Narmada-Jayanti-Pooja

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नर्मदा जयंती – परिचय
हिंदू धर्म में 33 कोटि देवी-देवताओं के अलावा, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी के साथ नदियों की भी पूजा अर्चना विधि विधान से की जाती है. इसलिए हर माह कोई न कोई पर्व त्यौहार मनाएं ही जाते हैं. बताया जाता है प्रत्येक साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को माँ नर्मदा के जन्मदिवस पर नर्मदा जयंती का पर्व मनाया जाता है. बता दें इस ही दिन रथ सप्तमी का पर्व भी मनाया जाता है. हिन्दू धर्म में नर्मदा जयंती का बहुत महत्त्व है. शास्त्रों के अनुसार माँ नर्मदा नदी के पूजन, दीपदान, स्नान एवं दर्शन मात्र से मनुष्य के पापों का नाश हो जाता है. माना जाता है जो भी इस दिन मां नर्मदा का पूजन करते हैं, उनके सभी मनोकामना पूर्ण होती है. मां नर्मदा की आराधना के साथ इसमें स्नान करने से अनेक रोगों से छुटकारा मिलता है. जानें नर्मदा जयंती पर नर्मदा पूजा विधि.

नर्मदा जयंती पूजा विधि (Narmada Jayanti Puja Vidhi)
1. मां नर्मदा की पूजा यदि संभव हो सके तो नर्मदा नदी के घाट पर ही करें. यदि आप ऐसा नहीं कर सकते तो आप घर पर भी मां नर्मदा की पूजा कर सकते हैं.
2. इसके लिए आप सुबह सूर्योदय से पहले स्नान करें स्नान के पानी में यदि हो सके तो नर्मदा नदी का जल या गंगाजल डालकर स्नान करें.
3. स्नान करने के बाद सफेद वस्त्र धारण करें और एक चौकी पर गंगाजल छिड़क कर उस पर सफेद कपड़ा बिछाएं और उस मां नर्मदा की तस्वीर स्थापित करें.
4. इसके बाद मां गंगा को सफेद फूल, फल और सफेद मिठाई अर्पित करें.
5. यह सब अर्पित करने के बाद मां नर्मदा के आगे गाय के घी का दीपक जलाएं और मां नर्मदा की विधिवत पूजा करें.
6. इसके बाद मां नर्मदा के मंत्रों का जाप करें और उनकी कथा सुनें.
7. कथा सुनने के बाद मां नर्मदा की आरती उतारें
8. मां नर्मदा की आरती उतारने के बाद मां नर्मदा को सफेद मिठाई का भोग लगाएं.
9. इसके बाद पूजा में हुई किसी भी तरह की भूल के लिए मां नर्मदा से क्षमा याचना करें.
10. अंत में मां नर्मदा को चढ़ाया हुआ प्रसाद घर के सभी लोगों के बीच में वितरित करें.

नर्मदा जयंती दीपदान
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नर्मदा जयंती के दिन नर्मदा में 11 आटे के दीपक जलाकर दान करने से हर मनोकामना पूरी हो जाती है.


श्री नर्मदाष्टकम
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे,
नमामि देवी नर्मदे, नमामि देवी नर्मदे,

1- सबिंदु सिन्धु सुस्खल तरंग भंग रंजितम,
द्विषत्सु पाप जात जात कारि वारि संयुतम..
कृतान्त दूत काल भुत भीति हारि वर्मदे,
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे..

2- त्वदम्बु लीन दीन मीन दिव्य सम्प्रदायकम,
कलौ मलौघ भारहारि सर्वतीर्थ नायकं..
सुमस्त्य कच्छ नक्र चक्र चक्रवाक् शर्मदे,
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे..

3- महागभीर नीर पुर पापधुत भूतलं,
ध्वनत समस्त पातकारि दरितापदाचलम..
जगल्ल्ये महाभये मृकुंडूसूनु हर्म्यदे,
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे..

4- गतं तदैव में भयं त्वदम्बु वीक्षितम यदा,
मृकुंडूसूनु शौनका सुरारी सेवी सर्वदा..
पुनर्भवाब्धि जन्मजं भवाब्धि दुःख वर्मदे,
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे..

