Janmashtami Vra

श्री कृष्ण जन्माष्टमी, जन्माष्टमी व्रत पूजा विधि, श्री कृष्ण जन्मोत्सव पूजा विधि, कैसे करें जन्माष्टमी व्रत, बाल गोपाल श्रृंगार सामग्री, 56 भोग की लिस्ट, जन्माष्टमी व्रत में क्या खाना चाहिए, श्री कृष्ण जन्माष्टमी कथा, श्री कृष्ण जन्म कथा, श्री कृष्ण आरती, जन्माष्टमी के भजन, नन्द के आनंद भयो जय कन्हिया लाल की (Shri Krishna Janmashtami Vrat, Janmashtam Puja Vidhi in Hindi, Shri Krishna Janmotsav puja, Janmashtami vrat katha, Shri Krishna janm Katha, Krishna Aarti, 56 Bhog List, Nand ke Anand Bhayo Jai Kanhaiya Lal Ki)

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श्री कृष्ण जन्माष्टमी, जन्माष्टमी व्रत पूजा विधि
Happy Janmashtami: भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव को ही जन्माष्टमी पर्व के रूप में मनाया जाता है. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि के समय हुआ था, अत: भाद्रपद मास में आने वाली कृष्ण पक्ष की अष्टमी को ही जन्माष्टमी को त्योहार धूम धाम से मनाया जाता है. इस दिन महिला-पुरुष और बच्चे सभी भक्तजन पूरे दिन उपवास रखते हैं, मंगल गीत गाते हैं. इस दिन लोग अपने घरों को सजाते हैं. मंदिरों को भी सजाया जाता है, रात्रि के समय यानी रात को 12 बजे भगवान बाल गोपाल के जन्म का उत्सव मनाया जाता है. इस दिन घरों में कई तरह के पकवान बनते हैं. कई जगह पर इस दिन भगवान श्री कृष्ण को 56 भोग लगाया जाता है. कहा जाता है कि जन्माष्टमी का व्रत रखने और विधि विधान से पूजा करने पर नि:संतान लोगों को संतान सुख की प्राप्ति होती है और जीवन में आनंद की प्राप्ति होती है. इस दिन श्रीकृष्ण जन्म कथा अवश्य सुननी चाहिए. अगर आप भी इस जन्माष्टमी व्रत रखने जा रही हैं तो यहां जानिए व्रत विधि, श्रीकृष्ण श्रृंगार विधि, जन्माष्टमी कथा आरती आदि के बारे में संपूर्ण जानकारी.

जन्‍माष्‍टमी व्रत फल  Janmashtami Vrat Fal
श्री कृष्ण के जन्मोत्सव पर यानी कि जन्माष्टमी के दिन व्रत करने वालों और पूजा अर्टना करने वालों को ऐश्वर्य, आयु, कीर्ति, यश, लाभ, पुत्र व पौत्र की प्राप्ति होती है. कहा जाता है इस दिन व्रत रखने वाला जन्म में सभी प्रकार के सुखों को भोग कर अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है. जो मनुष्य भक्तिभाव से श्रीकृष्ण की कथा को सुनते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और जीवन में सुख शांति आती है.

श्री कृष्ण जन्मोत्सव पूजा विधि / जन्‍माष्‍टमी व्रत पूजा विधि -Janmashtami Vrat Puja Vidhi in Hindi, Shri Krishna Janmotsav Puja
जन्‍माष्‍टमी व्रत पूजा सामग्री, Shri Krishna Janmotsav Puja Samgri
एक खीरा, एक चौकी, पीला साफ कपड़ा, बाल कृष्ण की मूर्ति, एक सिंहासन,दीपक, पंचामृत (गंगाजल, दही, शहद, दूध, घी), धूपबत्ती, गोकुलाष्ट चंदन, अक्षत (साबुत चावल), तुलसी का पत्ता, माखन, मिश्री, भोग सामग्री.
बाल गोपाल की श्रृंगार सामग्री – Baal Gopal Shringaar Samgri
बाल गोपाल के श्रृंगार के लिए इत्र, कान्हा के नए पीले वस्त्र, बांसुरी, मोरपंख, गले के लिए वैजयंती माता, सिर के लिए मुकुट, हाथों के लिए चूड़ियां.

