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नवरात्रि व्रत पूजा विधि
नवरात्रि का त्योहार (Navratri Festival) वर्ष में दो बार आता है एक चैत्र माह में और दूसरा आश्विन माह में. अश्विन मास की नवरात्रि के दौरान भगवान राम की पूजा और रामलीला अहम होती है. अश्विन मास की नवरात्रि को शारदीय नवरात्र भी कहते हैं. ऐसा कहा जाता है कि नवरात्रि में माँ दुर्गा की श्रद्धापूर्वक पूजा अर्चना करने से माता शीघ्र प्रसन्न हो जाती है और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। वैसे तो माता केवल भाव की भूखी होती है, भक्त की पवित्र भावनाएं माता को अधिक प्रिय है। लेकिन नवरात्र के 9 दिनों तक माँ दुर्गा की विशेष पूजा विधि-विधान से की जाएं तो माँ अपने भक्तों की झोली खुशियों से भर देती हैं। इसलिए आज हम नवरात्रि के मौके पर खास आपके लिए मां दुर्गा की संपूर्ण पूजा विधि, उपवास के दौरान किए जाने वाले भोजन, आरती और मां दुर्गा की कथा लेकर आए हैं. तो आइए जानते हैं कैसे करें नवरात्र के नौं दिन पूजा…

घट स्थापना व दुर्गा पूजन सामग्री/ नवरात्रि के लिए पूजा सामग्री: Navratri puja samgri
-मां दुर्गा की फोटो या मिट्टी की प्रतिमा
-मां को चढ़ाने के लिए लाल चुनरी
-कलश और घर के मुख्य द्वार के लिए आम की पत्तियां
-चावल, एक आसन (बैठने के लिए), माता पर चढ़ाने के लिए सिंदूर
-दुर्गा सप्तशती की किताब
-लाल कलावा, चंदन, गंगा जल, शहद
-नारियल, कपूर, देशी घी
-जौ के बीज, मिट्टी का बर्तन, पान के पत्ते
-गुलाल, लाल फूल विशेषकर गुड़हल का फूल, माला
-सुपारी, लौंग, इलायची

नवरात्रि घटस्थापना एवं पूजा विधि (Navratri Ghatasthapana Vidhi/ Navratri puja vidhi)
सबसे पहले सुबह उठकर स्नानादि करें फिर पूजा के स्थान पर गंगाजल छिड़ककर शुध्द करें. अब पूजा के स्थान पर एक चौकी रखें. चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं. चौकी पर अक्षत से नौ कोने बनाए (बीच से लेकर बाहर की तरफ) उसके उपर दुर्गा मां की प्रतिमा रखें. प्रतिमा के सामने चौकी पर अक्षत से बनाएं नौ कोने के बीच में कलश रखें. कलश पर मौली बांधे. कलश में थोड़ा गंगाजल, एक सुपारी, हल्दी, चावल और सिक्का डालें. आम या पान के पत्ते कलश पर रखें और कलश ढ़क दें. अब उसके उपर पानी वाले नारियल को लाल वस्त्र या फिर लाल मौली में बांध कर रखें. अब एक घी का अखंड दीपक मां की प्रतिमा का दाएं तरफ रखें (इसे अभी जलाना नहीं है). पूजा सामग्री और थाली को आसन के पास रखें. अब बाएं हाथ से जल लेकर अपने दाएं हाथ में डालें और दोनों हाथों को शुद्ध करें. फिर ऊं दुर्गा दैव्यै नम: बोलकर स्वयं जल ग्रहण करें. अब अपने आपको और परिवार वालों को तिलक लगाएं. अब अखंड दीपक को जलाएं और याद रखें कि दीपक नौ दिन तक बुझे नहीं और कलश अपने स्थान से हिले नहीं. हाथ में पुष्प और चावल लेकर हाथ जोड़कर संकल्प लें. (जैसे- मैं एश्वर्या (अपना नाम लें) श्रद्धाभक्ति से अपनी पूजा अर्चना करने जा रही हूं और मेरी मनोकामना पूरी हो, मेरा घर सुख शांति से भरा रहे मेरी बस यही कामना है) ये बोलकर मां के सामने पुष्प और चावल छोड़ दें. अब फूल से जल लें और जल का छिड़काव मां की प्रतिमा और कलश पर करें. उसके बाद हल्दी और कुमकुम से मां की प्रतिमा और कलश पर तिलक करें.

