Vishwamitra ki kahani

बालकाण्ड: विश्वामित्र का पूर्व चरित्र, विश्वामित्र का जीवन, विश्वामित्र की कहानी, विश्वामित्र के पिता का नाम, विश्वामित्र की संपूर्ण कथा, विश्वामित्र का जन्म कैसे हुआ (Sampurna Ramayan Katha Baal Kand: Vishwamitra Ka Purva Charitra, Vishwamitra Kon The, Vishwamitra Ka Jeevan, Vishvaamitr Ki Sampurna Katha, Vishvaamitr Ka Janam Kaise Hua, Vishwamitra Ki Kahani)

संपूर्ण रामायण कथा बालकाण्ड: विश्वामित्र का पूर्व चरित्र, विश्वामित्र का जीवन, विश्वामित्र की कहानी, विश्वामित्र के पिता का नाम, विश्वामित्र की संपूर्ण कथा, विश्वामित्र का जन्म कैसे हुआ (Sampurna Ramayan Katha Baal Kand: Vishwamitra Ka Purva Charitra, Vishwamitra Kon The, Vishwamitra Ka Jeevan, Vishvaamitr Ki Sampurna Katha, Vishvaamitr Ka Janam Kaise Hua, Vishwamitra Ki Kahani)

विश्वामित्र का पूर्व चरित्र, विश्वामित्र का जीवन
राम से मिथिला के राजपुरोहित शतानन्द जी विशेष रूप से प्रभावित हुये। शतानन्द जी ने कहा, हे राम! आप बड़े सौभाग्यशाली हैं कि आपको विश्वामित्र जी गुरु के रूप में प्राप्त हुये हैं। वे बड़े ही प्रतापी और तेजस्वी महापुरुष हैं। ब्राह्मणत्व की प्राप्ति के पूर्व ऋषि विश्वामित्र बड़े पराक्रमी और प्रजावत्सल नरेश थे। प्रजापति के पुत्र कुश, कुश के पुत्र कुशनाभ और कुशनाभ के पुत्र राजा गाधि थे। ये सभी शूरवीर, पराक्रमी और धर्मपरायण थे। विश्वामित्र जी उन्हीं गाधि के पुत्र हैं। शास्त्रों में राजा गाधि के पुत्र महर्षि विश्वामित्र का जन्म कार्तिक शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि में वर्णित है। एक बार राजा विश्वामित्र अपनी सेना के साथ वशिष्ठ ऋषि के आश्रम में गये। चूँकि उस समय वशिष्ठ जी ईश्वरभक्ति में लीन होकर यज्ञ कर रहे थे, विश्वामित्र जी उन्हें प्रणाम करके वहीं बैठ गये।

यज्ञ क्रिया से निवृत होने पर वशिष्ठ जी ने विश्वामित्र जी का बहुत आदर सत्कार किया और उनसे कुछ दिन आश्रम में ही रह कर आतिथ्य ग्रहण करने का अनुरोध किया। इस पर यह सोच कर कि मेरे साथ विशाल सेना है और सेना सहित मेरा आतिथ्य करने में वशिष्ठ जी को कष्ट होगा, विश्वामित्र जी ने नम्रता पूर्वक विदा होने की अनुमति माँगी। किन्तु वशिष्ठ जी के अत्यधिक अनुरोध करने पर थोड़े दिनों के लिये राजा विश्वामित्र को उनका आतिथ्य स्वीकार करने के लिए विवश होना पड़ा।

