Diwali special puja and katha

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दीपावली पांच पर्वों (धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और यमद्वितीया) का अनूठा त्योहार है, जो कार्तिक मास की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। कहा जाता है कि कार्तिक अमावस्या को भगवान रामचन्द्र जी चौदह वर्ष का बनवास पूरा कर अयोध्या लौटे थे. अयोध्या वासियों ने श्री रामचन्द्र के लौटने की खुशी में दीप जलाकर खुशियाँ मनायी थीं, इसी याद में आज तक दीपावली पर दीपक जलाए जाते हैं. मान्यता है कि इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी पृथ्वी लोक पर विचरण के लिए आती हैं और लोगों पर कृपा बरसाती हैं। दिवाली के दिन लोग लक्ष्मी-गणेश को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखते हैं और उनकी पूजा पूरे श्रद्धाभाव से करते हैं। माना जाता है कि इस दिन पूरे विधि विधान से पूजा करने वालों को मां लक्ष्मी और गणेश का आशीर्वाद मिलता है, घर सुख-समृद्धि और धन धान्य से भर जाता है. आइए जानते हैं दीपावली पर महालक्ष्मी पूजन की संपूर्ण विधि, मंत्र, कथा एवं आरती के बारे में-

दिवाली का महत्व (Diwali Importance)
दीपावली विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं, कहानियों या मिथकों के रूप में हिंदू, जैन सहित सिखों द्वारा मनायी जाती है। लेकिन सबमें एक ही संदेश छिपा होता है-बुराई पर अच्छाई, अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान और निराशा पर आशा की विजय। पुराणों के अनुसार इसी दिन भगवान श्री राम वनवास काटकर आयोध्या वापस लौटे थे। इसलिए हर साल भगवान राम के स्वागत में दीप जलाएं जाते हैं। दिवाली के दिन भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा का भी विधान है. दिवाली के दिन माता लक्ष्मी के स्वागत के लिए घर के मुख्य द्वार पर रंगोली बनाई जाती है। दिवाली के इस त्योहार को पटाखे जलाकर बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। शाम के समय भगवान गणेश और माता लक्ष्मी के साथ-साथ कुबेर जी की भी पूजा की जाती है। दिवाली की पूजा में लोग अपने पैसों, गहनों और बहीखातों को भगवान गणेश और माता लक्ष्मी के आगे रखते हैं। जिससे निरंतर भगवान गणेश और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद उन्हें मिले।

दीपावली पूजा सामग्री
महालक्ष्मी पूजन में केसर, रोली, चावल, पान या आम का पत्ता, सुपारी, फल, फूल, दूध, खील, बतासे, सिन्दूर, सूखे मेवे, मिठाई, दही गंगाजल धूप, अगरबत्ती दीपक रुई, कलावा, नारियल और कलश के लिए एक ताम्बे का पात्र चाहिए.

