Skand Shashti 2021

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2021 में स्कंद षष्ठी कब है, स्कंद षष्ठी तिथि 2021
हिन्दू पंचांग के अनुसार स्कंद षष्ठी का व्रत हर महीने शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन रखा जाता है. स्कंद षष्ठी पूरे साल में 12 और महीने में एक बार आती है. दक्षिण भारत के राज्यों में स्कंद षष्ठी का त्योहार प्रमुख रूप से मनाया जाता है. इस दिन शिव-पार्वती के बड़े पुत्र भगवान कार्तिकेय की विशेष पूजा की जाती है और मंदिरों में अखंड दीपक भी जलाए जाते हैं. इस दिन विशेष कार्य की सिद्धि के लिए कि गई पूजा-अर्चना फलदायी होती है. इस पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक भी माना जाता है, क्योंकि इस तिथि को कुमार कार्तिकेय ने तारकासुर नामक राक्षस का वध किया था. भगवान कार्तिकेय को युद्ध का देवता माना जाता है. युद्ध कैसा भी हो सकता है. दुश्मन पर विजय प्राप्त करने का, शिक्षा पर, नौकरी पर या फिर बिजनेस पर विजय प्राप्ति का. भगवान कार्तिकेय शक्ति और ऊर्जा के प्रतीक माने जाते हैं. कोर्ट-कचहरी, जमीन-जायदाद, पैसे आदि के विवाद को निपटाने से पहले भगवान कार्तिकेय की आराधना की जाए तो उसमें सफलता प्राप्त होती है. भगवान कार्तिकेय का ध्यान, पूजन और मंत्रों का जाप कर आप अपने काम में विजय प्राप्त कर सकते हैं. तो आइए जानते हैं स्कंद षष्ठी 2021 की संपूर्ण तिथियां, भगवान कार्तिकेय की पूजा विधि, मंत्र, स्कंद षष्ठी महत्व, कार्तिकेय की कथा आदि के बारे में विस्तृत रूप से बताते हैं-

स्कंद षष्ठी तिथि 2021
स्कन्द षष्ठी – जनवरी 18, 2021, सोमवार
स्कन्द षष्ठी – फरवरी 17, 2021, बुधवार
स्कन्द षष्ठी – मार्च 19, 2021, शुक्रवार
स्कन्द षष्ठी – अप्रैल 18, 2021, रविवार
स्कन्द षष्ठी – मई 17, 2021, सोमवार
स्कन्द षष्ठी – जून 16, 2021, बुधवार
स्कन्द षष्ठी – जुलाई 15, 2021, बृहस्पतिवार
स्कन्द षष्ठी – अगस्त 13, 2021, शुक्रवार
स्कन्द षष्ठी – सितम्बर 12, 2021, रविवार
स्कन्द षष्ठी – अक्टूबर 11, 2021, सोमवार
स्कन्द षष्ठी – नवम्बर 09, 2021, मंगलवार
स्कन्द षष्ठी – दिसम्बर 09, 2021, बृहस्पतिवार

क्यों कहा जाता है स्कंद षष्ठी
दरअसल मां दुर्गा के 5वें स्वरूप स्कंदमाता को भगवान कार्तिकेय की माता के रूप में जाना जाता है. वैसे तो नवरात्रि के 5वें दिन स्कंदमाता का पूजन करने का विधान है. इसके अलावा इस षष्ठी को चम्पा षष्ठी भी कहते हैं, क्योंकि भगवान कार्तिकेय को सुब्रह्मण्यम के नाम से भी पुकारते हैं और उनका प्रिय पुष्प चम्पा है.

स्कंद षष्ठी व्रत विधि
1. सुबह जल्दी उठें और घर की साफ-सफाई करें.
2. इसके बाद स्नान-ध्यान कर सर्वप्रथम व्रत का संकल्प लें.
3. पूजा घर में मां गौरी और शिव जी के साथ भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा को स्थापित करें.
4. पूजा जल, मौसमी फल, फूल, मेवा, कलावा, दीपक, अक्षत, हल्दी, चंदन, दूध, गाय का घी, इत्र आदि से करें.
5. अंत में आरती करें.
6. वहीं शाम को कीर्तन-भजन पूजा के बाद आरती करें.
7. इसके पश्चात फलाहार करें.

