Chouboli love story in Hindi

चौबोली की प्रेम कहानी, रानी चौबोली की कहानी, राजा विक्रमादित्य की प्रेम कहानी, चौबोली और राजा विक्रमादित्य, Choboli Ki Prem Kahani, Chouboli Ki Prem Kahani, Rani Choboli Ki Kahani, Chouboli Aur Raaja Vikramaditya, Chouboli Love Story in Hindi

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रानी चौबोली की कहानी, चौबोली और राजा विक्रमादित्य
एक दिन राजा विक्रमादित्य और उसकी एक रानी के साथ थोड़ी बहस हो गयी रानी कहने लगी- मैं रूठ गयी तो आपको मेरे जैसी रूपवती व गुणवान पत्नी कहाँ मिलेगी ? राजा बोला- मैं तो तेरे से भी सुन्दर व गुणवान ऐसी पत्नी ला सकता हूँ जिसका तूं तो किसी तरह से मुकाबला ही नहीं कर सकती।
रानी बोली- यदि ऐसे ही बोल रहे है तो फिर चौबोली को पकड़ कर लाओ तब जानूं । राजा तो उसी वक्त चौबोली से प्रणय करने चल पड़ा। चौबोली बहुत ही सुन्दर रूपवती, गुणवान थी हर राजा उससे प्रणय करने की ईच्छा रखते थे। पर चौबोली ने भी एक शर्त रखी हुई थी कि –
जो व्यक्ति रात्री के चार प्रहरों में चार बार उसके मुंह से बुलवा दे उसी से वह शादी करेगी और जो उसे न बुलवा सके उसे कैद । अब तक कोई एक सौ साठ राजा अपने प्रयास में विफल होकर उसकी कैद में थे।

चौबोली ने अपने महल के आगे एक ढोल रखवा रखा था जिसे भी उससे शादी करने का प्रयास करना होता था वह आकार ढोल पर डंके की चोट मार सकता था। (Chouboli love story in Hindi)

राजा विक्रमादित्य भी वहां पहुंचे और ढोल पर जोरदार चोट मार चौबोली को आने की सुचना दी। चौबोली ने सांय ही राजा को अपने महल में बुला लिया और उसके सामने सौलह श्रृंगार कर बैठ गयी। राजा ने वहां आने से पहले अपने चार वीर जो अदृश्य हो सकते थे व रूप बदल सकते थे को साथ ले लिया था और उन्हें समझा दिया था कि उसके साथ चौबोली के महल में रूप बदलकर छुप जाएं।

राजा चौबोली के सामने बैठ गया, चौबोली तो बोले ही नहीं ऐसे चुपचाप बैठी जैसे पत्थर हो। पर राजा भी आखिर राजा विक्रमादित्य था। वह चौबोली के पलंग से बोला-
पलंग चौबोली तो बोलेगी नहीं सो तूं ही कुछ ताकि रात का एक प्रहर तो कटे।

पलंग में छुपा राजा का एक वीर बोलने लगा- राजा आप यहाँ आकर कहाँ फंस गए ? खैर मैं आपको एक कहानी सुनाता हूँ आप हुंकारा दीजिए कम से कम एक प्रहर तो कट ही जायेगा।

पलंग बोलने लगा राजा हुंकारा देने लगा- एक राजा का और एक साहूकार का बेटा, दोनों मैं तगड़ी दोस्ती थी। साथ सोते,साथ खेलते।साथ आते जाते। एक पल भी एक दूसरे से दूर नहीं होते।दोनों ने आपस में तय भी कर रखा था कि वे दोनों कभी अलग नहीं होंगे।

दोनों की शादियाँ भी हो चुकी थी और दोनों की ही पत्नियाँ मायके बैठी थी।एक दिन साहूकार अपने बेटे से बोला कि -बेटे तेरी बहु मायके में बैठी है जवान है उसे ज्यादा दिन वहां नहीं छोड़ा जा सकता सो जा और उसे ले आ।