महालक्ष्मी पूजा विधि/ दीपावली पूजा विधि

  • एक चौकी लें उस पर साफ कपड़ा बिछाकर मां लक्ष्मी, सरस्वती व गणेश जी की प्रतिमा रखें। मूर्तियों का मुख पूर्व या पश्चिम की तरफ होना चाहिए। इसके बाद हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा-सा जल लेकर उसे प्रतिमा के ऊपर निम्न मंत्र पढ़ते हुए छिड़कें। बाद में इसी तरह से स्वयं को तथा अपने पूजा के आसन को भी इसी तरह जल छिड़ककर पवित्र कर लें।- ऊँ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: वाह्याभंतर: शुचि:।।
  • संकल्प- इसके बाद मां पृथ्वी को प्रणाम करें और आसन पर बैठकर अपने दाहिने हाथ में अक्षत (चावल), पुष्प और जल, एक रुपए (या यथासंभव धन) का सिक्का लेकर दीपावली महोत्सव के निमित्त संकल्प करें कि ‘मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान व समय पर मां लक्ष्मी, सरस्वती तथा गणेश जी और कुबेर जी की पूजा करने जा रहा हूं, जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हों।
  • कलश स्थापना- सबसे पहले गणेश जी और माता लक्ष्मी जी की आराधना करें। अब कलश स्थापना करें. कलश स्थापना के लिए लक्ष्मी जी के पास चावलों के ऊपर एक जल से भरा एक तांबे का कलश रखें। कलश पर मौली बांधे, इसमें सुपारी, दूर्वा, अक्षत, सिक्का डालें। कलश के ऊपर आम का पल्लव रखें साथ ही इस पर नारियल रखें। नारियल लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि उसका अग्रभाग दिखाई देता रहे। यह कलश वरुण का प्रतीक है। फिर नवग्रहों का पूजन कीजिए। हाथ में अक्षत और पुष्प ले लीजिए और नवग्रह स्तोत्र बोलिए। इसके बाद भगवती षोडश मातृकाओं का पूजन किया जाता है।
  • लक्ष्मी पूजा- गणेशजी, लक्ष्मीजी, देवी सरस्वती और कुबेर जी की पूजा करें। पूजा करते समय 11 या 21 छोटे सरसों के तेल के दीपक और एक बड़ा दीपक जलाना चाहिए। भगवान को फूल, अक्षत, जल और मिठाई अर्पित करें। (कुबेर पूजन करने के लिये सबसे पहले तिजोरी अथवा धन रखने के संदुक पर स्वस्तिक का चिन्ह बनायें, और कुबेर का आह्वान करें.) दीपावली का विधिवत-पूजन करने के बाद घी का दीपक जलाकर गणेश जी और महालक्ष्मी जी की आरती की जाती है. आरती के लिए एक थाली में रोली से स्वास्तिक बनाएं. उस में कुछ अक्षत और पुष्प डालें, गाय के घी का चार मुखी दीपक जलायें और शंख, घंटी, डमरू आदि से आरती उतारें. आरती करते समय परिवार के सभी सदस्य एक साथ होने चाहिए. परिवार के प्रत्येक सदस्य को माता लक्ष्मी के सामने सात बार आरती घूमानी चाहिए.
  • क्षमा-प्रार्थना- पूजा पूर्ण होने के बाद मां से जाने-अनजाने हुए सभी भूलों के लिए क्षमा-प्रार्थना करें। उन्हें कहें- मां न मैं आह्वान करना जानता हूँ, न विसर्जन करना। पूजा-कर्म भी मैं नहीं जानता। हे परमेश्वरि! मुझे क्षमा करो। मन्त्र, क्रिया और भक्ति से रहित जो कुछ पूजा मैंने की है, हे देवि! वह मेरी पूजा सम्पूर्ण हो। यथा-सम्भव प्राप्त उपचार-वस्तुओं से मैंने जो यह पूजन किया है, उससे आप भगवती श्रीलक्ष्मी प्रसन्न हों।

दिवाली के मंत्र (Diwali Ka Mantra)
1. ॐ श्रीं ह्रीं श्री कमले कमलालयै मम प्रसीद-प्रसीद वरदे श्रीं ह्रीं श्री महालक्ष्म्यै नम:।। ॐ श्रीं श्रियै नम: स्वाहा।
2. ॐ श्रीं क्रीं चं चन्द्रायनम:।
3.. ॐ ह्रीं ह्रीं हृं पुत्रं कुरु कुरु स्वाहा।
4. ॐ देवकी सुत गोविन्दं वासुदेव जगत्पते। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणंगत:।।
5.ॐ देवेन्द्रणि नमस्तुभ्यं देवेन्द्र प्रिय भामिनि। विवाहं भाग्य मारोग्यं शीघ्र लाभं च देहिमे।।

नवग्रह पूजा विधि
नवग्रह-पूजन के लिए सबसे पहले ग्रहों का आह्वान किया जाता है। उसके बाद उनकी स्थापना की जाती है। फिर बाएँ हाथ में अक्षत लेकर मंत्रोच्चारण करते हुए दाएँ हाथ से अक्षत अर्पित करते हुए ग्रहों का आह्वान किया जाता है। इस प्रकार सभी ग्रहों का आह्वान करके उनकी स्थापना की जाती है। इसके उपरांत हाथ में अक्षत लकेर मंत्र उच्चारित करते हुए नवग्रह मंडल में प्रतिष्ठा के लिये अर्पित करें। अब मंत्रोच्चारण करते हुए नवग्रहों की पूजा करें। ध्यान रहे पूजा विधि किसी विद्वान ब्राह्मण से ही संपन्न करवायें। पूजा नवग्रह मंदिर में भी की जा सकती है।

