Vrish Raashi Walon Ko Kiski Pooja Karni Chahiye

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वृषभ राशि – परिचय

सभी 12 राशियों की संख्या में वृषभ राशि का दूसरा स्थान है. इस राशि का स्वामी शुक्र है और इष्ट देवी मां लक्ष्मी हैं. इस राशि का चिन्ह ‘बैल’ है. वृषभ राशि के जातक शांत और कोमल हृदय वाले होते हैं. इस राशि वाले स्वभाव से अंतर्मुखी, परिश्रमी और विश्वसनीय होते हैं. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर वृष राशि के जातकों के जीवन में कोई समस्या है, हर सम्भव प्रयास के बाद भी सफलता हाथ नहीं लग रही, लगातार एक के बाद दूसरी समस्याएं उन्हें मानसिक रूप से परेशान कर रही है तो वे स्वयं अपनी राशि के अनुसार पूजा-पाठ व कुछ उपाय कर शीघ्र सफलता प्राप्त कर सकते हैं और हर प्रकार की परेशानी से छुटकारा पा सकते है. आइए जानते हैं वृषभ राशि के जातकों को किसकी पूजा करनी चाहिए?, कौन सा व्रत करना चाहिए, किस मंत्र का जाप करना चाहिए, क्या दान करना चाहिए व कौन से उपाय करने चाहिए ताकि उन्हें मनचाहा फल प्राप्त हो सके-

वृष राशि वालों को किसकी पूजा करनी चाहिए?

