका नाम शारदा है। रूप कौर के चचा की लड़की है, यतीम है। चिचो की मल्लियां में एक ग़रीब रिश्तेदार के साथ रहती थी। रूप कौर ने उसको अपने पास बुला लिया। एंट्रेंस पास है, बड़ी ज़हीन है, क्योंकि उसने क्रोशिए का मुश्किल से मुश्किल काम यूं चुटकियों में सीख लिया था।

दिन गुज़रते गए। इस दौरान में मुख़्तार ने महसूस किया कि वो शारदा की मोहब्बत में गिरफ़्तार हो गया है। ये सब कुछ धीरे धीरे हुआ। जब मुख़्तार ने उसको पहली बार झरने में से देखा था तो उस वक़्त उसके सामने एक नज़ारा था, बड़ा फ़रहतनाक नज़ारा। लेकिन अब शारदा आहिस्ता आहिस्ता उसके दिल में बैठ गई थी। मुख़्तार ने कई दफ़ा सोचा था कि ये मोहब्बत का मुआ’मला बिल्कुल ग़लत है, इसलिए कि शारदा हिंदू है। मुस्लमान कैसे एक हिंदू लड़की से मोहब्बत करने की जुरअत कर सकता है। मुख़्तार ने अपने आपको बहुत समझाया लेकिन वो अपने मोहब्बत के जज़्बे को मिटा न सका।

शारदा अब उससे बातें करने लगी थी मगर खुल के नहीं, उसके दिमाग़ में मुख़्तार को देखते ही ये एहसास बेदार हो जाता था कि वो नंगी नहा रही थी और मुख़्तार झरने में से उसे देख रहा था। एक रोज़ घर में कोई नहीं था। मुख़्तार की माँ और बहन दोनों किसी अज़ीज़ के चालीसवें पर गई हुई थीं। शारदा हस्ब-ए-मा’मूल अपना थैला उठाए सुबह दस बजे आई। मुख़्तार सहन में चारपाई पर लेटा अख़बार पढ़ रहा था। शारदा ने उससे पूछा, “बहन जी कहाँ हैं?”

मुख़्तार के हाथ काँपने लगे, “वो… वो कहीं बाहर गई है।”
शारदा ने पूछा, “माता जी?”
मुख़्तार उठ कर बैठ गया, “वो… वो भी उसके साथ ही गई हैं।”
“अच्छा!” ये कह कर शारदा ने किसी क़दर घबराई हुई निगाहों से मुख़्तार को देखा और नमस्ते करके चलने लगी। मुख़्तार ने उसको रोका, “ठहरो शारदा!”
शारदा को जैसे बिजली के करंट ने छू लिया, चौंक कर रुक गई, “जी?”
मुख़्तार चारपाई पर से उठा, “बैठ जाओ… वो लोग अभी आ जाऐंगे!”
“जी नहीं… मैं जाती हूँ।” ये कह कर भी शारदा खड़ी रही।

मुख़्तार ने बड़ी जुरअत से काम लिया, आगे बढ़ा, उसकी एक कलाई पकड़ी और खींच कर उसके होंटों को चूम लिया। ये सब कुछ इतनी जल्दी हुआ कि मुख़्तार और शारदा दोनों को एक लहज़े के लिए बिल्कुल पता न चला कि क्या हुआ है… इसके बाद दोनों लरज़ने लगे। मुख़्तार ने सिर्फ़ इतना कहा, “मुझे माफ़ कर देना!”