बेटा बोला- बापू!आपका हुक्म सिर माथे पर जावूँ कैसे मैंने तो कुंवर से वादा कर रखा है कि उसे छोड़कर कहीं अकेला नहीं जाऊंगा।

साहूकार ने सोचते हुए कहा- बेटे तुम दोनों में ऐसी ही मित्रता है तो एक काम कर राजा के बेटे को भी अपनी ससुराल साथ ले जा । पर एक बात ध्यान रखना तेरे ससुराल में उसकी खातिर उनकी प्रतिष्ठा के हिसाब से बड़े आव-भगत से होनी चाहिए।

आखिर दोनों मित्र साहूकार के बेटे की ससुराल चल दिए।रास्ते में राजा का बेटा तो बड़ी मस्ती से व मजाक करता चल रहा था और साहूकार का बेटा बड़ी चिंता में चल रहा था पता नहीं ससुराल वाले कुंवर की कैसी खातिर करेंगे यदि कोई कमी रह गयी तो कुंवर क्या सोचेगा आदि आदि। (Chouboli love story in Hindi)

चलते चलते रास्ते में एक देवी का मंदिर आया। जिसके बारे में ऐसी मान्यता थी कि वहां देवी के आगे जो मनोरथ मांगो पूरा हो जाता। कोढियों की कोढ़ मिट जाती, पुत्रहीनों को पुत्र मिल जाते। साहूकार के बेटे ने भी देवी के आगे जाकर प्रार्थना की- हे देवी माँ ! ससुराल में मेरे मित्र की खातिर व आदर सत्कार वैसा ही हो जैसी मैंने मन में सोच रखा है। यदि मेरे मन की यह मुराद पूरी हुई तो वापस आते वक्त मैं अपना मस्तक काटकर आपके चरणों में अर्पित कर दूँगा। (Chouboli love story in Hindi)

ऐसी मनोकामना कर वह अपने मित्र के साथ आगे बढ़ गया और ससुराल पहुँच गया। ससुराल वाले बहुत बड़े साहूकार थे, उनकी कई शहरों में कई दुकाने थी, विदेश से भी वे व्यापार करते थे इसके लिए उनके पास अपने जहाज थे। पैसे वाले तो थे ही साथ ही दिलदार भी थे उन्होंने अपने दामाद के साथ आये राजा के कुंवर को देखकर ऐसी मान मनुहार व आदर सत्कार किया कि उसे देखकर राजा का कुंवर खूद भौचंका रह गया। ऐसा सत्कार तो उसने कभी देखा ही नहीं था।

दोनों दस दिन वहां रहे उसके बाद साहूकार के बेटे की वधु को लेकर वापस चले। रास्ते में राजा का बेटा तो वहां किये आदर सत्कार की प्रशंसा ही करता रहा। साहूकार के बेटे ने जो मनोरथ किया था वो पूरा हो गया। रास्ते में देवी का मंदिर आया तो साहूकार का बेटा रुका।
बोला- आप चलें मैं दर्शन कर आता हूँ।
राजा का बेटा बोला- मैं भी चलूं दोनों साथ साथ दर्शन कर लेंगे।
साहूकार का बेटा- नहीं ! मैंने अकेले में दर्शन करने की मन्नत मांगी है इसलिए आप रुकिए।
साहूकार का बेटा मंदिर में गया और अपना सिस काटकर देवी के चरणों में चढा दिया। राजा के कुंवर ने काफी देर तक इन्तजार किया फिर भी साहूकार का बेटा नहीं आया तो वह भी मंदिर में जा पहुंचा। आगे देखा तो मंदिर में अपने मित्र का कटा सिर एक तरफ पड़ा था और धड एक तरफ।कुंवर के पैरों तले से तो धरती ही खिसक गयी। ये क्या हो गया? अब मित्र की पत्नी और उसके पिता को क्या जबाब दूँगा। कुंवर सोच में पड़ गया कि इस तरह बिना मित्र के घर जाए लोग क्या क्या सोचेंगे ? आज तक हम अलग नहीं रहे आज कैसे हो गए ? ये सब सोचते सोचते और विचार करते हुए कुंवर ने भी तलवार निकाली और अपना सिर काट कर डाला।