इसके बाद अक्षत को प्रतिमा और कलश पर अर्पित करें. अब मां की प्रतिमा पर चुनरी चढ़ाएं. कलश पर रखे नारियल पर भी चुनरी चढ़ाएं. अब कलश पर फूल छिड़कें और माता रानी की प्रतिमा को फूलों का हार पहनाएं. इसके बाद श्रृंगार का सामान माता के चरणों में रख दें और सुहागन महिलाएं अपनी सुहाग की रक्षा की प्रार्थना करें. अब फूल द्वारा मां की प्रतिमा और कलश पर इत्र छोड़ें. अब माता को अगरबत्ती दिखाएं और घर में बने प्रसाद माता को दिखा के चौकी के पास रखें. अब पांच प्रकार के फल माता को चढ़ाएं (माता को खट्टे फल न चढ़ाएं) अब नारियल और दक्षिणा माता के चरणों के पास रख दें. इसके बाद अब मिट्टी का छोटा मटका लेकर उसमें मिट्टी डालें और जौ को बो दें. अब मटके में शुद्धजल डालकर, मटके में मौली बांधकर माता के बाएं ओर रख दें. मटके पर हल्दी कुमकुम का टीका लगा दें वही टिका अपने मांग या माथे पर लगाएं. थोड़े से फूल मटके पर छिड़कें. इसमें नवरात्रि के पहले दिन से आखिरी दिन तक रोज सुबह स्वच्छ जल डालें. माना जाता है जौ की खेती जितनी अच्छी होती है, माता उतनी ही प्रसन्न होती हैं. विसर्जन वाले दिन खेती को लाल चुनरी से ढ़ककर उसपर कुछ पैसे रखकर विसर्जित करें. अब हाथों में फूल और अक्षत लेकर दोनों हाथों को जोड़कर मां से प्रर्थना करें कि हमसे इस पूजाविधि में जो कोई भूल हो गई हो उसे क्षमा करें और ऊं दुर्गा दैव्यै नम: मंत्र का उच्चरण तीन बार जोर से कर, माता के चरणों में अक्षत और फूल छोड़ दें. अब आप दुर्गासप्तशती का पाठ पढ़ सकती हैं. इसके बाद आरती करें.

यदि आपने पहले और आखिरी दिन का व्रत संकल्प लिया है तो आप प्रसाद ग्रहण कर सकती हैं. लेकिन अगर आपने नौ दिन व्रत का संकल्प लिया है तो व्रत समाप्ति के बाद ही प्रसाद ग्रहण करें. जिन महिलाओं ने नौ दिन का व्रत रखा है वो प्रतिदिन माता के नौ रूप की पूजा करें. व्रत रखने वाली महिलाएं प्रतिदिन फूलों का हार, फूल, अक्षत, प्रसाद,फल और अगरबत्ती फिर से चढ़ाकर माता की आरती करें. यदि हो सके तो दुर्गा चालीसा का पाठ करें.

ध्यान रखें नवरात्रि के नौ दिन पूरे होने पर पूरे घर में कलश के जल के छींटें मारे. नवरात्र के नौ दिन मां को अलग अलग रंग की चुन्नी चढ़ाएं. जो इस प्रकार हैं-
प्रतिपदा – शैलपुत्री – लाल/नारंगी (Rad/Orange)
द्वितीया – ब्रह्मचारिणी- पीला (Yellow) 
तृतीया – चन्द्रघंटा – श्वेत / सफ़ेद (White)
चतुर्थी – कूष्माण्डा – भूरा (Brown)
पंचमी – स्कंदमाता – गुलाबी (Pink)
षष्टी – कात्यायनी – हरा (Green)
सप्तमी – कालरात्रि – आसमानी या ग्रे (skyblue/ grey)
अष्टमी – महागौरी –  नारंगी (Orange)
नवमी – सिद्धिदात्रीमरून या गहरा लाल

