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स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है, स्वास्थ्य ही संपदा है
एक बार की बात है एक गॉव में एक धनी व्यक्ति रहता था. उसके पास पैसे की कोई कमी नहीं थी लेकिन वह बहुत ज़्यादा आलसी था. अपने सारे काम नौकरों से ही करता था और खुद सारे दिन सोता रहता या अययाशी करता था वह धीरे धीरे बिल्कुल निकम्मा हो गया था. उसे ऐसा लगता जैसे मैं सबका स्वामी हूँ क्यूंकी मेरे पास बहुत धन है मैं तो कुछ भी खरीद सकता हूँ. यही सोचकर वह दिन रात सोता रहता था.
लेकिन कहा जाता है की बुरी सोच का बुरा नतीज़ा होता है. बस यही उस व्यक्ति के साथ हुआ. कुछ सालों उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे उसका शरीर पहले से शिथिल होता जा रहा है उसे हाथ पैर हिलाने में भी तकलीफ़ होने लगी यह देखकर वह व्यक्ति बहुत परेशान हुआ. उसके पास बहुत पैसा था उसने शहर से बड़े बड़े डॉक्टर को बुलाया और खूब पैसा खर्च किया लेकिन उसका शरीर ठीक नहीं हो पाया. वह बहुत दुखी रहने लगा. एक बार उस गॉव से एक साधु गुजर रहे थे उन्होने उस व्यक्ति की बीमारी के बारे मे सुना. सो उन्होनें सेठ के नौकर से कहा कि वह उसकी बीमारी का इलाज़ कर सकते हैं. यह सुनकर नौकर सेठ के पास गया और साधु के बारे में सब कुछ बताया. अब सेठ ने तुरंत साधु को अपने यहाँ बुलवाया लेकिन साधु ने कहा क़ि वह सेठ के पास नहीं आएँगे अगर सेठ को ठीक होना है तो वह स्वयं यहाँ चलकर आए.
सेठ बहुत परेशान हो गया क्यूंकी वो असहाय था और चल फिर नहीं पता था. लेकिन जब साधु आने को तैयार नहीं हुए तो हिम्मत करके बड़ी मुश्किल से साधु से मिलने पहुचें. पर साधु वहाँ थे ही नहीं. सेठ दुखी मन से वापिस आ गया अब तो रोजाना का यही नियम हो गया साधु रोज उसे बुलाते लेकिन जब सेठ आता तो कोई मिलता ही नहीं था. ऐसे करते करते 3 महीने गुजर गये. अब सेठ को लगने लगा जैसे वह ठीक होता जा रहा है उसके हाथ पैर धीरे धीरे कम करने लगे हैं. अब सेठ की समझ में सारी बात आ गयी की साधु रोज उससे क्यूँ नहीं मिलते थे. लगातार 3 महीने चलने से उसका शरीर काफ़ी ठीक हो गया था. तब साधु ने सेठ को बताया की बेटा जीवन में कितना भी धन कमा लो लेकिन स्वस्थ शरीर से बड़ा कोई धन नहीं होता. तो मित्रों, यही बात हमारे दैनिक जीवन पर भी लागू होती है पैसा कितना भी कमा लो लेकिन स्वस्थ शरीर से बढ़कर कोई पूंजी नहीं होती.
कहानी से सीख – एक स्वस्थ शरीर से बढ़कर कोई पूंजी नहीं होती.
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