Shabari-Jayanti

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शबरी जयंती पूजा विधि, Shabari Jayanti Puja Vidhi
फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शबरी जयंती मनाई जाती है. यह दिन भगवान राम की अनन्य भक्त माता शबरी को समर्पित है. शबरी जयंती के दिन ही शबरी को उसके भक्ति के परिणामस्वरूप मोक्ष प्राप्त हुआ था. यह पर्व मोक्ष तथा भक्ति का प्रतीक माना जाता है. इस दिन शबरी माला में माता शबरी की पूजा करने का विधान है. माता शबरी की पूजा अर्चना करने से भगवान राम की कृपा भी प्राप्त होती है. प्रभु श्री राम ने अपनी भक्त शबरी की भक्ति को पूर्ण करने के लिए उनके जूठे बेर खाए थे. रामायण, रामचरितमानस आदि में शबरी की कथा का उल्लेख मिलता है. इस दिन माता शबरी की स्मृति यात्रा निकाली जाती है. लोग रामायण का पाठ आदि कराते हैं. शबरी का जिक्र तो आपने रामायण के दौरान सुना, जाना और पढ़ा ही होगा आइए आज जानते हैं शबरी कौन थी, शबरी जयंती का महत्व, कथा, पूजा विधि आदि के बारे में जानकारी विस्तार से-

शबरी जयंती पूजा विधि , Shabari Jayanti Ki Puja Vidhi
1. शबरी जयंती के दिन भगवान श्री राम की पूजा की जाती है. इस दिन साधक को सुबह जल्दी उठना चाहिए और साफ वस्त्र धारण करने चाहिए.
2. इसके बाद एक साफ चौकी लेकर उस पर गंगाजल छिड़कना चाहिए और उस पर भगावान श्री राम की प्रतिमा को स्थापित करना चाहिए.
3. प्रतिमा स्थापित करने के बाद भगवान श्री राम को फल, फूल व नैवेद्य और बेर विशेष रूप से अर्पित करने चाहिए.
4. इसके बाद भगवान श्री राम के आगे धूप व दीप जलाने चाहिए.
5. धूप व दीप जलाने के बाद भगवान श्री राम की विधिवत पूजा करनी चाहिए.
6. इसके बाद भगवान श्री राम की कथा पढ़नी या सुननी चाहिए.
7. भगवान श्री राम की कथा पढ़ने और सुनने के बाद उनकी धूप व दीप से आरती उतारनी चाहिए. 8. इसके बाद भगवान श्री राम को बेर का भोग अवश्य लगाना चाहिए और भोग लगाते समय माता शबरी को याद करना चाहिए.
9. अंत में पूजा में हुई किसी भी गलती के लिए भगवान श्री राम से क्षमा याचना अवश्य करनी चाहिए. 10. इसके बाद यदि संभव हो तो निर्धन लोगों के बीच में बेर अवश्य बांटे.

शबरी जयंती का महत्व , Shabari Jayanti Ka Mahatva
शास्त्रों के अनुसार, शबरी को भगवान श्री राम का भक्त माना जाता है. शबरी के झूठे बेर श्री राम ने खाए थे और उनकी भक्ति को पूरा किया था. बता दें कि जहां शबरी माता ने श्री राम को अपने जूठे बेर खिलाएं, माता शबरी का वह आश्रम छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण में स्थित है. इनकी कथा रामायण, भागवत,रमाचरित मानस,सुरसागर आदि ग्रंथों में पढ़ने को मिलती है. शबरी जयंती पर इनकी स्मृति यात्रा का आयोजन किया जाता है. साथ ही इस दिन श्री राम के भक्त भी इक्ट्ठा होते हैं. इस दिन रामायण आदि ग्रंथों का पाठ किया जाता है. सात ही कई धार्मिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं. इस दिन पूरी श्रद्धा के साथ व्रत करने से व्यक्ति को प्रभु श्री राम की कृपा प्राप्ति होती है जिस तरह के शबरी को हुई थी.

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ग्रंथों में मिलने वाली कथा के अनुसार माता शबरी भगवान श्री राम की परम भक्त थी. शबरी का असली नाम श्रमणा था. ये भील सामुदाय के शबर जाति से संबंध रखती थीं इसी कारण कालांतर में उनका नाम शबरी हुआ. इनके पिता भीलों के मुखिया थे, उन्होंने श्रमणा का विवाह एक भील कुमार से तय किया था. विवाह से पहले परंपरा के अनुसार कई सौ पशुओं को बलि देने के लिए लाया गया. जिन्हें देख श्रमणा का हृदय द्रवित हो उठा कि यह कैसी परंपरा जिसके कारण बेजुबान और निर्दोष जानवरो की हत्या की जाती है. श्रमणा उन भेड़ बकरियों को बचाने की कोशिश करने लगीं. उन्हें बचाने के लिए शबरी ने सुबह ही सभी जानवरों को छोड़ दिया तथा खुद भी घर वापस नहीं आयीं. इस तरह से शबरी अपने विवाह से एक दिन पूर्व भाग गई और दंडकारण्य वन में पहुंच गई.

