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भीष्म अष्टमी क्या है?
भीष्म अष्टमी को बेहद ही शुभ और भाग्यशाली तिथि माना गया है. क्योंकि भीष्म पितमाह, जिन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था उन्होंने इसी दिन को अपनी मृत्यु के लिए चुना था. यह तिथि उत्तरायण के समय आती है. पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत युद्ध के पहले ही दिन भीष्‍म पितामह ने तांडव मचा दिया था. उनके क्रोध को थामने के लिए अर्जुन ने उन्‍हें बाणशैय्या पर लिटा दिया था. माघ मास के शुक्‍ल पक्ष की अष्‍टमी को भीष्‍म ने अपने प्राण त्‍यागे थे. इसलिए यह दिन उनका निर्वाण दिवस है. भीष्म अष्टमी को जहां एक ओर व्रत रखने का महत्व है वहीं दूसरी ओर इस दिन भीष्म की आत्मा की शांति के लिए तिल के जल से तर्पण भी किया जाता है. माना जाता है कि इस दिन भीष्म पितामह का तर्पण करने से योग्य संतान की प्राप्ति होती है. तो चलिए जानते हैं भीष्म अष्टमी कैसे मनाई जाती है, भीष्म अष्टमी तर्पण विधि, भीष्म अष्टमी व्रत विधि, भीष्म अष्टमी महत्व, भीष्म के अन्य नाम, भीष्म अष्टमी कथा, अनुष्ठान, लाभ आदि के बारे में विस्तार से-

भीष्म अष्टमी कैसे मनाई जाती है?
भीष्म अष्टमी का उत्सव राष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों में होता है. सभी इस्कॉन मंदिरों के साथ-साथ भगवान विष्णु के मंदिरों में भीष्म पितामह के सम्मान में भव्य उत्सव होता है. बंगाल के राज्यों में, भक्त इस अवसर पर विशेष पूजा और अर्चना करते हैं.
भीष्म के अन्य नाम क्या हैं?
भीष्म का मूल नाम देवव्रत था जो उनके जन्म के समय दिया गया था. भीष्म के अन्य लोकप्रिय नाम भीष्म पितामह, गंगा पुत्र भीष्म, शांतनवा और गौरांगा थे.

भीष्म अष्टमी पर तर्पण , भीष्म अष्टमी व्रत विधि
1. भीष्म अष्टमी के दिन साधक को किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए और बिना सिले वस्त्र धारण करने चाहिए.
2. इसके बाद दाहिने कंधे पर जनेऊ धारण करें. यदि आप जनेऊ धारण नहीं कर सकते तो दाहिने कंधे पर गमछा जरूर रखें.
3.दाहिने कंधें पर गमछा रखने के बाद हाथ में तिल और जल लें और दक्षिण की ओर मुख कर लें. इसके बाद नीचे दिए मंत्र का जाप करें.
वैयाघ्रपदगोत्राय सांकृतिप्रवराय च. गंगापुत्राय भीष्माय,
प्रदास्येहं तिलोदकम् अपुत्राय ददाम्येतत्सलिलं भीष्मवर्मणे..
4. मंत्र जाप के बाद तिल और जल के अंगूठे और तर्जनी उंगली के मध्य भाग से होते हुए पात्र में छोड़ें.
5. इसके बाद जनेऊ या गमछे को बाएं कंधे पर डाल लें और गंगापुत्र भीष्म को अर्घ्य दें.
6. जिसके लिए आप भीष्म पितामह का नाम लेते हुए सूर्य को जल दे सकते हैं या दक्षिण मुखी होकर भी आप किसी वट वृक्ष को जल दे सकते हैं.
7. इसके बाद तर्पण वाले जल को किसी पवित्र वृक्ष या बरगद के पेड़ पर भी चढ़ा सकते है.
8. अंत में हाथ जोड़कर भीष्म पितामह को प्रणाम करें और अपने पितरों को भी प्रणाम करें.