उधर साहूकार की वधु रास्ते में खड़ी खड़ी दोनों का इन्तजार करते करते थक गयी तो वह भी मंदिर के अंदर पहुंची और वहां का दृश्य देख हक्की बक्की रह गयी। दोनों मित्रों के सिर कटे शव पड़े थे।मंदिर में लहू बह रहा था। वह सोचने लगी कि – अब उसका क्या होगा? कैसे ससुराल में बिना पति के जाकर अपना मुंह दिखाएगी? लोग क्या क्या कहेंगे? यह सोच उसने भी तलवार उठाई और जोर से अपने पेट में मारने लगी तभी देवी माँ ने प्रकट हो उसका हाथ पकड़ लिया।

साहूकार की वधु देवी से बोली- हे देवी! छोड़ दे मुझे और मरने दे। इन दोनों का तुने भक्षण कर लिया है अब मेरा भी कर ले।

देवी ने कहा- तलवार नीचे रख दे और दोनों के सिर उठा और इनके धड़ पर रख दे अभी दोनों को पुनर्जीवित कर देती हूँ। साहूकार की वधु ने झट से दोनों के सिर उठाये और धड़ों के ऊपर रख दिए। देवी ने अपने हाथ से उनपर एक किरण छोड़ी और दोनों जीवित हो उठे।देवी अंतर्ध्यान हो गयी। (Chouboli love story in Hindi)

पर एक गडबड हो गयी साहूकार की बहु ने जल्दबाजी में साहूकार का सिर कुंवर की धड़ पर और कुंवर का सिर साहूकार की धड़ पर रख दिया था। अब दोनों विचार में पड़ गए कि -अब ये पत्नी किसकी ? सिर वाले की या धड़ वाले की ? पलंग बोला- ‘ हे राजा ! विक्रमादित्य आप न्याय के लिए प्रसिद्ध है अत: आप ही न्याय करे वह अब किसकी पत्नी होगी? राजा बोला- इसमें पुछने वाली कौनसी बात है ? वह महिला धड़ वाले की ही पत्नी होगी। (Chouboli love story in Hindi)

ये सुनते ही चौबोली बोली चमकी। गुस्से में भर कर बोली- वाह ! राजा वाह ! बहुत बढ़िया न्याय करते हो। धड़ से क्या लेना देना, पत्नी तो सिर वाले की ही होगी। सिर बिना धड़ का क्या मोल।’ राजा बोला- आप जो कह रही है वही सत्य है। बजा रे ढोली ढोल। चौबोली बोली पहला बोल।। और ढोली ने ढोल पर जोरदार डंका मारा धे अब राजा ने चौबोली के कक्ष में रखे पानी के मटके को बतलाया- हे मटके! एक प्रहर तो पलंग ने काट दी अभी भी रात के तीन प्रहर बचे है। तूं भी कोई बात बता ताकि कुछ तो समय कटे। मटका बोलने लगा राजा हुंकार देता गया – मटका- एक समय की बात है एक राजा का बेटा और एक साहूकार का बेटा बचपन से ही बड़े अच्छे मित्र थे। साथ रहते,साथ खेलते,साथ खाते-पीते। एक दिन उन्होंने बचपने व नादानी में आपस एक वचन किया कि -जिसकी शादी पहले होगी वह अपनी पत्नी को सुहाग रात को अपने मित्र के पास भेजेगा। समय बीता और बात आई गयी हो गयी।

समय के साथ दोनों मित्र बड़े हुए तो साहूकार ने अपने बेटे का विवाह कर दिया। साहूकार की बहु घर आ गयी। सुहाग रात का समय, बहु रमझम करती, सोलह श्रृंगार किये अपने शयन कक्ष में घुसी, आगे देखा साहूकार का बेटा उसका पति मुंह लटकाए उदास बैठा था। साहूकारनी बड़ी चतुर थी अपने पति की यह हालत देख बड़े प्यार से हाथ जोड़कर बोली-

