Sankashti-Chaturthi

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द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी, Dwijapriya Sankashti Chaturthi
फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी को काफी खास माना जाता है. इसे द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी (Dwijapriya Sankashti Chaturthi) कहा जाता है. यह दिन भारत के उत्तरी और दक्षिणी राज्यों में ज्यादा धूम-धाम से मनाया जाता है. इस दिन भगवान गणेश के द्विजप्रिय रूप की पूजा अर्चना की जाती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, विघ्नहर्ता द्विजप्रिय गणेश के चार सिर और चार भुजाएं हैं. भगवान के इस रूप का व्रत करने से सभी तरह के कष्ट दूर हो जाते हैं. साथ ही अच्छी सेहत और सुख समृद्धि मिलती है. आज माएं अपनी संतान की आयु के लिए व्रत रखती हैं. जानकारी के लिए बता दें कि हर साल 24 चतुर्थी आती है और प्रत्येक तीन वर्ष बाद अधिमास की मिलाकर 26 चतुर्थी होती है. सभी चतुर्थी की महिमा और महत्व अलग-अलग है. पूरे साल में संकष्टी चतुर्थी के 13 व्रत रखे जाते हैं. आज हम आपके लिए लेकर आए हैं द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि, महत्व, कथा आदि के बारे में जानकारी विस्तार से.

चतुर्थी व्रत से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी
पंचांग के अनुसार चतुर्थी तिथि भगवान गणेश (Lord Ganesha) को समर्पित है. हिंदू कैलेंडर के मुताबिक, हर माह दो चतुर्थी तिथि आती है. इसमें से एक शुक्ल पक्ष में आती है और एक कृष्ण पक्ष में. अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी और पूर्णिमा के बाद कृष्ण पक्ष में आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) कहते हैं. संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. अगर चतुर्थी तिथि मंगलवार के दिन पड़े तो उसे अंगारकी संकष्टी चतुर्थी (Angarki Sankashti) या द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी (Dwijapriya Sankashti Chaturthi) कहा जाता है.

संकष्टी चतुर्थी पूजन विधि, Dwijapriya Sankashti Chaturthi Pujan Vidhi
1- सबसे पहले सुबह उठें और स्नान करें.
2- इस दिन लाल रंग के साफ कपड़े पहनकर भगवान गणेश का पूजन करें.
3- पूजा करते समय अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखें.
4- स्वच्छ आसन या चौकी पर भगवान की प्रतिमा या चित्र को विराजित करें.
5- उन्हें तिल, गुड़, लड्डू, दुर्वा, चंदन चढ़ाएं. गणेश वदंन करें.
6- भगवान गणेश के मंत्रों ॐ गणेशाय नमः या ॐ गं गणपते नमः का जाप करें.
7- गणेश मंत्र का जप करते हुए 21 दूर्वा गणेश जी को अर्पित करनी चाहिए.
8- पूरे दिन व्रत रहें. शाम के समय चांद निकलने से पहले द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी की कथा पढ़ें. अब चंद्रमा को अर्घ्य दें और चांद देखकर अपना व्रत खोलें.
9- अपना व्रत पूरा करने के बाद तिल का दान करें. कहा जाता है कि इस दिन तिल का दान करने से भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं.
10- मान्‍यता है कि तुलसी ने गणेश जी को शाप दिया था इसलिए गणेश जी को तुलसी कदापि न चढ़ाएं, ऐसा करने से वह नाराज हो जाते हैं.
11- भोग
भगवान गणेश को बूंदी के लड्डूओं का भोग लगाना चाहिए. तिल तथा गुड़ से बने हुए लड्डू तथा ईख, शकरकंद, गुड़ और घी अर्पित करने की महिमा है.
12- गणेश जी के 12 नाम का जाप
सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्न-नाश, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र, गजानन.

