Dhanteras yumraj puja

धनतेरस पौराणिक कथा: धनतेरस के दिन क्‍यों की जाती है यमराज की पूजा, धनतेरस के दिन क्यों जलाते हैं यम दीप, Dhanteras Pauranik Katha, Dhanteras Ke Din K‍yon Hoti Hai Yamraaj Ki Puja, Dhanteras Ke Din K‍yon Jalate Hain Yam Deepak, Why Is Yamraaj Worshiped On Dhanteras

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धनतेरस के दिन क्‍यों की जाती है यमराज की पूजा
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में हेम नाम का एक राजा था, जिसकी कोई संतान नहीं थी. बहुत समय बाद उन्‍हें एक पुत्र की प्राप्‍ति हुई. जब उस बालक की कुंडली बनवाई तब ज्‍योतिष ने कहा कि इसकी शादी के दसवें दिन मृत्‍यु का योग है. यह सुनकर राजा हेम ने पुत्र की शादी कभी न करने का निश्‍चय लिया और उसे एक ऐसे स्‍थान पर भेज दिया जहां कोई भी स्‍त्री न हो. लेकिन नियति को कौन टाल सकता? घने जंगल में राजा के बेटे को एक सुंदर स्‍त्री मिली और दोनों को आपस में प्रेम हो गया. फिर दोनों ने गंधर्व विवाह कर लिया.
भव‍िष्‍यवाणी के अनुसार विवाह के दसवें दिन यमदूत राजा के प्राण लेने पृथ्‍वीलोक आए. जब वे प्राण ले जा रहे थे तब उसकी पत्‍नी के रोने की आवाज सुनकर यमदूत का मन दुखी हो गया. यमदूत जब प्राण लेकर यमराज के पास पहुंचे तो बेहद दुखी थे. यमराज ने कहा कि दुखी होना स्‍वाभाविक है लेकिन कर्तव्‍य के आगे कुछ नहीं होता. ऐसे में यमदूत ने यमराज से पूछा, ‘क्‍या इस अकाल मृत्‍यु को रोकने का कोई उपाय है?’ तब यमराज ने कहा, ‘अगर मनुष्‍य कार्तिक कृष्‍ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन व्‍यक्ति संध्‍याकाल में अपने घर के द्वार पर दक्षिण दिशा में दीपक जलाएगा तो उसके जीवन से अकाल मृत्‍यु का योग टल जाएगा.’ तब से धनतेरस के दिन यम पूजा का विधान है.

धनतेरस के दिन क्यों जलाते हैं यम का दीपक
देश के अधिकांश भागों में ‘यम’ के नाम पर दीपदान की परंपरा है। दीपावली के दो दिन पूर्व धन्वं‍तरि-त्रयोदशी के सायंकाल मिट्टी का कोरा दीपक लेते हैं। उसमें तिल का तेल डालकर नवीन रूई की बत्ती रखते हैं और फिर उसे प्रकाशित कर, दक्षिण की तरह मुंह करके मृत्यु के देवता यम को समर्पित करते हैं। तत्पश्चात इसे दरवाजे के बगल में अनाज की ढेरी पर रख देते हैं। प्रयास यह रहता है कि यह रातभर जलता रहे, बुझे नहीं। क्यों प्रकाशित करते हैं यह दीपक? क्या है इसका रहस्य? इस संबंध में एक रोचक और सुन्दर पुराण कथा मिलती है।
कहते हैं, बहुत पहले हंसराज नामक एक प्रतापी राजा था। एक बार वह अपने मित्रों, सैनिकों और अंगरक्षकों के साथ जंगल में शिकार खेलने गया। संयोग से राजा सबसे बिछुड़कर अकेला रह गया और भटकते हुए एक अन्य राजा हेमराज के राज्य में पहुंच गया।

