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मौनी अमावस्या व्रत, मौनी अमावस्या पूजा विधि
आज माघ मास कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि है, इसे मौनी अमावस्या के नाम से जाना जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन मनु ऋषि का जन्म हुआ था और उन्हीं के नाम से मौनी शब्द की उत्पत्ति हुई. इसलिए भी इस अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है. मौनी अमावस्या के दिन सूर्य तथा चन्द्रमा गोचरवश मकर राशि में आते हैं इसलिए यह दिन एक संपूर्ण शक्ति से भरा हुआ और पावन अवसर बन जाता है. गंगा स्नान, दान- पुण्य तथा जाप के लिए मौनी अमावस्या का दिन बेहद शुभ माना जाता है. इस दिन किये गये दान-पुण्य का फल सौ गुना ज्यादा मिलता है. इस दिन मौन व्रत रखने का भी विधान रहा है. इस व्रत का अर्थ है धीरे-धीरे अपनी वाणी को संयत करके अपने वश में करना. कई लोग इस दिन से मौन व्रत रखने का प्रण करते हैं. वह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि कितने समय के लिए वह मौन व्रत रखना चाहता है. कई व्यक्ति एक दिन, कोई एक महीना और कोई व्यक्ति एक वर्ष तक मौन व्रत धारण करने का संकल्प कर सकता है. चलिए आपको बताते हैं मौनी अमावस्या के दिन, किन बातों का लें संकल्प, व्रत कैसे करें, व्रत के नियम, व्रत के महत्व, कथा आदि के बारे में-

मौनी अमावस्या के दिन इन बातों का लें संकल्प
इस दिन व्यक्ति प्रण करें कि वह झूठ, छल-कपट आदि की बातें नहीं करेगें. इस दिन से व्यक्ति को सभी बेकार की बातों से दूर रहकर अपने मन को सबल बनाने की कोशिश करनी चाहिए. इससे मन शांत रहता है और शांत मन शरीर को सबल बनाता है. इसके बाद व्यक्ति को इस दिन ब्रम्हदेव तथा गायत्री का जाप अथवा पाठ करना चाहिए. मंत्रोच्चारण के साथ अथवा श्रद्धा-भक्ति के साथ दान करना चाहिए. दान में गाय, स्वर्ण, छाता, वस्त्र, बिस्तर तथा अन्य उपयोगी वस्तुएं अपनी सामथ्र्य के अनुसार दान करनी चाहिए.

मौनी अमावस्या पूजन विधि, Mauni Amavasya Vrat Vidhi
1.मौनी अमावस्या के दिन संगम में स्नान करना चाहिए. अगर प्रयाग जाना संभव ना हो तो स्नान के पानी में गंगाजल और दूध डालकर स्नान करना चाहिए.
3. स्नान करने के बाद मौन व्रत संकल्प लें और भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए भगवान श्री हरी नारायण का चित्र या मूर्ति स्थापित करनी चाहिए.
4. भगवान विष्णु की प्रतिमा पर पीले फूल की माला चढ़ाकर भगवान को केसर चन्दन का तिलक लगाएं. इसके बाद देसी घी का दीपक प्रतिमा के सामने प्रज्वलित करें.
5. इसके बाद पूर्व दिशा की ओर मुख कर पीला आसन बिछाकर बैठ जाएं. हल्दी की माला से ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का 108 बार जाप करें.
6. भगवान का ध्यान करने के बाद विष्णु चालीसा या विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें. ध्यान रहे पथ मन में ही करें क्योंकि इस व्रत में पूरे दिन मौन रहना होता है.
7. पूजा करने के बाद ब्राह्मणों ओर गरीबों को भोजन कराएं. ब्राह्मणों ओर गरीबों को दान दक्षिणा जरूर दें. मंदिर में दीप दान करना ना भूलें.
8. शाम को भगवान विष्णु जी की धूप-दीप से आरती करें. पीले मीठे पकवान का भोग लगाएं. गौ माता को मीठी रोटी या हरा चारा खिलने के बाद व्रत खोलें.

