Janmashtami 2020

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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2021
भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में जन्माष्टमी का त्योहार पूरे देश में बेहद धूम धाम से मनाया जाता है. यह त्योहार हर साल भादप्रद माह की अष्टमी के दिन होता है, क्योंकि इसी दिन श्री कृष्ण ने माता देवकी की कोख से जन्म लिया था. जन्माष्टमी के दिन मंदिरों में झाकिया लगती हैं और लोग अपने घरों को सजाते हैं. रात के 12 बजे भगवान का जन्म होता है. लोग भगवान कृष्ण के गीत गाते हैं. इस बार 2021 में 30 अगस्त रविवार के दिन जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाएगा. आइए जानते हैं जन्माष्टमी व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व, कथा आदि के बारे में-

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2021 तिथि और मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रमास के कृष्‍ण पक्ष की अष्‍टमी तिथि का आरंभ 29 अगस्‍त को रविवार को रात 11 बजकर 25 मिनट पर होगा। अष्‍टमी तिथि 30 अगस्‍त को रात में 1 बजकर 59 मिनट तक रहेगी। इस हिसाब से व्रत के लिए उदया तिथि को मानते हुए 30 अगस्‍त को जन्‍माष्‍टमी होगी। इसलिए देश भर में जन्‍माष्‍टमी 30 अगस्‍त को मनाई जाएगी। पूजा का शुभ मुहूर्त 30 अगस्‍त की रात को 11 बजकर 59 मिनट से 12 बजकर 44 मिनट तक रहेगा।

कृष्ण जन्माष्टमी शुभ मुहूर्त
अष्टमी तिथि की शुरुआत – 29 अगस्त 11:24 PM पर
अष्टमी तिथि की समाप्ति – 31 अगस्त 01:59 AM तक
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2021 पूजा का मुहूर्त – 30 अगस्त को 11:59 PM से 12:44 AM तक
कृत्तिका नक्षत्र – 29 अगस्त 03:35 AM से 30 अगस्त 6:39 AM तक
रोहिणी नक्षत्र – 30 अगस्त को 6:39 AM से 31 अगस्त 09:44 AM तक
पारण का समय – 31 अगस्त मंगलवार 09:44 AM के बाद
अभिजीत मुहूर्त – 30 अगस्त 12.02 PM से 12.52 PM तक
अमृत काल – 30 अगस्त को नहीं है।
ब्रह्म मुहूर्त – 30 अगस्त 04:16 AM से 05:03 AM तक
विजय मुहूर्त – 30 अगस्त 02.05 PM से 02.56 PM तक
गोधूलि बेला – 30 अगस्त 06.06 PM से 06.32 PM तक
सर्वार्थसिद्धि योग – 30 अगस्त 06:39 AM से 31 अगस्त 06:12 AM तक

इस साल के खास योग
वहीं हिंदी पंचांग के अनुसार, साल 2021 में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन सुबह 07 बजकर 47 मिनट के बाद हर्षण योग निर्मित हो रहा है। हर्षण योग को ज्योतिष में काफी शुभ माना जाता है, वहीं इसका होना मंगलकारी भी माना गया है। मान्यता है कि हर्षण योग में जो भी कार्य किए जाते हैं वे सभी सफलता पाते हैं। कृत्तिका और रोहिणी नक्षत्र भी इसके साथ ही रहेंगे।

जन्माष्टमी पूजा विधि
एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं, इसके बाद बाल गोपाल को किसी स्वच्छ पात्र में रखे. उन्हें पंचामृत से स्नान कराएं. गंगाजल से स्नान कराएं. अब बाल गोपाल को सुंदर वस्त्र पहना कर उनका शृंगार मुकुट, कान की बाली, हाथों के कंगन, बांसुरी आदि से करें. रोली और अक्षत से तिलक करें. तत्पश्चात् कृष्ण जी को झूला झुलाएं और धूप-दीप आदि दिखा कर पूजा करें. माखन मिश्री का भोग लगाएं. कृष्ण जी को तुलसी का पत्ता जरूर अर्पित करें. भोग के बाद गंगाजल भी अर्पित करें. अब भगवान की आरती करें. और लोगों को प्रसाद बांटें व स्वयं भी ग्रहण करें. इसके बाद व्रत का पारण करें.

