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स्कंद षष्ठी व्रत विधि, स्कंद षष्ठी पूजन विधि
हिन्दू पंचांग के अनुसार हर महीने शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन स्कंद षष्ठी का व्रत रखा जाता है. स्कंद षष्ठी वर्ष में 12 बार और महीने में एक बार आती है. यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र स्कंद (कार्तिकेय) को समर्पित होने के कारण स्कंद षष्ठी के नाम से जाना जाता है. जैसे गणेश जी के लिए महीने की चतुर्थी के दिन पूजा–अर्चना की जाती है उसी प्रकार उनके बड़े भाई कार्तिकेय या स्कंद के लिए महीने की षष्ठी के लिए उपवास किया जाता है. उत्तर भारत में कार्तिकेय को गणेश का बड़ा भाई माना जाता है लेकिन दक्षिण भारत में कार्तिकेय गणेश जी के छोटे भाई माने जाते हैं. इसलिए हर महीने की षष्ठी को स्कंद षष्ठी मनायी जाती है. षष्ठी तिथि कार्तिकेय जी की होने के कारण इसे कौमारिकी भी कहा जाता है. दक्षिण भारत के साथ उत्तर भारत में भी यह पर्व हर्षोल्लास से मनाया जाता है. संतान के कष्टों को कम करने और अपने आस-पास की नकारत्मक ऊर्जा की समाप्ति में यह व्रत फायदेमंद होता है. आइए जानते हैं स्कंद षष्ठी व्रत और पूजा विधि, स्कंद षष्ठी व्रत का महत्व, भगवान कार्तिकेय के नाम, भगवान कार्तिकेय के प्रमुख मंत्र, भगवान कार्तिकेय की जन्म कथा आदि के बारे में विस्तार से-

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1. इस दिन सुबह जल्दी उठ जाएं. फिर घर को अच्छे से साफ करें.
2. सभी नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएं और स्नानादि कर लें. साफ वस्त्र धारण करें. फिर सबसे पहले व्रत का संकल्प लें.
3. घर के मंदिर में मां गौरी और शिव जी के साथ भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा स्थापित करें.
4. उन्हें जल, मौसमी फल, फूल, मेवा, कलावा, दीपक, अक्षत, हल्दी, चंदन, दूध, गाय का घी, इत्र अर्पित करें. उन्हें बादाम, काजल और नारियल से बनीं मिठाइयां चढ़ाएं. इसके अलावा बरगद के पत्ते और नीले फूल चढ़ा कर भगवान कार्तिकेय की श्रद्धा पूर्वक पूजा करें.
5.कार्तिकेय की पूजा दीयों, गहनों, कपड़ों और खिलौनों से की जाती है.
6. भगवान कार्तिकेय की आरती करें. साथ ही मां गौरी और शिवजी की आरती भी करें.
7. फिर शाम के समय भजन-कीर्तन करें. इसके बाद आरती करें.
8. इसके बाद फलाहार करें.

स्कंद षष्ठी व्रत के समय न करें ये काम (Skand Shashti Vrat Me Na Kare Ye Kaam)
इस व्रत को करने वाले भक्त को अहंकार, काम और क्रोध से मुक्ति मिलती है. जो भी साधक इस दिन उपवास रखकर पूजा करता है उसे मांस, शराब, लहसुन और प्याज का सेवन नहीं करना चाहिए. ऐसा माना जाता है कि इस भोग पदार्थों के सेवन से तामसिक प्रवृत्ति जागृति हो जाती है जो उपासक के विवेक को नष्ट कर देता है. ऐसी मान्यता है कि स्कंद षष्ठी के पूजन से च्यवन ऋषि को आंखी में रोशनी मिली थी.

भगवान कार्तिकेय के प्रमुख मंत्र (Kartikeya Mantra)
1. ॐ श्री स्कन्दाय नमः
2. ॐ शरवण भवाय नमः
3. ॐ श्री सुब्रमण्यम स्वामीने नमः
4. ॐ श्री स्कन्दाय नमः
5. ॐ श्री षष्ठी वल्ली युक्त कार्तिकेय स्वामीने नमः

शत्रुओं के नाश के लिए मंत्र
ऊं शारवाना-भावाया नमः
ज्ञानशक्तिधरा स्कंदा वल्लीईकल्याणा सुंदरा
देवसेना मनः काँता कार्तिकेया नामोस्तुते
ऊं सुब्रहमणयाया नमः
(Om Sharavana-bhavaya Namaha
Gyaanashaktidhara skanda valliikalyaana sundara
Devasenaa manah kaanta kaartikeya namo-as-tute
Om subrahmanyaaya namah)