पीपल की पूजा
भगवान विष्णु की पूजा के दौरान पीपल के वृक्ष की भी पूजा करें और उसकी 108 बार परिक्रमा करें. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पीपल के जड़ में भगवान विष्णु, तने में शिवजी तथा अग्रभाग में ब्रह्माजी का वास होता है. पीपल की पूजा से सौभाग्य की वृद्धि होती है तथा घर धन-धान्य से भर जाता है.
इन मंत्रों का करें जाप 
मंत्र 1- अयोध्या, मथुरा, माया, काशी कांचीर् अवन्तिका, पुरी, द्वारावतीश्चैव: सप्तैता मोक्षदायिका..
मंत्र 2- गंगे च यमुनेश्चैव गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु, कावेरी जलेस्मिनेसंनिधि कुरू..
दान क्या करें- मौनी अमावस्या के दिन तेल, तिल, सूखी लकड़ी, आंवला, कंबल, गरम वस्त्र, काले कपड़े, जूते दान करने का विशेष महत्व है. गौ शाला में गाय के लिए भोजन का दान करें. यदि आप गौ दान, स्वर्ण दान या भूमि दान भी कर सकते हैं तो अमावस्या के दिन अवश्य करें. वहीं जिन जातकों की कुंडली में चंद्रमा नीच का है, उन्हें दूध, चावल, खीर, मिश्री, बताशा दान करने में विशेष फल की प्राप्ति होगी.

मौनी अमावस्या के नियम
1. मौनी अमावस्या के दिन सुबह के समय नदी, सरोवर या पवित्र कुंड में स्नान करना चाहिए.
2. पहले जल को सिर पर लगाकर प्रणाम करें फिर स्नान करें.
3. साफ कपड़े पहनें और जल में काले तिल डालकर सूर्य देव को अर्घ्य दें.
4. इस दिन व्रत रखकर जहां तक संभव हो मौन रहना चाहिए.
5. सूर्य भगवान के मंत्रों का जाप करें और गरीब व भूखे व्यक्ति को भोजन अवश्य कराएं.
6. सामर्थ्य के अनुसार वस्तुओं का दान करें.
7. इस दिन क्रोध करने से बचें.
8. किसी को अपशब्द न कहें.
9. मौनी अमावस्या के दिन ईश्वर का ध्यान करें.
10. हर अमावस्या की भांति माघ अमावस्या पर भी पितरों को याद करना चाहिए. इस दिन पितरों का तर्पण करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है.

मौनी अमावस्या के दिन क्यों रहा जाता है मौन ?
मौनी अमावस्या के दिन मौन धारण करने का प्रचलन सनातन काल से चला आ रहा है. यह काल, एक दिन, एक मास, एक वर्ष या आजीवन भी हो सकता है. शास्त्रों के अनुसार इस दिन मौन धारण करने से विशेष ऊर्जा की प्राप्ति होती है. मौनी अमावस्या पर गंगा नदी में स्नान करने से दैहिक (शारीरिक), भौतिक (अनजाने में किया गया पाप), दैविक (ग्रहों, गोचरों का दुर्योग) तीनों प्रकार के मनुष्य के पाप दूर हो जाते हैं. इस दिन स्वर्ग लोक के सारे देवी-देवता गंगा में वास करते हैं, जो पापों से मुक्ति देते हैं. यह चंद्र तथा राहु प्रधान होती है इसलिए जिस व्यक्ति की पत्रिका में इन ग्रहों से संबंधित परेशानियां हों, इस दिन उपाय करने से कई गुना फल की प्राप्ति होती है.
मौनी अमावस्या के दिन नहीं होते चंद्रमा के दर्शन
वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा को मन का कारक कहा गया है. अमावस्या के दिन चंद्र देव के दर्शन नहीं होते हैं. इससे मन की स्थिति कमजोर रहती है. इसलिए अमावस्या के दिन मौन व्रत रखकर मन को संयम में रखने का विधान बताया गया है. मौनी अमावस्या के दिन भगवान शिव और विष्णु जी की पूजा की जाती है.

