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होलाष्टक क्या है, Holashtak Meaning, Holashtak Kya Hota Hai
होलाष्टक के शाब्दिक अर्थ पर जाएं तो होला+अष्टक अर्थात होली से पूर्व के आठ दिन, जो दिन होता है, वह होलाष्टक कहलाता है. सामान्य रुप से देखा जाये तो होली एक दिन का पर्व न होकर पूरे नौ दिनों का त्यौहार है. होली के 8 दिन पूर्व फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से होलाष्टक लग जाता है, जो पूर्णिमा तक जारी रहता है. होलाष्टक के इन 8 दिनों को वर्ष का सबसे अशुभ समय माना जाता है. इस दौरान सभी शुभ मांगलिक कार्य रोक दिए जाते है यह दुलहंडी पर रंग खेलकर खत्म होता है.  तो आइए जानते हैं क्‍या है होलाष्‍टक की कहानी और कौन से कार्यों को करने की है मनाही?

कैसे मनाएं होलाष्टक, Kaise Manaye Holashtak
होलाष्टक के शुरुआती दिन में ही होलिका दहन के लिए 2 डंडे स्थापित किये जाते हैं। जिसमें से एक को होलिका तथा दूसरे को प्रह्लाद माना जाता है. पूजन करने के लिये होली से आठ दिन पहले होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर उसमें सूखे उपले, सूखी लकडी, सूखी ख़ास व होली का डंडा स्थापित कर दिया जाता है. जिस दिन यह कार्य किया जाता है, उस दिन को होलाष्टक प्रारम्भ का दिन भी कहा जाता है. जिस गांव, क्षेत्र या मौहल्ले के चौराहे पर पर यह होली का डंडा स्थापित किया जाता है. होली का डंडा स्थापित होने के बाद संबन्धित क्षेत्र में होलिका दहन होने तक कोई शुभ कार्य संपन्न नहीं किया जाता है. सबसे पहले इस दिन, होलाष्टक शुरु होने वाले दिन होलिका दहन स्थान का चुनाव किया जाता है. इस दिन इस स्थान को गंगा जल से शुद्ध कर, इस स्थान पर होलिका दहन के लिये लकडियां एकत्र करने का कार्य किया जाता है. इस दिन जगह-जगह जाकर सूखी लकडियां विशेष कर ऐसी लकडियां जो सूखने के कारण स्वयं ही पेडों से टूटकर गिर गई हों, उन्हें एकत्र कर चौराहे पर एकत्र कर लिया जाता है. होलाष्टक से लेकर होलिका दहन के दिन तक प्रतिदिन इसमें कुछ लकडियां डाली जाती है. इस प्रकार होलिका दहन के दिन तक यह लकडियों का बड़ा ढेर बन जाता है. इस दिन से होली के रंग फिजाओं में बिखरने लगते हैं. अर्थात होली की शुरुआत हो जाती है. बच्चे और बड़े इस दिन से हल्की फुलकी होली खेलनी प्रारम्भ कर देते हैं.

होलाष्टक में क्या न करें? , Holashtak Me Kya Na Kare,
होली से पूर्व के 8 दिनों में भूलकर भी विवाह , बच्चे का नामकरण या मुंडन संस्कार न करें, भवन का निर्माण कार्य प्रारंभ न कराएं, कोई यज्ञ या हवन अनुष्ठान करने की सोच रहे हैं तो उसे होली के बाद कराएं. होलाष्टक के समय में नई नौकरी ज्वॉइन करने से बचें अगर होली के बाद का समय मिल जाए तो अच्छा होगा अन्यथा किसी ज्योतिषाचार्य से मुहूर्त दिखा लें. संभव हो तो होलाष्टक के समय में भवन, वाहन आदि की खरीदारी से बचें. होलाष्टक के दौरान शगुन के तौर पर रुपए आदि न दें. होलाष्टक शुरू होने के साथ ही 16 संस्कार जैसे गर्भाधान, विवाह, पुंसवन (गर्भाधान के तीसरे माह किया जाने वाला संस्कार), नामकरण, चूड़ाकरण, विद्यारंभ, गृह प्रवेश, गृह निर्माण, गृह शांति, हवन-यज्ञ कर्म आदि नहीं किए जाते. इन दिनों शुरु किए गए कार्यों से कष्ट की प्राप्ति होती है. इन दिनों हुए विवाह से रिश्तों में अस्थिरता आजीवन बनी रहती है अथवा टूट जाती है. घर में नकारात्मकता, अशांति, दुःख एवं क्लेष का वातावरण रहता है.