हेमराज ने थके-हारे हंसराज का भव्य स्वागत किया। उसी रात हेमराज के यहां पुत्र जन्म हुआ। इस खुशी के अवसर पर हेमराज ने राजकीय उत्सव में सम्मिलित होने के लिए आग्रह के साथ हंसराज को कुछ दिनों के लिए अपने यहां रोक लिया। बच्चे के छठवीं के दिन एक विचित्र घटना घटी। पूजा के समय देवी प्रकट हुई और बोली- आज इस शिशु की जो इतनी खुशियां मनाई जा रही हैं, यह अपने विवाह के चौथे दिन मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा।
इस भविष्यवाणी से सारे राज्य में शोक छा गया। हेमराज और उसके परिजनों पर तो वज्रपात ही हो गया। सबके सब स्तब्ध रह गए। इस शोक के समय हंसराज ने राजा हेमराज और उसके परिवार को ढांढस दिया- मित्र, आप तनिक भी विचलित न हों। इस बालक की मैं रक्षा करूंगा। संसार की कोई भी शक्ति इसका बाल बांका नहीं कर सकेगी।

हंसराज ने यमुना के किनारे एक भूमिगत किला बनवाया और उसी के अंदर राजकुमार के पालन-पोषण की व्यवस्था कराई। इसके अतिरिक्त राजकुमार की प्राणरक्षा के लिए हंसराज ने सुयोग्य ब्राह्मणों से अनेक तांत्रिक अनुष्ठान, यज्ञ, मंत्रजाप आदि की भी व्यवस्था करा रखी थी। धीर-धीरे राजकुमार युवा हुआ। उसकी सुंदरता एवं ते‍जस्विता की चर्चा सर्वत्र फैल गई। राजा हंसराज के कहने से हेमराज ने राजकुमार का विवाह भी कर दिया। जिस राजकुमारी से युवराज का विवाह हुआ था, वह साक्षात लक्ष्मी लगती थी। ऐसी सुंदर वर-वधू की जोड़ी जीवन में किसी ने न देखी थी।
विधि का विधान… विवाह के ठीक चौथे दिन यम के दूत राजकुमार के प्राण हरण करने आ पहुंचे। अभी राज्य में मांगलिक समारोह ही चल रहा था। राजपरिवार और प्रजाजन खुशियां मनाने में मग्न थे। राजकुमार और राजकुमारी की छवि देखकर यमदूत भी विचलित हो उठे, किंतु राजकुमार के प्राणहरण का अप्रिय कार्य उन्हें करना ही पड़ा।

यमदूत जिस समय राजकुमार के प्राण लेकर चले, उस समय ऐसा हाहाकार मचा और दारुण दृश्य उपस्थित हुआ जिससे द्रवित होकर दूत भी स्वयं रोने लगे। इस घटना के कुछ समय पश्चात एक दिन यमराज ने प्रसन्न मुद्रा में अपने दूतों से पूछा- दूतों! तुम सब अनंत काल से पृथ्वी के जीवों का प्राणहरण करते आ रहे हो, क्या तुम्हें कभी किसी जीव पर दया आई है और मन में यह विचार उठा है कि इसे छोड़ देना चाहिए?
यम के दूत एक-दूसरे का मुंह देखने लगे। यमराज ने उनके संकोच को भांपकर उन्हें उत्साहित किया- झिझको मत, अगर ऐसा प्रसंग आया हो, तो निर्भय होकर बताओ। इस पर एक दूत ने सिर झुकाकर निवेदन किया- मृत्युदेव, ऐसे प्रसंग तो कम ही आए हैं किंतु एक घटना अवश्य हुई है जिसकी स्मृति मुझे आज भी विह्वल कर देती है। यह कहते हुए दूत ने हेमराज के पुत्र के प्राणहरण की घटना सुना दी। इस दु:खद प्रसंग से यमराज भी विचलित हो उठे। इसे लक्ष्य करके दूत बोला- नाथ! क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे इस प्रकार की अकाल मृत्यु से प्राणियों को छुटकारा मिल जाए?

इस पर यमराज ने कहा- जीवन और मृत्यु सृष्टि का अटल नियम है तथा इसे बदला नहीं जा सकता किंतु धनतेरस को पूरे दिन का व्रत और यमुना में स्नान कर धन्वंतरि और यम का पूजन-दर्शन अकाल मृत्यु से बचाव कर सकता है। यदि यह संभव न हो तो भी संध्या के समय घर के प्रवेश द्वार पर यम के नाम का एक दीपक प्रज्वलित करना चाहिए। इससे असामयिक मृत्यु और रोग से मुक्त जीवन प्राप्त किया जा सकता है।
इसके पश्चात से ही धनतेरस के दिन धन्वंतरि के पूजन और प्रवेश द्वार पर यम दीपक प्रज्वलित करने की परंपरा है।

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