जन्माष्टमी का महत्व
जन्माष्टमी के दिन मंदिरो में भगवान कृष्ण की झाकियां लगती है. कई जगहों पर इस दिन दही हांडी उत्सव भी मनाया जाता है. इस दिन भगवान कृष्ण के बालरूप की पूजा होती है. मान्यता है कि जन्माष्टमी का व्रत और पूजा करने से पापों का नष्ट होता हैं. नि:संतान दंपत्ति को संतान सुख की प्रप्ति होती है. इस दिन व्रत रखकर सच्चे मन से पूजा-अर्चना करने से लड्डू गोपाल भक्तजन की सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं. नि:संतान दंपत्तियो को जन्माष्टमी पर रात को कृष्ण जन्म के समय बांसुरी अर्पित करनी चाहिए. एसा करने से संतान से संबंधी सभी समस्याएं दूर होती हैं और संतान दीर्घायु होती है.

जन्माष्टमी व्रत कथा, Janmashtami Vrat Katha
स्‍कंद पुराण के मुताबिक द्वापर युग की बात है। तब मथुरा में उग्रसेन नाम के एक प्रतापी राजा हुए। लेकिन स्‍वभाव से सीधे-साधे होने के कारण उनके पुत्र कंस ने ही उनका राज्‍य हड़प लिया और स्‍वयं मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की एक बहन थी, जिनका नाम था देवकी। कंस उनसे बहुत प्रेम करता था। देवकी का विवाह वसुदेव से तय हुआ तो विवाह संपन्‍न होने के बाद कंस स्‍वयं ही रथ हांकते हुए बहन को ससुराल छोड़ने के लिए रवाना हुआ। जब वह बहन को छोड़ने के लिए जा रहे था तभी एक आकाशवाणी हुई कि देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान कंस की मृत्यु का कारण बनेगी। यह सुनते ही कंस क्रोधित हो गया और देवकी और वसुदेव को मारने के लिए जैसे ही आगे बढ़ा तभी वसुदेव ने कहा कि वह देवकी को कोई नुकसान न पहुंचाए। वह स्‍वयं ही देवकी की आठवीं संतान कंस को सौंप देगा। इसके बाद कंस ने वसुदेव और देवकी को मारने के बजाए कारागार में डाल दिया।

कारागार में ही देवकी ने सात संतानों को जन्‍म दिया और कंस ने सभी को एक-एक करके मार दिया। इसके बाद जैसे ही देवकी फिर से गर्भवती हुईं तभी कंस ने कारागार का पहरा और भी कड़ा कर दिया। तब भाद्रपद माह के कृष्‍ण पक्ष की अष्‍टमी को रोहिणी नक्षत्र में कन्‍हैया का जन्‍म हुआ। तभी श्री विष्‍णु ने वसुदेव को दर्शन देकर कहा कि वह स्‍वयं ही उनके पुत्र के रूप में जन्‍में हैं। उन्‍होंने यह भी कहा कि वसुदेव जी उन्‍हें वृंदावन में अपने मित्र नंदबाबा के घर पर छोड़ आएं और यशोदा जी के गर्भ से जिस कन्‍या का जन्‍म हुआ है, उसे कारागार में ले आएं। यशोदा जी के गर्भ से जन्‍मी कन्‍या कोई और नहीं बल्कि स्‍वयं माया थी। यह सबकुछ सुनने के बाद वसुदेव जी ने वैसा ही किया।

स्‍कंद पुराण के मुताबिक जब कंस को देवकी की आठवीं संतान के बारे में पता चला तो वह कारागार पहुंचा। वहां उसने देखा कि आठवीं संतान तो कन्‍या है फिर भी वह उसे जमीन पर पटकने ही लगा कि वह मायारूपी कन्‍या आसमान में पहुंचकर बोली कि रे मूर्ख मुझे मारने से कुछ नहीं होगा। तेरा काल तो पहले से ही वृंदावन पहुंच चुका है और वह जल्‍दी ही तेरा अंत करेगा। इसके बाद कंस ने वृंदावन में जन्‍में नवजातों का पता लगाया। जब यशोदा के लाला का पता चला तो उसे मारने के लिए कई प्रयास किए। कई राक्षसों को भी भेजा लेकिन कोई भी उस बालक का बाल भी बांका नहीं कर पाया तो कंस को यह अहसास हो गया कि नंदबाबा का बालक ही वसुदेव-देवकी की आठवीं संतान है। कृष्‍ण ने युवावस्‍था में कंस का अंत किया। इस तरह जो भी यह कथा पढ़ता या सुनता है उसके समस्‍त पापों का नाश होता है।

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