होलाष्टक में क्या करें ,Holashtak Me Kya Kare
होलाष्टक के समय में अपशकुन के चलते मांगलिक कार्यों पर रोक होती है.हालांकि होलाष्टक में भगवान की पूजा-अर्चना की जाती है. इस समय में आप अपने ईष्ट देव की पूजा-अर्चना, भजन, आरती आदि करें, इससे शुभ फल की प्राप्ति होती है. व्रत उपवास करने से भी आपको पुण्य फल मिलते हैं. इन दिनों में धर्म कर्म के कार्य, वस्त्र, अनाज व अपनी इच्छा व सामर्थ्य के अनुसार जरुरतमंदों को धन का दान करने से भी आपको लाभ मिल सकता है.

होलाष्टक में शुभ कार्य को करना क्यों है वर्जित
वहीं होलाष्टक में शुभ कार्य न करने की ज्योतिषीय वजह भी बताई जाती है. ज्योतिष का कहना है कि इन दिनों में नेगेटिव एनर्जी काफी हैवी रहती है. होलाष्टक के अष्टमी तिथि से आरंभ होता है. अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक अलग-अलग ग्रहों की नेगेटिविटी काफी हाई रहती है. जिस कारण इन दिनों में शुभ कार्य न करने की सलाह दी जाती है. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार होलाष्टक मे सभी शुभ कार्य करना वर्जित रहते हैं क्‍योंक‍ि इन आठ दिवस में 8 ग्रह उग्र रहते है इन आठ दिवसों में अष्टमी को चंद्रमा,नवमी को सूर्य,दशमी को शनि,एकादशी को शुक्र,द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल, और पूर्णिमा को राहू उग्र रहते हैं इसलिए इस अवधि में शुभ कार्य करने वर्जित है.

होलाष्टक का महत्व , Holashtak Significance , Holashtak Ka Mahatva
ज्योतिषी शास्त्री के अनुसार होली के पूर्व होलाष्टक का अपना अलग महत्व है. होलाष्टक की अवधि भक्ति की शक्ति का प्रभाव बताती है. इस अवधि में तप करना ही अच्छा रहता है. होलाष्टक को नवनेष्ट यज्ञ की शुरूआत का कारक भी माना जाता है. इस दिन से सभी प्रकार के नये फलों, अन्न, चना, गन्ना आदि का प्रयोग शुरू कर दिया जाता है. इस वर्ष जिन लड़कियों की शादी हुई हो, उन्हे भी अपने ससुराल में पहली होली नहीं देखनी चाहिये. होलाष्टक शुरू होने पर जमीन पर पेड़ की शाखाएं लगाई जाती हैं. इसमें रंग-बिरंगे कपड़ों के टुकड़े बांध देते हैं. इसे भक्त प्रहलाद का प्रतीक माना जाता है. मान्यताओं के अनुसार, जिस क्षेत्र में होलिका दहन के लिए पेड़ की शाखा को जमीन पर लगाते हैं, उस क्षेत्र में होलिका दहन तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है.

होलाष्‍टक की कहानी, होलाष्‍टक की कथा, Holashtak Ki Kahani, Holashtak Katha In Hindi
कथा 1- प्रचलित मान्यता के अनुसार शिवजी ने अपनी तपस्या भंग करने का प्रयास करने पर कामदेव को फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि को भस्म कर दिया था. कामदेव प्रेम के देवता माने जाते हैं, इनके भस्म होने के कारण संसार में शोक की लहर फैल गई थी. जब कामदेव की पत्नी रति द्वारा भगवान शिव से क्षमा याचना की गई, तब शिवजी ने कामदेव को पुनर्जीवन प्रदान करने का आश्वासन दिया. इसके बाद लोगों ने खुशी मनाई. होलाष्टक का अंत धुलेंडी के साथ होने के पीछे एक कारण यह माना जाता है.

कथा 2- मान्यता है कि हरिण्यकशिपु ने अपने पुत्र भक्त प्रह्लाद को भगवद् भक्ति से हटाने और हरिण्यकशिपु को ही भगवान की तरह पूजने के लिये अनेक यातनाएं दी लेकिन जब किसी भी तरकीब से बात नहीं बनी तो होली से ठीक आठ दिन पहले उसने प्रह्लाद को मारने के प्रयास आरंभ कर दिये थे. लगातार आठ दिनों तक जब भगवान अपने भक्त की रक्षा करते रहे तो होलिका के अंत से यह सिलसिला थमा. इसलिये आज भी भक्त इन आठ दिनों को अशुभ मानते हैं. उनका यकीन है कि इन दिनों में शुभ कार्य करने से उनमें विघ्न बाधाएं आने की संभावनाएं अधिक रहती हैं.

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