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अथर्ववेद का सार, अथर्ववेद के बारे में, अथर्ववेद की विशेषताएं, अथर्वसंहिता की शाखाएँ, Atharvaveda, Atharvaveda In Hindi, Atharvaveda Book

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अथर्ववेद का सार, अथर्ववेद के बारे में
अथर्ववेद संहिता हिन्दू धर्म के पवित्रतम वेदों में से चौथे वेद अथर्ववेद की संहिता अर्थात मन्त्र भाग है. इस वेद को ब्रह्मवेद भी कहते हैं. इसमें देवताओं की स्तुति के साथ, चिकित्सा, विज्ञान और दर्शन के भी मन्त्र हैं. अथर्ववेद संहिता के बारे में कहा गया है कि जिस राजा के राज्य में अथर्ववेद जानने वाला विद्वान् शान्तिस्थापन के कर्म में निरत रहता है, वह राष्ट्र उपद्रवरहित होकर निरन्तर उन्नति करता जाता हैः
अथर्ववेद का ज्ञान भगवान ने सबसे पहले महर्षि अंगिरा को दिया था, फिर महर्षि अंगिरा ने वह ज्ञान ब्रह्मा को दिया.
यस्य राज्ञो जनपदे अथर्वा शान्तिपारगः.
निवसत्यपि तद्राराष्ट्रं वर्धतेनिरुपद्रवम्.. (अथर्व0-1/32/3).
‘ये त्रिषप्ताः परियन्ति’ अथर्ववेद का प्रथम मंत्र है.

अथर्ववेद का रचना काल
यज्ञों व देवों को अनदेखा करने के कारण वैदिक पुरोहित वर्ग इसे अन्य तीन वेदों के बराबर नहीं मानता था. इसे यह दर्जा बहुत बाद में मिला. इसकी भाषा ऋग्वेद की भाषा की तुलना में स्पष्टतः बाद की है और कई स्थानों पर ब्राह्मण ग्रंथों से मिलती है. अतः इसे लगभग 1000 ई.पू. का माना जा सकता है. इसकी रचना ‘अथवर्ण’ तथा ‘आंगिरस’ ऋषियों द्वारा की गयी है. इसीलिए अथर्ववेद को ‘अथर्वांगिरस वेद’ भी कहा जाता है. इसके अतिरिक्त अथर्ववेद को अन्य नामों से भी जाना जाता है-
1- गोपथ ब्राह्मण में इसे ‘अथर्वांगिरस’ वेद कहा गया है.
2- ब्रह्म विषय होने के कारण इसे ‘ब्रह्मवेद’ भी कहा गया है.
3- आयुर्वेद, चिकित्सा, औषधियों आदि के वर्णन होने के कारण ‘भैषज्य वेद’ भी कहा जाता है .
4- ‘पृथ्वीसूक्त’ इस वेद का अति महत्त्वपूर्ण सूक्त है. इस कारण इसे ‘महीवेद’ भी कहते हैं.

अथर्ववेद का परिचय
भूगोल, खगोल, वनस्पति विद्या, असंख्य जड़ी-बूटियाँ, आयुर्वेद, गंभीर से गंभीर रोगों का निदान और उनकी चिकित्सा, अर्थशास्त्र के मौलिक सिद्धान्त, राजनीति के गुह्य तत्त्व, राष्ट्रभूमि तथा राष्ट्रभाषा की महिमा, शल्यचिकित्सा, कृमियों से उत्पन्न होने वाले रोगों का विवेचन, मृत्यु को दूर करने के उपाय, मोक्ष, प्रजनन-विज्ञान अदि सैकड़ों लोकोपकारक विषयों का निरूपण अथर्ववेद में है. आयुर्वेद की दृष्टि से अथर्ववेद का महत्व अत्यन्त सराहनीय है. अथर्ववेद में शान्ति-पुष्टि तथा अभिचारिक दोनों तरह के अनुष्ठन वर्णित हैं.
चरणव्यूह ग्रंथ के अनुसार अथर्वसंहिता की नौ शाखाएँ हैं-
1. पैपल, 2. दान्त, 3. प्रदान्त, 4. स्नात, 5. सौल, 6. ब्रह्मदाबल, 7. शौनक, 8. देवदर्शत और 9. चरणविद्या
वर्तमान में केवल दो शाखा की जानकारी मिलता है- 1.जिसका पहला मन्त्र- शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु….. इत्यादि है वह पिप्पलाद संहिताशाखा तथा 2. ये त्रिशप्ता परियन्ति विश्वारुपाणि विभ्रत….इत्यादि पहला मन्त्रवाला शौनक संहिता शाखा.जिसमें सेशौनक संहिता ही उपलब्ध हो पाती है. वैदिकविद्वानों के अनुसार 759 सूक्त ही प्राप्त होते हैं. सामान्यतः अथर्ववेद में 6000 मन्त्र होने का मिलता है परन्तु किसी-किसी में 5987 या 5977 मन्त्र ही मिलते हैं.

अथर्ववेद के विषय में कुछ मुख्य तथ्य-
1- अथर्ववेद की भाषा और स्वरूप के आधार पर ऐसा माना जाता है कि इस वेद की रचना सबसे बाद में हुई .
2- वैदिक धर्म की दृष्टि से ॠग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद चारों का बड़ा ही महत्व है.
3- अथर्ववेद से आयुर्वेद में विश्वास किया जाने लगा था. अनेक प्रकार की चिकित्सा पद्धतियों का वर्णन अथर्ववेद में है.
4- अथर्ववेद गृहस्थाश्रम के अंदर पति-पत्नी के कर्त्तव्यों तथा विवाह के नियमों, मान-मर्यादाओं का उत्तम विवेचन करता है.
4- अथर्ववेद में ब्रह्म की उपासना संबन्धी बहुत से मन्त्र हैं.

अथर्ववेद की विशेषताएँ
इसमें ऋग्वेद और सामवेद से भी मन्त्र लिये गये हैं.
जादू से सम्बन्धित मन्त्र-तन्त्र, राक्षस, पिशाच, आदि भयानक शक्तियाँ अथर्ववेद के महत्त्वपूर्ण विषय हैं.
इसमें भूत-प्रेत, जादू-टोने आदि के मन्त्र हैं.
ऋग्वेद के उच्च कोटि के देवताओं को इस वेद में गौण स्थान प्राप्त हुआ है.
धर्म के इतिहास की दृष्टि से ऋग्वेद और अथर्ववेद दोनों का बड़ा ही मूल्य है.
अथर्ववेद से स्पष्ट है कि कालान्तर में आर्यों में प्रकृति की पूजा की उपेक्षा हो गयी थी और प्रेत-आत्माओं व तन्त्र-मन्त्र में विश्वास किया जाने लगा था.

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