जन्मोत्सव पूजा विधि 
दिन भर उपवास रखने के बाद जन्‍माष्‍टमी के दिन रात 12 बजे बाल गोपाल का जन्म होगा. इसके लिए सबसे पहले बाल गोपाल को पंचामृत से स्नान कराइए (सबसे पहले दूध से उसके बाद दही, फिर घी, फिर शहद से स्नान कराने के बाद गंगाजल से अभिषेक किया जाता है ऐसा शास्त्रों में वर्णित है) स्नान कराने के बाद गोपाल जी को बिल्कुल छोटे बच्चों की तरह लगोंटी अवश्य पहनाएं. फिर भगवान कृष्ण को नए वस्त्र पहनाएं. बता दें कि जिन चीजों से बाल गोपाल का स्नान हुआ है, उसे पंचामृत कहा जाता है और इसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है.

भगवान के जन्म के बाद के मंगल गीत भी गाएं. अब चौकी पर लाल कपड़ा बिछा कर भगवान् कृष्ण का आसन रखिए. इसके बाद बाल गोपाल की मूर्ति को आसन पर बैठाइए. भगवान् कृष्ण से प्रार्थना करें कि, ‘हे भगवान् कृष्ण ! कृपया पधारिए और पूजा ग्रहण कीजिए. गोपाल जी को आसान पर बैठाकर उनका श्रृंगार करिए. उनके हाथों में चूड़ियां, गले में वैजयंती माला पहनाएं. सिर पर मोरपंख लगा हुआ मुकुट पहनाएं और बांसुरी उनके पास रख दें. अब उनको चंदन- अक्षत लगाएं और धूप-दीप से पूजा करें. फिर माखन मिश्री के साथ अन्य भोग की सामग्री अर्पण करें. ध्यान रहे, भोग में तुलसी का पत्ता जरूर होना चाहिए साथ ही पीने के लिए गंगाजल रखें . भगवान को झुले पर बिठाकर झुला झुलाएं और नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की गीत गाएं. साथ ही श्री कृष्ण जन्म कथा पढ़ें व सुने. कथा के बाद आरती करें व प्रसाद बांटें और स्वयं भी ग्रहण करें.

इस मंत्र का करें जाप- Janmashtami Mantra, Shri Krishna Mantra
1- जन्माष्टमी के दिन सायंकाल भगवान को पुष्पांजलि अर्पित करते हुए इस मंत्र का उच्चारण करें- ‘धर्माय धर्मपतये धर्मेश्वराय धर्मसम्भवाय श्री गोविन्दाय नमो नम:।’
2- इसके बाद चंद्रमा के उदय होने पर दूध मिश्रित जल से चंद्रमा को अर्घ्य देते समय इस मंत्र का उच्चारण करें- ‘ज्योत्सनापते नमस्तुभ्यं नमस्ते ज्योतिषामपते:! नमस्ते रोहिणिकांतं अघ्र्यं मे प्रतिग्रह्यताम!’
3- रात्रि में कृष्ण जन्म से पूर्व कृष्ण स्तोत्र, भजन, मंत्र- ‘ऊं क्रीं कृष्णाय नम:’ का जप आदि कर प्रसन्नतापूर्वक आरती करें.