राजा विश्वामित्र के आतिथ्य स्वीकार कर लेने पर वशिष्ठ जी ने कामधेनु गौ का आह्वान किया और उससे विश्वामित्र तथा उनकी सेना के लिये छः प्रकार के व्यंजन तथा समस्त प्रकार की सुविधाओं की व्यवस्था करने की प्रार्थना की। उनकी इस प्रार्थना को स्वीकार करके कामधेनु गौ ने सारी व्यवस्था कर दिया। वशिष्ठ जी के अतिथि सत्कार से राजा विश्वामित्र और उनके साथ आये सभी लोग बहुत प्रसन्न हुये। कामधेनु गौ का चमत्कार देखकर विश्वामित्र के मन में उस गौ को प्राप्त कर लेने की इच्छा जागृत हुई और उन्होंने वशिष्ठ जी से कहा कि ऋषिश्रेष्ठ! कामधेनु जैसी गौ तो किसी वनवासी के पास नहीं वरन राजा महाराजाओं के पास ही शोभा देती है। अतः आप इसे मुझे दे दीजिये। इसके बदले में मैं आपको सहस्त्रों स्वर्ण मुद्रायें दे सकता हूँ। इस पर वशिष्ठ जी बोले कि राजन! यह गौ ही मेरा जीवन है और इसे मैं किसी भी कीमत पर किसी को नहीं दे सकता।

वशिष्ठ जी के इस प्रकार कहने पर विश्वामित्र ने बलात् उस गौ को पकड़ लेने की आज्ञा दे दी और सैनिकगण उस गौ को डण्डे से मार मार कर हाँकने लगे। कामधेनु गौ ने क्रोधित होकर अपना बन्धन छुड़ा लिया और वशिष्ठ जी के पास आकर विलाप करने लगी। वशिष्ठ जी बोले कि हे कामधेनु! मैं इस राजा को शाप भी नहीं दे सकता क्योंकि यह राजा मेरा अतिथि है और इसके पास विशाल सेना होने के कारण इससे युद्ध में भी विजय प्राप्त नहीं कर सकता। मैं अत्यन्त विवश हूँ। वशिष्ठ जी के इन वचनों को सुन कर कामधेनु ने कहा कि हे ब्रह्मर्षि! क्या एक ब्राह्मण के बल के सामने क्षत्रिय का बल कभी श्रेष्ठ हो सकता है? आप मुझे आज्ञा दीजिये, मैं एक क्षण में इस क्षत्रिय राजा को उसकी विशाल सेनासहित नष्ट कर दूँगी। कोई अन्य उपाय न देख कर वशिष्ठ जी ने कामधेनु को अनुमति दे दी।

आज्ञा पाते ही कामधेनु ने योगबल से पह्नव सैनिकों की एक सेना उत्पन्न कर दिया और वह सेना विश्वामित्र की सेना के साथ युद्ध करने लगी। विश्वामित्र जी ने अपने पराक्रम से समस्त पह्नव सेना का विनाश कर डाला। इस पर कामधेनु ने सहस्त्रों शक, हूण, बर्वर, यवन और काम्बोज सैनिक उत्पन्न कर दिया। जब विश्वामित्र ने उन सैनिकों का भी वध कर डाला तो कामधेनु ने मारक शस्त्रास्त्रों से युक्त अत्यंत पराक्रमी योद्धाओं को उत्पन्न किया जिन्होंने शीघ्र ही राजा विश्वामित्र की सेना को गाजर मूली की भाँति काटना आरम्भ कर दिया। अपनी सेना का नाश होते देख विश्वामित्र के सौ पुत्र अत्यन्त कुपित हो वशिष्ठ जी को मारने दौड़े। परिणाम यह हुआ कि वशिष्ठ जी ने उनमें से एक पुत्र को छोड़ कर शेष सभी को भस्म कर दिया।
सेना तथा पुत्रों के नष्ट हो जाने से विश्वामित्र बड़े दुःखी हुये। अपने बचे हुये पुत्र का राजतिलक कर वे तपस्या करने के लिये हिमालय की कन्दराओं में चले गये। वहाँ पर उन्होंने कठोर तपस्या की और महादेव जी को प्रसन्न कर लिया। महादेव जी को प्रसन्न पाकर विश्वामित्र ने उनसे समस्त दिव्य शक्तियों के साथ सम्पूर्ण धनुर्विद्या के ज्ञान का वरदान प्राप्त कर लिया।

