Pitru Paksha

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पितृ पक्ष – परिचय और संपूर्ण जानकारी
पितृपक्ष (Pitru Paksha) यानी श्राद्ध की शुरुआत. पितृ पक्ष 16 दिन का होता है, जो भाद्रपद की पूर्णिमा को शुरू होता है और अश्विन की अमावस्या यानि सर्व पितृ अमावस्या को खत्म होता है. पितृ पक्ष पितरों को याद और उनकी पूजा करने का समय है. पितृपक्ष पक्ष को महालय या कनागत भी कहा जाता है. शास्त्रों में तीन प्रकार के ऋण बताए गए हैं- देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण. पितृ ऋण उतारने के लिए ही पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म किया जाता है. शास्त्रों के मुताबिक, हमारे पूर्वज या पितर पितृ पक्ष में धरती पर निवास करते हैं. इस अवधि में उन्हें जो श्रद्धा से अर्पित किया जाता है वो उसे खुशी-खुशी स्वीकार करते हैं. इन दिनों पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पूरे विधि-विधान से पूजा पाठ किया जाता है. पितृ दोष दूर करने के लिए भी श्राद्ध पक्ष (Shraddh paksh) को सबसे अच्छा समय माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष में किए गए तर्पण से पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है और घर में हमेशा सुख-शांति बनी रहती है. इस खबर में जानिए पितृ पक्ष का अर्थ, पितृ पक्ष में क्या करना चाहिए, श्राद्ध पक्ष में वर्जित कार्य, पितृ पक्ष का महत्व, श्राद्ध कब और कैसे करे, श्राद्ध की तिथि कैसे निकाले, पितृ दोष, श्राद्ध क्यों करते हैं आदि के बारे में जानकारी विस्तार से-
पितृ पक्ष का अर्थ
पितृ पक्ष या पितरपख, १६ दिन की वह अवधि (पक्ष/पख) है जिसमें हिन्दू लोग अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं और उनके लिये पिण्डदान करते हैं. इसे सोलह श्राद्ध, महालय पक्ष, अपर पक्ष आदि नामों से भी जाना जाता है.

पितृ दोष क्या है?
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पितरों यानि पूर्वजों को प्रसन्न करना चाहिए. मान्यता है कि अगर पितर रुष्ट हो जाए तो मनुष्य को जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. हिन्दू ज्योतिष के अनुसार भी पितृ दोष को सबसे जटिल कुंडली दोषों में से एक माना जाता है. जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष होता है उन लोगों को संतान सुख आसानी से नहीं मिलता है. या फिर संतान बुरी संगत में पड़ जाती है. इन लोगों को नौकरी या व्यापार में हमेशा दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. काम में बार-बार बाधा आती है. घर में ज्यादा क्लेश-झगड़े होते हैं. घर में सुख-समृद्धि नहीं आती है. गरीबी और कर्ज बना रहता है. अक्सर बीमार रहते हैं और बेटी या बेटे की शादी में रुकावट आती है. पितरों की शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से अश्विन कृष्ण अमावस्या तक पितृ पक्ष श्राद्ध होते हैं. मान्यता है कि इस दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितरों को आजाद कर देते हैं ताकि वो अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें.
श्राद्ध से पितृ दोष शान्ति – श्राद्ध कर्म द्वारा पूर्वजों की मृत्यु तिथि अनुसार पिण्डदान, तर्पण आदि करने से पितृ दोष से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है. यदि किसी को अपने पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात न हो तो वह लोग अमावस्या तिथि के दिन अपने पितरों का श्राद्ध कर सकते हैं और पितृदोष की शांति करा सकते हैं.

श्राद्ध का अर्थ
वायु पुराण, मत्स्य पुराण, गरुण पुराण, विष्णु पुराण आदि पुराणों तथा अन्य शास्त्रों जैसे मनुस्मृति में भी श्राद्ध कर्म के महत्व के बारे में बताया गया है. ब्रह्म पुराण के अनुसार जो भी वस्तु उचित काल या स्थान पर पितरों के नाम उचित विधि द्वारा ब्राह्मणों को श्रद्धापूर्वक दिया जाए वह श्राद्ध कहलाता है. श्राद्ध के माध्यम से पितरों को तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है. पिण्ड रूप में पितरों को दिया गया भोजन श्राद्ध का अहम हिस्सा होता है.
श्राद्ध क्यों करते हैं ?
हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बेहद जरूरी माना जाता है. मान्यतानुसार अगर किसी मनुष्य का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण ना किया जाए तो उसे इस लोक से मुक्ति नहीं मिलती और वो भूत के रूप में इस संसार में ही रह जाता है. इसलिए पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध अवश्य करना चाहिए.
किस दिन करें श्राद्ध?
सरल शब्दों में समझा जाए तो श्राद्ध दिवंगत परिजनों को उनकी मृत्यु की तिथि पर श्रद्धापूर्वक याद किया जाता है. अगर किसी परिजन की मृत्यु प्रतिपदा को हुई हो तो उनका श्राद्ध प्रतिपदा के दिन ही किया जाता है. इसी प्रकार अन्य दिनों में भी ऐसा ही किया जाता है. इस विषय में कुछ विशेष मान्यता भी है जो निम्न हैं:
1- पिता का श्राद्ध अष्टमी के दिन और माता का नवमी के दिन किया जाता है.
2- जिन परिजनों की अकाल मृत्यु हुई जो यानि किसी दुर्घटना या आत्महत्या के कारण हुई हो उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है.
3- साधु और संन्यासियों का श्राद्ध द्वाद्वशी के दिन किया जाता है.
4- जिन पितरों के मरने की तिथि याद नहीं है, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है. इस दिन को सर्व पितृ श्राद्ध कहा जाता है. आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या को पितृ विसर्जनी अमावस्या या महालया कहते हैं. जो व्यक्ति पितृ पक्ष के 15 दिनों तक श्राद्ध और तर्पण नहीं करते हैं, वे अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध तर्पण कर सकते हैं. इस दिन सभी पितरों का विसर्जन होता है.

