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होलिका दहन की पूजा कैसे करे
होलिका दहन, हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें होली के एक दिन पहले यानी पूर्व सन्ध्या को होलिका का सांकेतिक रूप से दहन किया जाता है. होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व के रूप में मनाया जाता है। होलिका दहन की रात बेहद खास मानी जाती है. कहा जाता है कि होलिका दहन के समय की जाने वाली पूजा से घर में धन धान्य के भंडार तो भरते ही हैं वहीं जीवन से समस्त कष्ट भी दूर हो जाते हैं. शुभ योग में अगर होलिका दहन किया जाता है तो जीवन में खुशहाली बनी रहती है.

होलिका दहन मुहूर्त, कब करें होलिका दहन
हमारे सभी धर्मग्रंथों में होलिका दहन के लिए विधि-विधान के संबंध में एक सी बातें कही गई हैं. जैसे अग्नि प्रज्ज्वलन के समय भद्रा बीत चुकी हों, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि हो, तो यह अवधि सर्वोत्तम मानी गई है. यदि भद्रा रहित प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा का अभाव हो परन्तु भद्रा मध्य रात्रि से पहले ही समाप्त हो जाए तो प्रदोष के पश्चात जब भद्रा समाप्त हो तब होलिका दहन करना चाहिए. यदि भद्रा मध्यरात्रि तक व्याप्त हो तो ऐसी परिस्थिति में भद्रा पूँछ के दौरान होलिका दहन किया जा सकता है. परन्तु भद्रा मुख में होलिका दहन कदापि नहीं करना चाहिए. कभी दुर्लभ स्थिति में यदि प्रदोष और भद्रा पूँछ दोनों में ही होलिका दहन सम्भव न हो तो प्रदोष के पश्चात होलिका दहन करना चाहिए. होलिका दहन का मुहूर्त किसी भी अन्य त्योहार के मुहूर्त से ज्यादा महत्वपूर्ण और आवश्यक है, क्योंकि भद्रा सूर्यदेव की उद्दण्ड पुत्री हैं और उनकी उपस्थिति अथवा मुहूर्त में किया गया कार्य सकुशल संपन्न होने में संदेह रहता है. ब्रह्मा जी के वरदान स्वरूप इन्हें अपनी उपस्थिति में कार्य बाधा डालने से कोई नही रोक सकता.

होलिका पूजन सामग्री, होलिका दहन पूजन सामग्री, होली पूजा सामग्री, Holi Pooja Saman
बड़गुल्ले की 4 माला,
एक कलश जल,
कच्‍चा सूत,
रोली,
गुलाल,
फूल,
साबुत हल्‍दी,
साबुत मूंग,
बताशे और 5 या फिर 7 प्रकार के अनाज,
मिठाइयां और फल,
गेंहू की बालियां

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होलिका दहन से पूर्व होलिका की पूजा की जाती है. सुबह के समय स्नानादि कार्यों से निवृत्त होकर होलिका दहन के लिए निश्चिच किये गए स्थान पर होली रखें. सूखी लकड़ी व गाय के गोबर के उपलो से होलीका सजाएं. अब होलिका के पास पूर्व या उत्तर दिशा में मुख करके बैठें. यथाशक्ति संकल्प लेकर गोत्र-नामादि का उच्चारण कर पूजा करें. सबसे पहले गणेश व गौरी इत्यादि का पूजन करें. ॐ होलिकायै नम: से होली का पूजन करें, ॐ प्रहलादाय नम: से प्रहलाद का पूजन करें. इसके बाद ॐ नृसिंहाय नम: से भगवान नृसिंह का पूजन करें. इसके बाद बड़गुल्ले की 4 मालाएं लें, एक पितरों के नाम, एक हनुमान जी के लिए, एक शीतला माता के लिए और एक अपने परिवार की होलिका को समर्पित करें. अब होलिका की 3 या 7 बार परिक्रमा करते हुए कच्चा सूत लपेट दें. अब होलिका पर गुलाल व रोली चढ़ाएं. इसके बाद समस्त पूजा सामग्री (फूल, साबुत हल्‍दी, साबुत मूंग, बताशे और 5 या फिर 7 प्रकार के अनाज, मिठाइयां और फल) होलिका को समर्पित कर दें. लोटे का जल चढ़ाकर कहें- ॐ ब्रह्मार्पणमस्तु. फिर अपनी मनोकामनाएं कह दें और गलतियों की क्षमा मांग लें. अब शाम के समय होलिका दहन मुहूर्त के अनुसार होलिका में अग्नि प्रज्वलित कर दें. होलिका दहन होने के बाद होलिका में जिन वस्तुओं की आहुति दी जाती है, उनमें कच्चे आम, नारियल, भुट्टे या सप्तधान्य, चीनी के बने खिलौने, नई फसल का कुछ भाग प्रमुख है. होलिका के आग में गेंहू की बालियों को सेंक लें. बाद में उनको खा लें, इससे आप निरोग रहेंगे.

