Dhanteras-Puja-Vidhi

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कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस मनाया जाता है। इसी दिन से पांच दिवसीय त्यौहार दिवाली की शुरुआत हो जाती है। मान्यता है कि इस दिन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के जनक धन्वंतरि देव समुद्र मंथन से अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इसलिए धनतेरस को धन्वंतरि जयंती भी कहा जाता है। धन्वंतरि देव जब समुद्र मंथन से प्रकट हुए थे उस समय उनके हाथ में अमृत से भरा कलश था। इसी वजह से धनतेरस के दिन बर्तन खरीदने की परंपरा है। धनवंतरी के उत्पन्न होने के दो दिनों बाद देवी लक्ष्मी प्रकट हुईं, इसलिए दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। धनतेरस पर मां लक्ष्मी, धन के भंडार कुबेरजी और भगवान धनवंतरि की पूजा की जाती है। भगवान धनवंतरि को श्रीहरि विष्णु का अवतार माना जाता है। इनकी पूजा से अच्छी सेहत और आरोग्य की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं धनतेरस की संपूर्ण पूजा विधि, आरती, कथा आदि के बारे में विस्तार से…

धनतेरस का महत्व (Dhanteras Ka Mahatva/ Importance od Dhanteras in Hindi)
हिंदू धर्म में धनतेरस को विशेष महत्व दिया जाता है। धनतेरस के दिन से ही भगवान गणेश , मां लक्ष्मी और कुबेर की पूजा शुरू हो जाती है और यह पूजा दीवाली तक चलती है। मान्यताओं के अनुसार धनतेरस के दिन नई चीजें घर में लाने से घर में मां लक्ष्मी और कुबेर का वास होता है और घर में कभी भी पैसों की कमीं नहीं होती और उन्नति के सभी रास्ते अपने आप खुल जाते हैं। धनतेरस के दिन विशेषकर पीतल और चाँदी के बर्तन खरीदें क्योंकि पीतल महर्षि धन्वंतरी का अहम धातु है। इससे घर में आरोग्य, सौभाग्य और स्वास्थ्य लाभ की प्राप्ति होती है। धनतेरस के दिन चाँदी खरीदने की भी विशेष परंपरा है। चन्द्रमा का प्रतीक चाँदी मनुष्य को जीवन में शीतलता प्रदान करता है। चूंकि चाँदी कुबेर की धातु है, धनतेरस पर चाँदी खरीदने से घर में यश, कीर्ति, ऐश्वर्य और संपदा की वृद्धि होती है। व्यापारी इस विशेष दिन में नए बही-खाते खरीदते हैं जिनका पूजन वे दीवाली पर करते हैं। धनतेरस के दिन कुबेर के अलावा यमदेव को भी दीपदान किया जाता है। इस दिन यमदेव की पूजा करने के विषय में एक मान्यता है कि इस दिन यमदेव की पूजा करने से घर में अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है।

धनतेरस की पूजा विधि (Dhanteras Puja Vidhi)

  1. धनतेरस के दिन मां लक्ष्मी, भगवान धन्वंतरि और कुबेर की पूजा विशेष तौर पर की जाती है। शाम के समय उत्तर दिशा की ओर कुबेर और धन्वन्तरी भगवान की स्थापना करें। धनतेरस पर धन्वंतरि देव की षोडशोपचार पूजा का विधान है। षोडशोपचार यानि विधिवत 16 क्रियाओं से पूजा संपन्न करना। इनमें आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन (सुगंधित पेय जल), स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध (केसर-चंदन), पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन (शुद्ध जल), दक्षिणायुक्त तांबूल, आरती, परिक्रमा आदि है।
  2. भगवान कुबेर को सफेद मिठाई और धन्वन्तरि को पीली मिठाई चढ़ाएं।
  3. फिर भगवान कुबेर के लिए ॐ ह्रीं कुबेराय नमः मंत्र का जाप करें।
  4. इसके बाद धन्वन्तरि स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।
  5. भगवान कुबेर और धन्वन्तरि की पूजा के साथ ही इस दिन भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की भी पूजा करना अनिवार्य है। उनको फूल चढ़ाकर मिठाई का भोग लगाएं और आरती करें। इसके बाद घर के सभी सदस्यों में प्रसाद वितरित करें।
  6. दीपावली के दिन, कुबेर को धन स्थान पर और धन्वन्तरि को पूजा स्थान पर स्थापित करें।