कौन कर सकता है श्राद्ध
श्राद्ध का पहला अधिकार बड़े पुत्र का है. बड़ा बेटा जीवित न हो तो उससे छोटा पुत्र श्राद्ध करता है.
बड़ा बेटा शादी के बाद पत्नी संग मिलकर श्राद्ध तर्पण करता है.
जिसका पुत्र न हो तो उसके भाई-भतीजे श्राद्ध कर्म कर सकते हैं.
अगर केवल पुत्री है तो उसका पुत्र श्राद्ध करता है.
कैसे करें श्राद्ध तर्पण
ज्योतिष के अनुसार, सुबह स्नान के बाद पितरों का तर्पण करने के लिए सबसे पहले हाथ में कुश लेकर दोनों हाथों को जोड़कर पितरों का ध्यान करें और उन्हें अपनी पूजा स्वीकार करने के लिए आमंत्रित करें. पितरों को तर्पण में जल, तिल और फूल अर्पित करें. इसके साथ ही जिस दिन पितरों की मृत्यु हुई है, उस दिन उनके नाम से और अपनी श्रद्धा और यथाशक्ति के अनुसार भोजन बनवाकर ब्राह्मणों को दान करें. कौवा और श्वान में भी भोजन वितरित करें.
क्या दिया जाता है श्राद्ध में
श्राद्ध में तिल, चावल, जौ आदि को अधिक महत्त्व दिया जाता है. साथ ही पुराणों में इस बात का भी जिक्र है कि श्राद्ध का अधिकार केवल योग्य ब्राह्मणों को है. श्राद्ध में तिल और कुशा का सर्वाधिक महत्त्व होता है. श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए. श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई,पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है.
श्राद्ध में कौओं का महत्त्व
कौए को पितरों का रूप माना जाता है. मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितर कौए का रूप धारण कर नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं. अगर उन्हें श्राद्ध नहीं मिलता तो वह रुष्ट हो जाते हैं. इस कारण श्राद्ध का प्रथम अंश कौओं को दिया जाता है.

पिंडदान की विशेष जगहें
शास्त्रों में पिंडदान के लिए 3 जगहों को सबसे विशेष माना गया है.
पहला है बद्रीनाथ जहां ब्रह्मकपाल सिद्ध क्षेत्र में पितृदोष मुक्ति के लिए तर्पण का विधान है.
दूसरा है हरिद्वार जहां नारायणी शिला के पास लोग पूर्वजों का पिंडदान करते हैं.
और तीसरा है गया जहां साल में एक बार 16 दिन के लिए पितृ-पक्ष मेला लगता है. कहा जाता है पितृ पक्ष में फल्गु नदी के तट पर विष्णुपद मंदिर के करीब और अक्षयवट के पास पिंडदान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है.
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महत्व
देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी होता है. देवकार्य से भी ज्यादा पितृकार्य का महत्व होता है. पितृ हमारे वंश को बढ़ाते है, पितृ पूजन करने से परिवार में सुख-शांति, धन-धान्य, यश, वैभव, लक्ष्मी हमेशा बनी रहती है. संतान का सुख भी पितृ ही प्रदान करते हैं. शास्त्रों में पितृ को पितृदेव कहा जाता है. पितृ पूजन प्रत्येक घर के शुभ कार्य में प्रथम किया जाता है. जो कि नांदी श्राद्ध के रूप में किया जाता है. भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन (क्वांर) की अमावस्या तक के समय को शास्त्रों में पितृपक्ष बताया है. इन 15 -16 दिनों में जो पुत्र अपने पिता, माता अथवा अपने वंश के पितरों का पूजन (तर्पण, पितृयज्ञ, धूप, श्राद्ध) करता है. वह अवश्य ही उनका आशीर्वाद प्राप्त करता है. माना जाता है कि इन दिनों में जिनको पितृदोष है वह अवश्य त्रि-पिंडी श्राद्ध अथवा नारायण बली का पूजन किसी तीर्थस्थल पर कराएं. काक भोजन कराएं, तो उनके पितृ सद्गति को प्राप्त हो, बैकुंठ में स्थान पाते हैं. अपने पिता-पितामह, माता, मातामही, पितामही, माता के पिता, मातृ पक्ष, पत्नी के पिता, अपने भाई, बहन, सखा, गुरु, गुरुमाता का श्राद्ध मंत्रों का उच्चारण कर विधिवत संपन्न करें. ब्राह्मण का जोड़ा यानी पति-पत्नी को भोजन कराएं. पितृ अवश्य आपको आशीर्वाद प्रदान करेंगे.