इस प्रकार सम्पूर्ण धनुर्विद्या का ज्ञान प्राप्त करके विश्वामित्र बदला लेने के लिये वशिष्ठ जी के आश्रम में पहुँचे वशिष्ठ जी को ललकार कर उन पर अग्निबाण चला दिया। अग्निबाण से समस्त आश्रम में आग लग गई और आश्रमवासी भयभीत होकर इधर उधर भागने लगे। वशिष्ठ जी ने भी अपना धनुष संभाल लिया और बोले कि मैं तेरे सामने खड़ा हूँ, तू मुझ पर वार कर। आज मैं तेरे अभिमान को चूर-चूर करके बता दूँगा कि क्षात्र बल से ब्रह्म बल श्रेष्ठ है। क्रुद्ध होकर विश्वामित्र ने एक के बाद एक आग्नेयास्त्र, वरुणास्त्र, रुद्रास्त्र, ऐन्द्रास्त्र तथा पाशुपतास्त्र एक साथ छोड़ा जिन्हें वशिष्ठ जी ने अपने मारक अस्त्रों से मार्ग में ही नष्ट कर दिया।

इस पर विश्वामित्र ने और भी अधिक क्रोधित होकर मानव, मोहन, गान्धर्व, जूंभण, दारण, वज्र, ब्रह्मपाश, कालपाश, वरुणपाश, पिनाक, दण्ड, पैशाच, क्रौंच, धर्मचक्र, कालचक्र, विष्णुचक्र, वायव्य, मंथन, कंकाल, मूसल, विद्याधर, कालास्त्र आदि सभी अस्त्रों का प्रयोग कर डाला। वशिष्ठ जी ने उन सबको नष्ट करके ब्रह्मास्त्र छोड़ने के लिये जब अपना धनुष उठाया तो सब देव किन्नर आदि भयभीत हो गये। किन्तु वशिष्ठ जी तो उस समय अत्यन्त क्रुद्ध हो रहे थे। उन्होंने ब्रह्मास्त्र छोड़ ही दिया। ब्रह्मास्त्र के भयंकर ज्योति और गगनभेदी नाद से सारा संसार पीड़ा से तड़पने लगा। सब ऋषि-मुनि उनसे प्रार्थना करने लगे कि आपने विश्वामित्र को परास्त कर दिया है। अब आप ब्रह्मास्त्र से उत्पन्न हुई ज्वाला को शान्त करें। इस प्रार्थना से द्रवित होकर उन्होंने ब्रह्मास्त्र को वापस बुलाया और मन्त्रों से उसे शान्त किया।

पराजित होकर विश्वामित्र मणिहीन सर्प की भाँति पृथ्वी पर बैठ गये और सोचने लगे कि निःसन्देह क्षात्र बल से ब्रह्म बल ही श्रेष्ठ है। अब मैं तपस्या करके ब्राह्मण की पदवी और उसका तेज प्राप्त करूँगा। इस प्रकार विचार करके वे अपनी पत्नीसहित दक्षिण दिशा की ओर चल दिये। उन्होंने तपस्या करते हुये अन्न का त्याग कर केवल फलों पर जीवन-यापन करना आरम्भ कर दिया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें राजर्षि का पद प्रदान किया। इस पद को प्राप्त करके भी, यह सोचकर कि ब्रह्मा जी ने मुझे केवल राजर्षि का ही पद दिया महर्षि-देवर्षि आदि का नहीँ, वे दुःखी ही हुये। वे विचार करने लगे कि मेरी तपस्या अब भी अपूर्ण है। मुझे एक बार फिर से घोर तपस्या करनी चाहिये।