सफलता प्राप्ति के लिए भगवान कार्तिकेय के मंत्र Lord Kartikeya Mantra for Success in Hindi
आरमुखा ओम मुरूगा
वेल वेल मुरूगा मुरूगा
वा वा मुरूगा मुरूगा
वादी वेल अज़्गा मुरूगा
अदियार एलाया मुरूगा
अज़्गा मुरूगा वरूवाई
वादी वेलुधने वरूवाई
(Aaramukha Om Muruga
Vel Vel Muruga Muruga
Vaa Vaa Muruga Muruga
Vadi Vel Azhaga Muruga
Adiyaar Elaiya Muruga
Azhaga Muruga Varuvaai
Vadi Veludaney Varuvaai)

कार्तिकेत गायत्री मंत्र – हर प्रकार के दुखों और कष्टों के नाश के लिए (Kartikeya Gayatri Mantra in Hindi)
ओम तत्पुरुषाय विधमहे:
महा सैन्या धीमहि
तन्नो स्कन्दा प्रचोद्यात:
(Om Thatpurushaya Vidhmahe
Maha Senaya Dhimahi
Thanno Skanda Prachodhayath)

दक्षिण भारतीय मंत्र (South Indian Mantra of Lord Kartikeya)
दक्षिण भारत में भगवान कार्तिकेय को प्रसन्न करने के लिए निम्न मंत्रों का जाप किया जाता है:
हरे मुरूगा हरे मुरूगा शिवा कुमारा हरो हरा
हरे कंधा हारे कंधा हारे कंधा हरो हरा
हरे षण्मुखा हारे षण्मुखा हारे षणमुखा हरो हरा
हरे वेला हरे वेला हारे वेला हरो हरा
हरे मुरूगा हरे मुरूगा ऊं मुरूगा हरो हरा
(Harey Muruga Harey Muruga Shiva Kumara Haro Hara
Harey Kandha Harey Kandha Harey Kandha Haro Hara
Harey Shanmukha Harey Shanmukha Harey Shanmukha Haro Hara
Harey Vela Harey Vela Harey Vela Haro Hara
Harey Muruga Harey Muruga Om Muruga Haro Hara)


कार्तिकेय प्रज्ञाविवर्धन स्तोत्र

योगीश्वरो महासेनः कार्तिकेयोऽग्निनंदनः .
स्कंदः कुमारः सेनानीः स्वामी शंकरसंभवः ॥१॥
गांगेयस्ताम्रचूडश्च ब्रह्मचारी शिखिध्वजः .
तारकारिरुमापुत्रः क्रौंचारिश्च षडाननः ॥२॥
शब्दब्रह्मसमुद्रश्च सिद्धः सारस्वतो गुहः .
सनत्कुमारो भगवान् भोगमोक्षफलप्रदः ॥३॥
शरजन्मा गणाधीश पूर्वजो मुक्तिमार्गकृत् .
सर्वागमप्रणेता च वांच्छितार्थप्रदर्शनः ॥४॥
अष्टाविंशतिनामानि मदीयानीति यः पठेत् .
प्रत्यूषं श्रद्धया युक्तो मूको वाचस्पतिर्भवेत् ॥५॥
महामंत्रमयानीति मम नामानुकीर्तनम् .
महाप्रज्ञामवाप्नोति नात्र कार्या विचारणा ॥६॥
इति श्रीरुद्रयामले प्रज्ञाविवर्धनाख्यं
श्रीमत्कार्तिकेयस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥७॥

कार्तिकेय का वाहन , कार्तिकेय और मयूर
कार्तिकेय का वाहन है मयूर. एक कथा के अनुसार यह वाहन उनको भगवान विष्णु से भेंट में मिला था. भगवान विष्णु ने कार्तिकेय की साधक क्षमताओं को देखकर उन्हें यह वाहन दिया था, जिसका सांकेतिक अर्थ था कि अपने चंचल मन रूपी मयूर को कार्तिकेय ने साध लिया है. वहीं एक अन्य कथा में इसे दंभ के नाशक के तौर पर कार्तिकेय के साथ बताया गया है.

भगवान कार्तिकेय के नाम Kartikeya Ke Naam
1. कार्तिकेय
2. महासेन
3. शरजन्मा
4. षडानन
5. पार्वतीनन्दन
6. स्कन्द
7. सेनानी
8. अग्निभू
9. गुह
10. बाहुलेय
11. तारकजित्
12. विशाख
13. शिखिवाहन
14. शक्तिश्वर
15. कुमार
16. क्रौञ्चदारण