कन्यापूजन (kanyapujan)
अपने परिवार के रीत के हिसाब से कन्यापूजन अष्टमी या नौमी को किया जाता है. यह नवरात्रि व्रत का एक अहम हिस्सा माना जाता है. इस पूजन के लिए 10 साल तक की नौं लड़कियों की आवश्यकता होती है. इसमें महिलाएं मां जगदम्बा के नौं रूपों को याद करती हुई घर में आई सभी लड़कियों के पैर धोती हैं, हाथ में मौली बांधती हैं, माथे पर बिंदी लगाती हैं. उनको हलवा पूरी और चने खिलाती हैं. उन्हें कुछ तोहफे और रुपये देती हैं. जय माता दी कहकर उनके पैर छुकर उनके जाने के बाद खुद परिवार के साथ उसी स्थान पर बैठकर भोजन करती हैं जहां कन्याओं को भोजन कराती हैं.
नवरात्रि व्रत का प्रसाद, Navrati Bhog Prasad नवरात्री भोग प्रसाद – नवरात्र व्रत के हर दिन पूजन व आरती सम्पन्न होने के बाद माँ को भोग लगाने के लिए पहले से ही प्रसाद जरूर तैयार रखे। केले, सूखे मेवे, मिश्री व सूखा गोला काटकर प्रसाद बना सकते है। माँ को प्रसाद का भोग लगाकर वह प्रसाद सभी भक्तों को बाटकर स्वयं भी ग्रहण कर ले।

नवरात्र व्रत का भोजन, Navratri Vrat Food/ पारंपरिक नवरात्रि आहार, Traditional Navratri Diet
कूटू (एक प्रकार का अनाज) रोटी , उपवास के चावल (शामक चावल), उपवास चावल से डोसा, साबूदाना से बनाया व्यंजन, सिंघाड़ा का आटा, राजगीरा, रतालू , अरबी, उबले हुए मीठे आलू (शक्कर कंद) से बने व्यंजन, मक्खन (घी), दूध और छाछ, लौकी और कद्दू के साथ दही आदि।
बहुत सारे तरल पदार्थ – नारियल पानी, जूस, सब्जियों के सूप, आदि।
पपीता, नाशपाती और सेब के साथ बनाया गया फलों का सलाद।
खाना पकाने के लिए आम नमक के बजाय सेंधा नमक का प्रयोग करें। प्याज और लहसुन से दूर रहें।
जो लोग उपवास नहीं कर सकते वे मांसाहारी भोजन, शराब, प्याज, लहसुन और तेज मसालों से परहेज करें और खाना पकाने के लिए साधारण नमक के बदले सेंधा नमक का उपयोग कर सकते हैं।

नवरात्रि – १ से ३ दिन
फल आहार का पालन करें। आप सेब, केला, चीकू, पपीता, तरबूज, और मीठे अंगूर की तरह मीठे फल खा सकते हैं। और आप भारतीय करौदा, आंवला का रस, लौकी का रस और नारियल पानी भी ले सकते हैं।
नवरात्रि – ४ से ६ दिन
अगले तीन दिनों में, आप पारंपरिक नवरात्रि आहार (उपर दिए गए) फलों के रस, छाछ और दूध के साथ एक बार भोजन कर सकते हैं।
नवरात्रि – ७ से ९ दिन
अंतिम तीन दिनों के दौरान, आप एक पारंपरिक नवरात्रि आहार का पालन कर सकते हैं। स्वास्थ्य की स्थिति के मामले में यह सबसे अच्छा होगा।

नवरात्रि में उपवास तोड़ने की विधि |How to break your fast during Navratri
जब आप शाम को या रात में अपना उपवास तोड़ते हैं, तब हल्का भोजन करें ताकि आपका शरीर भारी न हो। रात में भारी और तला हुआ भोजन सिर्फ पाचन क्रिया के लिए ही नहीं बल्कि सफाई प्रक्रिया और उपवास के सकारात्मक प्रभाव के लिए भी अच्छा नहीं है। आसानी से पच जाए ऐसा भोजन खाएं।