भीष्म अष्टमी का महत्व
भीष्म पितामह ने ब्रह्मचर्य का वचन लिया और इसका जीवनभर पालन किया. अपनी सत्यनिष्ठा और अपने पिता के प्रति प्रेम के कारण उन्हें वरदान था कि वह अपनी मृत्यु का समय स्वयं निश्चित कर सकते हैं. पितामह भीष्म ने अपनी देह को त्यागने के लिए माघ माह में शुक्ल पक्ष अष्टमी का चयन किया, जब सूर्यदेव उत्तरायण में वापस आ रहे थे. माघ शुक्ल अष्टमी को उनका निर्वाण दिवस माना जाता है. इस दिन तिल, जल और कुश से पितामह भीष्म के निमित्त तर्पण करने का विधान है. मान्यता है कि ऐसा करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. उसे संतान और मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस दिन भीष्म पितामह की आत्मा की शांति के लिए भी तर्पण किया जाता है. जिससे उनका आशीर्वाद प्राप्त हो सके. जो भी व्यक्ति ऐसा करता है उसे पितामह भीष्म जैसी आज्ञाकारी संतान की प्राप्ति होती है. इसके साथ ही इस दिन पितामह भीष्म का तर्पण करने से पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है. महाभारत के अनुसार- शुक्लाष्टम्यां तु माघस्य दद्याद् भीष्माय यो जलम्, संवत्सरकृतं पापं तत्क्षणादेव नश्यति..
अर्थ – जो मनुष्य माघ शुक्ल अष्टमी को भीष्म के निमित्त तर्पण, जलदान आदि करता है, उसके वर्षभर के पाप नष्ट हो जाते हैं.

भीष्म अष्टमी व्रत कथा , भीष्म अष्टमी पौराणिक व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, भीष्म देवी गंगा और राजा शांतनु के आठवें पुत्र थे. इनके जन्म के समय इन्हें देवव्रत नाम दिया गया था. देवव्रत का पोषण मां मां गंगा द्वारा किया गया था. जिसके बाद इन्हें महर्षि परशुराम के पास शास्त्र विद्या प्राप्त करने के लिए भेजा गया था. उन्होंने उनके मार्गदर्शन में महान युद्ध कौशल एवं सीख हासिल की और अजेय योद्धा बन गए. इनकी शिक्षा पूरी करने के बाद, देवी गंगा देवव्रत को उनके पिता, राजा शांतनु के पास लेकर आयी जिसके बाद उन्हें हस्तिनापुर का राजकुमार घोषित किया गया. इसी दौरान, राजा शांतनु को सत्यवती नाम की एक स्त्री से प्रेम हो गया था. वह उससे विवाह करना चाहते थे. परंतु सत्यवती के पिता ने गठबंधन के लिए एक शर्त रख दी कि राजा शांतनु और उनकी पुत्री सत्यवती की संतानें ही भविष्य में हस्तिनापुर राज्य पर शासन करेंगी.

इस स्थिति को देखते हुए, देवव्रत ने अपने पिता की खातिर अपना राज्य त्याग दिया और जीवन भर विवाह न करने का प्रण लिया. इसी बलिदान और भीष्म प्रण के कारण, देवव्रत का नाम भीष्म हुआ. उनकी प्रतिज्ञा को भीष्म प्रतिज्ञा कहा गया. यह सब देखकर, राजा शांतनु भीष्म से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान दिया. अपने जीवनकाल के दौरान, भीष्म ने भीष्म पितामह के रूप में बहुत सम्मान प्राप्त किया. महाभारत के युद्ध में, वह कौरवों की ओर से थे और उन्होंने पूरी निष्ठा के साथ उनकी ओर से युद्धि किया. भीष्म पितामह ने शिखंडी के साथ युद्ध न करने और उसके ऊपर किसी भी प्रकार से अस्तर न चलाने का संकल्प लिया था. अर्जुन ने शिखंडी के पीछे खड़े होकर भीष्म पितामह पर प्रहार किया, जिससे वे घायल होकर गिर पड़े. भीष्म के कहने पर ही अर्जुन नें उनके लिए बाणों की शय्या बनाई.
हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो व्यक्ति उत्तरायण के शुभ दिन पर अपना शरीर छोड़ता है, उसे मोक्ष प्राप्ति होती है, इसलिए उन्होंने कई दिनों तक बाणों की शैय्या पर प्रतीक्षा की और अंत में अपने शरीर का त्याग किया. यही कारण है कि उत्तरायण भीष्म अष्टमी के रूप में मनाया जाता है.