जन्माष्टमी 56 भोग की लिस्ट (Janmashtami 56 Bhog List)
जन्माष्टमी के दिन कई लोग अपने घरों में 56 भोग बनाते हैं. यहां देखिए इनकी लिस्ट
1. भक्त (भात)
2. सूप (दाल)
3. प्रलेह (चटनी)
4. सदिका (कढ़ी)
5. दधिशाकजा (दही शाक की कढ़ी)
6. सिखरिणी (सिखरन)
7.अवलेह (शरबत)
8. बालका (बाटी) 9
9.इक्षु खेरिणी (मुरब्बा)
10. त्रिकोण (शर्करा युक्त)
11. बटक (बड़ा)
12.मधु शीर्षक (मठरी)
13. फेणिका (फेनी)
14. परिष्टाश्च (पूरी)
15. शतपत्र (खजला)
16. सधिद्रक (घेवर)
17. चक्राम (मालपुआ)
18. चिल्डिका (चोला)
19. सुधाकुंडलिका (जलेबी)
20. धृतपूर (मेसू)
21. वायुपूर (रसगुल्ला)
22. चन्द्रकला (पगी हुई)
23. दधि (महारायता)
24. स्थूली (थूली)
25. कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी)
26. खंड मंडल (खुरमा)
27. गोधूम (दलिया)
28. परिखा
29. सुफलाढय़ा (सौंफ युक्त)
30. दधिरूप (बिलसारू)
31. मोदक (लड्डू)
32. शाक (साग)
33. सौधान (अधानौ अचार)
34. मंडका (मोठ)
35. पायस (खीर)
36. दधि (दही)
37. गोघृत
38. हैयंगपीनम (मक्खन)
39. मंडूरी (मलाई)
40. कूपिका
41. पर्पट (पापड़)
42. शक्तिका (सीरा)
43. लसिका (लस्सी)
44. सुवत
45. संघाय (मोहन)
46. सुफला (सुपारी)
47. सिता (इलायची)
48. फल
49. तांबूल
50. मोहन भोग
51. लवण
52. कषाय
53. मधुर
54. तिक्त
55. कटु
56. अम्ल।

जन्माष्टमी व्रत में क्या खाना चाहिए, Janmashtami Vrat me kya khana chahiye
जन्माष्टमी के व्रत में आप नारियल पानी, या किसी भी फल के जूस का सेवन कर सकती हैं. साबूदाना खिचड़ी, साबूदाने की खीर, कुट्टू के आटे का हलवा, कुट्टू के आटे का वड़ा, कुट्टू के आटे के पकौड़े, कुट्टू के आटे की पूड़ी दही के साथ ले सकती हैं. इसके अलावा व्रत वाले आलू, सेंधा नमक डालकर आलू की सब्जी, आलू का हलवा खा सकती हैं. इसके अलावा आप कोई भी फलाहार खा सकती हैं और पानी पी सकती हैं.

श्री कृष्ण जन्म कथा / जन्‍माष्‍टमी व्रत कथा, Janmashtami vrat katha, Shri Krishna janm Katha
त्रेता युग के अंत और द्वापर के प्रारंभ काल में अत्यंत पापी कंस उत्‍पन्‍न हुआ. द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था. उसके बेटे कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा. कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था. एक बार कंस अपनी बहन देवकी को उसकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था. रास्ते में अचानक आकाशवाणी हुई- ‘हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसी में तेरा काल बसता है. इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा.’

आकशवाणी सुनकर कंस अपने बहनोई वसुदेव को जान से मारने के लिए उठ खड़ा हुआ. तब देवकी ने उससे विनयपूर्वक कहा- ‘मेरे गर्भ से जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी. बहनोई को मारने से क्या लाभ है?’ कंस ने देवकी की बात मान ली और मथुरा वापस चला आया. उसने वसुदेव और देवकी को कारागृह में डाल दिया. काल कोठरी में ही देवकी के गर्भ से सात बच्‍चे हुए लेकिन कंस ने उन्‍हें पैदा होते ही मार डाला. अब आठवां बच्चा होने वाला था. कारागार में उन पर कड़े पहरे बैठा दिए गए. उसी समय नंद की पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था.