क्या बात नाथ ! क्या आप मेरे से नाराज है ? क्या मैं आपको पसंद नहीं हूँ ? या मेरे माँ-बाप ने शादी में जो दिया वह आपको पसंद नहीं ? मैं जैसी भी हूँ आपकी सेवा में हाजिर हूँ।आपने मेरा हाथ थामा है मेरी लाज बचाना अब आपके हाथ में है।
साहूकार बोला-ऐसी बात नहीं है! मैं धर्म संकट में फंस गया हूँ । बचपन में नादानी के चलते अपने मित्र राजा के कुंवर से एक वचन कर लिए था जिसे न निभा सकता न तोड़ सकता, अब क्या करूँ ? समझ नहीं आ रहा।और न ही वचन के बारे में बताना आ रहा ।
ऐसा क्या वचन दिया है आपने! कृपया मुझे भी बताएं,यदि आपने कोई वचन दिया है तो उसे पूरा भी करेंगे। मैं भी आपका इसमें साथ दूंगी। (Chouboli love story in Hindi)

साहूकार पुत्र ने अपनी पत्नी को न चाहते हुए भी बचपन में किये वचन की कहानी सुनाई।
पत्नी बोली-हे नाथ ! चिंता ना करें।मुझे आज्ञा दीजिए मैं आपका वचन भी निभा लुंगी और अपना धर्म भी बचा लुंगी।
ऐसा कह पति से आज्ञा ले साहूकार की पत्नी सोलह श्रृंगार किये कुंवर के महल की ओर चली। रास्ते में उसे चोर मिले। उन्होंने गहनों से लदी साहूकार पत्नी को लूटने के इरादे से रोक लिया।

सहुकारनी चोरों से बोली- अभी मुझे छोड़ दीजिए, मैं एक जरुरी कार्य से जा रही हूँ, वापस आकार सारे गहने,जेवरात उतारकर आपको दे दूँगा ये मेरा वादा है।पर अभी मुझे मत रोकिये जाने दीजिए ।
चोर बोले-तेरा क्या भरोसा? जाने के बाद आये ही नहीं और आये भी तो सुपाहियों के साथ आये!
सहुकारनी बोली- मैं आपको वचन देती हूँ। मेरे पति ने एक वचन दिया था उसे पूरा कर आ रही हूँ। वह पूरा कर आते ही आपको दिया वचन भी पूरा करने आवुंगी। (Chouboli love story in Hindi)
चोरों ने आपस में सलाह की कि-देखते है यह वचन पूरा करती है या नहीं, यदि नहीं भी आई तो कोई बात नहीं एक दिन लुट का माल न मिला सही।
सहुकारनी रमझम करती कुंवर के महल की सीढियाँ चढ गयी। कुंवर पलंग पर अपने कक्ष में सो रहा था। साहुकारनी ने कुंवर के पैर का अंगूठा मरोड़ जगाया- जागो कुंवर सा।
कुंवर चौक कर जागा और देखा उसके कक्ष में इतनी रात गए एक सुन्दर स्त्री सोलह श्रृंगार किये खड़ी है। कुंवर को लगा वह सपना देख रहा है इसलिए कुंवर ने बार बार आँखे मल कर देखा और बोला –
हे देवी ! तुम कौन हो ? कहाँ से आई हो? और इस तरह इतनी रात्री गए तुम्हारा यहाँ आने का प्रयोजन क्या है ? (Chouboli love story in Hindi)