दंडकारण्य में मातंग ऋषि तपस्या किया करते थे. श्रमणा उनकी सेवा करना चाहती थी परंतु वह भील जाति से थी जिसके कारण उन्हें लगता था कि उन्हें सेवा करने का अवसर नहीं मिलेगा, लेकिन इसके बाद भी वे चुपचाप प्रातः जल्दी उठकर आश्रम से नदी तक का रास्ते से सारे कंकड़ और कांटो को चुनकर पूरे रास्ते को भलिभांति साफ कर दिया करती थी और रास्ते में बालू बिछा देती थी. एक दिन जब शबरी यह सब कार्य कर रही थी तो ऋषिश्रेष्ठ ने उन्हें देख लिया. वे शबरी की सेवा भावना से अत्यंत प्रसन्न हुए. उन्होंने अपने आश्रम में शरण दे दी. शबरी वहीं पर रहने लगी. एक दिन जब ऋषि मातंग को लगा कि उनका अंत समय निकट है तो उन्होंने शबरी से कहा कि वे अपने आश्रम में ही प्रभु श्री राम की प्रतीक्षा करें. वे एक दिन अवश्य ही उनसे मिलने आएंगे. मातंग ऋषि की मृत्यु के पश्चात शबरी का समय भगवान राम की प्रतीक्षा में बीतने लगा. वह अपने आश्रम को एकदम साफ-सुथरा रखती थी और प्रतिदिन भगवान राम के लिए मीठे बेर तोड़कर लाती थी. एक भी बेर खट्टा न हो इसके लिए वह एक-एक बेर चखकर तोड़ती थी. ऐसा करते-करते कई वर्ष बीतते चले गए.

एक दिन शबरी को पता चला कि दो सुंदर युवक उन्हें खोज रहे हैं, वे समझ गईं कि उनके प्रभु राम आ गए हैं. अब तक उनका शरीर बहुत वृद्ध हो गया था परंतु अपने प्रभु राम के आने की खबर सुनते ही उसमे चुस्ती आ गई और वो दौड़ती हुई, अपने प्रभु राम के पास पहुंची और उन्हें घर लेकर आई और उनके पांव को धोकर बैठाया. इसके बाद उन्होंने अपने तोड़े हुए मीठे बेर राम को दिए भगवान राम ने बड़े प्रेम से वे बेर खाए और अपनी भक्त शबरी की भक्ति को पूर्ण किया. राम जी ने लक्ष्मण को भी बेर खाने को कहा लेकिन उन्हें  जूठे बेर खाने में संकोच हो रहा था, फिर भी अपने भ्राता श्री राम का मन रखने के लिए उन्होंने बेर उठा तो लिए लेकिन खाए नहीं, कहा जाता है कि इसका परिणाम यह हुआ कि राम-रावण युद्ध में जब शक्ति बाण का प्रयोग किया गया तो वे मूर्छित हो गए थे. हे प्रभु श्री राम जिस तरह से आपने माता शबरी पर अपनी कृपा बरसाई ऐसे ही हम सबके ऊपर अपनी कृपा दृष्टि बनाएं रखना.

शबरी मंदिर, Shabari Temple, Shabari Mandir, शबरी मंदिर कहां है, शबरी मंदिर का महत्व, शबरी मंदिर की विशेषता
शबरी मंदिर भारत के छत्तीसगढ़ प्रांत में स्थित खरौद नगर के दक्षिण प्रवेश द्वार पर स्थित शौरि मंडप शबरी का ही मंदिर है. ईंट से बना पूर्वाभिमुख इस मंदिर को सौराइन दाई अथवा शबरी का मंदिर भी कहा जाता है. मंदिर के गर्भगृह में श्रीराम और लक्ष्मण धनुष बाण लिये विराजमान हैं. कहा जाता है कि श्रीराम और लक्ष्मण जी शबरी के जूठे बेर यहीं खाये थे. तत्कालीन साहित्य में उल्लेख मिलता है कि नगर के दक्षिण दिशा में शबरी देवी (सौराइन दाई) का मंदिर स्थित है. ईंट से बना यह मंदिर पूर्वाभिमुख है. लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर के शिलालेख में इसके निर्माण के काल का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि गंगाधर नामक अमात्य ने एक शौरि मंडप का निर्माण कराकर पुण्य का कार्य किया है. शौरि वास्तव में विष्णु का एक नाम है और यह क्षेत्र भी विष्णु प्रतिमाओं के कारण श्री नारायण क्षेत्र या श्री पुरूषोत्तम क्षेत्र कहलाता है, जिसका उल्लेख स्कन्द पुराण में मिलता है. इस मंदिर के गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर गरूड़ जी की मूर्ति है. अत: इसके विष्णु मंदिर होने की कल्पना की जा सकती है. सम्प्रति यहाँ देवी की मूर्ति है. इस मंदिर में देवी की मूर्ति कब और किसने स्थापित की, यह पता नहीं चलता. संभवत: विष्णु और शक्ति में सामंजस्य स्थापित करने के लिए इस मंदिर में देवी की स्थापना की गई है. प्राचीन काल में यह क्षेत्र दंडकारण्य कहलाता था. दंडकारण्य में श्रीराम लक्ष्मण और जानकी ने कई वर्ष व्यतीत किये. इसी क्षेत्र से सीता का हरण हुआ था. श्रीराम और लक्ष्मण ने सीता की खोज के दौरान शबरी के आश्रम में आकर उसके जूठे बेर खाये थे, इसी प्रसंग को लेकर इस स्थान को शबरी-नारायण कहा गया. कालान्तर में यह बिगड़कर शिवरीनारायण कहलाने लगा. प्राचीन काल में इस क्षेत्र में खर-दूषण का राज था, जो श्रीराम के हाथों वीरगति को प्राप्त हुआ था. कदाचित् उन्हीं के नाम पर यह नगर खरौद कहलाया.

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