नवरात्रि के लिए नौ दुर्गा के 9 मंत्र (Navratri mantra)
1. देवी शैलपुत्री का पूजा मंत्र- ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
2. देवी ब्रह्मचारिणी का पूजा मंत्र- ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥
3. देवी चंद्रघण्टा का पूजा मंत्र- ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥
4. देवी कूष्माण्डा का पूजा मंत्र- ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥
5. देवी स्कन्दमाता का पूजा मंत्र- ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥
6. देवी कात्यायनी का पूजा मंत्र- ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥
7. देवी कालरात्रि का पूजा मंत्र- ॐ देवी कालरात्र्यै नमः॥
8. देवी महागौरी का पूजा मंत्र- ॐ देवी महागौर्यै नमः॥
9. माता सिद्धिदात्री का पूजा मंत्र- ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः॥

नवरात्रि आरती, Navratri Aarti
जय अम्बे गौरी,
मैया जय श्यामा गौरी,
तुमको निशदिन ध्यावत,
हरि ब्रह्मा शिवरी।

मांग सिंदूर विराजत,
टीको मृगमद को,
उज्ज्वल से दोउ नैना,
चंद्रवदन नीको॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी...॥

कनक समान कलेवर,
रक्ताम्बर राजै,
रक्तपुष्प गल माला,
कंठन पर साजै॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी...॥

केहरि वाहन राजत,
खड्ग खप्पर धारी,
सुर-नर-मुनिजन सेवत,
तिनके दुखहारी॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी...॥

कानन कुण्डल शोभित,
नासाग्रे मोती,
कोटिक चंद्र दिवाकर,
सम राजत ज्योती॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी...॥

शुंभ-निशुंभ बिदारे,
महिषासुर घाती,
धूम्र विलोचन नैना,
निशदिन मदमाती॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी...॥

चण्ड-मुण्ड संहारे,
शोणित बीज हरे,
मधु-कैटभ दोउ मारे,
सुर भयहीन करे॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी...॥

ब्रह्माणी, रूद्राणी,
तुम कमला रानी,
आगम निगम बखानी,
तुम शिव पटरानी॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी...॥

चौंसठ योगिनी मंगल गावत,
नृत्य करत भैरों,
बाजत ताल मृदंगा,
अरू बाजत डमरू॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी...॥

तुम ही जग की माता,
तुम ही हो भरता,
भक्तन की दुख हरता,
सुख संपति करता॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी...॥

भुजा चार अति शोभित,
खडग खप्पर धारी,
मनवांछित फल पावत,
सेवत नर नारी॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी...॥

कंचन थाल विराजत,
अगर कपूर बाती,
श्रीमालकेतु में राजत,
कोटि रतन ज्योती॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी...॥

श्री अंबेजी की आरति,
जो कोइ नर गावे,
कहत शिवानंद स्वामी,
सुख-संपति पावे॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी...॥

जय अम्बे गौरी,
मैया जय श्यामा गौरी,
तुमको निशदिन ध्यावत,
हरि ब्रह्मा शिवरी।

नवरात्रि व्रत की कथा (Navratri Vrat Katha)
Shri Durga Navratri Vrat Story In Hindi: एक समय बृहस्पति जी ब्रह्माजी से बोले- हे ब्रह्मन श्रेष्ठ! चैत्र व आश्विन मास के शुक्लपक्ष में नवरात्र का व्रत और उत्सव क्यों किया जाता है? इस व्रत का क्या फल है, इसे किस प्रकार करना उचित है? पहले इस व्रत को किसने किया? सो विस्तार से कहिये। बृहस्पतिजी का ऐसा प्रश्न सुन ब्रह्माजी ने कहा- हे बृहस्पते! प्राणियों के हित की इच्छा से तुमने बहुत अच्छा प्रश्न किया है। जो मनुष्य मनोरथ पूर्ण करने वाली दुर्गा, महादेव, सूर्य और नारायण का ध्यान करते हैं, वे मनुष्य धन्य हैं।