नवग्रह पूजन मंत्र
बुधः– प्रियंगु कलिका श्यामं रुपेणप्रतिमं बुधम् । सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम्॥
गुरुः-– देवानां च ऋषीणां च गुरुं कांचनसन्निभम् । बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तन्नमामि वृहस्पतिम्॥
शुक्रः-– हिम कुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम् । सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम्।
शनिः– नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजं । छायामार्तण्डसंभूतं तन्नमामिशनैश्चरम्॥
राहुः– अर्द्धकायं महावीरं चन्द्रादित्यविमर्दनम् । सिंहिकागर्भ संभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम्॥
केतुः– पलाश पुष्प संकाशं तारकाग्रह मस्तकम् । रौद्रं रौद्रत्मकं घोरं तं केतु प्रणमाम्यहम्॥
नीचे लिखे मन्त्रों से नवग्रहों का पृथक – पृथक आह्वान कर पूर्व लिखित विधि अनुसार प्रतिष्ठा, अर्घ्य, पाद्य, स्नान, नैवेद्यादि समर्पित कर पूजन करें ।
सूर्यः– जपा कुसुम संकाशं काश्पेयं महाद्युतिम् । तमोऽरि सव्र पापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम्॥
चन्द्रः– दधि शंख तुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवत् । नमामि शशिनं सोम शम्भोर्मुकुटभूषणम्॥
मंगलः— धरणी गर्भसंभूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम् । कुमारं शक्ति हस्तं च मंगलं प्रणमाम्यहम् ॥
इन मंत्रों से आह्वान के बाद विधि पूर्वक नौग्रहों का पूजन करें । तदन्तर हाथ जोड़ कर प्रार्थना करें-
ब्रह्मा मुरारिः त्रिपुरान्तकारी भानु शशी भूमि सुतो बुधश्च ।
गुरुश्च शक्रो शनि राहु केतवः सर्वे ग्रहाः शान्ति करा भवन्तु ॥

षोडश मातृका का पूजन
१६ अक्षत पुञ्जों में एक एक चावल छोड़ते हुए मंत्र से गणपति पूर्वक गौरी आदि १६ मातृकाओं का आवाहन और स्थापना करें
ॐ गणपतये नमः गणपति मावाहयायामि ॐ गौर्यै नमः गौरी मावाहयायामि ॐ पद्यायै नमः पद्या मावाहयायामि ॐ शच्यै नमः शची मावाहयायामि ॐ मेधायै नमः मेधा मावाहयायामि ॐ सावित्र्यै नमः सावित्री मावाहयायामि ॐ विजयायै नमः विजया मावाहयायामि ॐ जयायै नमः जया मावाहयायामि ॐ देवसेनायै नमः देवसेना मावाहयायामि ॐ स्वधायै नमः स्वधा मावाहयायामि ॐ स्वाहायै नमः स्वाहा मावाहयायामि ॐ मातृभ्यो नमः मातृः मावाहयायामि ॐ लोकमातृभ्यो नमः लोकमातृः मावाहयायामि ॐ ह्रष्टयै नमः ह्रष्टि मावाहयायामि ॐ पुष्टयै नमः पुष्टि मावाहयायामि ॐ तुष्टयै नमः तुष्टि मावाहयायामि ॐ आत्मनः कुलदेवतायै नमः आत्मनः कुलदेवता मावाहयायामि

यथा शक्तिपचार पूजन के पश्चात् पुष्प लेकर पूजा करें
ॐ गौरी पद्माशची मेधा सावित्री विजया जया देवसेना स्वधा स्वाहा मातरो लोकमातरः ह्रष्टि पुष्टिस्तथा तुष्टिस्तथ आत्मनः कुलदेवता श्री कुलदेव्यन्तर्गत गौर्यादि षोडश मातरः आत्राऽगच्छ इहतिष्ठ श्री गौर्यादि षोडश मातृभ्यो नमः इदं पाद्यं अर्ध्य च समर्पयामि आचमनं समर्पयामि पंचामृतं समर्पयामि वस्त्र समर्पयामि यज्ञोपवितं (जनेऊ )समर्पयामि चन्दनं गन्धं च समर्पयामि पुष्पाणि समर्पयामि धूपं आघ्रापयामि दीपं दर्शयामि नैवेद्यं समर्पयामि तबुलं पूंगीफलं समर्पयामि

दिवाली पर बही-खाता पूजा विधि

  • धनतेरस वाले दिन लाए गए नए बही खातों की दिवाली पर पूजा करनी चाहिए। बही खातों का पूजन करने के लिए पूजा मुहुर्त समय अवधि में नवीन खाता पुस्तकों पर केसर युक्त चंदन से या फिर लाल कुमकुम से स्वास्तिक का चिह्न बनाना चाहिए. इसके बाद इनके ऊपर ‘श्री गणेशाय नम:’ लिखना चाहिए. इसके साथ ही एक नई थैली लेकर उसमें हल्दी की पांच गांठे, कमलगट्ठा, अक्षत, दुर्गा, धनिया व दक्षिणा रखकर, थैली में भी स्वास्तिक का चिन्ह लगाकर सरस्वती मां का स्मरण करना चाहिए.
  • मां सरस्वती का ध्यान करें. ध्यान करें कि जो मां अपने कर कमलों में घटा, शूल, हल, शंख, मूसल, चक्र, धनुष और बाण धारण करती हैं, चन्द्र के समान जिनकी मनोहर कांति है. जो शुंभ आदि दैत्यों का नाश करने वाली है. ‘वाणी’ जिनका स्वरूप है, जो सच्चिदानन्दमय से संपन्न हैं, उन भगवती महासरस्वती का मैं ध्यान करता हूं. ध्यान करने के बाद बही खातों का गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करना चाहिए.
  • जहां पर नवग्रह यंत्र बनाया गया है, वहां पर रुपया, सोना या चांदी का सिक्का, लक्ष्मी जी की मूर्ति या मिट्टी के बने हुए लक्ष्मी-गणेश-सरस्वती जी की मूर्तियां सजायें. कोई धातु की मूर्ति हो तो उसे साक्षात रूप मानकर दूध, दही ओर गंगाजल से स्नान कराकर अक्षत, चंदन का श्रृंगार करके फूल आदि से सजाएं. इसके ही दाहिने और एक पंचमुखी दीपक अवश्य जलायें, जिसमें घी या तिल का तेल प्रयोग किया जाता है.