जिस समय वसुदेव-देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ, जो और कुछ नहीं सिर्फ ‘माया’ थी. जिस कोठरी में देवकी-वसुदेव कैद थे, उसमें अचानक प्रकाश हुआ और उनके सामने शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए चतुर्भुज भगवान प्रकट हुए. दोनों भगवान के चरणों में गिर पड़े. तब भगवान ने उनसे कहा- ‘अब मैं पुनः नवजात शिशु का रूप धारण कर लेता हूं. तुम मुझे इसी समय अपने मित्र नंद के घर वृंदावन में भेज आओ और उनके यहां जो कन्या जन्मी है, उसे लाकर कंस के हवाले कर दो. इस समय वातावरण अनुकूल नहीं है. फिर भी तुम चिंता न करो. जागते हुए पहरेदार सो जाएंगे, कारागृह के फाटक अपने आप खुल जाएंगे और उफनती अथाह यमुना तुमको पार जाने का मार्ग दे देगी.’

उसी समय वसुदेव नवजात शिशु-रूप श्रीकृष्ण को सूप में रखकर कारागृह से निकल पड़े और अथाह यमुना को पार कर नंद के घर पहुंचे. वहां उन्होंने नवजात शिशु को यशोदा के साथ सुला दिया और कन्या को लेकर मथुरा आ गए. कारागृह के फाटक पहले की तरह बंद हो गए. तभी कंस ने बंदीगृह जाकर देवकी के हाथ से नवजात कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटक देना चाहा, लेकिन वह कन्या आकाश में उड़ गई और वहां से कहा- ‘अरे मूर्ख, मुझे मारने से क्या होगा? तुझे मारनेवाला तो वृंदावन में जा पहुंचा है. वह जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड देगा. मेरा नाम वैष्णवी है और मैं उसी जगद्गुरु विष्णु की माया हूं.’ इतना कहकर वह अंतर्ध्यान हो गई.

अपने मृत्‍यु की बात से घबराकर कंस ने पूतना को बुलाकर उसे कृष्‍ण को मारने का आदेश दिया. कंस की आज्ञा पाकर पूतना ने एक अत्यंत सुंदर स्त्री का रूप धारण किया और नंद बाबा के घर पहुंच गई. उसने मौका देखकर कृष्ण को उठा लिया और अपना दूध पिलाने लगी. स्तनपान करते हुए कृष्ण ने उसके प्राण भी हर लिए. पूतना के मृत्यु की खबर सुनने के बाद कंस और भी चिंतित हो गया. इस बार उसने केशी नामक अश्व दैत्य को कृष्ण को मारने के लिये भेजा. कृष्ण ने उसके ऊपर चढ़कर उसे यमलोक पहुंचा दिया. फिर कंस ने अरिष्ट नामक दैत्य को बैल के रूप में भेजा. कृष्ण अपने बाल रूप में क्रीडा कर रहे थे. खेलते-खेलते ही उन्होंने उस दैत्य रूपी बैल के सीगों को क्षण भर में तोड़ कर उसे मार डाला. फिर दानव कंस ने काल नामक दैत्य को कौवे के रूप में भेजा. वह जैसे ही कृष्‍ण को मारने के लिए उनके पास पहुंचा. श्रीकृष्ण ने कौवे को पकड़कर उसके गले को दबोचकर मसल दिया और उसके पंखों को अपने हाथों से उखाड़ दिया जिससे काल नामक असुर मारा गया.