5- अलक्षलक्ष किन्न रामरासुरादी पूजितं,
सुलक्ष नीर तीर धीर पक्षीलक्ष कुजितम..
वशिष्ठशिष्ट पिप्पलाद कर्दमादि शर्मदे,
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे..

6- सनत्कुमार नाचिकेत कश्यपात्रि षटपदै,
धृतम स्वकीय मानषेशु नारदादि षटपदै:..
रविन्दु रन्ति देवदेव राजकर्म शर्मदे,
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे..

नर्मदा जयंती का महत्व , Narmada Jayanti Importance , Narmada Jayanti Ka Mahatva
नर्मदा जयंती पर मां नर्मदा की पूजा की जाती है. भारत में नर्मदा जयंती को एक त्योहार के रूप में मनाया जाता है. इस त्योहार को मध्य प्रदेश के अमरकंटक मे बड़ी ही धूमदाम के साथ मनाया जाता है. शास्त्रों के अनुसार इसी स्थान से मां नर्मदा की उत्पत्ति हुई थी. भारत में 7 नदियों को अत्याधिक मान्यता दी गई है. नर्मदा उन्हीं सात नदियों में से ही एक महत्वपूर्ण नदी है. धार्मिक शास्त्रों के अनुसार नर्मदा नदी संपूर्ण विश्व में दिव्य व रहस्यमयी नदी मानी जाती है. चारों वेदों की व्याख्या में श्री विष्णु के अवतार वेदव्यास जी ने स्कन्द पुराण के रेवाखंड़ में इसकी महिमा का वर्णन किया है. भगवान शिव ने नर्मदा नदी को देवताओं के पाप धोने का वरदान दिया था. इसलिए नर्मदा नदी को अधिक महत्व दिया जाता है. माना जाता है इस दिन नर्मदा नदी में स्नान करने से अनेक रोगों से छुटकारा मिलता है. गंगा की तरह ही नर्मदा में भी स्नान करने से सभी प्रकार के पाप धूल जाते हैं. इतना ही नहीं यदि आप कालसर्प दोष से पीड़ित हैं तो नर्मदा जयंती के दिन चांदी के नाग नगिन का जोड़ा नर्मदा नदी में बहाने से कालसर्प दोष हमेशा के लिए समाप्त हो जाता है. मां गंगा की तरह ही मां नर्मदा की पूजा नर्मदा जयंती पर विशेष रूप से की जाती है.

नर्मदा की उत्पत्ति
महाभारत, रामायण सहित अनेक हिंदू धर्म शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि मां नर्मदा की उत्पत्ति भगवान शिव जी से हुई थी. कहा जाता है कि भगवान शिव ने देवताओं को उनके पाप धोने के लिए माँ नर्मदा को उत्पन्न किया था और इसलिए इसके पवित्र जल में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते है. इसके लिए दो कथाएं महत्वपूर्ण रुप से प्रचलित हैं. एक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव गहरी तपस्या में लीन थे. इसमें उनके शरीर में से पसीना निकलने लगा और नदी के रुप में बहने लगा. भगवान शिव में से निकले इस पसीने के कारण से ही नर्मदा नदी का निर्माण हुआ. एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्मा जी किसी बात को लेकर बहुत परेशान थे और तभी उनकी आंखों से आंसु की दो बूंदें गिरी, जिससे दो नदियों का जन्म हुआ. एक नदी को नर्मदा कहा गया और दूसरी नदी को सोन. इसके अलावा नर्मदा पुराण में नर्मदा नदी को रेवा कहे जाने के बारे में भी बताया गया है.