दिवाली की पौराणिक कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक गांव में साहूकार रहता था। उसकी बेटी हर दिन पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाने के लिए जाती थी। जिस पीपल के पेड़ पर वह जल चढ़ाती थी, उस पेड़ पर मां लक्ष्मी का वास था। एक दिन लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी से कहा कि वह उसकी मित्र बनना चाहती हैं। लड़की ने जवाब में कहा कि वह अपने पिता से पूछकर बताएगी। घर आकर साहूकार की बेटी ने पूरी बात बताई। बेटी की बात सुनकर साहूकार ने हां कर दी। दूसरे दिन साहूकार की बेटी ने लक्ष्मीजी को सहेली बना लिया।

दोनों अच्छी सखियों की तरह एक-दूसरे से बातें करतीं। एक दिन लक्ष्मीजी साहूकार की बेटी को अपने घर ले आईं। लक्ष्मी जी ने अपने घर में साहूकार की बेटी का खूब आदर किया और पकवान परोसे। जब साहूकार की बेटी अपने घर लौटने लगी तो लक्ष्मीजी ने उससे पूछा कि वह उन्हें कब अपने घर बुलाएगी। साहूकार की बेटी ने लक्ष्मी जी को अपने घर बुला लिया, लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण वह स्वागत करने में घबरा रही थी कि क्या वह अच्छे तरह से स्वागत कर पाएगी।

साहूकार अपनी बेटी की मनोदशा को समझ गया। उसने बेटी को समझाते हुए कहा कि वह परेशान न हो और फौरन घर की साफ-सफाई कर चौका मिट्टी से लगा दे। चार बत्ती वाला दीया लक्ष्मी जी के नाम से जलाने के लिए भी साहूकार ने अपनी बेटी से कहा। उसी समय एक चील किसी रानी का नौलखा हार लेकर साहूकार के घर आ गया। साहूकार की बेटी ने उस हार को बेचकर भोजन की तैयारी की। थोड़ी ही देर में मां लक्ष्मी भगवान गणेश के साथ साहूकार के घर आईं और साहूकार के स्वागत से प्रसन्न होकर उसपर अपनी कृपा बरसाई। लक्ष्मी जी की कृपा से साहूकार के पास किसी चीज की फिर कभी कमी न हुई।

गणेश जी की आरती
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा, माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
एक दंत दयावंत चार भुजाधारी।
माथे पर तिलक सोहे, मुसे की सवारी।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा, माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा।
लड्डुवन का भोग लगे, संत करे सेवा।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा, माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
अंधन को आंख देत, कोढ़ियन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।।
सुर श्याम शरण आये सफल कीजे सेवा।। जय गणेश देवा
जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।

लक्ष्मीजी की आरती
ॐ जय लक्ष्मी माता मैया जय लक्ष्मी माता
तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता….
उमा, रमा, ब्रम्हाणी, तुम जग की माता
सूर्य चद्रंमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता….
दुर्गारूप निरंजन, सुख संपत्ति दाता
जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि सिद्धी धन पाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता….
तुम ही पाताल निवासनी, तुम ही शुभदाता
कर्मप्रभाव प्रकाशनी, भवनिधि की त्राता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता….
जिस घर तुम रहती हो, ताँहि में हैं सद्गुण आता
सब सभंव हो जाता, मन नहीं घबराता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता….
तुम बिन यज्ञ ना होता, वस्त्र न कोई पाता
खान पान का वैभव, सब तुमसे आता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता….
शुभ गुण मंदिर, सुंदर क्षीरनिधि जाता
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता….
महालक्ष्मी जी की आरती, जो कोई नर गाता
उर आंनद समाता, पाप उतर जाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता….
स्थिर चर जगत बचावै, कर्म प्रेर ल्याता
तेरा भगत मैया जी की शुभ दृष्टि पाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता….
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता,
तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता….

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