शारदा ख़ामोश खड़ी रही। उसका ताँबे जैसा रंग सुर्ख़ी माइल हो गया। होंटों में ख़फ़ीफ़ सी कपकपाहट थी, जैसे वो छेड़े जाने पर शिकायत कर रहे हैं। मुख़्तार अपनी हरकत और उसके नताइज भूल गया। उसने एक बार फिर शारदा को अपनी तरफ़ खींचा और सीने के साथ भींच लिया… शारदा ने मुज़ाहमत न की। वो सिर्फ़ मुजस्समा हैरत बनी हुई थी। वो एक सवाल बन गई थी… एक ऐसा सवाल जो अपने आप से किया गया हो। वो शायद ख़ुद से पूछी रही थी, ये क्या हुआ है, ये क्या हो रहा है? क्या उसे होना चाहिए था… क्या ऐसा किसी और से भी हुआ है?

मुख़्तार ने उसे चारपाई पर बिठा लिया और पूछा, “तुम बोलती क्यों नहीं हो शादरा?”
शादरा के दुपट्टे के पीछे उसका सीना धड़क रहा था। उसने कोई जवाब न दिया। मुख़्तार को उसका ये सुकूत बहुत परेशानकुन महसूस हुआ, “बोलो शारदा, अगर तुम्हें मेरी ये हरकत बुरी लगी है तो कह दो… ख़ुदा की क़सम मैं माफ़ी मांग लूंगा… तुम्हारी तरफ़ निगाह उठा कर नहीं देखूंगा। मैंने कभी ऐसी जुरअत न की होती, लेकिन जाने मुझे क्या हो गया है… दरअसल… दरअसल मुझे तुमसे मोहब्बत है।”

शारदा के होंट हिले जैसे उन्होंने लफ़्ज़ ‘मोहब्बत’ अदा करने की कोशिश की है। मुख़्तार ने बड़ी गर्मजोशी से कहना शुरू किया, “मुझे मालूम नहीं, तुम मोहब्बत का मतलब समझती हो कि नहीं… मैं ख़ुद इसके मुतअ’ल्लिक़ ज़्यादा वाक़फ़ियत नहीं रखता, सिर्फ़ इतना जानता हूँ कि तुम्हें चाहता हूँ, तुम्हारी सारी हस्ती को अपनी इस मुट्ठी में ले लेना चाहता हूँ। अगर तुम चाहो तो मैं अपनी सारी ज़िंदगी तुम्हारे हवाले कर दूँगा, शारदा तुम बोलती क्यों नहीं हो?”

शारदा की आँखें ख़्वाबगूं हो गईं। मुख़्तार ने फिर बोलना शुरू कर दिया, “मैंने उस रोज़ झरने में से तुम्हें देखा… नहीं। तुम मुझे ख़ुद दिखाई दीं… वो एक ऐसा नज़ारा था जो मैं ता क़ियामत नहीं भूल सकता… तुम शरमाती क्यों हो… मेरी निगाहों ने तुम्हारी ख़ूबसूरती चुराई तो नहीं… मेरी आँखों में सिर्फ़ उस नज़ारे की तस्वीर है… तुम उसे ज़िंदा कर दो तो मैं तुम्हारे पांव चूम लूंगा।” ये कह कर मुख़्तार ने शादरा का एक पांव चूम लिया।

वो काँप गई। चारपाई पर से एक दम उठ कर उसने लर्ज़ां आवाज़ में कहा, “ये आप क्या कर रहे हैं?… हमारे धर्म में…”
मुख़्तार ख़ुशी से उछल पड़ा, “धर्म-वर्म को छोड़ो… प्रेम के धर्म में सब ठीक है।” ये कह कर उसने शारदा को चूमना चाहा। मगर वो तड़प कर एक तरफ़ हटी और बड़े शर्मीले अंदाज़ में मुस्कुराती भाग गई। मुख़्तार ने चाहा कि वो उड़ कर ममटी पर पहुंच जाये। वहां से नीचे सहन में कूदे और नाचना शुरू करदे। मुख़्तार की वालिदा और बहन आ गईं तो शारदा आई। मुख़्तार को देख कर उसने फ़ौरन निगाहें नीची कर लीं। मुख़्तार वहां से खिसक गया कि राज़ इफ़शा न हो। दूसरे रोज़ ऊपर कोठे पर चढ़ा। झरने में से झांका तो देखा कि शारदा खिड़की के पास खड़ी बालों में कंघी कर रही है। मुख़्तार ने उसको आवाज़ दी, “शारदा।” शादरा चौंकी। कंघी उसके हाथ से छूट कर नीचे गली में जा गिरी। मुख़्तार हंसा। शारदा के होंटों पर भी मुस्कुराहट पैदा हुई। मुख़्तार ने उससे कहा, “कितनी डरपोक हो तुम… हौले से आवाज़ दी और तुम्हारी कंघी छूट गई।”