विश्वामित्र का जीवन परिचय
अब बात करते हैं विश्वामित्र की तो उनका जन्म हुआ गाधि नरेश के घर , कालांतर में विश्वामित्र एक क्षत्रिय राजा हुए. वीर योध्दा होने के बाद भी विश्वामित्र बार -बार ब्रह्मर्षि वशिष्ठ के योग बल से हार जाते थे जिससे उन्हें आत्मग्लानि होती थी कि इससे अच्छा तो मैं भी ब्रह्मर्षि होता। उसके बाद विश्वामित्र क्षत्रियत्व छोड़ घोर तपस्या करने चले गए , बड़ी कठिनाई से उन्हें ऋषि होने का वरदान मिला , उन्होंने फिर कठोर तपस्या की तब भी महर्षि होने का वरदान मिला, साथ ही भगवान शंकर ने बहुत सारे अस्त्र -शस्त्र भी दिया किन्तु विश्वामित्र संतुष्ट नहीं थे उन्हें ब्रह्मर्षि बनना था , उन्होंने फिर तपस्या आरम्भ की लेकिन अब की बार मेनका ने तपस्या भंग कर दी ,विश्वामित्र मेनका के मोह में पड़ गए , उन्होंने मेनका को छोड़ फिर से कठोर तपस्या आरम्भ की और जब स्वयं वशिष्ठ ने कहा की अब तुम ब्रह्मर्षि हो चुके हो तब विश्वामित्र को संतोष मिला। एक क्षत्रिय विश्वामित्र ने तपस्या के द्वारा अपना धर्म बदलकर ब्राह्मणत्तव को प्राप्त किया। ये तो होना ही था क्योंकि महर्षि ऋचक ने ब्राह्मण पुत्र के लिए चरू पकाया था उसी से विश्वामित्र उत्पन्न हए थे.