धनतेरस के दिन कैसे करें मां लक्ष्‍मी की पूजा? (Dhanteras Par Maa Laxmi Pujan Vidhi)
सबसे पहले एक लाल रंग का आसन बिछाएं और इसके बीचों बीच मुट्ठी भर अनाज रखें।
अनाज के ऊपर स्‍वर्ण, चांदी, तांबे या मिट्टी का कलश रखें। इस कलश में तीन चौथाई पानी भरें और थोड़ा गंगाजल मिलाएं। अब कलश में सुपारी, फूल, सिक्‍का और अक्षत डालें। इसके बाद इसमें आम के पांच पत्ते लगाएं। अब पत्तों के ऊपर धान से भरा हुआ किसी धातु का बर्तन रखें। धान पर हल्‍दी से कमल का फूल बनाएं और उसके ऊपर मां लक्ष्‍मी की प्रतिमा रखें साथ ही कुछ सिक्‍के भी रखें। कलश के सामने दाहिने ओर दक्षिण पूर्व दिशा में भगवान गणेश की प्रतिमा रखें। अगर आप कारोबारी हैं तो कलम दवात, किताबें और अपने बिजनेस से संबंधित अन्‍य चीजें भी पूजा स्‍थान पर रखें। अब पूजा के लिए इस्‍तेमाल होने वाले पानी को हल्‍दी और कुमकुम अर्पित करें।
– इसके बाद इस मंत्र का उच्‍चारण करें
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलिए प्रसीद प्रसीद |
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मिये नम: ||

अब हाथों में पुष्‍प लेकर आंख बंद करें और मां लक्ष्‍मी का ध्‍यान करें। फिर मां लक्ष्‍मी की प्रतिमा को फूल अर्पित करें। अब एक गहरे बर्तन में मां लक्ष्‍मी की प्रतिमा रखकर उन्‍हें पंचामृत (दही, दूध, शहद, घी और चीनी का मिश्रण) से स्‍नान कराएं। इसके बाद पानी में सोने का आभूषण या मोती डालकर स्‍नान कराएं। अब प्रतिमा को पोछकर वापस कलश के ऊपर रखे बर्तन में रख दें। आप चाहें तो सिर्फ पंचामृत और पानी छिड़ककर भी स्‍नान करा सकते हैं। अब मां लक्ष्‍मी की प्रतिमा को चंदन, केसर, इत्र, हल्‍दी, कुमकुम, अबीर और गुलाल अर्पित करें। अब मां की प्रतिमा पर हार चढ़ाएं। साथ ही उन्‍हें बेल पत्र और गेंदे का फूल अर्पित कर धूप जलाएं। अब मिठाई, नारियल, फल, खीले-बताशे अर्पित करें.
इसके बाद प्रतिमा के ऊपर धनिया और जीरे के बीज छिड़कें. अब आप घर में जिस स्‍थान पर पैसे और जेवर रखते हैं वहां पूजा करें. इसके बाद माता लक्ष्‍मी की आरती उतारें.

धन्वन्तरि स्तोत्र (Dhanvantari Stotra)
ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः।
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम॥
कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम।
वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम॥
ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:
अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप
श्री धनवंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥

धनतेरस के दिन करें इन मंत्रो का जाप- (Dhanteras Mantra)
धनतेरस के दिन कुबेर मंत्रों का जाप करना चाहिए. हम आपको कुछ मंत्र बता रहे हैं, जिन्हें धनतेरस के दिन जाप करने से सालभर मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है. ऐसा भी माना जाता है कि धनतेरस के दिन इन मंत्रों का जाप करने से धन संबंधी सभी तरह की परेशानियां दूर हो जाती हैं. इन मंत्रों का 108 बार जाप करें. अगर 108 बार जाप नहीं कर सकते हैं तो 13 बार जरूर पढ़ें.
कुबेर धन प्राप्ति मंत्र-
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः॥
कुबेर अष्टलक्ष्मी मंत्र-
ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः॥
कुबेर मंत्र-
ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये
धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय दापय स्वाहा॥