नर्मदा जयंती की कथा , Narmada Jayanti Ki Katha
पौराणिक कथा के अनुसार अंधकासुर भगवान शिव और मां पार्वती का पुत्र था. एक दैत्य हिरणायक्ष ने भगवान शिव की घोर तपस्या करके उन्हीं की तरह बलवान पुत्र पाने का वरदान मांगा. भगवान शिव ने एक भी क्षण गंवाए अपने पुत्र अंधकासुर को हिरणायक्ष को दे दिया. हिरणायक्ष का वध भगवान विष्णु ने वाराह अवतार लेकर कर दिया था. जिसके बाद अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए अंधकासुर ने अपने बल से देवलोक पर अपना आधिपत्य जमा लिया. जिसके बाद अंधकासुर ने कैलाश पर चढ़ाई कर दी और भगवान शिव और अंधकासुर के बीच में घोर युद्ध हुआ. जिसके बाद भगवान शिव ने अंधकासुर का वध कर दिया.

अंधकासुर के वध के बाद देवताओं को भी अपने पापों का ज्ञान हुआ. जिसके बाद वह सभी भगवान शिव के पास जाते हैं और उनसे प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु हमें हमारे पापों से मुक्ति दिलाने का कोई मार्ग बताएं. जिसके बाद भगवान शिव के पसीने की एक बूंद धरती पर गिरती है. जिसके बाद वह बूंद एक तेजस्वीं कन्या के रूप में परिवर्तित हो गई. उस कन्या का नाम नर्मदा रखा गया और उसे अनेकों वरदान दिए गए. भगवान शिव ने नर्मदा को माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी से नदी रूप में बहने और लोगों के पाप हरने का आदेश दिया. नर्मदा के इसी अवतरण तिथि को नर्मदा जयंती मनाई जाती है. भगवान शिव की आज्ञा सुनकर मां नर्मदा भगवान शिव से कहती हैं कि हे भगवान मैं कैसे लोगों के पापों को हर सकती हूं.तब भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान देते हैं कि तुममें सभी पापों को हरने की क्षमता होगी.


माँ नर्मदा जी की आरती, Maa Narmada Ji Ki Aarti
जय जगदानन्‍दी, मैया जय जगदानन्‍दी,
जय जगदानन्दी, मैया जय जगदानन्‍दी,
ब्रह्मा हरिहर शंकर, रेवा शिव हरिशंकर,
रुद्री पालन्ती, ॐ जय जगदानन्दी..
जय जगदानन्‍दी, मैया जय जगदानन्‍दी..

नारद शारद तुम वरदायक, अभिनव पद चण्डी,
हो मैया अभिनव पद चण्डी,
सुर नर मुनि जन सेवत, सुर नर मुनि जन सेवत,
शारद पद वन्‍दी, ॐ जय जगदानन्दी..
जय जगदानन्‍दी, मैया जय जगदानन्‍दी..

धूम्रक वाहन राजत, वीणा वादन्‍ती,
हो मैया वीणा वादन्‍ती,
झुमकत-झनकत-झननन, झुमकत-झनकत-झननन
रमती राजन्ती, ॐ जय जगदानन्दी..
जय जगदानन्‍दी, मैया जय जगदानन्‍दी..

बाजत ताल मृदंगा, सुर मण्डल रमती,
हो मैया सुर मण्डल रमती,
तुडितान- तुडितान- तुडितान, तुरडड तुरडड तुरडड
रमती सुरवन्ती, ॐ जय जगदानन्दी..
जय जगदानन्‍दी, मैया जय जगदानन्‍दी..

सकल भुवन पर आप विराजत, निशदिन आनन्दी,
हो मैया निशदिन आनन्दी,
गावत गंगा शंकर, सेवत रेवा शंकर
तुम भव भय हंती, ॐ जय जगदानन्दी..
जय जगदानन्‍दी, मैया जय जगदानन्‍दी..

कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती,
हो मैया अगर कपूर बाती,
अमरकंटक में राजत, घाट घाट में राजत
कोटि रतन ज्योति, ॐ जय जगदानन्दी..
जय जगदानन्‍दी, मैया जय जगदानन्‍दी..

मैयाजी की आरती निशदिन जो गावे,
हो रेवा जुग-जुग जो गावे, भजत शिवानन्द स्वामी
जपत हर‍िहर स्वामी, मनवांछित पावे,
ॐ जय जगदानन्दी.. मैया जय जगदानन्‍दी..
जय जगदानन्‍दी, मैया जय जगदानन्‍दी..

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