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  52. किष्किन्धाकाण्ड: बाली सुग्रीव युध्द वालि-वध, बाली का वध, राम द्वारा बाली का वध, बाली-राम संवाद, तारा का विलाप
  53. किष्किन्धाकाण्ड: सुग्रीव का अभिषेक, बाली वध के बाद सुग्रीव का राज्याभिषेक (Sampurna Ramayan Katha Kishkindha Kand
  54. किष्किन्धाकाण्ड: हनुमान-सुग्रीव संवाद, हनुमान और सुग्रीव की मित्रता, लक्ष्मण-सुग्रीव संवाद, राम का सुग्रीव पर कोप, रामायण सुग्रीव मित्रता
  55. किष्किन्धाकाण्ड: माता सीता की खोज, माता सीता की खोज में निकले राम, राम द्वारा हनुमान को मुद्रिका देना, माता सीता की खोज में निकले हनुमान
  56. किष्किन्धाकाण्ड: जाम्बवन्त द्वारा हनुमान को प्रेरणा, जाम्बवन्त के प्रेरक वचन Sampurna Ramayan Katha Kishkindha Kand
  57. सुन्दरकाण्ड: हनुमान का सागर पार करना, हनुमान जी ने समुद्र कैसे पार किया, हनुमान जी की लंका यात्रा, हनुमान जी का लंका में प्रवेश
  58. सुन्दरकाण्ड: लंका में सीता की खोज, माता सीता की खोज में लंका पहुंचे हनुमान, अशोक वाटिका में हनुमान, सीता से मिले हनुमान, अशोक वाटिका में हनुमान सीता संवाद
  59. सुन्दरकाण्ड: रावण -सीता संवाद, अशोक वाटिका में रावण संवाद, रावण सीता अशोक वाटिका, रावण की सीता को धमकी
  60. सुन्दरकाण्ड: जानकी राक्षसी घेरे में, माता सीता राक्षसी घेरे में, पति राम के वियोग में व्याकुल सीता, अशोक वाटिका में हनुमान जी किस वृक्ष पर बैठे थे
  61. सुन्दरकाण्ड: हनुमान सीता भेंट, सीता जी से मिले हनुमान, अशोक वाटिका में हनुमान सीता संवाद, हनुमान का सीता को मुद्रिका देना
  62. सुन्दरकाण्ड: हनुमान का विशाल रूप, हनुमान जी का पंचमुखी अवतार, हनुमान जी ने क्यों धारण किया पंचमुखी रूप, हनुमान के साथ क्यों नहीं गईं सीता, बजरंगबली का विराट रूप
  63. सुन्दरकाण्ड: हनुमान ने उजाड़ी अशोक वाटिका, हनुमान जी ने रावण की अशोक वाटिका को किया तहस-नहस, अशोक वाटिका विध्वंस, हनुमान राक्षस युद्ध
  64. सुन्दरकाण्ड: मेधनाद हनुमान युद्ध, लंका में हनुमान जी और मेघनाद का भयंकर युद्ध, मेघनाद ने हनुमान पर की बाणों की वर्षा
  65. सुन्दरकाण्ड: रावण के दरबार में हनुमान, रावण हनुमान संवाद, हनुमान-रावण की लड़ाई, लंका दहन, हनुमान जी द्वारा लंका दहन, हनुमान ने सोने की लंका में लगाई आग
  66. सुन्दरकाण्ड: माता सीता का संदेश देना, हनुमान के द्वारा राम सीता का संदेश, हनुमान ने राम को दिया माता सीता का संदेश
  67. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): समुद्र पार करने की चिन्ता, वानर सेना का प्रस्थान, वानर सेना का सेनापति कौन था, वानर सेना रामायण, वानर सेना का गठन
  68. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): लंका में राक्षसी मन्त्रणा, विभीषण ने रावण को किस प्रकार समझाया, विभीषण का निष्कासन, विभीषण का श्री राम की शरण में आना
  69. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): सेतु बन्धन, राम सेतु पुल, क्यों नहीं डूबे रामसेतु के पत्‍थर, राम सेतु का निर्माण कैसे हुआ, नल-नील द्वारा पुल बाँधना
  70. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): सीता के साथ छल, रावण का छल, रावण ने छल से किया माता सीता का हरण Sampoorna Ramayan Yuddha Kand (Lanka Kand)
  71. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): अंगद रावण दरबार में, अंगद ने तोड़ा रावण का घमंड, रावण की सभा में अंगद-रावण संवाद, रावण की सभा में अंगद का पैर जमाना
  72. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): राम लक्ष्मण बन्धन में, नागपाश में राम लक्ष्मण, धूम्राक्ष और वज्रदंष्ट्र का वध, राक्षस सेनापति धूम्राक्ष का वध, अकम्पन का वध, प्रहस्त का वध
  73. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): रावण कुम्भकर्ण संवाद, कुम्भकर्ण वध, कुंभकरण का वध किसने किया, कुम्भकर्ण की कहानी Sampoorna Ramayan Yuddha Kand (Lanka Kand)
  74. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): त्रिशिरा, अतिकाय आदि का वध, अतिकाय का वध, मायासीता का वध, रावण पुत्र मेघनाद (Sampoorna Ramayan Yuddha Kand (Lanka Kand)