धनतेरस पर यम पूजा (Dhanteras par Yam puja)
धनतेरस के दिन यमदेव की पूजा की जाती है। माना जाता है की इस दिन यमदेव का पूजन करने से यमदेव हमें अकालमृत्यु का भय दूर करते हैं। इसलिए अकालमृत्यु से बचने के लिए धनतेरस को यमदेव की पूजा की जाती है।

यम का दीया ऐसे जलाये – यम पूजन विधि : Yam puja vidhi

  1. पूजा दिन में नहीं बल्क‍ि रात में होती है। यमराज की पूजा सिर्फ एक चौमुखी दीप जलाकर की जाती है।
    इसके लिए आटे का दीपक बनाकर घर के मुख्य द्वार के दाईं ओर रख दिया जाता है। इस दीया को जमदीवा, जम का दीया या यमराज का दीपक भी कहा जाता है।
  2. रात को घर की स्त्रियां दीपक में तेल डालकर नई रूई की बत्ती बनाकर, चार बत्तियां जलाती हैं । दीपक की बत्ती दक्षिण दिशा की ओर रखनी चाहिए।
  3. दीपक जलाने से पहले उसकी जल, रोली, फूल, चावल, गुड़, नैवेद्य आदि से पूजा करनी चाहिए। घर में पहले से दीपक जलाकर यम का दीया ना निकालें।
  4. धनतेरस का दीपक मृत्यु के नियंत्रक देव यमराज के निमित्त जलाया जाता है, इसलिए दीप जलाते समय पूर्ण श्रद्धा से उन्हें नमन करने के साथ ही यह भी प्रार्थना करें कि वे आपके परिवार पर दया दृष्टि बनाए रखें और किसी की अकाल मृत्यु न हो।

धनतेरस पर दक्षिण दिशा में दीप जलाने का महत्त्व
धनतेरस पर दक्षिण दिशा में दिया जलाया जाता है। इसके पिछे की कहानी कुछ यूं है। एक दिन दूत ने बातों ही बातों में यमराज से प्रश्न किया कि अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय है? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए यमदेव ने कहा कि जो प्राणी धनतेरस की शाम यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दिया जलाकर रखता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती| इस मान्यता के अनुसार धनतेरस की शाम लोग आँगन में यम देवता के नाम पर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं| फलस्वरूप उपासक और उसके परिवार को मृत्युदेव यमराज के कोप से सुरक्षा मिलती है|

धनतेरस की कथा : Dhanteras katha
कहा जाता है कि किसी राज्य में एक राजा था, जिसे कई वर्षों तक की प्रतीक्षा के बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। राजा के पुत्र के बारे में किसी ज्योतिषी ने यह कहा कि, जिस दिन भी उसका विवाह होगा, उसके चार दिन बाद ही उसकी मृत्यु हो जायेगी। ज्योतिषी की यह बात सुनकर राजा को बेहद दु:ख हुआ। इससे बचने के लिये उसने राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया, जहां आस-पास कोई स्त्री न रहती हो। एक दिन वहां से एक राजकुमारी गुजरी। राजकुमार और राजकुमारी दोनों ने एक दूसरे को देखा और मोहित होकर आपस में विवाह कर लिया।

ज्योतिषी की भविष्यवाणी के अनुसार ठीक चार दिन बाद यमदूत राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। यमदूत को देख राजकुमार की पत्नी विलाप करने लगी। यह देख यमदूत ने यमराज से विनती की और कहा कि इसके प्राण बचाने का कोई उपाय बताइए। इस पर यमराज ने कहा की जो प्राणी कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी की रात मेरा पूजन कर दीप माला से दक्षिण दिशा की ओर मुंह वाला दीपक जलाएगा, उसे कभी अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा। तभी से इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाने की परंपरा है।

