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कालाष्टमी, शीतलाष्टमी या भैरवाष्टमी, कालाष्टमी पूजा विधि, कालाष्टमी व्रत फल, कालाष्टमी व्रत का महत्व, मंत्र, कालाष्टमी व्रत कथा, कालाष्टमी व्रत में क्या खाएं, Kalashtami Puja Vidhi In Hindi, Kalashtami Vrat Katha In Hindi, Kalashtami Vrat Mein Kya Khana Chahiye

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कालाष्टमी व्रत के बारे में, शीतलाष्टमी या भैरवाष्टमी
कालाष्टमी व्रत हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. इस दिन शिव के अवतार काल भैरव की विधिवत पूजा की जाती है. मान्यता है कि भगवान शिव इसी दिन भैरव के रूप में प्रकट हुए थे. वैसे तो प्रमुख कालाष्टमी का व्रत ‘कालभैरव जयंती’ के दिन किया जाता है, लेकिन कालभैरव के भक्त हर महीने ही कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर भैरव जी की पूजा-अराधना करते हैं और व्रत रखते हैं. कालाष्टमी को शीतलाष्टमी, या भैरवाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है. कालाष्टमी व्रत बहुत ही फलदायी माना जाता है. इस दिन पूरे विधि-विधान से काल भैरव की पूजा करने से भूत, पिशाच दूर रहते हैं. और व्यक्ति के सभी कष्ट दूर होते हैं. रुके हुए कार्य बनते जाते हैं. व्यक्ति निरोग रहता है और उसे हर कार्य में सफलता मिलती है. आइए जानते हैं कालाष्टमी व्रत पूजा विधि, मंत्र, व्रत का फल, महत्व, व्रत कथा-

कालाष्टमी व्रत पूजा विधि
1- नारद पुराण के अनुसार, कालाष्टमी के दिन कालभैरव की पूजा की जाती है. साथ ही मां दुर्गा की भी पूजा की जाती है.
2- इस दिन भैरव चालीसा का पाठ अवश्य करना चाहिए. इसके साथ ही कालभैरव की आरती भी करनी चाहिए.
3- इसके अलावा दुर्गा चालीसा, शिव चालीसा का पाठ भी अवश्य करना चाहिए.
4- इस दिन जो व्यक्ति व्रत करता है उसे फलाहार करना चाहिए.
5- इस दिन कुत्ते को भोजन कराना बेहद शुभ माना जाता है. क्योंकि कालभैरव की सवारी कुत्ता है. मान्यता है कि जो इस दिन कुत्ते को भोजन कराता है उसे विशेष फल की प्राप्ति होती है.
6- कालाष्टमी की रात को उड़द के आटे की मीठी रोटी बनाएं उस रोटी पर तेल लगाएं और किसी कुत्ते को खिला दें.
कालाष्टमी व्रत में क्या खाएं
कालाष्टमी के दिन नमक नहीं खाएं, अगर आपको कमजोरी होती हो तो सेंधा नमक खाने में इस्तेमाल कर सकते हैं. कालाष्टमी के दिन व्रत रहकर फलाहार करें.

कालाष्टमी व्रत- मंत्र
1- ऊँ अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्.
भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि..
2- माता महाकाली मंत्र
3- श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट स्वाहा:”कता बढ़ती है

कालाष्टमी व्रत फल
इस दिन व्रत रखकर पूरे विधि-विधान से काल भैरव की पूजा करने से व्यक्ति के सारे कष्ट मिट जाते हैं. काल भैरव की पूजा करने से भूत, पिशाच दूर रहते हैं. काल उससे दूर हो जाता है. कालाष्टमी व्रत करने वाला व्यक्ति रोगों से दूर रहता है और उसे हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है.
कालाष्टमी व्रत का महत्व
तंत्र साधना में भैरव के आठ स्वरूप की उपासना की बात कही गई है. ये रूप असितांग भैरव, रुद्र भैरव, चंद्र भैरव, क्रोध भैरव, उन्मत्त भैरव, कपाली भैरव, भीषण भैरव संहार भैरव. कालिका पुराण में भी भैरव को शिवजी का गण बताया गया है जिसका वाहन कुत्ता है. इस दिन व्रत रखने वाले साधक को पूरा दिन ‘ॐ कालभैरवाय नम:’ का जाप करना चाहिए. कालभैरव का व्रत रखने से उपासक की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. भैरव साधना करने वाले व्यक्ति को समस्त दुखों से छुटकारा मिल जाता है.

व्रत कथा
शिव पुराण में ये कथा कही गई है. इसके अनुसार,
देवताओं ने ब्रह्मा और विष्णु जी से बारी-बारी पूछा कि ब्रह्मांड में सबसे श्रेष्ठ कौन है. जवाब में दोनों ने स्वयं को सर्व शक्तिमान और श्रेष्ठ बताया, जिसके बाद दोनों में युद्ध होने लगा. इससे घबराकर देवताओं ने वेदशास्त्रों से इसका जवाब मांगा. उन्‍होंने बताया कि जिनके भीतर पूरा जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान समाया हुआ है वह कोई और नहीं बल्कि भगवान शिव ही हैं.

ब्रह्मा जी यह मानने को तैयार नहीं थे और उन्होंने भगवान शिव के बारे में अपशब्द कह दिए, इससे वेद व्यथित हो गए. इसी बीच दिव्यज्योति के रूप में भगवान शिव प्रकट हो गए. ब्रह्मा जी आत्मप्रशंसा करते रहे और भगवान शिव को कह दिया कि तुम मेरे ही सिर से पैदा हुए हो और ज्यादा रुदन करने के कारण मैंने तुम्हारा नाम ‘रुद्र’ रख दिया, तुम्हें तो मेरी सेवा करनी चाहिए.

इस पर भगवान शिव नाराज हो गए और क्रोध में उन्होंने भैरव को उत्पन्न किया. भगवान शंकर ने भैरव को आदेश दिया कि तुम ब्रह्मा पर शासन करो. यह बात सुनकर भैरव ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी अंगुली के नाखून से ब्रह्मा के वही 5वां सिर काट दिया, जो भगवान शिव को अपशब्ध कह रहा था.

इसके बाद भगवान शंकर ने भैरव को काशी जाने के लिए कहा और ब्रह्म हत्या से मुक्ति प्राप्त करने का रास्ता बताया. भगवान शंकर ने उन्हें काशी का कोतवाल बना दिया, आज भी काशी में भैरव कोतवाल के रूप में पूजे जाते हैं. विश्वनाथ के दर्शन से पहले इनका दर्शन होता है, अन्यथा विश्वनाथ का दर्शन अधूरा माना जाता है.

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