यह नवरात्र व्रत संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। इसके करने से पुत्र की कामना वाले को पुत्र, धन की लालसा वाले को धन, विद्या की चाहना वाले को विद्या और सुख की इच्छा वाले को सुख मिलता है। इस व्रत को करने से रोगी मनुष्य का रोग दूर हो जाता है। मनुष्य की संपूर्ण विपत्तियां दूर हो जाती हैं और घर में समृद्धि की वृद्धि होती है, बन्ध्या को पुत्र प्राप्त होता है। समस्त पापों से छुटकारा मिल जाता है और मन का मनोरथ सिद्ध हो जाता है। जो मनुष्य इस नवरात्र व्रत को नहीं करता वह अनेक दुखों को भोगता है और कष्ट व रोग से पीड़ित हो अंगहीनता को प्राप्त होता है, उसके संतान नहीं होती और वह धन-धान्य से रहित हो, भूख और प्यास से व्याकूल घूमता-फिरता है तथा संज्ञाहीन हो जाता है।

जो सधवा स्त्री इस व्रत को नहीं करती वह पति सुख से वंचित हो नाना दुखों को भोगती है। यदि व्रत करने वाला मनुष्य सारे दिन का उपवास न कर सके तो एक समय भोजन करे और दस दिन बान्धवों सहित नवरात्र व्रत की कथा का श्रवण करे। हे बृहस्पते! जिसने पहले इस महाव्रत को किया है वह कथा मैं तुम्हें सुनाता हूं तुम सावधान होकर सुनो। इस प्रकार ब्रह्मा जी का वचन सुनकर बृहस्पति जी बोले- हे ब्राह्माण मनुष्यों का कल्याम करने वाले इस व्रत के इतिहास को मेरे लिए कहो मैं सावधान होकर सुन रहा हूं। आपकी शरण में आए हुए मुझ पर कृपा करो।

ब्रह्माजी बोले- प्राचीन काल में मनोहर नगर में पीठत नाम का एक अनाथ ब्राह्मण रहता था, वह भगवती दुर्गा का भक्त था। उसके संपूर्ण सद्गुणों से युक्त सुमति नाम की एक अत्यन्त सुन्दरी कन्या उत्पन्न हुई। वह कन्या सुमति अपने पिता के घर बाल्यकाल में अपनी सहेलियों के साथ क्रीड़ा करती हुई इस प्रकार बढ़ने लगी जैसे शुक्ल पक्ष में चंद्रमा की कला बढ़ती है। उसका पिता प्रतिदिन जब दुर्गा की पूजा करके होम किया करता, वह उस समय नियम से वहां उपस्थित रहती। एक दिन सुमति अपनी सखियों के साथ खेल में लग गई और भगवती के पूजन में उपस्थित नहीं हुई। उसके पिता को पुत्री की ऐसी असावधानी देखकर क्रोध आया और वह पुत्री से कहने लगा अरी दुष्ट पुत्री! आज तूने भगवती का पूजन नहीं किया, इस कारण मैं किसी कुष्ट रोगी या दरिद्र मनुष्य के साथ तेरा विवाह करूंगा।

पिता का ऐसा वचन सुन सुमति को बड़ा दुख हुआ और पिता से कहने लगी- हे पिता! मैं आपकी कन्या हूं तथा सब तरह आपके आधीन हूं जैसी आपकी इच्छा हो वैसा ही करो। राजा से, कुष्टी से, दरिद्र से अथवा जिसके साथ चाहो मेरा विवाह कर दो पर होगा वही जो मेरे भाग्य में लिखा है, मेरा तो अटल विश्वास है जो जैसा कर्म करता है उसको कर्मों के अनुसार वैसा ही फल प्राप्त होता है क्योंकि कर्म करना मनुष्य के आधीन है पर फल देना ईश्वर के आधीन है।