भगवान कुबेर जी की आरती (Bhagwan Shri kuber ji ki aarti)
ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे, स्वामी जै यक्ष जै यक्ष कुबेर हरे।
शरण पड़े भगतों के, भण्डार कुबेर भरे।
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे…॥
शिव भक्तों में भक्त कुबेर बड़े, स्वामी भक्त कुबेर बड़े।
दैत्य दानव मानव से, कई-कई युद्ध लड़े ॥
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे…॥
स्वर्ण सिंहासन बैठे, सिर पर छत्र फिरे,
स्वामी सिर पर छत्र फिरे।
योगिनी मंगल गावैं, सब जय जय कार करैं॥
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे…॥
गदा त्रिशूल हाथ में, शस्त्र बहुत धरे,
स्वामी शस्त्र बहुत धरे।
दुख भय संकट मोचन, धनुष टंकार करें॥
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे…॥
भांति भांति के व्यंजन बहुत बने, स्वामी व्यंजन बहुत बने।
मोहन भोग लगावैं, साथ में उड़द चने॥
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे…॥
बल बुद्धि विद्या दाता, हम तेरी शरण पड़े,
स्वामी हम तेरी शरण पड़े,
अपने भक्त जनों के, सारे काम संवारे॥
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे…॥
मुकुट मणी की शोभा, मोतियन हार गले,
स्वामी मोतियन हार गले।
अगर कपूर की बाती, घी की जोत जले॥
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे…॥
यक्ष कुबेर जी की आरती, जो कोई नर गावे,
स्वामी जो कोई नर गावे ।
कहत प्रेमपाल स्वामी, मनवांछित फल पावे।
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे…॥

धन्वंतरि भगवान की आरती (Dhanvantari Ji Ki Aarti) :
जय धन्वंतरि देवा, जय धन्वंतरि जी देवा।
जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा।।जय धन्वं.।।
तुम समुद्र से निकले, अमृत कलश लिए।
देवासुर के संकट आकर दूर किए।।जय धन्वं.।।
आयुर्वेद बनाया, जग में फैलाया।
सदा स्वस्थ रहने का, साधन बतलाया।।जय धन्वं.।।
भुजा चार अति सुंदर, शंख सुधा धारी।
आयुर्वेद वनस्पति से शोभा भारी।।जय धन्वं.।।
तुम को जो नित ध्यावे, रोग नहीं आवे।
असाध्य रोग भी उसका, निश्चय मिट जावे।।जय धन्वं.।।
हाथ जोड़कर प्रभुजी, दास खड़ा तेरा।
वैद्य-समाज तुम्हारे चरणों का घेरा।।जय धन्वं.।।
धन्वंतरिजी की आरती जो कोई नर गावे।
रोग-शोक न आए, सुख-समृद्धि पावे।।जय धन्वं.।।

धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि के साथ माता लक्ष्मी और गणेश की भी आरती जरूर उतारें।

लक्ष्मी जी की आरती (Laxmi Ji Ki Aarti) :
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निस दिन सेवत हर-विष्णु-धाता ॥ॐ जय…
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता ।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥ॐ जय…
तुम पाताल-निरंजनि, सुख-सम्पत्ति-दाता ।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि-धन पाता ॥ॐ जय…
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता ।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनि, भवनिधि की त्राता ॥ॐ जय…
जिस घर तुम रहती, तहँ सब सद्गुण आता ।
सब सम्भव हो जाता, मन नहिं घबराता ॥ॐ जय…
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता ।
खान-पान का वैभव सब तुमसे आता ॥ॐ जय…
शुभ-गुण-मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता ।
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहिं पाता ॥ॐ जय…
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कई नर गाता ।
उर आनन्द समाता, पाप शमन हो जाता ॥ॐ जय…

गणेश जी की आरती (Ganesh ji ki aarti)
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
एकदंत, दयावन्त, चार भुजाधारी,
माथे सिन्दूर सोहे, मूस की सवारी।
पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा,
लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा।। ..
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश, देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया,
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।
‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ..
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो जय बलिहारी।

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