शारद ने कहा, “अब ला के दीजिए नई कंघी मुझे… ये तो मोरी में जागरी है।”
मुख़्तार ने जवाब दिया, “अभी लाऊं।”
शारद ने फ़ौरन कहा, “नहीं नहीं… मैंने तो मज़ाक़ किया है।”
मैंने भी मज़ाक़ किया था, “तुम्हें छोड़कर मैं कंघी लेने जाता? कभी नहीं!”
शारद मुस्कुराई, “मैं बाल कैसे बनाऊं?”
मुख़्तार ने झरने के सुराखों में अपनी उंगलियां डालीं, “ये मेरी उंगलियां ले लो!”
शारद हंसी… मुख़्तार का जी चाहा कि वो अपनी सारी उम्र उस हंसी की छाओं में गुज़ार दे। “शारदा, ख़ुदा की क़सम, तुम हंसी हो, मेरा रोवां रोवां शादमां होगया है… तुम क्यों इतनी प्यारी हो? क्या दुनिया में कोई और लड़की भी तुम जितनी प्यारी होगी… ये कमबख़्त झरने… ये मिट्टी के ज़लील पर्दे। जी चाहता है इनको तोड़ फोड़ दूं।”

शारदा फिर हंसी। मुख़्तार ने कहा, “ये हंसी कोई और न देखे, कोई और न सुने। शारदा सिर्फ़ मेरे सामने हंसना… और अगर कभी हंसना हो तो मुझे बुला लिया करो। मैं इसके इर्दगिर्द अपने होंटों की दीवारें खड़ी कर दूँगा।
शारद ने कहा, “आप बातें बड़ी अच्छी करते हैं।”
“तो मुझे इनाम दो… मोहब्बत की एक हल्की सी निगाह उन झरनों से मेरी तरफ़ फेंक दो… मैं उसे अपनी पलकों से उठा कर अपनी आँखों में छुपा लूंगा।” मुख़्तार ने शारदा के अ’क़ब में दूर एक साया सा देखा और फ़ौरन झरने से हट गया। थोड़ी देर बाद वापस आया तो खिड़की ख़ाली था। शारद जा चुकी थी।
आहिस्ता आहिस्ता मुख़्तार और शारद दोनों शीर-ओ-शकर हो गए। तन्हाई का मौक़ा मिलता तो देर तक प्यार मोहब्बत की बातें करते रहते… एक दिन रूप कौर और उसका ख़ाविंद लाला कालू मल कहीं बाहर गए हुए थे। मुख़्तार गली में से गुज़र रहा था कि उसको एक कंकर लगा। उसने ऊपर देखा, शारदा थी। उसने हाथ के इशारे से उसे बुलाया।

मुख़्तार उसके पास पहुंच गया। पूरा तख़लिया था, ख़ूब घुल मिल के बातें हुईं।
मुख़्तार ने उससे कहा, “उस रोज़ मुझसे गुस्ताख़ी हुई थी और मैंने माफ़ी मांग ली थी। आज फिर गुस्ताख़ी करने का इरादा रखता हूँ, लेकिन माफ़ी नहीं मांगूंगा।” और अपने होंट शारदा के कपकपाते हुए होंटों पर रख दिए।
शारद ने शर्मीली शरारत से कहा, “अब माफ़ी माँगिए।”
“जी नहीं… अब ये होंट आपके नहीं… मेरे हैं, क्या मैं झूट कहता हूँ?”
शारदा ने निगाहें नीची कर के कहा, “ये होंट क्या,मैं ही आपकी हूँ।”