वृष राशि वालों को किसकी पूजा करनी चाहिए?, Vrish Raashi Walon Ko Kiski Pooja Karni Chahiye?
वृषभ राशि के लोगों को विशेष फल की प्राप्ति के लिए अपनी राशि की इष्ट देवी मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए. इष्ट देव की विधिवत पूजा करने से ये फायदा होता कि कुंडली में चाहे कितने भी ग्रह दोष क्यों न हों, अगर इष्ट देव प्रसन्न हैं तो यह सभी दोष व्यक्ति को अधिक परेशान नहीं करते. यहां जानिए पूजा विधि-
लक्ष्मी पूजन की विधि (Laxmi Pooja Vidhi) – लक्ष्मी पूजन की विधि को षोडशोपचार पूजा के नाम से भी जाना जाता है और इस पूजा विधि को 16 चरणों में किया जाता है. ये 16 चरण इस प्रकार है-
आवाहन (Aavahan) – शुक्रवार के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर साफ स्वच्छ वस्त्र पहन लें. अब घर के ईशान कोण में चौकी स्थापित करें. चौकी के उपर लाल वस्त्र बिछाएं और उसपर मां लक्ष्मी जी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें. दीपक और धूप जलाएं. हाथ जोड़कर मां लक्ष्मी का ध्यान/आवाहन करें और उन्हें फूल अर्पित करें. आवाहन करते समय हम मां को आने का निमंत्रण देते हैं.
पुष्पाञ्जलि आसन (Pushpanjali Asana) – मां का आवाहन करने के बाद आप पांच तरह के फूल मां की मूर्ति के सामने रखें और नीचे बताए गए मंत्र का जाप करते हुए एक-एक फूल को छोड़े.
नाना रत्‍न समायुक्‍तं, कार्त स्‍वर विभूषितम् .
आसनं देव-देवेश ! प्रीत्‍यर्थं प्रति-गह्यताम् ..
.. श्रीलक्ष्‍मी-देव्‍यै आसनार्थे पंच-पुष्‍पाणि समर्पयामि ..
स्‍वागत – मां को फूल चढ़ाने के बाद मां का स्वागत करें. मां का स्वागत करते हुए ‘श्रीलक्ष्‍मी देवी! स्‍वागतम्’ मंत्र का उच्‍चारण किया जाता है. इस मंत्र का अर्थ है कि हम मां का सच्चे मन से स्वागत करते हैं.
पाद्य – इस चरण में मां के पैरों को जल से धोएं. मां के पैर धोते हुए नीचे दिए गए मंत्र को बोलें-
पाद्यं गृहाण देवेशि, सर्व-क्षेम-समर्थे, भो: !
भक्तया समर्पितं देवि, महालक्ष्‍मी ! नमोsस्‍तुते ..
.. श्रीलक्ष्‍मी-देव्‍यै पाद्यं नम:..
अर्घ्‍य – इस चरण में मां लक्ष्मी को अर्घ्य दिया जाता है. मां को अर्घ्य देते हुए निम्न मंत्र बोलें-
नमस्‍ते देव-देवेशि ! नमस्‍ते कमल-धारिणि !
नमस्‍ते श्री महालक्ष्‍मी, धनदा देवी ! अर्घ्‍यं गृहाण .
गंध-पुष्‍पाक्षतैर्युक्‍तं, फल-द्रव्‍य-समन्वितम् .
गृहाण तोयमर्घ्‍यर्थं, परमेश्‍वरि वत्‍सले !
.. श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै अर्घ्‍यं स्‍वाहा ..
स्‍नान – मां को स्नान कराने के लिए दूध, दही, घी, शहद और चीनी के मिश्रण को मिलाकर पंचामृत बनाएं और इससे मां को स्नान कराएं. पंचामृत के बाद शुद्ध जल से मां को स्नान कराएं.
वस्‍त्र – लक्ष्मी पूजन की विधि (laxmi pooja) के अगले चरण में वस्त्र दान किये जाते हैं. मां लक्ष्‍मी को मोली वस्त्र के रूप में अर्पित किया जाता है.
आभूषण – वस्त्र अर्पित करने के बाद मां को आभूषण चढ़ाएं.
सिंदूर – अब मां लक्ष्‍मी को सिंदूर चढ़ाएं.
कुमकुम – अब मां को कुमकुम चढ़ाएं.
अक्षत – मां को कुमकुम चढ़ाने के बाद साफ और बिना टूटे हुए अक्षत चढ़ाएं.
पुष्‍प – मां को कमल का पुष्‍प समर्पित करें.
अंग पूजन – अंग पूजन के तहत हाथ में फूल, चावल और चंदन लेकर दाहिने हाथ से मां लक्ष्‍मी की प्रतिमा को रखें और नीचे बताए मंत्र को बोलें.
ॐ चपलायै नम: पादौ पूजयामि .
ॐ चंचलायै नम: जानुनी पूजयामि .
ॐ कमलायै नम: कटिं पूजयामि .
ॐ कात्‍यायन्‍यै नम: नाभि पूजयामि .
ॐ जगन्‍मात्रै नम: जठरं पूजयामि .
ॐ विश्‍व-वल्‍लभायै नम: वक्ष-स्‍थलं पूजयामि .
ॐ कमल-वासिन्‍यै नम: हस्‍तौ पूजयामि .
ॐ कमल-पत्राक्ष्‍यै नम: नेत्र-त्रयं पूजयामि .
ॐ श्रियै नम: शिर पूजयामि .
मंत्र बोलने के बाद मां के सामने धूप और दीपक जलाएं और मां को भोग अर्पित करें. मां से जुड़ा पाठ करें और अंत में मां लक्ष्‍मी की आरती करें.