मौन व्रत का महत्व
मौनी अमावस्या के दिन मौन रहने का विशेष महत्व होता है. कहते हैं कि ऐसा करने से देवी-देवता प्रसन्न होते हैं. शास्त्रों में ऐसा वर्णित है कि ईश्वर का जाप मुंह जुबानी करने जितने फलों की प्राप्ति होती है, मौन रहकर ध्यान व प्रभु के स्मरण करने से उससे कई गुना अधिक पुण्य मिलता है. माना जाता है कि दान करने से पहले अगर भक्त सवा घंटे का मौन धारण कर लें तो इससे 16 गुना अधिक फल मिलते हैं. अगर मौन रहना संभव न हो तो माघ अमावस्या के दिन लड़ाई-झगड़े व कटु वचन बोलने से बचें. मौनी अमावस्या पर किये गये दान-पुण्य का फल सौ गुना ज्यादा मिलता है. कहा जाता है कि इस दिन गंगा का जल अमृत के समान होता है. मौनी अमावस्या को किया गया गंगा स्नान अद्भुत पुण्य प्रदान करता है. इस दिन पितरों का तर्पण करने से पितृ दोष से मुक्ति मिल जाती है.

माघ अमावस्या व्रत कथा
एक प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार कांचीपुरी में एक ब्राह्मण अपनी पत्नी धनवती और सात पुत्रों-एक पुत्री के साथ रहता था. पुत्री का नाम गुणवती था. ब्राह्मण ने अपने सभी पुत्रो की शादी के बाद अपनी पुत्री का वर ढूंढना चाहा. ब्राह्मण ने पुत्री की कुंडली पंडित को दिखाई. कुंडली देख पंडित बोला कि पुत्री के जीवन में बैधव्य दोष है. यानी वो विधवा हो जाएगी. पंडित ने इस दोष के निवारण के लिए एक उपाय बताया.
उन्होंने बताया कि कन्या अलग सोमा (धोबिन) का पूजन करेगी तो यह दोष दूर हो जाएगा. गुणवती को सोमा को अपनी सेवा से खुश करना होगा. ये उपाय जान ब्राह्मण ने अपने छोटे पुत्र और पुत्री को सोमा को लेने भेजा. सोमा सागर पार सिंहल द्वीप पर रहती थी. छोटा पुत्र सागर पार करने की चिंता में एक पेड़ की छाया के नीचे बैठ गया. उस पेड़ पर गिद्ध का परिवार रहता था. शाम होते ही गिद्ध के बच्चों की मां अपने घोसले में वापस आई तो उसे पता चला कि उसके गिद्ध बच्चों ने भोजन नहीं किया.

गिद्ध के बच्चे अपनी मां से बोले की पेड़ के नीचे दो प्राणी सुबह से भूखे-प्यासे बैठे हैं. जब तक वो कुछ नहीं खा लेते, तब तक हम भी कुछ नहीं खाएंगे. ये बात सुन गिद्धों की मां उस दो प्राणियों के पास गई और बोली – मैं आपकी इच्छा को जान गई हूं. मैं आपको सुबह सागर पार करा दूंगी. लेकिन उससे पहले कुछ खा लीजिए, मैं आपके लिए भोजन लाती हूं.
दोनों भाई-बहन को अगले दिन सुबह गिद्ध ने सागर पार कराया. दोनों सोमा के घर पहुंचे और बिना कुछ बताए उसकी सेवा करने लगे. उसका घर लीपने लगे. सोमा ने एक दिन अपनी बहुओं से पूछा, कि हमारे घर को रोज़ाना सुबह कौन लीपता है? सबने कहा कि कोई नहीं हम ही घर लीपते-पोतते हैं. लेकिन सोमा को अपने परिवार वालों की बातों का भरोसा नही हुआ.