एक दिन श्रीकृष्ण यमुना नदी के तट पर खेल रहे थे तभी उनसे गेंद नदी में जा गिरी और वे गेंद लाने के लिए नदी में कूद पड़े. इधर, यशोदा को जैसे ही खबर मिली वह भागती हुई यमुना नदी के तट पर पहुंची और विलाप करने लगी. श्री कृष्ण जब नीचे पहुंचे तो नागराज की पत्नी ने कहा- ‘हे भद्र! यहां पर किस स्थान से और किस प्रयोजन से आए हो? यदि मेरे पति नागराज कालिया जग गए तो वे तुम्हें भक्षण कर जायेंगे.’ तब कृष्ण ने कहा, ‘मैं कालिया नाग का काल हूं और उसे मार कर इस यमुना नदी को पवित्र करने के लिए यहां आया हूं.’ ऐसा सुनते हीं कालिया नाग सोते से उठा और श्रीकृष्ण से युद्ध करने लगा. जब कालिया नाग पूरी तरह मरनासन्न हो गया तभी उसकी पत्नी वहां पर आई और अपने पति के प्राणों की रक्षा के लिये कृष्ण की स्तुति करने लगी, ‘हे भगवन! मैं आप भुवनेश्वर कृष्‍ण को नहीं पहचान पाई. हे जनाद! मैं मंत्रों से रहित, क्रियाओं से रहित और भक्ति भाव से रहित हूं. मेरी रक्षा करना. हे देव! हे हरे! प्रसाद रूप में मेरे स्वामी को मुझे दे दो अर्थात् मेरे पति की रक्षा करो.’ तब श्री कृष्ण ने कहा कि तुम अपने पूरे बंधु-बांधवों के साथ इस यमुना नदी को छोड़ कर कहीं और चले जाओ. इसके बाद कालिया नाग ने कृष्ण को प्रणाम कर यमुना नदी को छोड़ कर कहीं और चला गया. कृष्ण भी अपनी गेंद लेकर यमुना नदी से बाहर आ गए.

इधर, कंस को जब कोई उपाय नहीं सूझा तब उसने अक्रूर को बुला कर कहा कि नंदगांव जाकर कृष्ण और बलराम को मथुरा बुला लाओ. मथुरा आने पर कंस के पहलवान चाणुर और मुष्टिक के साथ मल्ल युद्ध की घोषणा की. अखाड़े के द्वार पर हीं कंस ने कुवलय नामक हाथी को रख छोड़ा था, ताकि वो कृष्‍ण को कुचल सके. लेकिन श्रीकृष्ण ने उस हाथी को भी मार डाला. उसके बाद श्रीकृष्ण ने चाणुर के गले में अपना पैर फंसा कर युद्ध में उसे मार डाला और बलदेव ने मुष्टिक को मार गिराया. इसके बाद कंस के भाई केशी को भी केशव ने मार डाला. बलदेव ने मूसल और हल से और कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से दैत्यों को माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मार डाला. श्री कृष्ण ने कहा- ‘हे दुष्ट कंस! उठो, मैं इसी स्थल पर तुम्हें मारकर इस पृथ्वी को तुम्हारे भार से मुक्त करूंगा.’ यह कहते हुए कृष्‍ण ने कंस के बालों को पकड़ा और घुमाकर पृथ्वी पर पटक दिया जिससे वह मार गया. कंस के मरने पर देवताओं ने आकाश से कृष्ण और बलदेव पर पुष्प की वर्षा की. फिर कृष्ण ने माता देवकी और वसुदेव को कारागृह से मुक्त कराया और उग्रसेन को मथुरा की गद्दी सौंप दी.


श्रीकृष्‍ण की आरती / Krishna Aarti

आरती युगलकिशोर की कीजै, 
राधे धन न्यौछावर कीजै।
रवि शशि कोटि बदन की शोभा, 
ताहि निरिख मेरो मन लोभा।।
।।आरती युगलकिशोर…।।