वृषभ राशि वालों को कौन सा व्रत करना चाहिए

वृष राशि वालों को कौन सा व्रत करना चाहिए, Vrishabh Rashi Vaalon Ko Kaun Sa Vrat Karna Chahiye
जैसा कि हम आपको पहले ही बता चुके हैं, वृषभ राशि का स्वामी गृह शुक्र है, इसलिए वृषभ राशि के जातकों को शुभ फल की प्राप्ति के लिए शुक्रवार का व्रत/माता संतोषी का व्रत करना चाहिए. शुक्रवार का दिन मां लक्ष्मी की उपासना के लिए जाना जाता है. इस दिन शुक्र देवता की भी पूजा की जाती है. मां लक्ष्मी का आशीर्वाद पाने के लिए शुक्रवार का व्रत रखा जाता है. धर्म शास्त्रों की मानें तो शुक्रवार का दिन देवी लक्ष्मी के साथ ही माता संतोषी को भी समर्पित होता है इसलिए इस दिन इनकी पूजा और व्रत को बेहद शुभ माना जाता है. अगर वृष राशि के लोग पूरे विधि विधान से संतोषी माता का व्रत 16 शुक्रवार (Friday) तक रखें तो उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी, परीक्षा में सफलता मिलेगी, व्यवसाय में लाभ होगा और घर में सुख-समृद्धि आएगी. मां की कृपा से सुयोग्य वर की प्राप्ति होगी. जानिए शुक्रवार व्रत के बारे में-
कब से शुरू करें शुक्रवार व्रत – शुक्रवार का व्रत या माता संतोषी का व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार से शुरू किया जाता है. लेकिन ध्यान रखें पितृ पक्ष में किसी भी व्रत की शुरुआत नहीं करनी चाहिए. यदि आप पहले से व्रत कर रहें हैं तभी पितृ पक्ष में व्रत रखें.
संतोषी माता के कितने व्रत करना चाहिए – माता संतोषी के 16 शुक्रवार तक व्रत किए जाने का विधान है.

संतोषी माता के व्रत की विधि- शुक्रवार के दिन सूर्योदय से पूर्व उठे नित्यआदि कर्मों से निवृत्त होकर स्नान कर लें. स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूरे घर में गंगा जल छिड़क कर शुद्ध कर लें. इसके पश्चात घर के ईशान कोण दिशा में एक एकान्त स्थान पर माता संतोषी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें. माता संतोषी के सामने कलश रखें. कलश के ऊपर कटोरी में गुड़ व चना रखें. मां के सामने घी का दीपक जलाएं. मां को रोली, अक्षत, फूल, नारियल, लाल वस्त्र या चुनरी अर्पित करें. गुड़ व चने का भोग लगाएँ. संतोषी माता की जय बोलकर माता की कथा प्रारंभ करें. कथा पूरी होने पर आरती करें और सभी को गुड़-चने का प्रसाद बाँटें. अंत में कलश में भरे जल को घर में जगह-जगह छिड़क दें तथा शेष जल को तुलसी के पौधे में डाल दें. इसी प्रकार 16 शुक्रवार का नियमित उपवास रखें. ध्यान रखें कि व्रत अपने घर में ही करें. यदि किसी कारणवश व्रत टूट जाता है या भक्त उस शुक्रवार की यात्रा पर होता है तो उस शुक्रवार को नहीं गिना जाना चाहिए बल्कि अगले शुक्रवार को व्रत करना चाहिए.
शुक्रवार व्रत में क्या खाएं क्या नहीं – शुक्रवार का व्रत करने वाले स्त्री-पुरुष खट्टी चीजों को न ही स्पर्श करें और न ही कोई खट्टी चीज, अचार और खट्टा फल खाएं. व्रत करने वाले के परिवार के लोग भी उस दिन कोई खट्टी चीज नहीं खाएं. इस दिन व्रती गुड़ और चने का प्रसाद स्वयं भी खाना चाहिए. इसके अलावा शुक्रवार के व्रत में सेब, चेरी, अनार खा सकते हैं. संतोषी माता के व्रत में मीठे भोजन की सेवन करें, उस दिन नमक का सेवन न करें.
शुक्रवार व्रत के लाभ – संतोषी माता का व्रत 16 शुक्रवार (Friday) तक करने से स्त्री-पुरुषों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, परीक्षा में सफलता मिलती है, व्यवसाय में लाभ होता है और घर में सुख-समृद्धि भी आती है. अविवाहित कन्याएं अगर संतोषी माता का व्रत करें तो मां की कृपा से उन्हें सुयोग्य वर मिलता है.
शुक्रवार व्रत की उद्यापन विधि- निर्धारित संख्या में शुक्रवार का व्रत करने के बाद ‘व्रत उद्यापन’ करना जरूरी है. व्रत पूरा होने के अंतिम शुक्रवार को व्रत का विसर्जन करें. विसर्जन के दिन उपरोक्त विधि से संतोषी माता की पूजा कर 8 कन्याओं को खीर-पुरी का भोजन कराएँ तथा दक्षिणा व केले का प्रसाद देकर उन्हें विदा करें. यदि किसी कारणवश कन्याएं न आ सके तो 11 विवाहित महिलाओं को अपने स्थान पर आमंत्रित कर उन्हें प्रसाद, भोजन, उपहार और लक्ष्मी व्रत की किताबें भेंट करें. अंत में स्वयं भोजन ग्रहण करें.