मुख़्तार एक दम संजीदा होगया, “देखो शारदा। हम इस वक़्त एक आतिश फ़िशां पहाड़ पर खड़े हैं तुम सोच लो, समझ लो… मैं तुम्हें यक़ीन दिलाता हूँ। ख़ुदा की क़सम खा कर कहता हूँ कि तुम्हारे सिवा मेरी ज़िंदगी में और कोई औरत नहीं आएगी… मैं क़सम खाता हूँ कि ज़िंदगी भर मैं तुम्हारा रहूँगा। मेरी मोहब्बत साबित क़दम रहेगी… क्या तुम भी इसका अह्द करती हो?”

शारद ने अपनी निगाहें उठा कर मुख़्तार की तरफ़ देखा, “मेरा प्रेम सच्चा है।”
मुख़्तार ने उसको सीने के साथ भींच लिया और कहा, “ज़िंदा रहो… सिर्फ़ मेरे लिए, मेरी मोहब्बत के लिए वक़्फ़ रहो…ख़ुदा की क़सम शारदा। अगर तुम्हारा इलतिफ़ात मुझे न मिलता तो मैं यक़ीनन ख़ुदकुशी कर लेता… तुम मेरी आग़ोश में हो। मुझे ऐसा महसूस होता है कि सारी दुनिया की ख़ुशियों से मेरी झोली भरी हुई है। मैं बहुत ख़ुशनसीब हूँ।”

शारदा ने अपना सर मुख़्तार के कंधे पर गिरा दिया, “आप बातें करना जानते हैं… मुझसे अपने दिल की बात नहीं कही जाती।”
देर तक दोनों एक दूसरे में मुदग़म रहे। जब मुख़्तार वहां से गया तो उसकी रूह एक नई और सुहानी लज़्ज़त से मा’मूर थी। सारी रात वो सोचता रहा। दूसरे दिन कलकत्ते चला गया, जहां उसका बाप कारोबार करता था। आठ दिन के बाद वापस आया। शारदा हस्ब-ए-मा’मूल क्रोशिए का काम सीखने मुक़र्ररा वक़्त पर आई। उसकी निगाहों ने इससे कई बातें कीं, कहाँ ग़ायब रहे इतने दिन? मुझसे कुछ न कहा और कलकत्ते चले गए?… मोहब्बत के बड़े दा’वे करते थे?… मैं नहीं बोलूंगी तुम से… मेरी तरफ़ क्या देखते हो, क्या कहना चाहते हो मुझसे?

मुख़्तार बहुत कुछ कहना चाहता था मगर तन्हाई नहीं थी। वो काफ़ी तवील गुफ़्तगु उससे करना चाहता था। दो दिन गुज़र गए, मौक़ा न मिला। निगाहों ही निगाहों में गूंगी बातें होती रहीं। आख़िर तीसरे रोज़ शारदा ने उसे बुलाया। मुख़्तार बहुत ख़ुश हुआ। रूप कौर और उसका ख़ाविंद लाला कालू मल घर में नहीं थे।

शारदा सीढ़ियों में मिली। मुख़्तार ने वहीं उसको अपने सीने के साथ लगाना चाहा, वो तड़प कर ऊपर चली गई। नाराज़ थी। मुख़्तार ने उससे कहा, “देख मेरी जान, मेरे पास बैठो, मैं तुमसे बहुत ज़रूरी बातें करना चाहता हूँ। ऐसी बातें जिनका हमारी ज़िंदगी से बड़ा गहरा तअ’ल्लुक़ है।”