साहूकार की पत्नी बोली- मैं आपके बचपन के मित्र साहूकार की पत्नी हूँ। आपके व आपके मित्र के बीच बचपन में तय हुआ था कि जिसकी शादी पहले होगी वह अपनी पत्नी को सुहाग रात में अपने मित्र के पास भेजेगा सो उसी वचन को निभाने हेतु आपके मित्र ने आज मुझे सुहाग रात्री के समय आपके पास भेजा है।
कुंवर को यह बात याद आते ही वह बहुत शर्मिंदा हुआ और अपने मित्र की पत्नी से बोला-
हे देवी! मुझे माफ कर दीजिए वो तो बालपने में नादानी में हुयी बातें थी। आप तो मेरे लिए माँ- बहन समान है। (Chouboli love story in Hindi)
कहकर कुंवर ने मित्र की पत्नी को बहन की तरह चुन्दड़ी(ओढ़ना) सिर पर ओढ़ाई और एक हीरों मोतियों से भरा थाल भेंट कर विदा किया।
साहुकारनी वापस आई, चोर रास्ते में ही खड़े उसका इन्जार कर रहे थे उसे देख आपस में चर्चा करने लगे ये औरत है तो जबान की पक्की।
साहुकारनी ने चोरों के पास आकार बोला- यह हीरों मोतियों से भरा थाल रख लीजिए ये तुम्हारे भाग्य में ही लिखा था। और मैं अभी अपने गहने उतार कर भी आपको दे देती हूँ। कहकर साहुकारनी अपने एक एक कर सभी गहने उतारने लगी।
चोरों को यह देख बड़ा आश्चर्य हुआ वे पुछने लगे- पहले ये बता कि तूं गयी कहाँ थी ? और ये हीरों भरा थाल तुझे किसने दिया?
साहुकारनी ने पूरी बात विस्तार से चोरों को बतायी। सुनकर चोरों के मुंह से निकला-धन्य है ऐसी औरत! जो अपने पति का वचन निभाने कुंवर जी के पास चली गयी और धन्य है कुंवर जी जिन्होंने इसकी मर्यादा की रक्षा व आदर करते हुए इसे अपनी बहन बना इतने महंगे हीरे भेंट किये। ऐसी चरित्रवान और धर्म पर चलने वाली औरत को तो हमें भी बहन मानना चाहिए। (Chouboli love story in Hindi)
और चोरों ने भी उसे बहन मान उसका सारा धन लौटते हुए उनके पास जो थोड़ा बहुत लुटा हुआ धन था भी उसे भेंट कर उसे सुरक्षित उसके घर तक पहुंचा दिया।
अब मटकी राजा से बोली- हे राजा विक्रमादित्य! आपने बहुत बड़े बड़े न्याय किये है अब बताईये इस मामले में किसकी भलमनसाहत बड़ी चोरों की या कुंवर की
। राजा बोला-यह तो साफ है कुंवर की भलमनसाहत ज्यादा बड़ी।
इतना सुनते ही चौबोली को गुस्सा आ गया और वह गुस्से में राजा से बोली- अरे राजा तेरी अक्ल कहाँ गयी ? क्या ऐसे ही न्याय करके तूं लोकप्रिय हुआ है! सुन – इस मामले में चोर बड़े भले मानस निकले।
जब सहुकारनी चोरों को वचन के मुताबिक इतना धन दें रही थी फिर भी चोरों ने उसे बहन बना पास में जो था वह भी दे दिया इसलिए चोरों की भलमनसाहत ज्यादा बड़ी है।
राजा बोला- चौबोली ने जो न्याय किया है वह खरा है।
बजा रे ढोली ढोल।
चौबोली बोली दूजो बोल।।
और ढोली ने नंगारे पर जोर से दो दे मारी धें – धें