वृष राशि के लिए मंत्र, Vrish Rashi Ke Liye Mantra

1. देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परमं सुखम्‌, रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि – धन लाभ व सफलता के लिए जप करें.
2. ॐ शं शनैश्चराय नम: – बाधा निवारण जप करें.
3. ॐ ऐं क्लीं श्रीं – लक्ष्मी प्राप्ति के लिए जप करें.
4. ॐ शुं शुक्राय नम: – सुख-शांति के लिए जप करें.
वृष राशि के लोग कैसे करें मंत्र जाप – वृष राशि के जातक प्रातः जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत होकर साफ़ कपड़े धारण कर पूजास्थल पर बैठ जाए. मंत्र जाप करने के लिए घर के मंदिर में भगवान की पूजा करें. धुप-दीप आदि लगाकर पहले गणेश जी के स्तुति मंत्र द्वारा उनका स्मरण करें इसके पश्चात् उपरोक्त मंत्र का जप कम से कम 108 बार करें. इस मंत्र का जप नियमित रूप से करें. एक से दो महीने में ही आपके जीवन में चमत्कारिक बदलाव होने लग जायेंगे.

वृषभ राशि के लिए कौन सा पत्थर पहनना चाहिए?

वृषभ राशि के लिए कौन सा रत्न/पत्थर पहनना चाहिए?, Vrishabh Rashi Ke Liye Kaun Sa Patthar Pahanna Chaahie?, Vrishabh Rashi Ke Liye Stone
वृष राशि का स्वामी शुक्र है. इसलिए इस राशि में जन्म लेने वाले जातकों को शुक्र की शुभता प्राप्‍त करने के लिए हीरा रत्न/पत्थर धारण करना चाहिए. हीरा शुक्र ग्रह का रत्न या पत्थर है जो शुक्र को बलवान बनाता है. हीरा बहुत महंगा पत्थर है जो धन-वैभव का प्रतीक भी माना जाता है. हीरे के प्रभाव से वृषभ राशि के जातक बुरी संगत से दूर रहेंगें तथा जीवन में शुभ फल को प्राप्त करेंगे. हीरे की जगह आप ओपल भी पहन सकते हैं. वृष राशि के जातकों को शुक्रवार की सुबह स्नान करने के बाद दायें हाथ की मध्यामा उंगली में हीरा धारण करने की सलाह दी जाती है. इस रत्न को शुक्रवार के दिन धारण करने से जातक को अत्यंत लाभ मिल सकता है.
हीरा पहनने के लाभ – शुक्र ग्रह का रत्न/पत्थर हीरा अखंडता, विश्वास और पवित्रता का प्रतिनिधित्व करता है. यह रत्न वृषभ राशि के तहत पैदा हुए लोगों को एक बेजोड़ कल्पना शक्ति और एक भव्य जीवन की उम्मीद दे सकती है. हीरा वृष राशि को अधिक भरोसेमंद, धैर्यवान और दृढ़निश्चयी बनाता है. हीरा व्यक्ति को ईर्ष्या और लालच से बचाने के साथ ही उनकी आकर्षण शक्ति को भी बढ़ाता है. हीरा रत्न या पत्थर स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को भी दूर करता है. इसे पहनने से रूप, सौंदर्य, यश व प्रतिष्ठा प्राप्त होती है. हीरे के प्रभाव से वृषभ राशि के जातक बुरी संगत से दूर रहेंगें. कहते हैं कि यह रत्न मधुमेह रोग में लाभदायक है.
हीरा पहनने के नुकसान- हीरा मालामाल भी कर सकता है और कंगाल भी. लाल किताब के अनुसार तीसरे, पांचवें और आठवें स्थान पर शुक्र हो तो हीरा नहीं पहनना चाहिए. इसके अलावा टूटा-फूटा हीरा भी नुकसानदायक होता है. कुंडली में शुक्र, मंगल या गुरु की राशि में बैठा हो या इनमें से किसी एक से दृष्ट हो या इनकी राशियों से स्थान परिवर्तन हो तो हीरा मारकेश की भांति बर्ताव करता है और वह व्यक्ति को आत्महत्या या पाप की ओर अग्रसर कर सकता है.
वृषभ राशि के जातक कौन सा रत्न/पत्थर धारण न करें- वृषभ राशि के व्यक्ति को माणिक्य और मूंगा रत्‍न/पत्थर न पहनने की सलाह दी जाती है.