शारदा उसके पास पलंग पर बैठ गई, “तुम बात टालो नहीं… बताओ मुझे बताए बग़ैर कलकत्ते क्यों गए… सच मैं बहुत रोई।”
मुख़्तार ने बढ़ कर उसकी आँखें चूमीं, “उस रोज़ मैं जब से गया तो सारी रात सोचता रहा… जो कुछ उस रोज़ हुआ उसके बाद ये सोच बिचार लाज़िमी थी। हमारी हैसियत मियां-बीवी की थी। मैंने ग़लती की। तुमने कुछ न सोचा। हमने एक ही जस्त में कई मंज़िलें तय कर लीं और ये ग़ौर ही न किया कि हमें जाना किस तरफ़ है… समझ रही हो ना शारदा?”
शारदा ने आँखें झुका लीं, “जी हाँ।”
“मैं कलकत्ते इसलिए गया था कि अब्बा जी से मशवरा करूं। तुम्हें सुन कर ख़ुशी होगी मैंने उनको राज़ी कर लिया है। मुख़्तार की आँखें ख़ुशी से चमक उठीं। शारदा के दोनों हाथ अपने हाथों में लेकर उसने कहा, “मेरे दिल का सारा बोझ हल्का हो गया है… मैं अब तुम से शादी कर सकता हूँ।” हिंदी कहानी: दो क़ौमें – सआदत हसन मंटो (Do Qaumein By Saadat Hasan Manto Hindi Story)

शारदा ने हौले से कहा, “शादी।”
“हाँ शादी।”
शारद ने पूछा, “कैसे हो सकती है हमारी शादी?”
मुख़्तार मुस्कुराया, “इसमें मुश्किल ही क्या है… तुम मुसलमान हो जाना!”
शारद एक दम चौंकी, “मुसलमान?”
मुख़्तार ने बड़े इत्मिनान से कहा, “हाँ हाँ… इसके इलावा और हो ही क्या सकता है… मुझे मालूम है कि तुम्हारे घर वाले बड़ा हंगामा मचाएंगे लेकिन मैंने इसका इंतिज़ाम कर लिया है। हम दोनों यहां से ग़ायब हो जाएंगे, सीधे कलकत्ते चलेंगे। बाक़ी काम अब्बा जी के सुपुर्द है। जिस रोज़ वहां पहुंचेंगे उसी रोज़ मौलवी बुला कर तुम्हें मुसलमान बना देंगे। शादी भी उसी वक़्त हो जाएगी।”

शारदा के होंट जैसे किसी ने सी दिए। मुख़्तार ने उसकी तरफ़ देखा, “ख़ामोश क्यों हो गईं?”
शारदा न बोली। मुख़्तार को बड़ी उलझन हुई, “बताओ शारदा क्या बात है?”
शारदा ने बमुश्किल इतना कहा, “तुम हिंदू हो जाओ।”
“मैं हिंदू हो जाऊं?” मुख़्तार के लहजे में हैरत थी। वो हंसा, “मैं हिंदू कैसे हो सकता हूँ?”
“मैं कैसे मुसलमान हो सकती हूँ।” शारदा की आवाज़ मद्धम थी। “तुम क्यों मुसलमान नहीं हो सकतीं… मेरा मतलब है कि…तुम मुझसे मोहब्बत करती हो। इसके इलावा इस्लाम सबसे अच्छा मज़हब है… हिंदू मज़हब भी कोई मज़हब है। गाय का पेशाब पीते हैं। बुत पूजते हैं… मेरा मतलब है कि ठीक है अपनी जगह ये मज़हब भी। मगर इस्लाम का मुक़ाबला नहीं कर सकता।” मुख़्तार के ख़्यालात परेशान थे, “तुम मुसलमान हो जाओगी तो बस… मेरा मतलब है कि सब ठीक हो जाएगा।”