जैसे अग्नि में पड़ने से तृणादि उसको अधिक प्रदीप्त कर देते हैं। इस प्रकार कन्या के निर्भयता से कहे हुए वचन सुन उस ब्राह्मण ने क्रोधित हो अपनी कन्या का विवाह एक कुष्टी के साथ कर दिया और अत्यन्त क्रोधित हो पुत्री से कहने लगा-हे पुत्री! अपने कर्म का फल भोगो, देखें भाग्य के भरोसे रहकर क्या करती हो? पिता के ऐसे कटु वचनों को सुन सुमति मन में विचार करने लगी- अहो! मेरा बड़ा दुर्भाग्य है जिससे मुझे ऐसा पति मिला। इस तरह अपने दुख का विचार करती हुई वह कन्या अपने पति के साथ वन में चली गई और डरावने कुशायुक्त उस निर्जन वन में उन्होंने वह रात बड़े कष्ट से व्यतीत की।

उस गरीब बालिका की ऐसी दशा देख देवी भगवती ने पूर्व पुण्य के प्रभाव से प्रगट हो सुमति से कहा- हे दीन ब्राह्मणी! मैं तुझसे प्रसन्न हूं, तुम जो चाहो सो वरदान मांग सकती हो। भगवती दुर्गा का यह वचन सुन ब्राह्मणी ने कहा- आप कौन हैं वह सब मुझसे कहो? ब्राह्मणी का ऐसा वचन सुन देवी ने कहा कि मैं आदि शक्ति भगवती हूं और मैं ही ब्रह्मविद्या व सरस्वती हूं। प्रसन्न होने पर मैं प्राणियों का दुख दूर कर उनको सुख प्रदान करती हूं। हे ब्राह्मणी! मैं तुझ पर तेरे पूर्व जन्म के पुण्य के प्रभाव से प्रसन्न हूं।

तुम्हारे पूर्व जन्म का वृतांत सुनाती हूं सुनो! तू पूर्व जन्म में निषाद (भील) की स्त्री थी और अति पतिव्रता थी। एक दिन तेरे पति निषाद ने चोरी की। चोरी करने के कारण तुम दोनों को सिपाहियों ने पकड़ लिया और ले जाकर जेलखाने में कैद कर दिया। उन लोगों ने तुझको और तेरे पति को भोजन भी नहीं दिया। इस प्रकार नवरात्र के दिनों में तुमने न तो कुछ खाया और न जल ही पिया इस प्रकार नौ दिन तक नवरात्र का व्रत हो गया। हे ब्राह्मणी! उन दिनों में जो व्रत हुआ, इस व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर मैं तुझे मनोवांछित वर देती हूं, तुम्हारी जो इच्छा हो सो मांगो।

इस प्रकार दुर्गा के वचन सुन ब्राह्मणी बोली अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो हे दुर्गे। मैं आपको प्रणाम करती हूं कृपा करके मेरे पति का कोढ़ दूर करो। देवी ने कहा- उन दिनों तुमने जो व्रत किया था उस व्रत का एक दिन का पुण्य पति का कोढ़ दूर करने के लिए अर्पण करो, उस पुण्य के प्रभाव से तेरा पति कोढ़ से मुक्त हो जाएगा।ब्रह्मा जी बोले- इस प्रकार देवी के वचन सुन वह ब्राह्मणी बहुत प्रसन्न हुई और पति को निरोग करने की इच्छा से जब उसने तथास्तु (ठीक है) ऐसा वचन कहा, तब उसके पति का शरीर भगवती दुर्गा की कृपा से कुष्ट रोग से रहित हो अति कान्तिवान हो गया। वह ब्राह्मणी पति की मनोहर देह को देख देवी की स्तुति करने लगी- हे दुर्गे! आप दुर्गति को दूर करने वाली, तीनों लोकों का सन्ताप हरने वाली, समस्त दु:खों को दूर करने वाली, रोगी मनुष्य को निरोग करने वाली, प्रसन्न हो मनोवांछित वर देने वाली और दुष्टों का नाश करने वाली जगत की माता हो। हे अम्बे! मुझ निरपराध अबला को मेरे पिता ने कुष्टी मनुष्य के साथ विवाह कर घर से निकाल दिया। पिता से तिरस्कृत निर्जन वन में विचर रही हूं, आपने मेरा इस विपदा से उद्धार किया है, हे देवी। आपको प्रणाम करती हूं। मेरी रक्षा करो।