स्कंद षष्ठी व्रत का महत्व (Skand Shashti Vrat Mahatva)
धार्मिक मान्यता है कि स्कंद षष्ठी व्रत करने से दीर्घायु और प्रतापी संतान की प्राप्ति होती है. इस दिन पूजन से रोग, दुख और दरिद्रता का नाश होता है. इनके पूजन से जीवन में उच्च योगों की प्राप्ति होती है. स्कंद षष्ठी को व्रत करने से काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह, ईष्र्या, अहंकार से निवृत्ति मिलती है. भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र भगवान कार्तिकेय का ध्यान, पूजन और मंत्रों का जाप कर आप दुश्मन, शिक्षा, नौकरी, बिजनेस पर विजय प्राप्त कर सकते हैं. कोर्ट-कचहरी, जमीन-जायदाद, पैसे आदि के विवाद को निपटाने से पहले भगवान कार्तिकेय की आराधना की जाए तो उसमें सफलता प्राप्त होती है. पुराणों के अनुसार भगवान कार्तिकेय की उपासना कर आप खोया साम्राज्य फिर से प्राप्त कर सकते हैं. इनकी उपासना से मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद, विधायक बनने तकी इच्छा पूरी होती है. इतना ही नहीं आप ऑफिसर बनने का भी सपना इसकी सेवा से पूरा कर सकते हैं. शिक्षा, खेल और सुरक्षा के क्षेत्र में भी आपको बेहतर सफलता के अवसर भगवान कार्तिकेय की कृपा से प्राप्त होते हैं. सुंदरता और माधुर्य आप इनकी कृपा से हासिल कर सकते हैं.

भगवान कार्तिकेय की जन्म कथा (Kartikeya Janm Katha In Hindi)
कुमार कार्तिकेय के जन्म का वर्णन हमें पुराणों में ही मिलता है. जब देवलोक में असुरों ने आतंक मचाया हुआ था, तब देवताओं को पराजय का सामना करना पड़ा था. लगातार राक्षसों के बढ़ते आतंक को देखते हुए देवताओं ने भगवान ब्रह्मा से मदद मांगी थी. भगवान ब्रह्मा ने बताया कि भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही इन असुरों का नाश होगा, परंतु उस काल च्रक्र में माता सती के वियोग में भगवान शिव समाधि में लीन थे.

इंद्र और सभी देवताओं ने भगवान शिव को समाधि से जगाने के लिए भगवान कामदेव की मदद ली और कामदेव ने भस्म होकर भगवान भोलेनाथ की तपस्या को भंग किया. इसके बाद भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया और दोनों देवदारु वन में एकांतवास के लिए चले गए. उस वक्त भगवान शिव और माता पार्वती एक गुफा में निवास कर रहे थे.

उस वक्त एक कबूतर गुफा में चला गया और उसने भगवान शिव के वीर्य का पान कर लिया परंतु वह इसे सहन नहीं कर पाया और भागीरथी को सौंप दिया. गंगा की लहरों के कारण वीर्य 6 भागों में विभक्त हो गया और इससे 6 बालकों का जन्म हुआ. यह 6 बालक मिलकर 6 सिर वाले बालक बन गए. इस प्रकार कार्तिकेय का जन्म हुआ.

स्कंद षष्ठी व्रत की विशेषताएं
1. षण्मुख, द्विभुज, शक्तिघर, मयूरासीन देवसेनापति कुमार कार्तिक की आराधना दक्षिण भारत में बहुत प्रचलित हैं ये ब्रह्मपुत्री देवसेना-षष्टी देवी के पति होने के कारण सन्तान प्राप्ति की कामना से तो पूजे ही जाते हैं, इनको नैष्ठिक रूप से आराध्य मानने वाला सम्प्रदाय भी है.
2. तारकासुर के अत्याचार से पीड़ित देवताओं पर प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने पार्वती जी का पाणिग्रहण किया. भगवान शंकर भोले बाबा ठहरे. उमा के प्रेम में वे एकान्तनिष्ठ हो गये. अग्निदेव सुरकार्य का स्मरण कराने वहाँ उज्ज्वल कपोत वेश से पहुँचे. उन अमोघ वीर्य का रेतस धारण कौन करे भूमि, अग्नि, गंगादेवी सब क्रमश: उसे धारण करने में असमर्थ रहीं. अन्त में शरवण (कास-वन) में वह निक्षिप्त होकर तेजोमय बालक बना. कृत्तिकाओं ने उसे अपना पुत्र बनाना चाहा. बालक ने छ: मुख धारण कर छहों कृत्तिकाओं का स्तनपान किया. उसी से षण्मुख कार्तिकेय हुआ वह शम्भुपुत्र. देवताओं ने अपना सेनापतित्व उन्हें प्रदान किया . तारकासुर उनके हाथों मारा गया.
3. स्कन्द पुराण के मूल उपदेष्टा कुमार कार्तिकेय (स्कन्द) ही हैं. समस्त भारतीय तीर्थों का उसमें माहात्म्य आ गया है . पुराणों में यह सबसे विशाल है.
4. स्वामी कार्तिकेय सेनाधिप हैं. सैन्यशक्ति की प्रतिष्ठा, विजय, व्यवस्था, अनुशासन इनकी कृपा से सम्पन्न होता है. ये इस शक्ति के अधिदेव हैं. धनुर्वेद पद इनकी एक संहिता का नाम मिलता है, पर ग्रन्थ प्राप्य नहीं है.

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