गौरश्याम मुख निरखत रीझै, 
प्रभु को रुप नयन भर पीजै।।
।।आरती युगलकिशोर…।।

कंचन थार कपूर की बाती, 
हरी आए निर्मल भई छाती।।
।।आरती युगलकिशोर…।।

फूलन की सेज फूलन की माला, 
रत्न सिंहासन बैठे नंदलाला।।
।।आरती युगलकिशोर…।।

मोर मुकुट कर मुरली सोहै,
नटवर वेष देख मन मोहै।।
।।आरती युगलकिशोर…।।

ओढे नील पीट पट सारी, 
कुंजबिहारी गिरिवर धारी।।
।।आरती युगलकिशोर…।।

श्री पुरषोत्तम गिरिवरधारी, 
आरती करत सकल ब्रजनारी।।
।।आरती युगलकिशोर…।।

नन्द -नंदन ब्रजभान किशोरी, 
परमानन्द स्वामी अविचल जोरी।।
।।आरती युगलकिशोर…।।

नन्द के आनंद भयो जय कन्हिया लाल की गीत 

आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की॥

बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हिया लाल की॥

जय हो नंदलाल की, जय यशोदा लाल की।
गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की॥

आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की॥

बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हिया लाल की॥

आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की॥

बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की॥

आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की।
गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की॥

जय हो नंदलाल की, जय यशोदा लाल की।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हिया लाल की॥

आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की॥

बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की॥

आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की॥

कोटि ब्रह्माण्ड के अधिपति लाल की।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हिया लाल की॥

गौ चरने आये, जय हो पशुपाल की।
गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की॥

कोटि ब्रह्माण्ड के अधिपति लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की॥

गौ चरने आये, जय हो पशुपाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की॥

पूनम के चाँद जैसी शोभी है बाल की।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हिया लाल की॥

आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की।
गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की॥

कोटि ब्रह्माण्ड के अधिपति लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की॥

गौ चरने आये, जय हो पशुपाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की॥

भक्तो के आनंद्कनद जय यशोदा लाल की।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हिया लाल की॥

जय हो यशोदा लाल की, जय हो गोपाल की।
गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की॥

कोटि ब्रह्माण्ड के अधिपति लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की॥

गौ चरने आये, जय हो पशुपाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की॥

आनद से बोलो सब जय हो बृज लाल की।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हिया लाल की॥

जय हो बृज लाल की,पावन प्रतिपाल की।
गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की॥

कोटि ब्रह्माण्ड के अधिपति लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की॥

गौ चरने आये, जय हो पशुपाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की॥

आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की॥

बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की॥

जय हो नंदलाल की, जय यशोदा लाल की।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हिया लाल की॥

आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हिया लाल की॥

बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की॥

जय हो नंदलाल की, जय यशोदा लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की॥

आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की॥

बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की॥

कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व
हम सभी जानते है कि भगवान विष्णु ने ही कृष्ण अवतार लेकर माता देवकी और वासुदेव की आठवी संतान के रूप में जन्म लिया था, अपने मामा कंस के पापों का अंत करने के लिए. कृष्ण जन्म के उत्सव दिन यानी जन्माष्टमी के दिन मथुरा में इस दिन काफी हर्षोल्लास देखा जाता है, दूर देश-विदेश से लोग जन्माष्टमी को मनाने मथुरा आते है. यह दिन हिन्दू धर्म के लोगों के लिए बेहद ही ख़ास होता है. जन्माष्टमी के दिन लोग व्रत रखते है और श्री कृष्ण की भक्ति में विलीन हो जाते है. पूरे दिन लोग घरों में मंदिरों में श्री कृष्ण की झाँकिया सजाते है, इस दिन कान्हा जी का श्रृंगार किया जाता है, झूले झुलाए जाते है. कहते है इस दिन श्री कृष्ण को झूला झूलाने से कई जन्मो के पाप धुल जाते है और भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है. इस दिन श्री कृष्ण के भजन कीर्तन किये जाते है. और रात 12 बजे कृष्ण का जन्म होता है और नवमी तिथि के दिन कृष्ण जन्म पर उनके भक्त व्रत का पारण करते है. लोग अलग-अलग झांकियों में भगवान कृष्ण की छवि देखकर उनके दर्शन करते है. रोशनी की झगमगाट में मंदिरों का दृश्य बेहद ही सुंदर दिखाई पड़ता है. महाराष्ट्र में यह पर्व दही हांडी के रूप में बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है.

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