ब्रह्मा जी बोले- हे बृहस्पते! उस ब्राह्मणी की ऐसी स्तुति सुन देवी बहुत प्रसन्न हुई और ब्राह्मणी से कहा- हे ब्राह्मणी! तेरे उदालय नामक अति बुद्धिमान, धनवान, कीर्तिवान और जितेन्द्रिय पुत्र शीध्र उत्पन्न होगा। ऐसा वर प्रदान कर देवी ने ब्राह्मणी से फिर कहा कि हे ब्राह्मणी! और जो कुछ तेरी इच्छा हो वह मांग ले। भगवती दुर्गा का ऐसा वचन सुन सुमति ने कहा कि हे भगवती दुर्गे! अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा कर मुझे नवरात्र व्रत की विधि और उसके फल का विस्तार से वर्णन करें।

महातम्य- इस प्रकार ब्राह्मणी के वचन सुन दुर्गा ने कहा- हे ब्राह्मणी! मैं तुम्हें संपूर्ण पापों को दूर करने वाले नवरात्र व्रत की विधि बतलाती हूं जिसको सुनने से मोक्ष की प्राप्ति होती है- आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नौ दिन तक विधिपूर्वक व्रत करें यदि दिन भर का व्रत न कर सकें तो एक समय भोजन करें। विद्वान ब्राह्मणों से पूछकर घट स्थापन करें और वाटिका बनाकर उसको प्रतिदिन जल से सींचें। महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती देवी की मूर्तियां स्थापित कर उनकी नित्य विधि सहित पूजा करें और पुष्पों से विधिपूर्वक अर्घ्य दें। बिजौरा के फल से अर्घ्य देने से रूप की प्राप्ति होती है। जायफल से अर्घ्य देने से कीर्ति, दाख से अर्घ्य देने से कार्य की सिद्धि होती है, आंवले से अर्घ्य देने से सुख की प्राप्ति और केले से अर्घ्य देने से आभूषणों की प्राप्ति होती है। इस प्रकार पुष्पों व फलों से अर्घ्य देकर व्रत समाप्त होने पर नवें दिन यथा विधि हवन करें।

खांड, घी, गेहूं, शहद, जौ, तिल, बिल्व (बेल), नारियल, दाख और कदम्ब आदि से हवन करें। गेहूं से होम करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, खीर एवं चम्पा के पुष्पों से धन की और बेल पत्तों से तेज व सुख की प्राप्ति होती है। आंवले से कीर्ति की और केले से पुत्र की, कमल से राज सम्मान की और दाखों से संपदा की प्राप्ति होती है। खांड, घी, नारियल, शहद, जौ और तिल तथा फलों से होम करने से मनोवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है। व्रत करने वाला मनुष्य इस विधि विधान से होम कर आचार्य को अत्यन्त नम्रता के साथ प्रणाम करे और यज्ञ की सिद्धि के लिए उसे दक्षिणा दे। इस प्रकार बताई हुई विधि के अनुसार जो व्यक्ति व्रत करता है उसके सब मनोरथ सिद्ध होते हैं, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। इन नौ दिनों में जो कुछ दान आदि दिया जाता है उसका करोड़ों गुना फल मिलता है। इस नवरात्र व्रत करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। हे ब्राह्मणी! इस संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाले उत्तम व्रत को तीर्थ, मंदिर अथवा घर में विधि के अनुसार करें।