अब राजा चौबोली के महल की खिड़की से बोला-दो घडी रात तो कट गयी अब तूं ही कोई बात कह ताकि तीसरा प्रहर कट सके।
खिड़की बोली- ठीक है राजा ! आपका हुक्म सिर माथे, मैं आपको कहानी सुना रही हूँ आप हुंकारा देते जाना। खिड़की राजा को कहानी सुनाने लगी-एक गांव में एक ब्राह्मण व एक साहूकार के बेटे के बीच बहुत गहरी मित्रता थी।जब वे जवान हुए तो एक दिन ससुराल अपनी पत्नियों को लेने एक साथ रवाना हुए कई दूर रास्ता काटने के बाद आगे दोनों के ससुराल के रास्ते अलग अलग हो गए। अत: अलग-अलग रास्ता पकड़ने से पहले दोनों ने सलाह मशविरा किया कि वापसी में जो यहाँ पहले पहुँच जाए वो दूसरे का इंतजार करे। (Chouboli love story in Hindi)

ऐसी सलाह कर दोनों ने अपने अपने ससुराल का रास्ता पकड़ा। साहूकार के बेटे के साथ एक नाई भी था। ससुराल पहुँचने पर साहूकार के साथ नाई को देखकर एक बुजुर्ग महिला ने अन्य महिलाओं को सलाह दी कि -जवांई जी के साथ आये नाई को खातिर में कहीं कोई कमी नहीं रह जाए वरना यह हमारी बेटी के सुसराल में जाकर हमारी बहुत उलटी सीधी बातें करेगा और इसकी बढ़िया खातिर करेंगे तो यह वहां जाकर हमारी तारीफों के पुरे गांव में पुल बांधेगा इसलिए इसलिय इसकी खातिर में कोई कमी ना रहें।

बस फिर क्या था घर की बहु बेटियों ने बुढिया की बात को पकड़ नाई की पूरी खातिरदारी शुरू करदी वे अपने जवांई को पूछे या ना पूछे पर नाई को हर काम में पहले पूछे, खाना खिलाना हो तो पहले नाई,बिस्तर लगाना हो तो पहले नाई के लगे। साहूकार का बेटा अपनी ससुराल में मायूस और नाई उसे देख अपनी मूंछ मरोड़े। यह देख मन ही मन दुखी हो साहूकार के बेटे ने वापस जाने की जल्दी की। ससुराल वालों ने भी उसकी पत्नी के साथ उसे विदा कर दिया। अब रास्ते में नाई साहूकार पुत्र से मजाक करते चले कि- ससुराल में नाई की इज्जत ज्यादा रही कि जवांई की ? जैसे जैसे नाई ये डायलोग बोले साहूकार का बेटा मन ही मन जल भून जाए। पर नाई को इससे क्या फर्क पड़ने वाला था उसने तो अपनी डायलोग बाजी जारी रखी ऐसे ही चलते चलते काफी रास्ता कट गया। आधे रास्ते में ही साहूकार के बेटे ने इसी मनुहार वाली बात पर गुस्सा कर अपनी पत्नी को छोड़ नाई को साथ ले चल दिया। (Chouboli love story in Hindi)

इस तरह बीच रास्ते में छोड़ देने पर साहूकार की बेटी बहुत दुखी हुई और उसने अपना रथ वापस अपने मायके की ओर मोड़ लिया पर वह रास्ता भटक कर किसी और अनजाने नगर में पहुँच गयी। नगर में घुसते ही एक मालण का घर था, साहुकारनी ने अपना रथ रोका और कुछ धन देकर मालण से उसे अपने घर में कुछ दिन रहने के लिए मना लिया। मालण अपने बगीचे के फूलों से माला आदि बनाकर राजमहल में सप्लाई करती थी। अब मालण फूल तोड़ कर लाये और साहुकारनी नित नए डिजाइन के गजरे, मालाएं आदि बनाकर उसे राजा के पास ले जाने हेतु दे दे। एक दिन राजा ने मालण से पुछा कि -आजकल फूलों के ये इतने सुन्दर डिजाइन कौन बना रहा है ? तुझे तो ऐसे बनाने आते ही नहीं।
मालण ने राजा को बताया- हुकुम! मेरे घर एक स्त्री आई हुई है बहुत गुणवंती है वही ऐसी सुन्दर-सुन्दर कारीगरीयां जानती है।