भगवान कार्तिकेय के मंत्र
1. पूजा का मंत्र
देव सेनापते स्कंद कार्तिकेय भवोद्भव.
कुमार गुह गांगेय शक्तिहस्त नमोस्तु ते..
2. कार्तिकेय गायत्री मंत्र- दुख एवं कष्टों के नाश के लिए मंत्र
ॐ तत्पुरुषाय विधमहे: महा सैन्या धीमहि तन्नो स्कंदा प्रचोदयात.
3. शत्रु नाश के लिए पढ़ें ये मंत्र-
ऊं शारवाना-भावाया नमः
ज्ञानशक्तिधरा स्कंदा वल्लीईकल्याणा सुंदरा
देवसेना मनः काँता कार्तिकेया नामोस्तुते
ऊं सुब्रहमणयाया नमः

स्कंद षष्ठी व्रत के नियम
स्कंद षष्ठी पर भगवान शिव और पार्वती के पुत्र स्कंद देव (कार्तिकेय) की स्थापना और पूजा होती है, अखंड दीपक भी जलाए जाते हैं. भगवान को स्नान करवाया जाता है. भगवान को भोग लगाते हैं. इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना जरूरी होता है. पूरे दिन संयम से भी रहना होता है. इस व्रत को करने वाले भक्त को अहंकार, काम और क्रोध से मुक्ति मिलती है. जो भी साधक इस दिन उपवास रखकर पूजा करता है उसे मांस, शराब, लहसुन और प्याज का सेवन नहीं करना चाहिए. ऐसा माना जाता है कि इस भोग पदार्थों के सेवन से तामसिक प्रवृत्ति जागृति हो जाती है जो उपासक के विवेक को नष्ट कर देता है. ऐसी मान्यता है कि स्कंद षष्ठी के पूजन से च्यवन ऋषि को आंखी में रोशनी मिली थी.

भगवान् कार्तिकेय के नाम
1. कार्तिकेय
2. महासेन
3. शरजन्मा
4. षडानन
5. पार्वतीनन्दन
6. स्कन्द
7. सेनानी
8. अग्निभू
9. गुह
10. बाहुलेय
11. तारकजित्
12. विशाख
13. शिखिवाहन
14. शक्तिश्वर
15. कुमार
16. क्रौञ्चदारण

स्कंद षष्ठी का धार्मिक महत्व
धार्मिक मान्यता के अनुसार, स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा की जाती है. इनकी पूजा से जीवन में हर तरह की कठिनाइंया दूर होती हैं और व्रत रखने वालों को सुख और वैभव की प्राप्ति होती है. साथ ही संतान के कष्टों को कम करने और उसके सुख की कामना से ये व्रत किया जाता है. हालांकि यह त्योहार दक्षिण भारत में प्रमुख रूप से मनाया जाता है. दक्षिण भारत में भगवान कार्तिकेय को सुब्रह्मण्यम के नाम से भी जाना जाता है. उनका प्रिय पुष्प चंपा है. इसलिए इस व्रत को चंपा षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है. एक अन्य मान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर नामक राक्षस का वध किया था.

स्कंद षष्ठी कथा, भगवान कार्तिकेय जन्म कथा
जब पिता दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव की पत्नी सती कूदकर भस्म हो गईं, तब शिवजी विलाप करते हुए गहरी तपस्या में लीन हो गए. उनके ऐसा करने से सृष्टि शक्तिहीन हो जाती है. इस मौके का फायदा दैत्य उठाते हैं और धरती पर तारकासुर नामक दैत्य का चारों ओर आतंक फैल जाता है. देवताओं को पराजय का सामना करना पड़ता है. चारों तरफ हाहाकार मच जाता है तब सभी देवता ब्रह्माजी से प्रार्थना करते हैं. तब ब्रह्माजी कहते हैं कि तारक का अंत शिव पुत्र करेगा. इंद्र और अन्य देव भगवान शिव के पास जाते हैं, तब भगवान शंकर पार्वती के अपने प्रति अनुराग की परीक्षा लेते हैं और पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होते हैं और इस तरह शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त में शिवजी और पार्वती का विवाह हो जाता है. इस प्रकार कार्तिकेय का जन्म होता है. कार्तिकेय तारकासुर का वध करके देवों को उनका स्थान प्रदान करते हैं. पुराणों के अनुसार षष्ठी तिथि को कार्तिकेय भगवान का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन उनकी पूजा का विशेष महत्व है. एक दूसरी कथा के अनुसार कार्तिकेय का जन्म 6 अप्सराओं के 6 अलग-अलग गर्भों से हुआ था और फिर वे 6 अलग-अलग शरीर एक में ही मिल गए थे.

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