ब्रह्मा जी बोले- हे बृहस्पते! इस प्रकार ब्राह्मणी को व्रत की विधि और फल बताकर देवी अर्न्तध्यान हो गई। जो मनुष्य या स्त्री इस व्रत को भक्तिपूवर्क करता है वह इस लोक में सुख प्राप्त कर अन्त में दुर्लभ मोक्ष को प्राप्त होता है। हे बृहस्पते! यह इस दुर्लभ व्रत का महात्म्य है जो मैंने तुम्हें बतलाया है। यह सुन बृहस्पति जी आनन्द से प्रफुल्लित हो ब्राह्माजी से कहने लगे कि हे ब्रह्मन! आपने मुझ पर अति कृपा की जो मुझे इस नवरात्र व्रत का महात्6य सुनाया। ब्रह्मा जी बोले कि हे बृहस्पते! यह देवी भगवती शरक्ति संपूर्ण लोकों का पालन करने वाली है, इस महादेवी के प्रभाव को कौन जान सकता है? बोलो देवी भगवती की जय।

नवरात्रि व्रत में करें इन 6 नियमों का पालन / नवरात्रि में क्या करें, क्या न करें
1- कन्याओं/महिलाओं का सम्मान करें
भारतीय परंपरा में कन्याओं को मां दुर्गा का स्वरूप माना गया है. यही कारण है कि नवरात्रि में कन्या पूजन या कंजका पूजन कर लोग पुण्य की प्राप्ति करते हैं. नवरात्रि के दिनों में सभी महिलाओं में किसी न किसी देवी का स्वरूप होता है. इसलिए किसी भी कन्या या महिला के प्रति असम्मान का भाव मन में भी नहीं आना चाहिए. कन्याओं को देवी स्वरूप मानकर उन्हें मन ही मन प्रणाम करना चाहिए. हमारे शास्त्रों में यहां तक कहा गया है कि यत्र नार्यास्तु पूजयंते रमंते तत्र देवता.

2- धार्मिक कार्यों में मन लगाएं
माना जाता है कि व्रत करने वाले को नवरात्रि नौ दिनों तक अपना समय भौतिकता वाली बातों में न लगाकर धार्मिक ग्रंथों का अध्यन करना चाहिए. इन दिनों दुर्गा चालीसा या दुर्गा सप्तसती का पाठ कर सकते हैं.

3- घर अकेला न छोड़ें
यदि आपने घर में कलश (घट) स्थापना की है या माता की चौकी या अखंड ज्योति लगा रखी है तो उसके पास किसी एक व्यक्ति का रहना जरूरी होता है. इस दौरान नौ दिनों तक घर में किसी एक व्यक्ति का रहना जरूरी होता है. साथ व्रत के दौरान दिन में सोना भी मना है.

4- तामसिक भोजन से परहेज करें
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नवरात्रि के पावन दिनों में सात्विकता का विशेष ध्यान रखना चाहिए. आहार, व्यवहार और विचार में आपके सात्विकता होना जरूरी है. आप इन दिनों तामसिक प्रवृत्ति का भोजन जैसे नॉनवेज, प्याज-लहसुन और मदिरा आदि का सेवन नहीं करना चाहिए. कम से कम नवरात्रि के नौ दिनों तक पूरी तरह से सात्विक आहार लेना चाहिए.

5- व्रत के दौरान गुस्सा न करें
नवरात्रि के दिनों में बहुत से लोग क्रोध पर काबू नहीं रख पाते और कलह का वातावरण पैदा करते हैं. ऐसे लोगों को कम से कम नौ दिनों तक व्रत के दौरान गुस्सा करने से बचना चाहिए. हो सकते ज्यादा से ज्यादा मौन व्रत रखें या कम से कम बात करें. व्रत में शारीरिक ऊर्जा की कमी होती है ऐसे में व्रत के दौरान ज्यादा बोलने से आपके शरीर में और ज्यादा कमजोरी आ सकती है. इसलिए शांतिपूर्वक व्रत करना उत्तम माना गया है.

6 – काम वासना पर कंट्रोल रखें
नवरात्रि के दिनों में काम भावना पर नियंत्रण रखने को भी जरूरी बताया गया. नवरात्रि के दौरान महिलाओं और पुरुषों दोनों को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए. संभव हो तो अलग-अलग बिस्तर पर सोना चाहिए.

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