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत में क्या खाएं, Dwijapriya Sankashti Chaturthi Vrat Mai Kya Khaye
गणेश चतुर्थी पर के दिन सिर्फ फलाहार का ही सेवन करें. इस दिन रस वाले फल भी खाएं. ऐसा करने से आपके शरीर में पानी की कमीं नही होगी. गणेश चतुर्थी के दिन आप खीरा भी खा सकते हैं. गणेश चतुर्थी के दिन व्रत में मीठे का प्रयोग करें. इसके लिए आप साबूदाने की खीर, आलू का हलुआ आदि खा सकते हैं. गणेश चतुर्थी के दिन दही का सेवन करें. गणेश चतुर्थी के व्रत में अगर आप पूरे दिन में कभी भी कमजोरी महसूस करें तो चाय का सेवन कर सकते हैं. गणेश चतुर्थी के दिन व्रत खोलने के समय आप उबले हुए आलू में काली मिर्च और व्रत का नमक डालकर खा सकते हैं. कुट्टु के आंटे की रोटी या परांठा बनाकर खा सकते हैं. इसके अलावा गणेश चतुर्थी के दिन व्रत खोलते समय आप बादाम वाला दूध भी पी सकते हैं. गणेश चतुर्थी के दिन अगर आप मीठा खाकर आपना व्रत खोलना चाहते हैं तो आप सिंघाड़े का हलूआ भी खा सकते हैं.  गणेश चतुर्थी पर व्रत को तोड़ने के लिए पहले बप्पा के प्रसाद का ही प्रयोग करें. उसके बाद ही अन्य चीजों से व्रत खोलें.

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत में क्या न खाएं, Dwijapriya Sankashti Chaturthi Vrat Mai Kya Na Khaye
गणेश चतुर्थी पर व्रत में जमीन के अंदर की चीजों को खाना वर्जित माना गया है. इसलिए गणेश चतुर्थी के दिन मूली, प्याज, गाजर और चुंकदर का सेवन बिल्कुल भी न करें. गणेश चतुर्थी पर काले नमक का प्रयोग बिल्कुल भी न करें इस दिन व्रत के नमक का ही प्रयोग करें. गणेश चतुर्थी के व्रत के भोजन में मसालों का प्रयोग न करें. ऐसा करने से आपका व्रत खंडित हो सकता है. इस दिन कटहल से बनी हुई भी कोई चीज,पापड़. चिप्स, पूड़ी, पकौड़ी,मूंगफली नहीं खाई जाती. गणेश चतुर्थी के व्रत में तुलसी का प्रयोग नहीं किया जाता. इसलिए किसी भी प्रकार से तुलसी ग्रहण न करें.अगर आप ऐसा करते हैं तो आपको गणेश जी के क्रोध का सामना करना पड़ सकता है. इस बात का ध्यान रखें कि घर का कोई भी सदस्य तामसिक भोजन का प्रयोग न करें. गणेश चतुर्थी के व्रत में किसी का भी झूठा कुछ न खाएं और किसी भी प्रकार की नशीली चीजों का प्रयोग न करें.

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी महत्व , Dwijapriya Sankashti Chaturthi Mahatva, Importance of Sakat Chauth
संकष्टी चतुर्थी का मतलब होता है संकट को हरने वाली चतुर्थी. संकष्टी संस्कृत भाषा से लिया गया एक शब्द है, जिसका अर्थ होता है कठिन समय से मुक्ति पाना. इस दिन व्यक्ति अपने दुःखों से छुटकारा पाने के लिए गणपति की अराधना करता है. हिन्दू धर्म में फाल्गुन माह की चतुर्थी तिथि यानी द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी को बहुत ही शुभ माना जाता है, इस दिन भगवान गणेश के 32 रुपों में से उनके छठे स्वरूप की पूजा की जाती है. पौराणिक मान्यता के अनुसार द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी तिथि पर पूरे विधि-विधान के साथ पूजा-पाठ करने और व्रत रखने से भक्तों पर विघ्नहर्ता भगवान गणेश की विशेष कृपा बनती है और व्यक्ति के जीवन की सभी परेशानियों का अंत हो जाता है. सूर्योदय से प्रारम्भ होने वाला यह व्रत चंद्र दर्शन के बाद संपन्न होता है. इस दिन विधिवत व्रत रखने पौर पूजा करने से सुख-समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है.

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी की कथा , Dwijapriya Sankashti Chaturthi Vrat Katha, Vrat Katha of Sankashti Chaturthi,
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार माता पार्वती और भगवान शिव नदी के पास बैठे हुए थे तभी अचानक माता पार्वती ने चौपड़ खेलने की अपनी इच्छा ज़ाहिर की. लेकिन समस्या की बात यह थी कि वहां उन दोनों के अलावा तीसरा कोई नहीं था जो खेल में निर्णायक की भूमिका निभाए. इस समस्या का समाधान निकालते हुए शिव और पार्वती ने मिलकर एक मिट्टी की मूर्ति बनाई और उसमें जान डाल दी.