  75. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): लक्ष्मण मेघनाद युद्ध कथा, मेघनाथ लक्ष्मण का अंतिम युद्ध, मेघनाद वध, मेघनाथ को कौन मार सकता था? लक्ष्मण ने मेघनाद को कैसे मारा
  76. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): लक्ष्मण मूर्छित, मेघनाद ने ब्रह्म शक्ति से लक्ष्मण को किया मूर्छित, लक्ष्मण मूर्छित होने पर राम विलाप, संजीवनी बूटी लेकर आए हनुमान
  77. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): रावण का युद्ध के लिये प्रस्थान, श्रीराम-रावण का युद्ध, राम और रावण के बीच युद्ध, रावण वध, मन्दोदरी का विलाप 
  78. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): विभीषण का राज्याभिषेक, रावण के बाद विभीषण बना लंका का राजा (Sampoorna Ramayan Yuddha Kand Lanka Kand)
  79. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): माता सीता की अग्नि परीक्षा, माता सीता ने अग्नि परीक्षा क्यों दी थी? माता सीता ने अग्नि परीक्षा कैसे दी?, माता सीता की अग्नि परीक्षा कहां हुई थी? 
  80. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): अयोध्या को प्रस्थान, राम अयोध्या कब लौटे थे, अयोध्या में राम का स्वागत, राम का अयोध्या वापस आना, वनवास से लौटे राम-लक्ष्मण और सीता
  81. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड): भरत मिलाप, राम और भरत का मिलन, राम भरत संवाद, राम का राज्याभिषेक Sampoorna Ramayan Yuddha Kand (Lanka Kand)
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  85. उत्तरकाण्ड: राजा नृग की कथा, सूर्यवंशी राजा नृग की कथा, राजा नृग कुएँ का गिरगिट, राजा नृग का उद्धार कैसे हुआ? राजा नृग की मोक्ष कथा, राजा नृग का उपाख्यान 
  86. उत्तरकाण्ड: राजा निमि की कथा, शाप से सम्बंधित राजा की कथा, राजा निमि कौन थे? राजा निमि की कहानी, विदेह राजा जनक Sampoorna Ramayan Uttar Kand
  87. उत्तरकाण्ड: राजा ययाति की कथा, कौन थे राजा ययाति, राजा ययाति की कहानी, ययाति का यदु कुल को शाप Sampoorna Ramayan Uttar Kand
  88. उत्तरकाण्ड: कुत्ते का न्याय, राम और कुत्ते की कहानी, भगवान राम से जब न्याय मांगने आया एक कुत्ता, रामायण का अनोखा किस्सा
  89. उत्तरकाण्ड: पूर्व राजाओं के यज्ञ-स्थल एवं लवकुश का जन्म, लव कुश का जन्म कहां पर हुआ था, लव कुश में बड़ा कौन है, वाल्मीकि आश्रम कहां है, च्यवन ऋषि का आगमन
  90. उत्तरकाण्ड: ब्राह्मण बालक की मृत्यु, शंबूक ऋषि की हत्या किसने की, शंबुक कथा, शंबूक ऋषि का वध, राम ने क्यों की शंबूक की हत्या Sampoorna Ramayan Uttar Kand
  91. उत्तरकाण्ड: राजा श्वेत क्यों खाया करते थे अपने ही शरीर का मांस, राजा श्वेत की कहानी, राजा श्वेत की कथा Sampoorna Ramayan Uttar Kand: Raja Swet Ki Katha
  92. उत्तरकाण्ड: राजा दण्ड की कथा, दण्डकारण्य जंगल के श्रापित होने की कथा, शुक्राचार्य ने राजा दण्ड को दिया श्राप
  93. उत्तरकाण्ड: वृत्रासुर की कथा, वृत्रासुर का वध, वृत्रासुर कौन था? इंद्र द्वारा वृत्रासुर का वध Sampoorna Ramayan Uttar Kand: Vritrasura Ki Katha
  94. उत्तरकाण्ड: राजा इल की कथा, जब पुरूष से स्त्री बन गये राजा ईल, राजा इल की कहानी (Sampoorna Ramayan Uttar Kand: Raja Ill Ki Kahani, Raja Ill Ki Katha
  95. उत्तरकाण्ड: अश्वमेघ यज्ञ का अनुष्ठान रामायण, अश्वमेध यज्ञ क्या है? Sampoorna Ramayan Uttar Kand: Ashvamedh Yagya Ka Anushthaan, Ashvamedh Yagya Kya Hai
  96. उत्तरकाण्ड: लव-कुश द्वारा रामायण गान, ‘हम कथा सुनाते’ लव-कुश के गीत, लव-कुश ने सुनाई राम कथा, लव कुश गीत, रामायण लव कुश कांड
  97. उत्तरकाण्ड: सीता का रसातल प्रवेश, सीता मैया धरती में क्यों समाई, सीता पृथ्वी समाधि, सीता जी का धरती में समाना, सीता का धरती में प्रवेश करना
  98. उत्तरकाण्ड: भरत व लक्ष्मण के पुत्रों के लिये राज्य व्यवस्था, वाल्मीकि रामायण (Sampoorna Ramayan Uttar Kand: Bharat Aur Lakshman Ke Putron Ke Liye Rajya
  99. उत्तरकाण्ड: लक्ष्मण का परित्याग, राम ने लक्ष्मण का परित्याग क्यों किया, राम द्वारा लक्ष्मण का परित्याग, लक्ष्मण द्वारा प्राण विसर्जन, लक्ष्मण की मृत्यु
  100. उत्तरकाण्ड: महाप्रयाण, लव-कुश का अभिषेक, संपूर्ण वाल्मीकि रामायण, Sampoorna Ramayan Uttar Kand: Mahaprayan, Valmiki Ramayan in Hindi