श्राद्ध पक्ष में वर्जित कार्य
1. पितृ पक्ष में कूप निर्माण, बावड़ी, देव प्रतिष्ठा, उत्सव, उद्यापन, वधू प्रवेश आदि कार्य करना वर्जित माना गया है. पितृपक्ष में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है. कोई भी नया सामान नहीं खरीदना चाहिए और न ही नया कपड़ा पहनना चाहिए., ऐसा करना अशुभ बताया गया है. पितृ पक्ष के दौरान इत्र और सौंदर्य वर्धक साधनों का प्रयोग भी नहीं करना चाहिए.
2. पितृपक्ष में लोहे के बर्तनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए. मान्यता है कि पितरों के लिए जो भोजन तैयार किया जाता है या फिर जिसमें भोजन परोसा जाता है, उसमें लोहे के बर्तनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए. ऐसा करने से पितर नाराज हो जाते हैं और परिवार की सुख-शांति और समृद्धि पर बुरा असर पड़ता है. इसलिए इस दौरान आप तांबा, पीतल या अन्य धातु के बर्तनों का प्रयोग कर सकते हैं.
3. पितृपक्ष में अगर पूर्वजों का श्राद्ध कर रहे हैं तो शरीर पर तेल का प्रयोग और पान का सेवन करने से बचना चाहिए. साथ ही अगर संभव हो सके तो दाढ़ी और बाल भी नहीं कटवाने चाहिए और इस दौरान इत्र का प्रयोग करना भी शास्त्रों में वर्जित माना गया है. ऐसा करने से पितर नाराज होते हैं, जीवन में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है.

पितृ पक्ष में क्या करना चाहिए
शास्त्रों के अनुसार, श्राद्ध के अनुष्ठानों का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए और इस दौरान ये 5 काम जरूर करने चाहिए.
1. ऐसा माना जाता है कि पितृपक्ष के दौरान हमारे पूर्वज किसी ना किसी रूप में हमारे पास आते हैं. वो आपके आसपास किसी भी रूप में आ सकते हैं. इसलिए अपने घर के आसपास आने वाले किसी भी जानवर, पक्षी या कीट का कभी भी अनादर नहीं करना चाहिए और ना ही उन्हें किसी भी तरह की चोट पहुंचानी चाहिए.
2. पितृपक्ष के दौरान कोई नई चीज खरीदने या कोई भी नया काम शुरू करने से बचना चाहिए. इस दौरान किसी भी मांगलिक कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया जाना चाहिए. इस दौरान अगर कोई शुभ समाचार मिलता भी है तो इसका जश्न पितृपक्ष खत्म होने के बाद मनाना चाहिए.
3. इस अवधि के दौरान अपने घर के बाहर एक बर्तन में खाना-पानी जरूर रखना चाहिए. इससे बेघर लोगों, जानवरों, पक्षियों और कीड़ों को अपनी भूख-प्यास मिटाने में आसानी होगी. इस समय आपको हर किसी की हर संभव मदद करनी चाहिए. पितृपक्ष के दौरान ये कार्य करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है.
4. पितृपक्ष के दौरान, जो व्यक्ति अनुष्ठान कर रहा है विशेष रूप से तर्पण (Tarpan) करने वाले व्यक्ति को चना, मसूर, जीरा, काला नमक, लौकी, सरसों, खीरा और मांस के सेवन से बचना चाहिए.
5. तर्पण करते समय काले तिल का प्रयोग अवश्य करना चाहिए. अपने पूर्वजों को प्रसन्न करने के लिए उनका पसंदीदा भोजन तैयार करें और इसे ब्राह्मण, कौवा, गाय और कुत्ते को अर्पित करें.

पितरों को प्रसन्न करने के उपाय
पितरों को प्रसन्न करके पितृ दोष को आसानी से दूर किया जा सकता है. श्राद्ध के पहले दिन भाद्रपद पूर्णिमा का व्रत करें. घर या व्यापार स्थल पर स्वर्गीय पितरों की अच्छी तस्वीरें लगाएं. ये तस्वीर दक्षिण-पश्चिम दीवार या कोने पर लगाएं. दिन शुरू करने के बाद सबसे पहले उनको प्रणाम करें. हर दिन उन्हें माला चढ़ाएं और धूपबत्ती दिखाकर उनका आशीर्वाद लें. उनके नाम पर जरूरतमंदों को खाना बांटें. पितरों के नाम से धार्मिक स्थल पर धन या सामग्री दान करें. घर या बाहर के बड़े बुजुर्गों की सेवा कर उनका आशीर्वाद लें. अमावस्या पर तर्पण, पिंड दान कर ब्राह्मणों को भोजन कराएं. गाय, कुत्ते, चीटियों, कौवों या अन्य पशु पक्षियों को खाना खिलाएं.

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