मिट्टी से बने बालक को दोनों ने यह आदेश दिया कि तुम खेल को अच्छी तरह से देखना और यह फैसला लेना कि कौन जीता और कौन हारा. खेल शुरू हुआ जिसमें माता पार्वती बार-बार भगवान शिव को मात दे कर विजयी हो रही थीं. खेल चलते रहा लेकिन एक बार गलती से बालक ने माता पार्वती को हारा हुआ घोषित कर दिया. बालक की इस गलती ने माता पार्वती को बहुत क्रोधित कर दिया जिसकी वजह से गुस्से में आकर उन्होंने बालक को श्राप दे दिया और वह लंगड़ा हो गया. बालक ने अपनी भूल के लिए माता से बहुत क्षमा मांगी. तब माता ने कहा कि अब श्राप वापस तो नहीं हो सकता लेकिन वे एक उपाय बता सकती हैं जिससे श्राप मुक्ति हो सकती है. माता ने कहा कि संकष्टी वाले दिन इस जगह पर कुछ कन्याएं पूजा करने आती हैं, तुम उनसे व्रत की विधि पूछना और उस व्रत को सच्चे मन से करना.

बालक ने व्रत की विधि को जान कर पूरी श्रद्धापूर्वक और विधि अनुसार उसे किया. उसकी सच्ची आराधना से भगवान गणेश प्रसन्न हुए और उसकी इच्छा पूछी. बालक ने माता पार्वती और भगवान शिव के पास जाने की अपनी इच्छा को ज़ाहिर किया. गणेश ने उस बालक की मांग को पूरा कर दिया और उसे शिवलोक पंहुचा दिया, लेकिन जब वह पहुंचा तो वहां उसे केवल भगवान शिव ही मिले.

माता पार्वती भगवान शिव से नाराज़ होकर कैलाश छोड़कर चली गयी थीं. जब शिव ने उस बच्चे को पूछा की तुम यहां कैसे आए तो उसने उन्हें बताया कि गणेश की पूजा से उसे यह वरदान प्राप्त हुआ है. ये जानने के बाद भगवान शिव ने भी पार्वती को मनाने के लिए उस व्रत को किया जिसके बाद माता पार्वती भगवान शिव से प्रसन्न हो कर वापस कैलाश वापस लौट आयीं. इस तरह संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने वाले की गणपति सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.

गणेश भगवान की आरती, Bhagwan Ganesh Ki Aarti


1. जय गणेश देवा- गणेश भगवान की आरती

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा,
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा... जय...
एकदंत, दयावंत, चारभुजा धारी,
माथे सिंदूर सोहे मूसे की सवारी...जय...

अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया,
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया...जय...

पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा,
लडुअन का भोग लगे, संत करे सेवा...जय...

दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी,
कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी...जय...

2. सुखकर्ता दुखहर्ता- श्री गणेश की आरती

सुखकर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची.
नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची.
सर्वांगी सुंदर उटी शेंदुराची.
कंठी झळके माळ मुक्ताफळांची....
जय देव जय देव जय मंगलमूर्ति.
दर्शनमात्रे मन कामनापूर्ति.... जय देव...

रत्नखचित फरा तूज गौरीकुमरा.
चंदनाची उटी कुंकुमकेशरा.
हिरेजड़ित मुकुट शोभतो बरा.
रुणझुणती नूपुरे चरणी घागरिया.... जय देव...

लंबोदर पीतांबर फणीवर बंधना.
सरळ सोंड वक्रतुंड त्रिनयना.
दास रामाचा वाट पाहे सदना.
संकष्टी पावावें, निर्वाणी रक्षावे,
सुरवरवंदना....
जय देव जय देव जय मंगलमूर्ति.
दर्शनमात्रे मन कामनापूर्ति.... जय देव...

3. शेंदुर लाल चढ़ायो- श्री गणेश की आरती

शेंदुर लाल चढ़ायो अच्छा गजमुखको.
दोंदिल लाल बिराजे सुत गौरिहरको.
हाथ लिए गुडलद्दु सांई सुरवरको.
महिमा कहे न जाय लागत हूं पादको ....1....

जय जय श्री गणराज विद्या सुखदाता.
धन्य तुम्हारा दर्शन मेरा मन रमता ....

अष्टौ सिद्धि दासी संकटको बैरि.
विघ्नविनाशन मंगल मूरत अधिकारी.
कोटीसूरजप्रकाश ऐबी छबि तेरी.
गंडस्थलमदमस्तक झूले शशिबिहारि ....2....

जय जय श्री गणराज विद्या सुखदाता.
धन्य तुम्हारा दर्शन मेरा मन रमता ....

भावभगत से कोई शरणागत आवे.
संतत संपत सबही भरपूर पावे.
ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे.
गोसावीनंदन निशिदिन गुन गावे ....3....

जय जय श्री गणराज विद्या सुखदाता.
धन्य तुम्हारा दर्शन मेरा मन रमता ....

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