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क्‍या है मकर संक्रांति? क्‍यों मनाई जाती है मकर संक्रांति? मकर संक्रांति व्रत पूजा विधि, मकर संक्रांति की पौराणिक कथा, मकर संक्रांति का महत्‍व, मकर संक्रांति का इतिहास, Makar Sankranti Vrat, Makar Sankranti Puja Vidhi in Hindi, Makar Sankranti katha, Makar Sankranti ka Mahtva

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मकर संक्रांति – परिचय
पौष माश में जब सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है तो मकर संक्राति का त्यौहार मनाया जाता है. देशभर के अलग अलग राज्यों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे- कर्नाटक में संक्रांति, तमिलनाडु-केरल में पोंगल, पंजाब-हरियाणा में माघी, गुजरात-राजस्थान में उत्तरायण, उत्तराखंड में उत्तरायणी तो वहीं उत्तर प्रदेश-बिहार में इसे खिचड़ी के नाम से जाना जाता है. वैसे पंजाब में इस पर्व को लोहड़ी के नाम से सक्रांति के एक दिन पहले ही मना लिया जाता है. पुराणों के अनुसार इस दिन तीर्थ या गंगा में स्नान और दान करने से पुण्य व मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसके अलावा संक्रांति पर्व पर पितरों का ध्यान करना चाहिए और उनके निमित्त तर्पण जरूर करना चाहिए. इस द‍िन ख‍िचड़ी का भोग लगाया जाता है. कई जगहों पर पूर्वजों की आत्‍मा की शांति के लिए ख‍िचड़ी का दान भी किया जाता है. मकर संक्रांति पर तिल और गुड़ का प्रसाद भी बांटा जाता है. कई जगहों पर पतंगें उड़ाने की भी परंपरा है. इस दिन व्रत एवं पूजा पाठ का भी विशेष महत्व है. तो आइए जानते हैं मकर संक्रांति का क्या है? क्‍यों मनाई जाती है मकर संक्रांति? मकर संक्रांति का व्रत और पूजा की विधि, मकर संक्रांति की पौराणिक कथा और महत्व…

क्‍या है मकर संक्रांति?
सूर्य देव के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने को ही संक्रांति कहते हैं. एक जगह से दूसरी जगह जाने अथवा एक-दूसरे का मिलना ही संक्रांति होती है. एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति के बीच का समय ही सौर मास कहलाता है. हालांकि कुल 12 सूर्य संक्रांति होती हैं, परंतु इनमें से मेष, कर्क, तुला और मकर संक्रांति प्रमुख महत्व रखते हैं.

क्‍यों मनाई जाती है मकर संक्रांति?
शास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने उनके घर जाते हैं. अर्थात् सूर्य देव जब धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है, क्योंकि शनि देव मकर राशि के स्वामी हैं इसलिए इस पर्व को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है. सूर्य के धनु राशि से मकर राशि पर जाने का महत्व इसलिए बढ़ जाता है क्‍योंकि इस वक्त सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाता है और उत्तरायण देवताओं का दिन माना जाता है. हिन्दू मान्यताओं के अनुसार 14 दिसम्बर से 14 जनवरी तक का समय खर मास कहलाता है. खरमास मे किसी भी अच्छे काम को नहीं किया जाता. 14 जनवरी यानी मकर संक्रान्ति से पृथ्वी पर अच्छे दिनों की शुरुआत होती है. इस दिन इलाहाबाद में गंगा, यमुना, सरस्वती के संगम पर माघ मेला लगता है. यहां स्नान करने का बड़ा महत्त्व है. माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि के आख़िरी स्नान तक चलता है.

मकर संक्रांति व्रत और पूजा की विधि
मकर संक्रांति के दिन पर भगवान सूर्य की पूजा की जाती है और उन्हें जल चढ़ाया जाता है. कई जगहों पर लोग सूर्य देव के लिए व्रत भी रखते हैं और अपनी श्रद्धानुसार दान करते हैं. आइए जानते हैं इस दिन कैसे करें पूजा-पाठ
1. मकर संक्रांति के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर नहाने के पानी में तिल मिलाकर नहाएं. इसके बाद लाल कपड़े पहनें और दाहिने हाथ में जल लेकर पूरे दिन बिना नमक खाए व्रत करने का संकल्प लें.
2. सुबह के समय सूर्य देव को तांबे के लोटे में शुद्ध जल चढ़ाएं. इस जल में लाल फूल, लाल चंदन, तिल और थोड़ा-सा गुड़ मिलाएं. सूर्य को जल चढ़ाते हुए तांबे के बर्तन में जल गिराए. तांबे के बर्तन में इकट्ठा किया जल मदार के पौधे में डाल दें. जल चढ़ाते हुए ये मंत्र बोलें – ऊं घृणि सूर्यआदित्याय नम:

3. इसके बाद नीचे दिए मंत्रों से सूर्य देव की स्तुति करें और सूर्य देवता को नमस्कार करें –
ऊं सूर्याय नम:,
ऊं आदित्याय नम:,
ऊं सप्तार्चिषे नम:,
ऊं सवित्रे नम:,
ऊं मार्तण्डाय नम:,
ऊं विष्णवे नम:,
ऊं भास्कराय नम:,
ऊं भानवे नम:,
ऊं मरिचये नम:,
4. इस दिन श्रीनारायण कवच, आदित्य हृदय स्तोत्र और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना बड़ा ही उत्तम माना गया है.
5. भगवान सूर्य की पूजा करने के बाद तिल, उड़द दाल, चावल, गुड़, सब्जी कुछ धन अगर संभव हो तो वस्त्र किसी ब्राह्मण को दान करें.
6. इस दिन भगवान को तिल और खिचड़ी का भोग लगाना चाहिए और ब्राह्मण को भोजन करवाना चाहिए.

पौराणिक कथा
श्रीमद्भागवत एवं देवी पुराण के मुताबिक, शनि महाराज का अपने पिता से वैर भाव था क्योंकि सूर्य देव ने उनकी माता छाया को अपनी दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेद-भाव करते देख लिया था, इस बात से नाराज होकर सूर्य देव ने संज्ञा और उनके पुत्र शनि को अपने से अलग कर दिया था. इससे शनि और छाया ने सूर्य देव को कुष्ठ रोग का शाप दे दिया था.
पिता सूर्यदेव को कुष्ट रोग से पीड़ित देखकर यमराज काफी दुखी हुए. यमराज ने सूर्यदेव को कुष्ठ रोग से मुक्त करवाने के लिए तपस्या की. लेकिन सूर्य ने क्रोधित होकर शनि महाराज के घर कुंभ जिसे शनि की राशि कहा जाता है उसे जला दिया. इससे शनि और उनकी माता छाया को कष्ठ भोगना पड़ रहा था. यमराज ने अपनी सौतली माता और भाई शनि को कष्ट में देखकर उनके कल्याण के लिए पिता सूर्य को काफी समझाया. तब जाकर सूर्य देव शनि के घर कुंभ में पहुंचे.
कुंभ राशि में सब कुछ जला हुआ था. उस समय शनि देव के पास तिल के अलावा कुछ नहीं था इसलिए उन्होंने काले तिल से सूर्य देव की पूजा की. शनि की पूजा से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने शनि को आशीर्वाद दिया कि शनि का दूसरा घर मकर राशि मेरे आने पर धन धान्य से भर जाएगा. तिल के कारण ही शनि को उनका वैभव फिर से प्राप्त हुआ था. इसलिए शनि देव को तिल प्रिय है. इसी समय से मकर संक्राति पर तिल से सूर्य एवं शनि की पूजा का नियम शुरू हुआ.

मकर संक्रांति का इतिहास –
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन की गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते है सागर में जा मिली थीं. इसीलिए आज के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है. मकर संक्रांति को मौसम में बदलाव का सूचक भी माना जाता है. आज से वातारण में कुछ गर्मी आने लगती है और फिर बसंत ऋतु के बाद ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है. कुछ अन्य कथाओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन देवता पृथ्वी पर अवतरित होते हैं और गंगा स्नान करते हैं. इस वजह से भी गंगा स्नान का आज विशेष महत्व माना गया है. महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन का ही चयन किया था.

मकर संक्रांति का महत्‍व
मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरायण होते हैं. उत्तरायण देवताओं का दिन है. मान्‍यताओं की मानें तो उत्तरायण में मृत्यु होने से मोक्ष प्राप्ति की संभावना रहती है. जैसा कि हमने पहले ही बताया है कि 14 दिसम्बर से 14 जनवरी तक का समय खर मास होता है और खरमास में मांगल‍िक काम करने की मनाही होती है, लेकिन मकर संक्रांति के साथ ही शादी-ब्‍याह, मुंडन, जनेऊ और नामकरण जैसे शुभ काम की शुरुआत हो जाती हैं. धार्मिक महत्व के साथ ही इस पर्व को लोग प्रकृति से जोड़कर भी देखते हैं जहां रोशनी और ऊर्जा देने वाले भगवान सूर्य देवता की पूजा की जीती है. मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर विष्णु भगवान की पूजा का भी विधान है. शास्त्रों और पुराणों में कहा गया है कि माघ मास में नित्य तिल से भगवान विष्णु की पूजा करने वाला पाप मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करता है. अगर पूरे महीने तिल से नारायण की पूजा नहीं कर पाते हैं तो मकर संक्रांति के दिन नारायण की तिल से पूजा करनी चाहिए, ऐसा करने से जाने-अनजाने हुए पापों से मुक्ति मिलती है. मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान करने पर सभी कष्टों का निवारण होता है. इस दिन को दिया गया दान विशेष फल देने वाला होता है. मान्यता है कि इस अवसर पर दिया गया दान 100 गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है. इस दिन शुद्ध घी एवं कंबल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है.

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