वृष राशि के उपाय, Vrish Rashi Ke Upaay

आइए जानते हैं वृष राशि के जातकों को मनोकामना पूर्ति के लिए कौन से ज्योतिषीय उपाय करने चाहिए.
1. दुखों से छुटकारा पाने के लिए शुक्रवार को मां संतोषी या लक्ष्मी जी का व्रत रखें. यदि व्रत रखना संभव न हो सके तो लक्ष्मी जी की पूजा अवश्य करें.
2. दुखों से छुटकारा पाने के लिए शुक्रवार के दिन ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः शुक्राय नमः’- मंत्र का 16000 बार जाप करना चाहिए.
3. यदि धनमार्ग अवरुद्ध हो रहे हों तो केसर तथा पीले चंदन का तिलक माथे पर लगाने से आमदनी के स्रोत खुल जाते हैं. साथ ही मंदिर में जाकर राम दरबार के समक्ष दण्डवत प्रणाम करना चाहिए.
4. यदि आप कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं तो आपको लक्ष्मी पूजन में कमल गट्टे की माला को माता लक्ष्मी को पहनाना चाहिए. पूजन के बाद उस माला को लाल कपड़े में बांधकर साथ में कुछ मुद्रा रखर उसे धन स्थान में रख दें. इससे आपका जीवन कर्जमुक्त हो जाएगा.
5. यदि पैतृक धन एवं कुटुंब से जुड़ी परेशानियां चल रही हैं तो सफेद आक की जड़ लाकर बुधवार के दिन दाहिनी भुजा पर हरे रंग के धागे से बांधें.
6. यदि पर्याप्त धनार्जन के बावजूद धन संचय नहीं हो रहा हो तो अपनी जेब या बटुएं में विधारा की जड़ को बुधवार के दिन रखना चाहिए.

7. यदि संतान पक्ष से चिंताएं हो तो संतान सुख के लिए बुधवार के दिन मौन व्रत करना चाहिए.
8. यदि आपको मनोकामना की पूर्ति करनी हो तो संबंधित कामना को भोजपत्र पर हल्दी से लिखकर पवित्र जल में विसर्जित कर दें.
9. प्रतिदिन भोजन में से कुछ अंश गाय आदि जानवरों को दें.
10. मनोकामना पूर्ति के लिए शिव उपासना भी शुभ फलदायि होता है.
11. वृष राशि के जातक कोई भी महत्वपूर्ण कार्य शुक्रवार को करें तो श्रेष्ठ फल प्राप्त होगा.
12. प्रत्येक शुक्रवार के दिन छोटी कन्याओं को सफेद रंग की मिठाई, चावल की खीर, या फिर बताशे प्रसाद के रूप में बांटें. इसके बाद उनका आशीर्वाद लें. ऐसा करने से आपका पढ़ाई में मन लगेगा और परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करेंगे.
13. अपने दुखों के निवारण के लिए वृष राशि के जातक को 9 वर्ष से कम आयु की कन्याओं के चरण छुने चाहिए.

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