राजा ने हुक्म दे दिया कि- उसे हमारे महल में हाजिर किया जाय। अब क्या करे? साहुकारनी ने बहुत मना किया पर राजा का हुक्म कैसे टाला जा सकता था सो साहुकारनी को राजा के सामने हाजिर किया गया। राजा तो उस रूपवती को देखकर आसक्त हो गया ऐसी सुन्दर नारी तो उसके महल में कोई नहीं थी। सो राजा ने हुक्म दिया कि -इसे महल में भेज दिया जाय। साहुकारनी बोली- हे राजन ! आप तो गांव के मालिक होने के नाते मेरे पिता समान है।मेरे ऊपर कुदृष्टि मत रखिये और छोड़ दीजिए।

पर राजा कहाँ मानने वाला था, नहीं माना, अत: साहुकारनी बोली- आप मुझे सोचने हेतु छ: माह का समय तो दीजिए। राजा ने समय दे दिया साथ ही उसके रहने के लिए गांव के नगर के बाहर रास्ते पर एक एकांत महल दे दिया। (Chouboli love story in Hindi)

साहुकारनी रोज उस महल के झरोखे से आते जाते लोगों को देखती रहती कहीं कोई ससुराल या पीहर का कोई जानपहचान वाला मिल जाए तो समाचार भेजें जा सकें।
उधर रास्ते में ब्राह्मण का बेटा अपने मित्र साहूकार का इन्तजार कर रहा था जब साहूकार को अकेले आते देखा तो वह सोच में पड़ गया उसने पास आते ही साहूकार के बेटे से उसकी पत्नी के बारे में पुछा तो साहूकार बेटे ने पूरी कहानी ब्राह्मण पुत्र को बताई।
ब्राह्मण ने साहूकार को खूब खरी खोटी सुनाई कि- ‘बावली बूच नाई की खातिर ज्यादा हो गयी तो इसमें उसकी क्या गलती थी ? ऐसे कोई पत्नी को छोड़ा जा सकता है ?
और दोनों उसे लेने वापस चले, तलाश करते करते वे दोनों भी उसी नगर पहुंचे। साहुकारनी ने महल के झरोखे से दोनों को देख लिया तो बुलाने आदमी भेजा। मिलने पर ब्राह्मण के बेटे ने दोनों में सुलह कराई। राजा को भी पता चला कि उसका ब्याहता आ गया तो उसने भी अपने पति के साथ जाने की इजाजत दे दी।और साहूकार पुत्र अपनी पत्नी को लेकर घर आ गया।
कहानी पूरी कर खिड़की ने राजा से पुछा- हे राजा! आपके न्याय की प्रतिष्ठा तो सात समंदर दूर तक फैली है अब आप बताएं कि -इस मामले में भलमनसाहत किसकी ? साहूकार की या साहुकारनी की ?
राजा बोला- इसमें तो साफ़ है भलमनसाहत तो साहूकार के बेटे की। जिसने छोड़ी पत्नी को वापस अपना लिया।
इतना सुनते ही चौबोली के मन में तो मानो आग लग गयी हो उसने राजा को फटकारते हुए कहा-

अरे अधर्मी राजा! क्या तूं ऐसे ही न्याय कर प्रसिद्ध हुआ है ? साहूकार के बेटे की इसमें कौनसी भलमनसाहत ? भलमनसाहत तो साहूकार पत्नी की थी। जिसे निर्दोष होने के बावजूद साहूकार ने छोड़ दिया था और उसे रानी बनने का मौका मिलने के बावजूद वह नहीं मानी और अपने धर्म पर अडिग रही।धन्य है ऐसी स्त्री।

राजा बोला- हे चौबोली जी ! आपने जो न्याय किया वही न्याय है।
बजा रे ढोली ढोल।
चौबोली बोली तीजो बोल।।
और ढोली ने नंगारे पर जोर से ‘धें धें कर तीन ठोक दी। (Chouboli love story in Hindi)

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