शारदा के चेहरे का ताँबे जैसा ज़र्द रंग ज़र्द पड़ गया, “आप हिंदू नहीं होंगे?”
मुख़्तार हंसा, “पागल हो तुम?”
शारदा का रंग और ज़र्द पड़ गया, “आप जाईए… वो लोग आने वाले हैं।” ये कह कर वो पलंग पर से उठी।
मुख़्तार मुतहय्यर हो गया, “लेकिन शारदा…”
“नहीं नहीं, जाईए आप… जल्दी जाईए… वो आजाऐंगे।” शारदा के लहजे में बेए’तिनाई की सर्दी थी।
मुख़्तार ने अपने ख़ुश्क हलक़ से बमुशकिल ये अलफ़ाज़ निकाले, “हम दोनों एक दूसरे से मोहब्बत करते हैं। शारदा तुम नाराज़ क्यों होगईं?”
“जाओ… चले जाओ… हमारा हिंदू मज़हब बहुत बुरा है… तुम मुसलमान बहुत अच्छे हो।” शारदा के लहजे में नफ़रत थी। वो दूसरे कमरे में चली गई और दरवाज़ा बंद कर दिया। मुख़्तार अपना इस्लाम सीने में दबाये वहां से चला गया।

ये भी पढ़े –

असली जिन हिंदी कहानी, Asli Jin Hindi Kahani, सआदत हसन मंटो की कहानी असली जिन, Hindi Kahani Asli Jin, Saadat Hasan Manto Ki Kahani Asli Jin

काली सलवार, काली सलवार सआदत हसन मंटो, हिंदी कहानी काली सलवार, काली शलवार कहानी सआदत हसन मंटो, Kali Salwar Kahani, Kali Salwar Manto Hindi

हिंदी कहानी दादी अम्मा, कृष्णा सोबती की कहानी दादी अम्मा, दादी अम्मा स्टोरी इन हिंदी, दादी अम्मा कहानी, Dadi Amma Hindi Kahani, Dadi Amma by Krishna Sobti

बड़े घर की बेटी हिंदी स्टोरी, Bade Ghar Ki Beti, हिंदी कहानी बड़े घर की बेटी, बड़े घर की बेटी बाई प्रेमचंद, Bade Ghar Ki Beti Premchand, बड़े घर की बेटी कहानी

दूध की क़ीमत हिंदी कहानी, Doodh Ki Qeemat Hindi Kahani, मुंशी प्रेमचंद की कहानी दूध की क़ीमत, Munshi Premchand Kahani Doodh Ki Qeemat

Court Marriage Rules In Hindi, कोर्ट मैरिज के नियम, कोर्ट मैरिज करने की उम्र , Court Marriage Rules In Hindi, Court Marriage Process In Hindi, लव मैरिज

मासिक धर्म में व्रत करना चाहिए या नहीं, क्या पीरियड में व्रत रख सकते हैं, सोलह सोमवार व्रत ड्यूरिंग पीरियड्स, पीरियड के कितने दिन बाद पूजा करें

मोटापा कम करने के लिए डाइट चार्ट, वजन घटाने के लिए डाइट चार्ट, बाबा रामदेव वेट लॉस डाइट चार्ट इन हिंदी, वेट लॉस डाइट चार्ट

ज्यादा नींद आने के कारण और उपाय, Jyada Nind Kyon Aati Hai, Jyada Neend Aane Ka Karan, ज्यादा नींद आने की वजह, Jyada Neend Aane Ka Reason

बच्चों के नये नाम की लिस्ट , बेबी नाम लिस्ट, बच्चों के नाम की लिस्ट, हिंदी नाम लिस्ट, बच्चों के प्रभावशाली नाम , हिन्दू बेबी नाम, हिन्दू नाम लिस्ट, नई लेटेस्ट नाम

पूस की रात हिंदी कहानी, Poos Ki Raat Hindi Kahani, मुंशी प्रेमचंद की कहानी पूस की रात, Munshi Premchand Ki Kahani Poos Ki Raat, पूस की रात हिंदी स्टोरी