एक रात को इस रहस्य को जानने के लिए सुबह तक जागी और उसने पता लगा लिया कि ये भाई-बहन उसके घर को लीपते हैं. सोमा ने दोनों से बात की और दोनों ने सोमा को बहन के दोष और निवारण की बात बताई. सोमा ने गुणवती को उस दोष से निवारण का वचन दे दिया, लेकिन गुणवती के भाई ने उन्हें घर आने का आग्रह किया. सोमा ने ना नहीं किया वो दोनों के साथ ब्राह्मण के घर पहुंची.
सोमा ने अपनी बहुओं से कहा कि उसकी अनुपस्थिति में यदि किसी देहांत हो जाए तो उसके शरीर को नष्ट ना करें, मेरा इंतज़ार करें. ये बोलकर वो गुणवती के साथ उसके घर चई गई. गुणवती के विवाह का कार्यक्रम तय हुआ. लेकिन सप्तपदी होते ही उसका पति मर गया. सोमा ने तुरंत अपने पुण्यों का फल गुणवती को दिया. उसका पति तुरंत जीवित हो गया. सोमा ने दोनों को आशार्वाद देकर चली गई. गुणवती को पुण्य-फल देने से सोमा के पुत्र, जमाता और पति की मृत्यु हो गई.

सोमा ने पुण्य फल को संचित करने के लिए रास्ते में पीपल की छाया में विष्णुजी का पूजन करके 108 परिक्रमाएं की और व्रत रखा. ऐसा करने से उसके पुण्य फिर से प्राप्त हो गए. परिक्रमा पूर्ण होते ही उसके परिवार के मृतक जन जीवित हो उठे. निष्काम भाव से सेवा का फल उसे मिला.

मौनी अमावस्‍या पर क्‍या करें-क्‍या ना करें
1.पवित्र नदी में स्‍नान करना चाहिए.
2.स्‍नान कर तिल, तिल के लड्डू, तिल का तेल, आंवला, कपड़े आदि का दान करें.
3.संभव हो साधु, महात्मा, ब्राह्मणों को भोजन कराएं. यथाशक्ति दान दें.
4.दान के अलावा इस दिन पितृ श्राद्ध किया जाता है.
5. पहले जल को सिर पर लगाएं फिर स्‍नान करें.
6.इस दिन व्रत रखते हैं तो फल और पानी ग्रहण किए जा सकते हैं.

मौनी अमावस्‍या पर क्‍या ना करें
1.नहाते समय कुछ न बोलें, मौन रहें.
2.घर में कलह ना होने दें. विवादों से बचें.
3. शारीरिक संबंध नहीं बनाने चाहिए.
4.सुबह देर तक नहीं सोना चाहिए. बिना नहाएं भोजन ना करें.
5. नॉनवेज ना खाएं.

मौनी अमावस्या के उपाय (Mauni Amavasya Ke Upay)
1. मौनी अमावस्या के दिन तुलसी के पेड़ की 108 परिक्रमा करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है.
2. पीपल के पेड़ की 108 परिक्रमा करने से सभी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
3. भगवान विष्णु जी को हल्दी की माला चढ़ाने से दरिद्रता दूर होती है.
4. माता लक्ष्मी जी को 16 श्रृंगार कराने से धन का भण्डार भर जाता है.
5. प्रयाग संगम में स्नान-दान करने से पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
6. गाय को हरा चारा खिलाने से ग्रह शांति होती है.
7. पितरों के नाम यज्ञ करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है.
8. शिवलिंग में कच्ची लस्सी चढ़ाने से शिव जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
9. कुल देवी की पूजा करने से गृह कलेश खत्म होता है.
10. शनि देव पर तेल और काले चढ़ाने से शनि के प्रकोप से बच सकते हैं.

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