भीष्म पितामह की शिक्षाएँ
उस समय जब भीष्म सूर्य के उत्तरी गोलार्ध में अपनी यात्रा शुरू करने की प्रतीक्षा कर रहे थे, उन्होंने युधिष्ठिर को कुछ महत्वपूर्ण सबक दिए. उनकी कुछ महान शिक्षाओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
1. क्रोध से मुक्त होना सीखें और लोगों को शांति प्राप्त करने के लिए क्षमा करें.
2. सभी कार्य पूर्ण होने चाहिए क्योंकि अधूरा कार्य नकारात्मकता को दर्शाता है.
3. चीजों और लोगों से जुड़ने से बचें.
4. धर्म हमेशा पहले आना चाहिए.
5. कड़ी मेहनत करिये, सभी की रक्षा करिये और दयालु बनिए.

भीष्म अष्टमी के अनुष्ठान
1. भीष्म अष्टमी की पूर्व संध्या पर, भक्त एकोद्देश श्राद्ध करते हैं. हिंदू धर्मग्रंथों और पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह माना जाता है कि जिन लोगों के पास अपने पिता नहीं हैं वे ही केवल इस श्राद्ध को कर सकते हैं. लेकिन कुछ समुदायों और धर्मों में, ऐसी स्थिति का पालन नहीं किया जाता है और अनुष्ठान का पालन इस तथ्य के बावजूद किया जाता है कि उनके पिता जीवित या मृत हैं.
2. इस विशेष दिन पर, भक्त पवित्र नदियों के तट पर तर्पण करते हैं जिसे भीष्म अष्टमी तर्पणम कहा जाता है. यह अनुष्ठान भीष्म पितामह और प्रेक्षकों के पूर्वजों के नाम पर उनकी आत्मा की शांति के लिए किया जाता है.
3. पवित्र स्नान एक और महत्वपूर्ण अनुष्ठान है जो इस दिन भक्तों द्वारा किया जाता है. पवित्र नदियों में डुबकी लगाना अत्यधिक शुभ माना जाता है. प्रेक्षकों को पवित्र नदी में तिल और उबले हुए चावल चढ़ाने होते हैं.
4. भीष्म पितामह को श्रद्धांजलि देने के लिए भक्त भीष्म अष्टमी का व्रत रखते हैं जहां वे संकल्प (व्रत) लेते हैं, अर्घ्यम् (पवित्र समारोह) करते हैं और भीष्म अष्टमी मंत्र का पाठ करते हैं.

भीष्म अष्टमी पूजा के लाभ
1. किंवदंतियों के अनुसार, यह माना जाता है कि भीष्म अष्टमी पूजा करने और इस विशेष दिन पर व्रत रखने से भक्तों को ईमानदार और आज्ञाकारी बच्चों का आशीर्वाद मिलता है.
2. भीष्म अष्टमी की पूर्व संध्या पर व्रत, तर्पण और पूजा सहित विभिन्न अनुष्ठानों को करने से, भक्त अपने अतीत और वर्तमान पापों से छुटकारा पाते हैं और उन्हें सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है.
3. यह लोगों को पितृ दोष से राहत दिलाने में भी मदद करता है.

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