Hindi Story दशरथ मांझी – द माउंटेन मैन

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दशरथ मांझी उर्फ़ माउंटेन मैन को आज हर कोई जानता है, कुछ समय पहले आई फिल्म मांझी के द्वारा हर कोई इनके जीवन को करीब से जान पाया है| बिहार के छोटे से गाँव गहलौर का रहने वाला दशरथ ने इतना आश्चर्यजनक कार्य किया है, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था| इन्होंने अपने छोटे से गाँव से शहर तक का रास्ता बनाने के लिए 360 फीट लम्बे, 30 फीट चौड़े व 25 फीट ऊँचे पहाड़ को तोड़ डाला व रास्ता बना दिया|

जन्म से लेकर जवानी तक का सफ़र
दशरथ का जब जन्म हुआ, तब देश अंग्रेजो का गुलाम था, पूरे देश के साथ साथ इस गावं के भी बत्तर हालात थे| 1947 में देश तो आजाद हो जाता है, लेकिन इसके बाद धनि लोगों की गिरफ्त में चला जाता है| हर तरफ अमीर जमीदार अपना हक जमाये रहते हैं और बिना पढ़े लिखे गरीबो को परेशान करते हैं। दशरथ का परिवार भी बहुत गरीब था, एक एक वक्त की रोटी के लिए उसके पिता बहुत मेहनत करते थे।दशरथ का बाल विवाह भी हुआ था। आजादी मिलने के बाद भी गहलौर गाँव में ना बिजली थी, ना पानी और ना ही पक्की सड़क। उस गाँव के लोगों को पानी के लिए दूर जाना होता था, यहाँ तक की अस्पताल के लिए भी पहाड़ चढ़ कर शहर जाना होता था, जिसमें बहुत समय भी लगता था।दशरथ के पिता ने गाँव के जमीदार से पैसे लिए थे, जिसे वह लौटा नहीं पाये थे। बदले में वह अपने बेटे को उस जमीदार का बधुआ मजदूर बनने को बोलता है। किसी की गुलामी दशरथ को पसंद नहीं थी, इसलिए वह यह गाँव छोड़कर भाग जाता है। अपने गाँव से दूर वह धनवाद में कोयले की खदान में काम करने लगता है। 7 साल तक वहां रहने के बाद उसे अपने परिवार की याद सताने लगती है और फिर वह गाँव लौट आता है।

1955 के लगभग जब वह गाँव लौटता है, तब भी वहां कुछ नहीं बदलता है। वहां अभी भी, गरीबी, जमीदारी, होती है, वहां ना सड़क, ना बिजली जैसी सुविधा पहुँच पाती है। दशरथ के इस गाँव में छुआ छूत जैसी कुप्रथा भी रहती है। दशरथ की माँ अब तक गुजर चुकी होती है, अपने पिता के साथ वह जीवन बसर करने लगता है। तभी उसे एक लड़की पसंद आती है, ये वही लड़की होती है जिससे उसकी बचपन में शादी होती है। मगर अब लड़की का पिता उसकी बचपन की शादी को नहीं मानता है, क्यूंकि उसके हिसाब से दशरथ कुछ काम धाम नहीं करता है। अपने प्यार की खातिर वह फगुनिया को भगा के ले आता है। दोनों एक अच्छे पति पत्नी की तरह जीवन बिताने लगते है। दशरथ को एक बेटा भी होता है।1960 में दशरथ की पत्नी एक बार फिर गर्भवती होती है, इस समय दशरथ को पहाड़ के उस पार कुछ काम मिल जाता है। फगुनिया रोज उसे खाना देने जाती है, एक दिन अचानक उसका पैर फिसल जाता है और वह गिर जाती है। दशरथ के गावं में कोई अस्पताल ना होने के कारण वह बड़ी मुश्किल से पहाड़ चढ़ के उसे शहर ले जाता है। जहाँ वह एक लड़की को जन्म देती है लेकिन खुद मर जाती है।दशरथ इस बात से बहुत आहात होता है और फगुनिया से वादा करता है कि वह इस पहाड़ को तोड़ रास्ता जरुर बनाएगा। 1960 से शुरू हुआ दशरथ का यह प्रण एक हथोड़ी के सहारे था।