होली की राख का महत्व
होली की राख को बहुत ही पवित्र माना जाता है. होली की आग में गेहूं की नई बाली और हरे गन्‍ने को भूनना बहुत ही शुभ माना जाता है. उत्तर भारत के कुछ स्‍थानों पर गेहूं की बाली भूनकर संबंधियों और मित्रों में बांटने की भी परंपरा है. इसे सुख-समृद्धि की कामना के तौर पर देखा जाता है और ईश्‍वर से नई फसल की खुशहाली की प्रार्थना की जाती है.
होलिका दहन के समय कौन सी लकड़ी जलाएं
होलिका दहन के दिन एरंड और गूलर की लकड़ी का इस्तेमाल करना चाहिए. इस मौसम में एरंड और गूलर के पत्ते झड़ने लगते हैं ऐसे में अगर इन्हें जलाया ना जाए तो इनमें कीड़ा लगने लगता है. एरंड और गूलर की लकड़ी का यह खासियत है कि इसे जलाने से हवा शुद्ध होती है और मच्छर, बैक्टीरिया खत्म हो जाते हैं. एरंड और गूलर की लकड़ियों को गाय के उपले के साथ जलाना चाहिए.
होलिका दहन के समय न जलाएं ये लकड़ियां
होलिका दहन में आम की लकड़ी को नहीं जलाना चाहिए. होलिका दहन में वट की लकड़ी और पीपल की लकड़ी को जलाना भी अशुभ माना जाता है.

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होलिका दहन के मौके पर असुर राज हिरण्‍यकश्‍यप की कथा पढ़ी जाती है. इसके मुताबिक हिरण्‍यकश्‍यप काफी बलशाली असुर था. उसे अपनी शक्तियों का भी खूब गुमान था. उसका यह अभिमान इस कदर बढ़ गया कि उसने संपूर्ण प्रजा को उसे भगवान मानकर पूजा करने का आदेश दे डाला. लेकिन उसका बेटा प्रह्लााद नारायण का परम भक्‍त था. वह हर समय श्री हर‍ि-श्री हरि का नाम जपता रहता था. हिरण्‍यकश्‍यप इस बात से काफी क्रोधित था. कई बार उसने खुद अपने बेटे प्रह्लााद को समझाया तो कई बार अपनी सभा के मंत्रिमंडल को उसे समझाने के लिए भेजा. लेकिन प्रह्लााद पर इसका कोई असर नहीं हुआ. वह तो बस हरि भक्ति में ही लीन रहते. हिरण्‍यकश्‍यप के लाख समझाने के बाद भी जब प्रह्लााद नहीं माने तो असुर राज ने अपनी बहन होलिका को बुलवाया. होलिका को वरदान में एक ऐसी दुशाला मिली थी जिसे ओढ़ने के बाद अग्नि उसे छू भी नहीं सकती थी. हिरण्‍यकश्‍यप ने होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लााद को अपने गोदी में लेकर अग्नि में बैठ जाए ताकि भगवान विष्‍णु का नाम लेने वाला प्रह्लााद जलकर भस्‍म हो जाए या फिर अग्नि के डर से वह हिरण्‍यकश्‍यप को अपना भगवान मानने लगे.

हिरण्‍यकश्‍यप के आदेश पर होलिका अपने भतीजे प्रह्लााद को लेकर अग्नि में बैठ गई. उस समय होलिका ने वरदान में प्राप्‍त वही दुशाला ओढ़ा हुआ था. यह सबकुछ देखकर भी प्रह्लााद तनिक भी विचलित न हुए. पूरी श्रद्धा से वह भगवान विष्‍णु का नाम जपते रहे. थोड़ी ही देर में कुछ ऐसा हुआ कि शांत मौसम में भी तेज हवाएं चलने लगीं. वह भी इतनी तेज कि होलिका का दुशाला हवा में उड़कर प्रह्लााद के ऊपर चली गई. इससे प्रहलाद तो बच गया लेकिन होलिका जलकर भस्‍म हो गईं. यह देख हिरण्यकश्यप अपने पुत्र से और अधिक नाराज हुआ. हिरण्यकश्यप को वरदान था कि वह वह न दिन में मर सकता है न रात में, न जमीन पर मर सकता है और न आकाश या पाताल में, न मनुष्य उसे मार सकता है और न जानवर या पशु- पक्षी, इसीलिए भगवान उसे मारने का समय संध्या चुना और आधा शरीर सिंह का और आधा मनुष्य का- नृसिंह अवतार. हिरण्यकश्यप को मारने के लिए भगवान विष्णु नरंसिंह अवतार में खंभे से निकल कर गोधूली समय (सुबह और शाम के समय का संधिकाल) में दरवाजे की चौखट पर बैठकर अत्याचारी हिरण्यकश्यप को मार डाला. तभी से होली का त्यौहार मनाया जाने लगा. होलिका दहन के पूर्व पूजन के दौरान असुर राज ह‍िरण्‍यकश्‍यप और भक्‍तपरायण प्रह्लााद की यह कथा पढ़ने का विधान है. मान्‍यता है कि जो भी जातक इस कथा को पूरी श्रद्धा से पढ़ता या सुनता है. उसपर श्री हरि विष्‍णु की कृपा बनी रहती है. उसकी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती हैं. साथ ही जीवन की सभी परेशान‍ियां भी दूर हो जाती हैं. सुख-समृद्धि का वास होता है.

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