दशरथ मांझी – द माउंटेन मैन कहानी- रोज सुबह उठकर दशरथ अपना हथोड़ा उठाये पहाड़ तोड़ने निकल जाता था। वह ऐसे काम करता जैसे उसे इसके पैसे मिलते हो। सब उसे पागल सनकी कहते, लेकिन वह किसी की ना सुनता। इसी वजह से सब उसे पहाड़तोडू कहने लगे थे।दशरथ के पिता उसे बहुत समझाते थे कि ऐसा करने से उसके बच्चों का पेट कैसे भरेगा, लेकिन वह नहीं सुनता था। किसी तरह कुछ पैसा कमाकर बच्चों का पेट भी भर देता था।ऐसा करते करते कई साल बीत गए और गाँव में सुखा पड़ जाता है, सब गाँव छोड़ कर जाने लगते है, लेकिन दशरथ नहीं जाता, वह अपने पिता और बच्चों को भेज देता है। इस सूखे की मार में दशरथ को गन्दा पानी व पत्तियां खा कर गुजारा करना पड़ता है। समय के साथ सूखे के दिन बीत जाते है और सब गाँव वाले लौट आते है। अब भी सब दशरथ को पहाड़ तोड़ता देख आशचर्य चकित हो जाते है।

आपातकाल का समय
में इंदिरा गाँधी द्वारा लगाई गई इमरजेंसी में पूरा देश प्रभावित हुआ था। सब जगह हाहाकार मचा था। अपनी एक रैली में इंदिरा गाँधी बिहार पहुँचती है, जहाँ दशरथ भी जाता है। भाषण के दौरान स्टेज टूट जाता है जिसे दशरथ और कुछ लोग मिलकर संभाल लेते है, जिससे इंदिरा गाँधी अपना भाषण पूरा कर पाती है, इसके बाद दशरथ उनके साथ एक फोटो खिंचवाता है। जब यह बात वहां के जमीदार को पता चलती है, तो वह उसे अपनी मीठी बात में फंसाता है कि वह उसकी मदद करेगा सरकार से सड़क के लिए पैसे मांगने में, अनपढ़ दशरत उसकी बातों में आकर अगूंठा लगा देता है। लेकिन जब दशरत को इस बात का पता चलता है कि जमीदार ने उससे 25 लाख का चुना लगाया है, तो वह इसकी शिकायत प्रधानमंत्री से करने की ठान लेता है।

बिहार से दिल्ली
दशरथ के पास 20 रूपए भी नहीं होते है ट्रेन के, जिस वजह से टीटी उसे ट्रेन से उतार देता है। लेकिन यह बात दशरत को रोक नहीं पाती और वह पैदल ही निकल पड़ता है।दिल्ली में उस समय इमरजेंसी के चलते बहुत दंगे हो रहे होते है, दशरत जब पुलिस को अपनी इंदिरा गाँधी के साथ फोटो दिखाता है, तब उसे फाड़ कर वे उसे भगा देते है और प्रधान मंत्री से मिलने नहीं देते है।

बिहार लौट आना
थक हार कर दशरत अपने घर लौट आता है, उसकी सारी उम्मीद टूट चुकी होती है, वह अब काफी बुढा भी हो गया होता है, उसकी हिम्मत जवाब देने लगती है। लेकिन कुछ लोग दशरथ का साथ देने के लिए आगे आते है और पहाड़ तोड़ने में मदद करते है। ये बात जब जमीदार को पता चलती है, तो वह उन सबको मार डालने की धमकी देता है और कुछ को गिरफ्तार करा देता है। लेकिन एक पत्रकार दशरथ के लिए मसीहा बन कर आता है और वह उसके लिए खड़े होता है। वह सभी गाँव वालों के साथ मिल कर दशरथ के लिए पुलिस स्टेशन के सामने विरोध करता है। दशरत को छोड़ दिया जाता है।360 फीट लम्बे, 30 फीट चौड़े व 25 फीट ऊँचे पहाड़ को दशरथ तोड़ने में सफल हो जाता है। 55 km लम्बे रास्ते को वह 15 km के रास्ते में बदल देता है। दशरत मांझी की बदौलत ही सरकार उस जगह पर ध्यान देती है और कार्य शुरू होता है।1982 में दशरत की मेहनत रंग लाती है और पहाड़ टूट कर रास्ता बन जाता है।2006 में दशरथ का नाम पद्म श्री के लिए दिया गया था।

2007 म्रत्यु-17 अगस्त 2007 को दशरत की गाल ब्लाडर में कैंसर होने की वजह से दिल्ली में म्रत्यु हो जाती है।मरने से पहले दशरत अपने जिंदगी पर फिल्म बनाने की अनुमति देकर जाता है। वह चाहता था उसकी यह कहानी से दुसरे भी प्रभावित होयें। बिहार सरकार ने इसके मरने पर राज्य शोक घोषित किया था।2011 में उस सड़क को दशरथ मांझी पथ नाम दिया गया। ऐसे लोगों से हमें ज़िन्दगी में कभी हार ना मानने की शिक्षा मिलती है। दशरथ मांझी को हम सबका सलाम है।

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